मै एक आम आदमी, क्या मुझे कोई अधिकार नहीं? – दिवस दिनेश गौड़

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मित्रों पहले मै उन सब पाठकों, व टिप्पणीकारों को धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होंने मेरे पिछले लेखों को पढ़ा और उनपर अपने विचार व्यक्त किये| मुझे तो आशा भी नहीं थी कि मुझे इतने कम समय में इतने लोगों द्वारा पढ़ा और सराहा जाएगा| मेरे कुछ मित्र तो ऐसे हैं कि जब उन्होंने मेरे लेख और उन पर आने वाली टिप्पणियों को पढ़ा तो वे मुझे हँसते हँसते कहने लगे कि भाई तू तो बड़ा आदमी बन गया है|

अब शायद यह हो सकता है कि या तो आप लोग बहुत महान हैं जो मुझ जैसे आम आदमी को पढ़कर और अपने विचार दे कर उसे प्रेरणा दे रहे हैं, या फिर आप लोग मुर्ख हैं जो मुझ जैसे आम आदमी को पढ़कर अपना समय नष्ट कर रहे हैं| क्यों कि कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि एक आम आदमी को अपने विचार रखने का अधिकार ही नहीं है|

कुछ भी हो मेरी नज़र में हर वो व्यक्ति महान है जो राष्ट्र हित में विचार करता है, मानवतावादी भाषा बोलता है और साथ ही किसी आम आदमी के विचारों को भी समझता है और उसे मार्गदर्शन देता है| और आप सब ने मुझे मार्गदर्शन दिया अत: आप भी महान हैं|

मेरे ही कुछ करीबी लोगों ने मुझे यह सलाह दी है कि मै लिखने का यह फ़ालतू काम बंद कर दूं जो मैंने अभी अभी शुरू किया है| क्यों कि जब तक मै कोई बड़ा आदमी नहीं बन जाता मेरे विचारों को सुनने वाला, उन्हें पढने वाला और उन पर विचार करने वाला कोई नहीं है क्यों कि आम आदमी की बात पर अपना समय नष्ट करने वाले मुर्ख समझे जाते हैं| और मुझे यह सलाह देने वाले सभी लोग मेरे प्रियजन हैं, जिनका मै सम्मान करता हूँ, जिन्हें मै प्रेम करता हूँ|

मुझे तो राष्ट्रहित में सोचने की शिक्षा मेरे पिता एवं मेरे अग्रज से मिली है| जब मै इंजीनीयरिंग में प्रवेश की तैयारी कर रहा था तब मुझे कईयों ने कहा कि पहले इंजीनीयरिंग में प्रवेश ले लो फिर किसी से राष्ट्र हित में चर्चा करना क्यों कि अभी वे मुझे नासमझ समझेंगे और मेरी बातों पर ध्यान नहीं देंगे| साथ ही इससे मेरी पढाई भी बाधित होगी| मै ये मानता हूँ कि उन्होंने उस समय सच ही कहा था| पढाई तो मेरी बाधित होती ही साथ ही मुझे नासमझ भी समझा गया| फिर जब मैंने इंजीनीयरिंग में प्रवेश ले लिया तब भी ऐसा ही कहा गया कि पहले इंजीनीयरिंग पूरी करो, क्यों कि जब तुम इंजीनीयर बन जाओगे तो सब तुम्हारी बात को गंभीरता से लेंगे| अब जब मैंने इंजीनीयरिंग पूरी कर ली है तो फिर कहा गया कि जब तक एक अच्छी नौकरी हाथ में नहीं होती यही समझा जाता है कि एक बेरोजगार आदमी अपने मन की पीड़ा ही बोल रहा है अत: इस पर अधिक ध्यान न दिया जाए| जब मैंने नौकरी भी पा ली तो फिर मुझसे कहा गया कि जब तुम बड़े आदमी बन जाओगे तो तुम्हारी बात को हर कोई सुनेगा| इस लिये पहले अपना करियर बनाओ| खूब पैसा कमाओ|

अब और कितनी प्रतीक्षा करूँ मै? मुझे तो बड़ा आदमी बनना ही नहीं है, मै तो अपना सारा जीवन एक आम आदमी की तरह ही बिताना चाहता हूँ| तो क्या मुझे कभी यह अधिकार ही नहीं मिलेगा कि मै अपने राष्ट्र के गौरव को बनाए रखने में अपना सहयोग दे सकूं? क्या बड़े आदमी को ही यह सौभाग्य मिलेगा?

और बड़ा आदमी क्यों बनूँ मै? मैंने बहुत से ऐसे लोगों को देखा है जो बड़े मज़े से कहते थे कि जिस दिन हम कुछ बन जाएंगे उस दिन एक नया और गौरवशाली भारत बनाएंगे| आज वे सभी बड़े आदमी तो बन गए किन्तु भारत बनाने का उनका संकल्प वे स्वयं ही भूल गए| तो अब बताएं आम आदमी को अधिकार नहीं है और बड़ा आदमी यह कार्य करता नहीं है तो कौन करेगा यह काम? और बड़े आदमी की परिभाषा क्या है? यूं तो कितनी ही सीढियां चढ़ जाओ कोई मुझे बड़ा आदमी मानता नहीं तो मै क्या करूं| क्यों कि बड़ा आदमी तो उसे ही कहा जाता है जिसके पास बहुत सारा पैसा है, चाहे वह कैसे भी कमाया जाए| और मै बड़ा आदमी यदि ५० वर्ष की उम्र तक बनते बनते बन भी गया तो यह कह दिया जाएगा कि युवा शक्ति ही क्रान्ति ला सकती है| उस समय भी मै कुछ नहीं कर सकता|

आप मुझे बताएं कि १२५ करोड़ के देश में कितने बड़े(?) आदमे हैं? शायद दो पांच हज़ार| तो बाकी करीब १२४ करोड़ ९९ लाख ९५ हज़ार लोग क्या हमेशा झक ही मारते रहेंगे?

मै यदि अपना काम ख़त्म करके कोई तथ्यपूर्ण बात, कोई राष्ट्रवादी चर्चा अपने किसी मित्र से करता हूँ तो इसमें मैंने क्या बुरा किया? ठीक है मुझे अपने ज्ञान से देश को आगे बढाने में मदद करनी चाहिए किन्तु मैंने उससे कब इनकार किया है?

एक बड़े(?) व्यक्ति द्वारा तो हमारे विचार को ईमेल कचरा ही बता दिया गया| क्या अब मुझे भी कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनना पड़ेगा या मार्क्सवाद के सिद्धांतों को अपनाना पड़ेगा या फिर कथित धर्मनिरपेक्षता का सहारा लेना पड़ेगा? क्यों कि इन सब के बिना तो मै आम आदमी ही हूँ| इन सबके बिना तो मुझे एक रूढीवादी हिन्दू समाज का एक रूढीवादी व्यक्ति ही समझा जाता है| मुझे फासीवादी समझा जाता है|

किन्तु न तो मेरा हिंदुत्व रूढीवादी है न ही मेरा भारत रूढीवादी है| न ही मै किसी अन्य सम्प्रदाय को रूढीवादी मानता हूँ|

सच बोलने के लिये मै स्वयं के बड़े आदमी बनने की प्रतीक्षा क्यों करूं? और जो व्यक्ति एक आम आदमी की बात को सच नहीं मानते वे बताएं कि सच बोलने अधिकार क्या केवल बड़े आदमी को ही है?

मै तो यह चाहता हूँ कि लोग मुझे पढ़ें, मुझे सुने न कि मेरे ओहदे को| मुझ पर वे अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं| हो सकता है कि कहीं मै भी गलत कह दूं ऐसे में आप मुझे मार्गदर्शन दें न कि मेरे बड़े आदमी बनने की प्रतीक्षा में मुझ पर ध्यान ही न दें|

मै जानता हूँ कि मै एक अच्छा लेखक नहीं हूँ| किन्तु आप मेरे लेखन पर न जाएं| मैंने कहीं से ऐसा कोई कोर्स नहीं किया है जो मुझे लेखक बनाए| किन्तु दिमाग तो मेरे पास भी है| अपने विचारों को किसी भी तरह व्यक्त तो मै कर ही सकता हूँ| भले ही वह टूटे फूटे शब्दों में हो किन्तु हैं तो मेरे विचार|

जब तक मै आम आदमी हूँ कोई मेरी बात नहीं सुनेगा, किन्तु जैसे ही मै ख़ास हो गया तो सब मेरे शब्दों को इतिहास बना देंगे| यह तो सरासर चापलूसी ही हुई|

जब बालक नरेन्द्र से उसके पिता ने पूछा कि तुम बड़े होकर क्या बनोगे तो उसने कहा कि मै कोचवान बनूँगा| उस समय शायद ही उसके शब्दों को किसी ने गंभीरता से सोचा होगा, किन्तु जब वही बालक नरेंद्र स्वामी विवेकानंद बने तो बाल्यवस्था में बोले गए उनके वचनों को ऐतिहासिक वचन बना दिया गया| उनके अन्दर छुपी उनकी महानता अचानक सब को नज़र आ गयी|

सच तो यह है कि हर एक व्यक्ति में ताकत है वह सब कुछ कर सकता है| चाहे वह आम हो या ख़ास| मै एक आदमी हूँ और मै कुछ भी कर सकता हूँ|

आदरणीय संजीव जी और प्रवक्ता को धन्यवाद जो उन्होंने एक आम आदमी को अपने मंच पर स्थान दिया|

13 COMMENTS

  1. आप का लेख पढ़ा और आप के विचार जान मुझे कोई विशेष अचम्भा नही हुआ| आज युवा-पीढ़ी के सभी भारतीय देश निर्माण में जुट जाना चाहते हैं| मेरे विचार में आपकी इंजीनीयरिंग की पढाई ने आपको जीवन में एक विस्तृत दृष्टिकोण दिया है और इस कारण आप किसी भी स्थिति को समझने की क्षमता रखते हैं| आप अपने ही संव्यवसाय में देश के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं| उदाहरण तौर पर आप इंजीनीयरिंग के प्रत्येक विभाग से जुड़े व्यवसायियों को उचित ढंग से संगठित कर भारत को सुन्दर देश बना सकते हैं| यदि आप एक भारतीय इंजीनीयरिंग संगठन को किसी पाश्चात्य, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र अमरीका में ऐसे ही संगठन से तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो आप मेरा अभिप्राय समझ जायेंगे| भारत में संगठन अपने सदस्यों के एकाधिकार पर जोर देता है जबकि विदेशी संगठन स्पर्धा को बढावा देते हुए देश और देशवासियों की निरंतर उन्नति के लिए कार्य करता है| आप आम आदमी होकर भी असाधारण काम कर सकते हैं| आपको किसी की समर्थन की आवशकता नहीं है|

  2. आदरणीय सुनील पटेल जी मुझे भी बहुत अच्छा लगा आपका जवाब पढ़कर|
    मई मानता हूँ की आज कल हम जैसों को नासमझ समझा जा रहा है, बस यही सोच बदलने के लिए तो हमने कलम उठाई है| और आप जैसे राष्ट्र वादियों के संपर्क में रह कर हम इस प्रयास में भी साल होंगे|
    आदरणीय सोनी जी उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार| पढ़ा लिखा नौजवान भटक गया है, किन्तु आप के मार्गदर्शन में हम इनको को मार्ग पर लाने में सफल अवश्य होंगे| आपने मुझे आम भारतीय का प्रतिनिधि समझा यह आपका बड़प्पन है|
    आदरणीय चंद्रमोहन जी आपका भी आभार| आप निश्चिन्त रहें हम निराश अथवा हतोत्साहित नहीं होंगे, अपितु इस गलत धारणा को अवश्य बदलेंगे| आप जैसे राष्ट्रवादियों का साथ मिलता रहे तो यह प्रयास शीघ्र ही सफल होगा|

  3. दिनेशजी,
    देशहित में लिखना और समाज में आम आदमी की पीड़ा को सार्वजनिक करना कोई फालतू काम नहीं है। कोई भी अच्छा कार्य करने पर भी हतोत्साहित करने वाले लोग मिल जायेगे किंतु आप बिल्कुल निश्चित होकर अपने कार्य में लगे रहे और इसी प्रकार से आम आदमी का प्रतिनिधित्व वेब दुनिया और पत्रकारिता में करते रहे।

  4. आदरणीय गौड़ साहब, एक सून्दर व भावप्रधान लेख के लिए आपको बधाई। आपने बड़े ही सुन्दर शब्दों में एक आम आदमी के रूप में आम भारतीय का प्रतिनिधित्व किया है। निश्चित तौर पर आज भारत दो प्रकार के भारत में बंट गया है एक आम आदमी का भारत तो दूसरा भौतिकतावाद की चकाचौंध वाला भारत। निश्चित रूप से आपको देश और समाज के बारें में और लिखने का प्रयास जारी रखना चाहिए क्योंकि आज के समय में पढ़े लिखे नौजवान वो भी विशेषकर आप जैसे इंजीनियर का भारत के ज्वलंत मुद्दों के बारें में लिखना एक सुखद संकेत है। एक अच्ठे लेख के लिए पुनः बधाई

  5. श्री दिनेश जी. बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढ़कर.
    यह लेख बिलकुल नहीं, आज की वास्तविक सच्चाई है जिसे आपने बहुत से सरल भाषा और साफ सब्दो में बयान कर दिया है.
    आज के भोतिकतावादी समाज में सच कहना, और सच कहने वाले का समर्थन करना मुर्खता मानी जाती है. निश्चित आप सत्य कह रहे है की राष्ट्र, इमानदारी और सत्य की बात करना लोगो में पागलपन / सनक समझी जाती है. इसका कारण भी है की सेकड़ो सालो की गुलामी और आजाद भारत में झूठे इतिहास ने स्वाभिमान को मुरझा दिया है. जिसे आप फिर से सिंचित करने की कोशिश करोगे तो लोगो को अटपटा तो लगेगा ही.

    आप आगे बढ़ते रहिये हम आपके साथ है.

  6. आदरणीय चतुर्वेदी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद|
    राजिव भाई आपका भी आभार. हम भी नींव के पत्थर बनकर इस देश को मज़बूत बनाएंगे| आप जैसे राष्ट्र भक्तों का हाथ पकड़ कर हम इस नींव को और मजबूती देंगे|
    विनय जी उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद, आप जैसे राष्ट्र भक्तों की कृपा बनी रहे तो हमे को और बल मिलेगा|
    अभिषेक जी आपका भी आभार| आप जोधपुर से हैं और मै जयपुर का रहने वाला हूँ, आशा है आपसे कभी भेंट हो तो राष्ट्र हित में कुछ चर्चा होगी| मेरा नंबर-9829798033
    आदरणीय तिवारी जी टिप्पणी के लिए आपका भी आभार|
    शिवराज जी आपको भी उत्साह वर्धन के लिए आभार| आम आदमी की अहमीयत आपने बड़े अच्छे तरीके से अपनी टिप्पणी में दर्शाई है, यह सच में महत्वपूर्ण है|

  7. प्रिय इंजिनियर साहब लिखते लिखते आप लेखक बन गए बधाई, एक आम आदमी की बात किस तरह ansuni कर di jati hai aapne अपने उदहारण से बहुत ही अच्छी तरह से बताया है . वास्तव में इस देश में आम आदमी की किसे फिक्र है उसकी सुनता ही कौन है, ऊपर से आम आदमी को सर्कार दारू पिला पिला कर बेहोश कर रही है और बनते है की ham आम आदमी की फिक्र करते है हम लोकतंत्र है. जो सर कार दारू के पैसे से चल रही हो जिसमे आम आदमी के घरो की कराह हो भला कैसे लोकतंत्र हो सकती है.
    गौर साहब आम आदमी तो देश के हाड मॉस की तरह होता है, जिस दिन इसकी पीड़ा समझी जाने lagegi arthat आम आदमी की बात suni jane लगेगी, आम आदमी को, उसके विचारों को, उसके कार्यों को सम्मान मिलने लगेगा, निर्णयों में उसकी सहभागिता होगी, अपना देश सचमुच में mahan हो जायेगा.
    आप isi tarah likhte rahe kuchh to brainstorming hogi ही. हमारी शुभकामनायें है.
    शिवराज, अलीगढ 09756798010

  8. आम आदमी तो अंत भले को भला …..किन्तु यदि मृग मारीच यदि आम आदमी का वेश धारण करे तो राम बाण से कैसे बचेगा …?

  9. आप्ने बिल्कुल सही बात कही है,और ये बात हर उस व्यक्ती के जीवन पर लागु होती है जो खाने-पीने-कमाने के अलावा बःइ कुछ बेहतर काम करना चाहता है.
    इस देश को एसे स्वार्थी सामान्य जन ने ही बर्बाद किया है जो अपने काम से काम रखते है,उअन्को ये भी पता नहि रहता कि आज क्या क्या घटित हो रहा है.
    आप जिस फ़िल्ड से तालुक रखते है उसके बारे में मुझे पुरा पता है एशो अराम करना मौज मस्ति कि बातें करना ज्यादा से ज्यादा कभी कभी सारे नेताओं को गालिया बक देना ये ही आज के इन्जिनियर करते है,कभी भी कोयी भी कोयी सार्थक काम करना चाहता है तो सारे उसे सलाह देते है क्यु अपना “कैरियर” खराब कर रहे हो???तुम्हें क्या मतलब है देश से??पहले अपना भला कर लो फ़िर देश समाज का सोचना???आदी आदी……………..इसे समय मे आपने बहुत सही निर्णय ले कर लिखना प्रारम्भ किया है विश्वास मानिये बडा लेखक बडि पोस्ट से नही बनता है,मुझे नही पता प्रेमचंद या निराला की कोयी पोस्ट ,पर मुझे उनका लिखन पता है,अत: लिखते रहिये।कहते है पैसा,पद,सम्पत्ति,नाम सब मिट जाता है पर विचार कभी नही मिटता,विवेकानन्द जी कहते है कोयी पाँच विचार भी कर ले सत्य निष्टा से फ़िर चाहे वो कितनी ही घहरी गुफ़ा मे मर जाये लेकिन उसके विचार पुरे संसार में घुमते रहेंगे और जैसे हि कोयी उसकी तरह विचार करना प्रारम्भ करेगा तुरंत उस रुप मे प्रकट होंगे.
    अपने देश का अपने समाज का स्वाभीमान युं बढाते रहिये…………………साधुवाद.

  10. बहुत सहज लेख. आप के लेख जरूर भारत को दिशा दे सकते हैं. लेकिन आलोचकों की बधाई से सावधान रहें! ये पहले बधाई देते हैं फिर अपने विचारों को बेचने के लिए आग्रह करते हैं!

    जल्दी ही आपको प्रमुख समाचारपत्रों मैं पढ़ पाएंगे ऐसी आशा करते हैं. बधाई

  11. सौ करोड़ से ऊपर आम हिन्दुस्तानी यदि कहने लगे यूं ही बात अपनी, तो यह देश बड़ा बन जाएगा कुछ ही दिन में. आइये इस देश को बड़ा बनाएं – हम नींव के पत्थर बन जाएँ .

    बधाई हो .

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