डॉ. नीरज भारद्वाज
मैंने धर्मपत्नी से कहा कि पिछले दो दिन से मैले ही कपड़े पहन रहा हूं तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा- नहीं, कपड़े तो मैं रोजाना धो रही हूं. मैंने गलती एक कर दी कि कपड़े छत पर सुखा दिए और प्रदूषण के चलते छत पर सूखने से ज्यादा गंदे हो गए। अब बताओ क्या करें। मैं इस बात से बहुत हैरान था कि जब कपड़े बाहर से इतने गंदे और मैले हो गए हैं तो यह प्रदूषित हवा हमारे अंदर जाकर हमारे जीवन और स्वास्थ्य का कितना विनाश कर रही है। फिर मेरे मस्तिष्क में एक दृश्य और आया कि बस में बैठे एक बच्चे की आंखों से पानी गिर रहा था, मैंने सोचा वह रो रहा है लेकिन यह तो प्रदूषण की मार से हो रहा था।
आज प्रदूषण के चलते देश के नगरों और महानगरों की हालत यह है कि यहां रहना मुश्किल हो गया है। फिर भी हम यहां रह रहे हैं। कोई अपने कारोबार का बहाना बता कर रह रहा है, कोई अपनी नौकरी का बहाना बताकर रह रहा है। कोई कह रहा है कि यहां से जाकर कैसे गुजारा होगा, गांव छोड़कर तो यहां आए थे। आज दिल्ली ही नहीं बल्कि बहुत से महानगर और नगर प्रदूषण की भयानक चपेट में है। इतना कुछ होने के बाद भी हम मौन समाधि लगाए कुछ नहीं कर रहे हैं। सड़कों पर गाड़ियों और उद्योग धंधों को बराबर तेज दिशा में आगे चला रहे हैं। सरकारें मौन हैं, किसी को किसी से कोई लेना देना नहीं है, सब चल रहा है। कौन जिएगा, कौन मरेगा, कोई नहीं सोच रहा है। दीपावली को लेकर तो बहुत लोग शोर मचा रहे थे. अब तो दीपावली नहीं है। फिर भी प्रदूषण इतने खतरनाक स्तर पर क्यों पहुंच गया।
ऐसा लगता है कि सब पैसे की अंधी दौड़ में भागे जा रहे हैं, हमें क्या? कोई करेगा आंदोलन, कोई और करेगा। हम तो शाम को केवल उन्हें टीवी पर बैठकर देखेंगे। कितने लोग अरेस्ट हुए, कितने जेल में डाल दिए गए, कितने का सिर फूटा है। हम उस आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेंगे, वास्तव में देखा जाए तो आज दिल्ली की हवा बहुत ही खराब है। साथ ही यदि देखा जाए तो जल स्रोत अर्थात दिल्ली में बहने वाली यमुना की हालत बद् से बद्त्तर हो चुकी है। हवा खराब, पानी खराब, समझो मनुष्य का सारा जीवन खराब। हम इस खराब वातावरण में भी अपने को जिंदा रखे हुए हैं कि अपने आप ही कोई सुधार हो जाएगा। क्या कभी अपने आप कोई सुधार हुआ है। सुधार के लिए तो लोगों को स्वयं ही कदम उठाने पड़ते हैं। हमें सरकारों को जागना नहीं, बल्कि स्वयं को ही जागना होगा और इस दूषित हवा और दूषित जल के महा प्रभाव से बचने के लिए आगे आना होगा।
जैसे-जैसे यह ज़हरीला वातावरण बनता जा रहा है, यह आने वाली पीढियां के लिए नहीं, वर्तमान पीढ़ियां ही इसमें नष्ट हो जाएंगी। आने वाली पीढ़ी होगी तो हमें देखेंगी। कहने का भाव यह है कि इस प्रदूषित होते वातावरण की समस्या से स्वयं समाधान निकालना होगा। हमें आगे आना होगा, लोगों को जागना होगा। एक दूसरे को दोष देने से कोई लाभ नहीं है। एक राज्य, दूसरे राज्य की सरकारों को दोष देने से भी कोई लाभ नहीं है। हमें स्वयं जागृति लानी होगी। व्यक्ति-व्यक्ति का दुश्मन नहीं, बल्कि उसकी सहयोगी होता है। हमें जल, जंगल और जमीन सभी को साफ रखना होगा। तभी मानव जीवन और सृष्टि के अन्य जीवों की भी रक्षा हो सकेगी।