दुष्कर्म के दलदल से मैं जिंदा लौटी हूं__!

ISIS पीड़ित एक यजीदी युवती की आप बीती दर्दनाक गाथा___! 

बाद में इस पीड़िता को नोबेल पुरस्कार भी मिला_! 

साभार: दैनिक जागरण (14.10.2018)

रात के वक्त आईएस (दुनिया का सबसे दुर्दात इस्लामिक आतंकी संगठन) सेक्स गुलामों की मंडी लगाता था । यहां आईएस आतंकियों द्वारा पकड़ी गई लड़कियों को जानवरों की तरह बेचा जाता था और इस खरीद-फरोख्त का मकसद एक ही होता था उनके साथ दुष्कर्म ।

रात हो चुकी थी और यह बदनाम मंडी लग चुकी थी। बंधकों के रूप में कैद हुए हम नीचे हो रहे शोर-गुल को सुन सकते थे, जहां आतंकी सारा हिसाब-किताब लिख रहे थे। जब पहला आदमी हमारे कमरे में दाखिल हुआ तो सभी लड़कियां दहशत से चीखने-चिल्लाने लगीं। हम रो रहे थे, घायल थे, एक-दूसरे पर लदे हुए और जमीन पर उल्टियां कर रहे थे लेकिन उनके दिल में कोई रहम नहीं था। खरीददार हमारे कमरे में भरते जा रहे थे, हमें घूर रहे थे जबकि हम रोते हुए दया की भीख मांग रहे थे।

वे पहले सबसे खूबसूरत लड़की की तरफ बढ़े और पूछने लगे कि ‘तुम्हारी उम्र कितनी है ?’ वे उसके बाल और चेहरे को टटोलने लगे । ‘सभी कुंवारी हैं न?’ उन्होंने एक गार्ड से पूछा। उसने सिर हां में हिलाया और बोला, ‘बेशक!’ जैसे कोई दुकानदार अपने सामान पर गर्व करता हो । कमरे में जैसे तूफान आ गया था। अब वे लोग हमें जहां मर्जी चाहे छू रहे थे, अपने हाथ हमारी छातियों और पैरों पर फिरा रहे थे, जैसे हम जानवर हों। वे हमसे तुर्की या अरबी भाषा में सवाल भी कर रहे थे।वह बेहद भयानक माहौल था।

‘शांत हो जाओ !’ उन्होंने चिल्लाकर कहा लेकिन इस आदेश से शोर और बढ़ गया। एक आदमी बढ़ा। मैं चिल्लाई, चीखी और जब वह मुझे पकड़कर खींचने की कोशिश कर रहा था तो मैंने उसे खुद से दूर करने की पूरी कोशिश की। बाकी लड़कियां भी ऐसा ही कर रही थीं, वे अपने शरीर को मोड़ रही थीं या खुद को दूसरी लड़कियों के पीछे छुपाने की कोशिश कर रही थीं।

एक दूसरा आदमी मेरे सामने आया। सलवान नामक वह आतंकी आईएस में किसी बड़े ओहदे पर था। वह पहले खरीद कर ले जाई गई लड़की को किसी दूसरी लड़की के साथ बदलने आया था। ‘खड़ी हो जाओ!’ उसने कहा। जब मैंने ऐसा नहीं किया तो उसने मुझे लात मारी। ‘तुम! ऐ गुलाबी जैकेट वाली लड़की! मैंने कहा खड़ी हो जाओ।”

उसकी आंखें बड़े से भयानक मांसल चेहरे में धंसी हुई थीं और वो किसी राक्षस की तरह नजर आ रहा था।उन लालची आतंकियों का सिंजर (उत्तरी इराक) पर हमला और अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए लड़कियों को गुलाम बनाना कोई तात्कालिक फैसला नहीं था। आईएस ने इसकी पूरी योजना बनाई थी, कैसे वो हमारे (यजीदी समुदाय के) घरों में घुसेंगे, किस तरह की लड़की ज्यादा या कम अच्छी है, कौन सा आतंकी बतौर ईनाम मुफ्त में सबाया (सेक्स स्लेव बनाई गई लड़की) रखने के योग्य है और कौन इसके लिए भुगतान भी करेगा। यहां तक कि आतंकियों की नई भर्ती करने के लिए उन्होंने अपनी पत्रिका दाबिक में भी सबाया का जिक्र खूब बढ़ा-चढ़ा कर किया था।

मैं फर्श,उस आतंकी के पैरों और उस लड़की की तरफ देख रही थी। तभी भीड़ में मैंने एक व्यक्ति के पैरों को देखा जो घुटनों तक पतले और महिलाओं जैसे थे। इससे पहले कि मैं समझ पाती कि क्या कर रही हूं, मैंने खुद को उसकी तरफ झोंक दिया। मैं उससे भीख मांगने लगी। ‘कृपया मुझे अपने साथ ले चलो।’ मैंने कहा ‘तुम्हें जो करना है वो करो, मैं बस इस दरिंदे के साथ नहीं जा सकती।’ मुझे नहीं पता, वह व्यक्ति मेरी बात क्यों मान गया लेकिन वह सलवान की तरफ मुड़ा और बोला, ‘यह मेरी है।’ सलवान ने बहस नहीं की। दरअसल वह दूसरा व्यक्ति मोसुल का एक जज था, कोई भी आतंकी उसका तिरस्कार नहीं कर सकता था। ‘तुम्हारा नाम क्या है ?’ उसने मुझसे पूछा। वह धीमी मगर खौफनाक आवाज में बात कर रहा था। ‘नादिया’, मैंने कहा और वह बेचने वाले की तरफ मुड़ गया। वह व्यक्ति उसको तत्काल पहचान गया और हमारा विवरण लिखने लगा। उसने नाम दोहराए ‘नादिया, हाजी सलमान’ मेरे खरीददार का नाम लेते हुए उसकी आवाज डरी हुई थी। मैंने सोचा कि शायद मैंने कोई बड़ी गलती कर दी है।… और यह आशंका सही निकली। सलमान भी कोई कम दरिंदा आतंकी नहीं था। मैंने उसके साथ नरक से बदतर जिंदगी और दुष्कर्म भरे दिन भोगे। वहां विरोध का सिर्फ एक ही मतलब था सामूहिक रूप से यौन प्रताड़ना, नारकीय दुष्कर्म किसी तरह मैं वहां से भाग निकली। 2015 की शुरुआत में मैं इराक से बतौर शरणार्थी जर्मनी पहुंच गई ।उधर मेरे मुल्क में, मेरे समुदाय के हालात बदतर होते जा रहे थे। अब मैं डरकर खामोश नहीं रह सकती थी।

नवंबर 2015 में मैं अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम में बोलने के लिए स्विट्जरलैंड आ गई। यह पहला मौका था जब मैं इतने बड़े समूह के सामने दर्द साझा कर रही थी। मैं हर चीज के बारे में बात करना चाहती थी, वो बच्चे जो आईएस के आतंक के कारण कुपोषण से मर गए, वो परिवार जो आज भी वहां फंसे हुए हैं, सैकड़ों बच्चे और औरतें जो नारकीय यौन गुलामी में थीं और जो नरसंहार मेरे परिवार ने वहां देखा और खुद भी झेला। हम यजीदी दुनिया भर में पनाह मांगते भटक रहे थे और हमारा वतन, हमारी जन्मभूमि आईएस के शिकंजे में था । मैं हाजी सलमान, मेरे साथ हुई यौन हिंसा और हर वो वारदात जिसकी मैं गवाह हूं इन सबके बारे में बताना चाहती थी। यह निर्णय लेना मेरे लिए बेहद मुश्किल था और जब मैंने यह निर्णय ले लिया तो यह सबसे जरूरी भी था।

जब मैं संयुक्त राष्ट्र फोरम में बोल रही थी तो मैं कांप रही थी, मेरी आवाज रुंध रही थी। मैंने अपना संक्षिप्त परिचय दिया । उन्हें बताया कि मैं भाषण देने के लिए नहीं खड़ी हुई हूं। मैंने बताया कि हर यजीदी आईएस को नरसंहार के लिए सजा दिलाना चाहता है और यह आपके हाथ में है कि दुनिया भर में मौजूद ऐसे तमाम मासूम लोगों की मदद की जाए।

वहां मैंने वो सब बताया जो मेरी जन्मभूमि कोचो में हुआ और कैसे आतंकियों द्वारा मेरे अलावा दूसरी तमाम लड़कियों को दुष्कर्म के लिए खरीदा बेचा गया। मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरे साथ खौफनाक दुष्कर्म होता था और मुझे बहुत मारा जाता था फिर भी मैं वहां से भाग आई। मैंने उन्हें अपने भाई के बारे में भी बताया जिसको मार डाला गया था। मैंने कहा कि मैं उस आदमी की आंखों में खौफ देखना चाहती हूं जिसने मेरे साथ दुष्कर्म किया। मैंने अंत में कहा कि मैं दुनिया की आखिरी लड़की बनना चाहती हूं जिसकी कहानी मेरे जैसी हो।

अपनी कहानी बताना कभी आसान नहीं होता। जितनी बार आप उसे दोहराते हैं उतनी बार उसे महसूस भी करते हैं। जब भी मैं खुद पर हुए जुल्म या उन काली रातों में मदद की गुहार लगाने के बारे में सोचती हूं तो वापस डर के उस माहौल में पहुंच जाती हूं। मैंने दुनिया को अपनी कहानी पूरी तरह से सच्चाई और ईमानदारी के साथ बताई है जो इस्लाम के नाम पर आतंक के खिलाफ बड़ा हथियार बन सकती है। मैं तब तक खामोश नहीं रहूंगी जब तक आतंकी अंतरराष्ट्रीय कानून के कटघरे में नहीं आ जाते। दुनिया के नेताओं और खास तौर से इस्लाम के अगुवाकारों को इसके लिए अपना सहयोग देने की जरूरत है।

(नादिया मुराद की आत्मकथा द लास्ट गर्ल : माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी एंड माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट के संपादित अंश )

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महोदय, यदि उपरोक्त को धैर्य के साथ पूरा पढ़ेंगे तो जेहादियों की मनोवृति को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी_!

“द केरल स्टोरी” का सच केवल केरल एवं भारत तक ही सीमित नहीं है,यह अंतरराष्ट्रीय संकट बना हुआ है_ यदि 2012 से 2018 तक के इस्लामिक स्टेट के अत्याचारों पर गहन अध्ययन किया जाये तो धर्म के नाम हुए अत्याचारों से भरें मुग़लकालीन इतिहास को समझने में भी सरलता होगी!

विनोद कुमार सर्वोदय

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