आई बसंत पाला उडंत….

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life2परमजीत कौर कलेर

मौसम है आशिकाना जी हां सारी प्रकृति ही इस मौसम में मानो अंगडाई लेकर अपने दिलबर से मिल रही प्रतीत होती है… तितलियां भी फुलों पर गुंजार करती नज़र आती हैं …जब प्राकृति इस बहार में मदमस्त नज़र आती है …तो फिर भला हम कैसे इस ऋतु का स्वागत करने में पीछे रह सकते हैं…देशभर में बसंत उत्सव को अपने अपने अंदाज में मनाया जाता है। चारों और छाई है हरियाली ,वृक्ष पेड़ पौधे अपना पुराना लिबास उतार कर नए रूप में आ जाते है…फूलों से भरे पेड़ पौधे चारों और सुगंध ही सुगंध भर देते हैं…प्रकति भी मानो अपने यौवन पर हो और अपनी इसी सुन्दरता को देखकर मानो गर्व महसूस कर रही हो…

हर ऋतु अपने साथ लेकर आती है नया उत्साह ,नई उमंग और नया उल्लास …हर मौसम का अपना ही मजा…साल में चार मौसम आते हैं गर्मी , सर्दी , वर्षा और बसंत बहार …जिसके आने से चारों और छा जाती है हरियाली , फूल ,कलियां और रंग बिरंगे फूल खुशी में झूमते नज़र आते हैं…वृक्ष पेड़ पौधे अपना पुराना लिबास उतार देते हैं नए पत्ते , और टहनियों में लगे नए नए फूल और पत्तियां सबको अपनी और आकर्षित करते हैं …प्रकृति की इस सुन्दरता को देखकर कवि भी इनकी सुन्दरता पर कई कविताएं लिख डालते है….पंजाबी के कवि ने खूब लिखा है…

पिप्ल्ल दे पत्तिया वे…

केही खड़ खड़ लाई आ

पतझडे़ पुराने

वे रूत्त नवेय्या दी आई आ

इसका मतलब ये है कि बसंत ऋतु के आते ही वृक्षों से पुराने पत्ते अपने आप उतर जाते हैं और सारी प्रकृति हरी भरी नज़र आती है…खेतों पर नजर डालतें हैं तो चारों और सरसों के पीले फूल दिखाई देते हैं … ऐसा प्रतीत होता है खेतों ने पीले रंग की चादर ओढ़ रखी हो..बसंत ऋतु के आते ही ठंड कम हो जाती है…अन्तों की पड़ती सर्दी से लोग राहत महसूस करते हैं… यह ऋतु सब ऋतुओं से सुन्दर , सुहावनी और मनमोहक होती है …जो हर एक के दिल को जीत लेती है…तो मन अपने आप झूम उठता है ….जब प्रकृति अठखेलियां कर रही हो तो फिर हम कैसे पीछे रह सकते हैं।

मानव जीवन में त्यौहारों और ऋतुओं का अपना ही अहम महत्व है…ये त्यौहार और ऋतुएं मानव जीवन में नया उत्साह और उमंग तो भरते ही हैं साथ ही इनका धार्मिक , सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व भी होता है…बसंत ऋतु को बसंत पंचमी भी कहा जाता है बसंत पंचमी जो कि नाम से ही स्पष्ट है बसंत का मतलब है बहार और पंचमी का अर्थ है पखवाड़े का पांचवा दिन…ऋतुराज बसंत के आगमन का स्वागत कुदरत का ज़र्रा-ज़र्रा करता है….फूलों की बहार होती है…एक तरफ कुछ अच्छा है तो कुछ खट्टी यादें भी हैं….इतिहास के पन्नों में देखें तो एक फूल ऐसा भी था जो खिलने से पहले पहले मुरझा गया था…ये फूल था वीर हकीकत राय…वीर हकीकत राय का जन्म पंजाब के सियालकोट में सन्1719 में हुआ था…जो पाकिसतान के लाहौर में है… हकीकत राय का जन्म भागमल राय के घर में हुआ था…जो क्षत्रिय घराने से ताल्लुक रखता था… भागमल राय एक संपन्न व्यापारी थे…उनकी मां गौरा देवी धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी…

कहते हैं बच्चों की पहली पाठशाला परिवार होता है….ज़ाहिर है उसका असर वीर हकीकत राय पर भी पड़ा…ये बालक पढ़ने लिखने में बेहद होशियार था…उसे फारसी पढ़ने के लिए मौलवी के पास भेजा गया…वहां दूसरे समुदाय के सहपाठी धर्म सूचक फब्तियां कसते थे…उन्होने वीर हकीकत राय की मौलवी से झूठी शिकायत भी की…जबकि वीर हकीकत राय ने बीबी फातिमा के बारे में कुछ भी नहीं बोला था…ये सुनकर गुस्साए मौलवी ने बात का बतंगड़ बना कर ये बात शहर के काजी के पास पहुंचा दी…उन्होंने मासूम हकीकत राय को धर्म परिवर्तन का फरमान सुनाया और साथ ही सजा ए मौत का फरमान सुना दिया…इस तरह से दस वर्ष के बालक ने धर्म और देश की खातिर अपनी जान न्यौछावर करना ही उचित समझा…कहा तो ये भी जाता है कि जब जल्लाद बालक हकीकत का सिर कलम करने लगे तो उसके हाथ भी कांप गए थे….उसने बालक की जान बचाने के लिए धर्म परिवर्तन की सलाह दी…लेकिन बुलंद हौसले वाला मासूम बालक अपनी बात पर अडिग रहा…और उसने धर्म नहीं बदला…उस मासूम का सिर धड़ से अलग कर दिया गया…

इससे लोगों की आस्था और मज़बूत हुई कुछ लोग ये भी मानते हैं कि जब बालक हकीकत राय का सिर धड़ से अलग किया गया तो वो सीधा स्वर्ग में पहुंचा…उसी मान्यता के आधार पर आज भी इस दिन पतंग उड़ाई जाती हैं जो कि बालक के हौसले और साहस की ओर इशारा करती है…

शहीद हकीकत राय का पंजाब के बटाला से भी गहरा नाता है…क्योंकि बटाला में इनकी होने वाली ससुराल थी …वीर हकीकत राय की सगाई लक्ष्मी देवी से हुई थी…बेशक वीर हकीकत राय की शादी नहीं हुई थी लेकिन हकीकत राय की पत्नी लक्ष्मी देवी ने अपने पति की खबर सुनीं तो वो सती हो गई …सती की याद में बसंत पंचमी पर आज भी यहां भारी यादगारी मेला लगता है….बड़ी तादद में लोग इक्ट्ठे होते हैं और इन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं…यही नहीं जालंधर रोड पर बनाए गए समाधि स्थल पर हकीकत राय और लक्ष्मी देवी की सुन्दर प्रतिमाएं भी लगी हैं….यहीं सुन्दर वाटिका भी बनी हुई है….कुछ इतिहासकार इनकी पत्नी का नाम सावित्री भी बताते हैं…

बसंत पंचमी के दिन को बसंत उत्सव के रूप में तो मनाया ही जाता हैं…इसे ज्ञान के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती की पूजा के रूप में भी मनाया जाता है… वेद पुराण के अनुसार इस दिन ब्रहमा जी ने मां सरस्वती की उत्पति की थी और लोगों की अज्ञानता को दूर किया था…मां सरस्वती के हाथों में वीणा भी दी गई है…इसलिए मां सरस्वती को वीणा वादिनी के नाम से भी जाना जाता है…इस वीणा से न सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरूषों के अलावा संत महात्माओं ने भी इस पर मुहारत हासिल की…और देश और दुनियां में अपना नाम रोशन किया…यही नहीं श्री कृष्ण महाराज जी ने भी इसी दिन मां सरस्वती की पूजा की थी और सौलह कलाओं के अलावा कई कलाओं में निपुणता हासिल की थी…मां सरस्वती को ज्ञान, विद्या की देवी माना जाता है…इस दिन सरस्वती मां की पूजा की जाती है…विद्यार्थी जीवन में तो इसका खास महत्व है…इस दिन पूजा स्थानों को सजाया जाता है…इस दिन सरस्वती देवी की प्रतिमा को पीले फूलों और पीले कपड़े पहनाए जाते हैं…सभी व्यक्ति इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं ….स्कूलों कालजों में भी इस दिन को धूमधाम के साथ मनाया जाता है…इस दिन कई सांस्कृति कार्यक्रम किए जाते हैं और मां सरस्वती की पूजा की जाती है ताकि सब पर मां सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे…

देशभर में बसंत पंचमी को अपने अपने ढंग से मनाया जाता है…वैसे बसंत जाती सर्दी और वृक्षों पर नए मुलायम पत्तों और फूलों की बहार का मौसम होता है…मगर इसका सम्बंध हमारी धार्मिक आस्था से भी जुड़ा हुआ है ।

पतझड़ ऋतु यहां जुदाई और वियोग का प्रतीक है…वहीं माघ और फागुन का महीना बसंत के रूप में मनाया जाता है जो है मिलन का महीना …गुरूबाणी में आता है…

फलगुण आनन्द अपार जना हरि सज्जन प्रगट आए

मतलब कि बसंत ऋतु यहां सारे आलम में खुशियां लेकर आती है…यहां ये त्यौहार लौकिक खुशी प्रदान करता है वैसे ही ये महीना प्रभू के मिलाप का होता है… बसंत बहार यहां बाहर की सुन्दरता के पेश करती है वहीं गुर साहिबान ने इस महीने को प्रभू के मिलाप का महीना माना है…ये हमें आलौकिक सुख भी प्रदान करता है…बसंत ऋतु के अद्भुत नजारे को देखकर हम आनन्दित होते हैं …जैसे बाहर के रंग हमें अच्छे लगते हैं वैसे ही अध्यात्मिक रंग में रंग कर अपने घर में पिता परमेश्वर को मन की आंखों से महसूस कर सकते है…उस पिता परमेश्वर के दर्शन कर हमारे मन में हमेशा हमेशा के लिए आनन्द आ जाता है…इसीलिए तो गुरबाणी में आता है…..

नानक तिना बसंतु है जिनु घर वसिआ कंतु

अर्थात् वो औरतें भाग्यशाली हैं जिनके घर में परमात्मा बसते हैं जिन्होंने अपने परमात्मा की भक्ति कर उसे पा लिया…उनके लिए तो हर दिन बसंत है क्योंकि उन्हें अपने प्रियतम प्यारे यानि परमात्मा मिल गए…

इस दिन पंजाब के अमृतसर में छेहरटा साहिब का अपना खास महत्व है इस दिन लाखों श्रद्धालु स्नान करने पहुंचते हैं… ऐसा विश्वास किया जाता है कि जो भी बे औलाद जोड़ा इस दिन पवित्र सरोवर में स्नान करता है…उनको पुत्र प्राप्ति होती है…यही नहीं नवविवाहित जोड़े भी इस दिन छेहरटा साहिब के दर्शनों के लिए आते हैं…और स्नान करते हैं…छेहरटा साहिब सिखों के पांचवे गुरू अर्जुन की याद में बनाया गया था…इस गुरूद्वारे का नाम छेहरटा इस लिए पड़ा क्योंकि यहां 6 हल्टों वाला कुआ था इस कुएं से 6 पहिए पानी निकालते थे …जिसकी वजह से इसका नाम पड़ा छेहरटा..अब इस कुएं को कवर कर दिया गया है…छेहरटा साहिब गुरूद्नारे में बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी ही श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है…

बसंत ऋतु को मदनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है….जिसमें होता है हर कोई मस्त…देशभर में हर कोई रंगा नज़र आता है बसंत के रंग में सब कुछ होता है बसंती रंग…बसंत पंचमी का सम्बंध गुरू गोबिन्द सिंह जी के विवाह से भी माना जाता है…आनन्दपुर साहिब में गुरू गोबिन्द जी की शादी की खुशी में अखंड पाठों के भोग डाले जाते है…हर दिन गुरूद्वारों में बसंत ऋतु के सम्बंध में शब्द गायन होते हैं…गुरूद्नारा किरपाल शिला और गुरूद्वारा छेहरटा साहिब और पटियाला के गुरूद्वारा दुखनिवारण में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर भारी मेले लगते हैं…मेले में हर रंग देखने को मिलता है…बसंत मेला हो और घरों में कुछ न बने ये भी नही हो सकता…इस दिन पीले रंग का हल्वा और मीठे पीले रंग के चावल बनाए जाते हैं…हिन्दुओं में तो पीले रंग को बहुत ही शुभ मानते हैं …इस दिन पीले कपड़े तो पहने ही जाते हैं…वहीं पीले रंग के लड्डू, हल्वा, पीले रंग के चावल और केसर के रंग वाली खीर बनाई जाती है …जिसे सभी बड़े ही चाव के साथ खाते हैं…चारों और लहलहाते सरसों के खेत , रंग बिरंगे फूल हर किसी को आकर्षित करते हैं और भवरे फूलों पर गुंजार करने खुद ब खुद आ जाते हैं …जब प्राकृति अपने यौवन पर गर्व करती महसूस होती हैं तो फिर पंजाबी गभरू और मुटियारे कहां चुप बैठने वाले हैं वो भी बसंत के रंग में रंग जाते हैं….लड़कियां पीले रंग के कपड़े पहनती हैं तो वहीं गभरू भी बसंत के रंग में रंगें नज़र आते हैं …मेले में हर कोई बाराती होता है…सारे बड़े ही सज धज कर आते हैं…मेले में बच्चे , नौजवान , बुजुर्ग हर कोई बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ पहुंचता है…

अक्सर कहा जाता है …

आई बसंत पाला उडंत

इस मीठी और प्यारी ऋतु की आमद पर बोलियां डाल कर भंगडे और गिद्दे का जश्न मनाया जाता है

गिद्दे और भंगड़े पर बोलियां डाली जाती हैं…

बच्चे जवान हर कोई इस त्यौहार का इंतजार बड़ी ही बेसब्री से करते हैं …क्योंकि इस दौरान उन्हें जी भर के पतंग उड़ाने का मौका जो मिलता है…पतंगों के पेच के साथ पेच लड़ाए जाते हैं…तो आसमान रंग बिरंगी पतंगों से मानो सतरंगी घटा और मनमोहक दृश्य पेश करता है…इस मौसमी त्यौहार मे हर कोई शरीक होता है …वो भी बिना किसी मत भेद के…

परिवर्तन प्रकृति का नियम है जैसे पतझड़ के बाद बसंत आती है …पेड़ पौधे ,सारी वनस्पति ही में नयेपन , नई ऊर्जा और उल्लास से भर उठती हैं …वही मनुष्य को भी चाहिए को जीवन में आने वाली मुश्किलों से घबराए नहीं …समय के साथ हर एक को बदलना होगा…क्यों कि परिवर्तन ही प्राकृति का नियम है…आप सभी को बसंत की बहार की हार्दिक शुभकामनाएं…और आप हमेशा ही इन फूलों की तरह महकते टहकते रहें…यही हमारी तमन्ना है ।

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