जो लिखूंगा
सत्य लिखूंगा
ऐसा लिखूंगा कि
सत्य की कसौटी पर
सत्य को गवाही की जरूरत न हो ।
ये क्या ?
मैंने तो सत्य लिखने का
सत्य प्रकट करने का
खुद से वादा किया है
पर इतना लिख जाता हूँ कि
उसके सत्य होने पर खुद ही
संदेह करता हूँ और
पूरा डस्टबिन भर जाता है।
डस्टबिन में लिखे संदेहों को
खुद के ही लिखे सत्य को
जाँचता हूँ मैं, तो पाता हूँ
कि कहीं मात्रा में, कही छंद में
बेमतलब कर चुका था काट-छांट
कही कही तो सत्य संक्षिप्त हो गया
तो कही सत्य अपना अर्थ खो चुका था।
मैंने सत्य को जाना नहीं
बस स्वरूप,रंग और प्रकृति में
अपनी दृष्टि को ही
सत्य मानकर लिखता रहा हूँ ।
सत्य को जाना नहीं
धर्म को जाना नहीं
बस शब्दों को पंक्तिबद्ध कर
पीव अपने शाब्दिक ज्ञान को
समझता रहा हूँ सत्य
पर सत्य यह भी है
कि मैं मुमुक्षु हूँ आज भी
सत्य का
सत्य को जीने का ।
आत्माराम यादव पीव
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