मै हूं एक मिट्टी का घड़ा

0
1302


मै हूं एक मिट्टी का घड़ा,
सड़क के किनारे मै पड़ा।
बुझाता हूं मै सबकी प्यास,
कुम्हार मुझे लिए है खड़ा।।

खुदाने से खोदकर मिट्टी लाता है,
तब कहीं कुम्हार मुझे बनाता है।
बड़ी मेहनत से सुखा तपा कर,
तब कहीं वह मुझे बाजार लाता है।।

बुझाता हूं प्यासे की प्यास मै ही,
कुम्हार के बच्चो का पेट पालता हूं।
कहता नहीं मै किसी से कुछ भी,
गरीब के घर को मै ही संभालता हूं।।

ले लिया स्थान मेरा वाटर कूलरो ने,
या फ्रिज मे बोतलो में समा गया हूं।
फिर भी गरीब के घर की शोभा हूं मैं,
उनके दिलों में मै ही समा गया हूं।।

छेद कर देते है कुछ लोग मेरे पेट में,
टोटी लगा देते है फिर उसी वे छेद में।
करता नहीं जरा भी उफ उस दर्द से,
क्योंकि ठंडा पानी जाता है सबके पेट में।।

आर के रस्तोगी

Previous articleबंगाल के जंगलमहल में ‘गाजन’ की धूम
Next articleकोरोना का बढ़ता प्रकोप ——
आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here