विविधा साहित्‍य

हमारी शब्द रचना का समृद्ध आधार

डॉ. मधुसूदन

(एक)प्रवेश:
२,३,४ अक्तुबर-२०१५ को वॉशिंग्टन डी. सी. में अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के सम्मेलन में डॉ. मधुसूदन के प्रमुख वक्तव्य का पहला भाग।
(दो) चिडिया की चीं-चीं और कौवे की का-का
चीं-चीं करती चिडिया आप ने सुनी होगी; और का-का करता कौवा भी। वैसे कौआ काँव-काँव या काँय-काँय भी सुनाई दे सकता है। पर का-का का उदाहरण ले कर ही आगे बढते हैं।
International+Hindi+Conference+2015+Logoअब कुछ गहाराई में सोचिए। चिडिया को चीं-चीं के आधारपर यदि शब्द रचने पडे, तो, कितने शब्द रच पाएगी?
उत्तर होगा, विशेष नहीं। चीं, चीं-चीं, चीं-चीं-चीं, ऐसे ही बार बार उच्चार करके उसके शब्द रचे जाएंगे। चिडिया इसी चीं-चीं के विविध प्रयोगों से अभिव्यक्ति भी करती प्रतीत होती है। चिडियों के शब्दों के अर्थ भी होंगे; और उन्हें (शायद) पता होंगे।

जब चिडिया को एक ही उच्चार उपलब्ध है, तो, इस एक उच्चार से चिडियाकी शब्द क्षमता मर्यादित होगी।कुछ गहराई में सोचें तो अनुमान होगा कि, चिडिया के नाम में पहले चि अक्षर का होना भी चिडिया की बोली के प्रारंभिक चीं से जुडा है। कौवे का-का भी उसके नाम *काग* या *कागा* से जुडा हुआ है।
और, यदि, कौवे को शब्द रचने पडे तो, कैसे होंगे? वे शब्द होंगे; का, का-का, का-का-का, का-का-का-का इत्यादि। क्या ऐसे ही शब्द आपने चिडियों और कौवों से सुने नहीं है?

चिडिया के शब्दों में उसके पास चीं-चीं से अधिक उच्चारण नहीं है।
और कौवों के पास भी का-का से अधिक उच्चारण नहीं है।
तो ऐसी उच्चारण की सीमा उनकी शब्द रचना को मर्यादित करती है।
इसी निरीक्षण का विस्तार कर, भिन्न भिन्न भाषाओं की शब्द क्षमता भी परखी जा सकती है।
और, किसी विशेष भाषा के कुल उच्चारणों की संख्या, उसकी कुल शब्द-क्षमता को सीमित कर देती है। देखा जा सकता है; कि, भाषा में जितने अधिक से अधिक उच्चार उपलब्ध होंगे, उतनी ही उस भाषा की संभाव्य शब्द सामग्री भी अधिक होगी।
ऐसे कुल उच्चारणों की संख्या भाषाके शब्दों की कच्ची सामग्री मानी जा सकती है।

(तीन) कुछ भाषाओं के उपलब्ध अक्षर
उदाहरणार्थ, हवाइयन भाषा की कच्ची सामग्री है उसके कुल १३ अक्षर। अंग्रेज़ी के २६ और हिन्दी-संस्कृत के ४८ है।(एक तर्क से हमारे ४४४ उच्चार है।)
रोमन अंग्रेज़ी के आज कल, २६ है,जो उसे लातिनी से मिले हैं। पहले २० थे, फिर २३ हुए, अब २६ है।
अब हमारी देवनागरी हिन्दी के उच्चारण है, ४६ पर एक अलग तर्क से ४४४ है।

(चार) हवाईयन भाषा के १३ अक्षर।
हवाईयन भाषा में केवल १३ अक्षर होते हैं। इसके कारण उस भाषा के शब्दों की संख्या सीमित हो जाती है। निम्न शब्दों का निरीक्षण करने पर, आपके ध्यान में आएगा, कि इस भाषा में कुछ विशेष स्वर और व्यंजनो का ही प्रयोग हुआ है।
(पाँच) हवाइयन शब्दों की मर्यादा
हवाइयन भाषा के शब्दों की संख्या भी बहुत मर्यादित होती है। क्यों कि जब कुल उच्चार ही १३ है; तो उन्हीं के आधार पर आप संभवतः कितने शब्द रच पाएंगे?
कुछ स्थानों के नाम देखने पर आप अनुमान कर पाएंगे।
(१)Hilo, हीलो या हैलो (२)Kailua काइलूआ (३)Kaneohe कानैहो (४)Waipahu, वैपाहू (५)Waimaluवैमालू (६)Mililani, मिलीलानी (७)Kahului, काहुलुई (८)Kihei, किहेइ (९)Waikiki,वाइकीकी (१०)Hawaii हवाई, (११)Honolulu,होनोलूलू (१२) Mauna Kea,मौना की(१३)Molokai मोलोकाय

(छः) अंग्रेज़ी शब्दों के हवाईयन उच्चार
इसी कारण अंग्रेज़ी शब्दों के हवाईयन उच्चार भी विकृत हो जाते हैं।
April–>होता है एपेलिला, January –> इयान्युआली, February –>पेपेलुआली, May –>मेयी, June —>इयुने, July – इयुलाई

(सात) कुछ अर्थ सहित भाषा के शब्द
(१)अलोहा।—>प्रेम, नमस्कार, विदाई, (२) हाओले,—>गोरा परदेशी (३) लानाय—> छज्जा, ओसारा, बरामदा, (४) तापा —>वल्कल (५)माही माही —>एक प्रकार की मछली, (६)युकुलेले —> एक बाजा (७) माउका –> पहाडी की ओर, (८) माकाई —>समुद्र की ओर

(आठ) निघंटु: वैदिक शब्दों का संग्रह।
उससे विपरित हमारी वैदिक शब्द समृद्धि का उदाहरण भी देखिए।
निघंटु वैदिक शब्दों का संग्रह होता है। और अचरज होगा आपको कि, वेदों में ही उदक या जल के १०० (प्रकार) नाम है।
एक बार, स्वयं को बडे प्रगतिवादी माननेवाले, एक भारतीय विद्वान ने जब मुझे (पिछडा मान कर) अंग्रेज़ी का Water(वॉटर)शब्द स्वीकार कर, भारतीय भाषाओं की समृद्धि बढाने का अनुरोध किया, तब मैं ने सीधा निरुक्त खोलकर उन्हें दिखाया कि, हमारे पास जब पानी के लिए ही १०० शब्द वैदिक ग्रंथों में ही उपलब्ध है, तो उसमें आप *वॉटर* डाल कर उसे और कितनी समृद्ध बनाना चाहते हैं? क्या आप कुबेर को ऋण देना चाहते हैं? पर क्यों?
ध्यान रहे, कि, इन्हीं १०० शब्दों में से, एक उदक शब्द का रूसी *वोडका* भी बना हुआ है।

(नौ) वैदिक शब्दों के उदाहरण
कुछ वैदिक शब्दों के उदाहरण आपको हमारी शब्द समृद्धि प्रमाणित कर देंगे। ऐसे हज़ारों शब्द आप निघण्टु में देख सकते हैं।
पृथ्वी के २१ नाम, उषा के १६, दिन के १३,
वाक के ५७, जल (उदक) के १००,
नदी के ३७, घोडे (अश्व)के २६,
मेधावी के २४, मनुष्य के २५,
अन्न के २८, बल के २८,गौ (माता)के ९,
(शीघ्रता ) के २६…… इत्यादि।
ऐसे अनेक वैदिक शब्दों का संग्रह मात्र निघण्टु यह ग्रंथ सर्वमान्य है। कोई उसे अस्वीकार नहीं करता;न पश्चिमी विद्वान न पूर्वी पण्डित।

(दस) अंग्रेज़ के उच्चारण की मर्यादा
अंग्रेज़ भी जब हमारे शब्द उच्चारता है, तो वह भी अपनी मर्यादा से जकडा हुआ है। यह बिंदू बहुत महत्व रखता है। इस बिन्दू की ओर अंग्रेज़ी की वकालत करनेवालों का विशेष ध्यान गया हो ऐसा लगता नहीं है। उनका ध्यान हिन्दी-संस्कृत में ही दोष देखने पर केंद्रित होता है। पर, संस्कृत और उससे प्रभावित हिन्दी सीख कर हमारे अंग्रेज़ी उच्चारण में विशेष दोष होता नहीं है।
देवनागरी के इस विशेष गुण की प्रशंसा का उद्धरण *संस्कृत साहित्य का इतिहास* -लेखक मॅकडॉनेल की पुस्तक से है।

(ग्यारह)मॅकडॉनेल कहते हैं:
इस पुस्तक में, मॅकडॉनेल कहते हैं;
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*देव नागरी लिपि, मात्र संस्कृत उच्चारों को ही नहीं दर्शाती, पर लिपि को विशुद्ध वैज्ञानिक आधार देकर उच्चारों का वर्गीकरण भी करती है।*
दूसरी ओर, हम युरप वासी आज, २५०० वर्षों बाद इस वैज्ञानिक युग में उन्हीं A B C D खिचडी वर्णाक्षरो (रोमन लिपि) का प्रयोग करते हैं, जो हमारी भाषाओं के सारे उच्चारणों को दर्शाने में भी असमर्थ और अपर्याप्त है, स्वर और व्यंजनो की ऐसी खिचडी को, उसी भोंडी अवस्था में बचाके रखा है, जिस जंगली अवस्था में, ३००० वर्षों पहले अरब-यहूदियों से उसे प्राप्त किया था।*
(संदर्भ: संस्कृत साहित्य का इतिहास -ए. ए. मॅकडॉनेल पृष्ठ १७)
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(बारह) देवनागरी या ब्राह्मी प्रणीत लिपियों की कच्ची सामग्री
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः (१२)
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः (१२)
ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः (१२)
ऐसे प्रत्येक व्यञ्जन के १२ उच्चारण बन पाते हैं।
क, ख ग, घ, ङ,
च, छ, ज, झ,ञ,
ट, ठ, ड, ढ, ण,
त, थ, द, ध, न,
प, फ, ब, भ, म,
य, र, ल, व, श,
ष, स, ह, ळ, क्ष, ज्ञ।
प्रत्येक व्यंजन के ऐसे क का कि की ……इत्यादि की भाँति (१२) उच्चार। ऐसे कुल व्यञ्जनों के उच्चारण होते हैं।
एक तर्क से ३६x१२=४३२ हुए। स्वरों के १२ उच्चारण जोडने पर ४४४ हुए।
कुल उच्चार ३६ व्यंजन+१२ स्वर =४८ मान कर भी हमारी शब्द क्षमता अंग्रेज़ी की अपेक्षा कई अधिक होती है। जो आगे गणित कर के दिखाया गया है।
(तेरह) संयुक्त व्यञ्जन
हमारे संयुक्त व्यंजन जैसे कि क्र, क्ष्व, इत्यादि २५० तक संस्कृत में प्रायोजित होते है। तो कुल ऐसे संस्कृत उच्चारण प्रायः ६९४ हुए। हिंदी में ५५० तक मान सकते हैं।
पर ऐसे संयुक्त व्यञ्जनों को छोड कर भी हम केवल ४४४ उच्चारणों का ही विचार करें, तो भी हमारी कच्ची सामग्री अंग्रेज़ी से कई गुना अधिक हो जाएगी।
क्यों कि हमारा उच्चारण और अक्षर भिन्न नहीं है। जो लिखा जाता है, वही पढा जाता है। प्रत्येक अक्षर के लिए एक निश्चित मानक उच्चार, और प्रत्येक उच्चार को दर्शाने के लिए अक्षर।
अब उदाहरणार्थ पाँच पाँच अक्षरों के शब्द तुलना के लिए बनाते हैं।

कुल पाँच अक्षरों के शब्द = ४४४x४४३x४४२x४४१x४४०= १६८६९४२३१३००००
हिंदी के कुल ५ अक्षरों के शब्द= १६८६९४२३१३०००० शब्द
अंग्रेज़ी के कुल ५ अक्षरों वाले शब्द= २६x२५x२४x२३x२२= ७८९३६०० शब्द हुए
हिन्दी के शब्द अंग्रेज़ी की अपेक्षा २१३७१०१ गुणा हुए।

हिन्दी पाँच अक्षरों के शब्द(४८ उच्चारण मानकर)=४८x४७x४६x४५x४४=२०५४७६४८०
अंग्रेज़ी की अपेक्षा हमारी शब्द रचना क्षमता २६ गुणा है। इस में कोई संदेह नहीं।

(चौदह) हिंदी ५ अलग अक्षर के शब्द उदाहरण :
शब्द में एक अक्षर एक बार ही प्रयोजा हो, ऐसे शब्द।
उदाहरण देखें :जैसे (१) उपनिषद (२) अंजनीपुत्र (३) जनकसुता (४) पुराणकथा।
स्पष्टीकरण: (१) उपनिषद शब्द में, उ, प, नि, ष, और द एक एक बार ही प्रयोजा गया है।
ऐसे शब्दों की कच्ची सामग्री की सीमा की तुलना है।
पर विपरित उदाहरण: नवजीवन शब्द में न और व दो बार आया है। ऐसे शब्दों को छोडा जाए। शब्द तुलना का नियम दोनों लिपियों के लिए, समान ही रखा है।
अंग्रेज़ी का उदाहरण: CABLE, HINDU, INDUS.

कितना गुणा शब्द होते हैं? आँखे चकाचौंध हो जाएगी।

हिन्दी/संस्कृत की शब्दरचना क्षमता अंग्रेज़ी की अपेक्षा २१३७१०१ गुणा हुई; न्यूनतम २६ गुणा तो किसी विरोधक को भी स्वीकार करनी होगी।
जिस कामधेनु ने आज तक हमें जो माँगा वह शब्द दिया, और भी देने की क्षमता है उसकी; क्या उसी कामधेनु को डंडा मार कर भगा रहें हैं हम?

सूचना: किसी भी भाषा विज्ञान की पुस्तक में या नियत कालिक में इस विषय पर आलेख देखा नहीं है। शायद इस में जो गणित का प्रयोग किया है,वह भाषा वैज्ञानिकों के क्षेत्र में नहीं होता। यह लेखक का स्वतंत्र और विनम्र प्रयास है।
शब्दों की अर्थवाहिता और रचना पर आलेख का दूसरा भाग होगा।आलेख कुछ दीर्घ हो गया है।