—विनय कुमार विनायक
ईश्वर खोजने नही पाने की चीज है,
खोजी जाती वो चीज जो खोई होती,
खुद के अंदर से लेकर बाहर तक में
हर जगह ईश्वर की उपस्थिति होती!
ईश्वर से कुछ मांगना प्रार्थना नहीं है,
ईश्वर की अराधना धन की चाह नहीं,
ईश्वर की साधना सपना पाना नहीं है,
ईश्वर को पा लो, बांकी सब सपना है!
ईश्वर को ना किसी आकार में बांधना,
ईश्वर को नहीं किसी भाषा से साधना,
ईश्वर को हर जीव जंतुओं में पा लेना,
ईश्वर चराचर में कभी ना धोखा खाना!
प्रार्थना में मांग नहीं कर जो नश्वर है,
धर्म कोई अफीम नहीं, धर्म धारणा है,
जितना धारण कर सकते हो धारणकर
ईश्वर के ऐश्वर्य को जो हृदय के अंदर!
हमनें कभी नहीं चाहा अपने ईश्वर को
मन्दिर में पाना, जितना की दौलत को!
हमनें मन्दिर में कभी प्रार्थना नहीं की
ईश्वर को पाने की, जितना शोहरत को!
धर्म नहीं बांटता है मनुष्य को खांचे में,
धर्म ढालता है हमें मानवता के सांचे में,
धर्म दया,ममता,करुणा, सहिष्णुता प्रदाता,
धर्म है ईश्वर का पथ आत्मज्ञानी बनाता!
धर्म नहीं किसी को जाति वर्ग में बांटता,
धर्म नहीं हिन्दू मुस्लिम में विभेद करता,
धर्म सृष्टि के सब जीवों से जोड़ता रिश्ता,
धर्म मजहब में बहुत अधिक अंतर होता!
हिन्दू मुस्लिम बनने से सृष्टि नहीं बचेगी,
मानवता के धर्म से ही इंसानियत फैलेगी,
ना हिन्दू बनो, ना मुसलमान बनो रे भाई,
हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई होके बनो न तमाशाई!
—विनय कुमार विनायक