–कुलदीप प्रजापति-
मैं जलता हिंदुस्तान हूं,
लड़ता, झगता, उबलता,
अंगारों सा सुलगता हुआ ,
फिर भी देश महान हूं,
मैं जलता हिंदुस्तान हूं|
आतंकवाद बना दामाद मेरा,
भ्र्ष्टाचार ने चुराया चीर मेरा,
हो रहा जो हर धमाका,
चीर देता दिल मेरा,
कहते हैं जब सोने की चिड़ियां, आंख मेरी रोती हैं,
क्योंकि मेरी कुछ संतानें इस युग मैं भूखी सोती हैं,
कई समस्याओं से झुन्झता मैं निर्बल-बलवान हूँ ,
मैं जलता हिंदुस्तान हूं|
नारी की जहां होती हैं पूजा ,
अब वहां वह दर रही ,
लूट ना ले कोई भेड़िया ,
इस डर वो ना निकल रही ,
प्यार के स्थान पैर बाँट रहे अब गोलियां,
कहाँ गई मेरे दो बेटों की, प्यार भरी बोलियां,
जाति आरक्षण से टूटता और खोता अपना सम्मान हूं,
मैं जलता हिंदुस्तान हूं|
हैं बदलती रंग टोपियां ,
भाषा नहीं बदल रही ,
राजनीति एक की चड़थी,
अब दलदल में वो बदल रही,
मर्द अब मुर्दा बना बस खड़ा सब देखता ,
जिसके हाथों में है लाठी, दस की सौ में बेचता ,
हर समय, हर जगह झेलता अपमान हूं,
मैं जलता हिंदुस्तान हूं|
sabhi ka bahut hi abhar
बहुत बढ़िया…..निरंतरता बनाये रखना , मंज़िल अभी दूर है।
ji dhanyawad saran ji
kuldeep bhai ……all the best
nice poem
जी बहुत बहुत धन्यवाद
thanks for publish my poem………
बहुत सुन्दर .हमारे चरित्र का दर्पण.
ji dnyawad
very good