सरकार कृषि कानूनो के फायदे बताने मे नाकाम तो वही अन्नदाता विपक्ष के भ्रम जाल मे उलझकर सडकों पर

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भगवत कौशिक – पिछले चार महीने से देश मे कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।जहां सुप्रीम कोर्ट तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा चुका है,वहीं सरकार भी 18 माह तक इन कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव आंदोलनकारियों के सामने रख चुकी है।लेकिन किसान संगठनों के नेता किसी भी हाल मे तीनो कृषि कानूनों के रद्द करने की मांग पर अडे हुए है।सरकार साफ कर चुकी है की कानून रद्द नहीं होगें, इनमे आवश्यक संशोधन हो सकता है।ऐसे मे कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा आंदोलन सरकार व किसान संगठनों के नाक का सवाल बन चुका है जिसमे नुकसान केवल और केवल गरीब लोगों का हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य मंत्रीयो का कहना है कि विपक्ष किसानों में नए कानून को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। पीएम ने कहा, सरकार की नीतियों पर सवाल लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा है। लेकिन इन दिनों एक घातक ट्रेंड चल रहा है जो अच्छी नीतियों पर भी लोगों में अफवाह फैला कर भ्रमित करने का है।

वहीं दुसरी ओर किसान नेताओं ने अब इस आंदोलन को बीजेपी के खिलाफ लडाई का हथियार बना लिया है।अब किसान आंदोलन के मंचों से केवल और केवल बीजेपी को हराने की अपील सुनाई देती है।ऐसे मे हमने आंदोलन की सच्चाई को जानने का प्रयास किया। किसानों के प्रदर्शन को देखें तो यह साफ है कि किसानों को एमएसपी से लेकर तमाम मुद्दों पर भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ ऐसे झूठ फैलाए जा रहे हैं कि किसान सड़कों पर आ जाए और इसका फायदा उठाया जा सके।

आईए जानते हैं ऐसे ही कुछ झूठी अफवाहों और उनके बारे में सत्य…

सवाल – कृषि कानून में एमएसपी का जिक्र नहीं।

जवाब – बिल में एमएसपी का जिक्र है। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 के 5 वें पॉइंट में गारंटेड प्राइस अथवा उपयुक्त बेंच मार्क प्राइस का जिक्र है, यानी एमएसपी का।

क्या लिखा है 5 वें पॉइंट में-

खेती की उपज की खरीद के लिए भुगतान की जाने वाली कीमत का निर्धारण और कृषि समझौते में ही उल्लेख किया जा सकता है और अगर ऐसी कीमत भिन्नता के अधीन है, तो इस समझौते के तहत

A- ऐसे उत्पाद का गारंटेड प्राइस

B – गारंटेड प्राइस के अतिरिक्त राशि, जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ। यह संदर्भ मौजूदा मूल्यों या दूसरे निर्धारित मूल्यों से संबंधित हो सकता है। गारंटेड प्राइस सहित किसी अन्य मूल्य के निर्धारण के तरीके और अतिरिक्त राशि का उल्लेख भी कृषि समझैते में होगा।

सवाल : एमएसपी आखिरकार खत्म हो जाएगी।

जवाब : एमएसपी के सिस्टम पर कृषि कानूनों का कोई असर नहीं पड़ा है।वर्तमान में MSP का संचालन राज्य एजेंसियों के जरिए किया जाता है। एमएसपी की खरीद एनडीए सरकार के लिए उच्च प्राथमिकता है।केंद्र की मोदी सरकार ने कई मौकों पर एमएसपी में वृद्धि की है और अतीत में किसी भी सरकार की तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से अधिक खरीद की है।

सवाल : APMC मंडियों के राजस्व को होगा नुकसान

जवाब – राज्यों और उनमें मौजूद APMC के पास अभी भी मंडी फीस बढ़ाने समेत कई शक्तियां हैं। कृषि कानूनों में APMC को नहीं छुआ गया है, वो जैसे काम करती रही हैं, वैसे काम करती रहेंगी।कृषि बिल पर उनका प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सवाल – उद्योगपति किसानों की जमीन हड़प लेंगे

जवाब – यह असंभव है। किसान इस कानून के तहत संरक्षित हैं। कानून के 8 वें पॉइंट के मुताबिक, कोई भी कृषि समझौता इन उद्देश्य से नहीं किया जाएगा। किसानों की भूमि या परिसर की बिक्री और बंधक समेत कोई भी हस्तांतरण

सवाल : कानून राज्यों को राजस्व पैदा करने से रोकेगा, जिससे मंडियां बंद हो सकती हैं।

जवाब : APMC मंडियां अब भी किसानों के साथ काम कर रही हैं। कृषि कानूनों ने इन्हें और प्रभावी, कम भ्रष्टाचार वाली, और प्रतियोगिता का माहौल पैदा करने वाली बन गई हैं। इससे भ्रष्टाचार खत्म होगा और बिचौलियों की खात्मा होगा।

सवाल : कृषि बिल किसानों के भुगतान को लेकर कुछ नहीं करते. वहीं एजेंट्स जो कि वैरीफाई किए हुए होते हैं, वो किसानों का भुगतान सुनिश्चित करते हैं.

जवाब : कृषि कानूनों के तहत इस बात का प्रावधान किया गया है कि किसानों को उनकी फसल का भुगतान उसी दिन किया जाए, या फिर अगले तीन व्यावसायिक दिनों के भीतरः अगर इसमें कोई भी कोताही बरती जाती है तो उसके लिए कानून प्रावधान हैं।ये कानूनी उपाय किसानों को धोखाधड़ी से बचाते हैं।

सवाल : किसानों का इसके जरिए शोषण होगा?

जवाब : कृषि सुधारों के तहत विवाद के समाधान की बात की गई है जो शोषण करने वाले व्यापारियों से किसानों को बचाने का काम करते हैं।

बिचौलिए प्रदर्शन को भड़का रहे हैं ?

अभी तक एफसीआई अढ़तियों के माध्यम से किसानों तक माल का पैमेंट पहुंचाते थे। उन्हें हर ट्रांजेक्शन पर 2.5% कमीशन मिलता है। पंजाब में बिचौलिओं को सिर्फ गेहूं और धान के लिए करीब 3300 करोड़ का कमीशन मिला। इसमें दालें, तेल बीज, कपास, गन्ना और सब्जियां शामिल नहीं हैं। बिचौलिओं के संगठन मजबूत हैं और किसान सीधे किसी को फसल नहीं बेंच सकता था। किसानों को फसल की एमएसपी का सिर्फ 30% मिलता है, जबकि बिचौलिओं को पंजाब में दोगुना फायदा मिलता है।

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