पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के निहितार्थ

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राकेश कुमार आर्य

राजस्थान ,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,तेलंगाना और मिजोरम में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बांछें खिल गई हैं । पार्टी के लिए उत्साह और उमंग का परिवेश सृजित हुआ है ,और उसे 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए सचमुच नई ऊर्जा मिल गई है , जबकि इसके विपरीत भाजपा के लिए यह सारी स्थितियां निराशाजनक रही हैं । वह अपेक्षा से अधिक अपने विपरीत आए हुए परिणामों को देखकर अभी शोक में डूबी है । ऐसे में इन चुनावों का निष्पक्ष विश्लेषण आवश्यक हो जाता है कि अंततः ऐसे कौन से कारक हैं जिनसे कांग्रेस के लिए नई ऊर्जा का तो भाजपा के लिए निराशा का परिवेश सृजित हो गया है , और यह भी कि क्या यह परिवेश 2019 के लोकसभा चुनावों को प्रभावित करेगा ? 
इस प्रकार के प्रश्नों पर विचार करते हुए हमें आरएसएस की भूमिका पर भी विचार करना होगा और यह भी विचारना होगा कि भाजपा को सत्तासीन करने या उसे 3 प्रदेशों में से सत्ता से उखाड़ने में संगठन का क्या योगदान रहा है ? सर्वप्रथम हम इसी संगठन की कार्यशैली पर विचार करते हैं । 
आरएसएस की देश भक्ति सचमुच प्रशंसनीय है। भाजपा को सत्ताशीर्ष तक पहुंचाने में इस संगठन का बड़ा भारी योगदान भी रहा है। राम मंदिर मुद्दे का राजनीतिकरण कराने में भी संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । इसके चिंतक और साधक बड़े-बड़े नेता धारा 370 को संविधान से हटाने और समान नागरिक संहिता को देश में लागू कराने के साथ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करने पर बल देते आए हैं । संघ के इस प्रकार के राष्ट्रवादी विचारों को लोगों ने पसंद भी किया है और प्राकृतिक आपदा के समय संघ द्वारा बिना किसी भेदभाव और पक्षपात के समाज के हर वर्ग और संप्रदाय के लोगों को दी जाने वाली सहायता ने तो मुस्लिमों को भी प्रभावित किया है। इस सब के उपरांत भी संघ की छवि देश में कांग्रेस और धर्मनिरपेक्षतावादी दलों ने एक ऐसे संगठन की बनाई है जो देश में ‘दक्षिणपंथी राजनीति ‘ को प्रोत्साहित करते हुए हिंदू उग्रवाद का जनक है । जबकि संघ न तो दक्षिणपंथी राजनीति को प्रोत्साहित करता है और ना ही वह हिंदू उग्रवाद का जनक है । वह तो उग्रवाद के विरुद्ध हिंदू को खड़ा करने के लिए कृत संकल्प एक राष्ट्रवादी संगठन है जो हिंदू समाज की किसी भी प्रकार की अकर्मण्यता , निष्क्रियता और प्रमाद की अवस्था को समाप्त कर उसमें राष्ट्र गौरव का बोध उत्पन्न कर देने के लिए कृत संकल्प जान पड़ता है । पर यह दुर्भाग्य है इस देश का कि यहां राष्ट्रवादी व्यक्ति या संगठन को भी घृणा की दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति है । विदेशों में ऐसे संगठनों को सराहा भी जाता है और उसका सम्मान भी किया जाता है , जो देश के लिए समर्पित हो , पर भारत में इसके विपरीत है।
यह संघ का उज्जवल पक्ष है ।अब इसके दूसरे पक्ष पर भी विचार करते हैं । इस संगठन के पास देश की प्रचलित राजनीतिक ,सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थानापन्न कोई व्यवस्था नहीं है । यह संगठन राम मंदिर निर्माण जैसी भावनात्मक बातों को जब लेकर चलता है और लोगों की बेरोजगारी ,भुखमरी ,बेकारी , अशिक्षा आदि के लिए कोई ठोस राजनीतिक चिंतन और कार्ययोजना लोगों को नहीं दे पाता है तो लोग इसके पास आकर भी इससे दूर चले जाते हैं । इसके पदाधिकारियों में अकड़ और अहंकार की प्रवृत्ति पाई जाती है। वे दंभी और पाखंडी होते हैं ,अपने ही लोगों से बात ना करने की उनकी प्रवृत्ति उन्हें अह्मकारी और दम्भी बनाती है । यह अवगुण इनमें भाजपा के सत्ता में आते ही तो द्विगुणित हो जाते हैं । संघ भारतीय इतिहास और भारतीय सामाजिक परंपराओं को , भारतीय संस्कृति को और भारतीय धर्म को पौराणिक ढंग से व्याख्यायित और स्थापित करता है । उसमें वेद के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की उपेक्षा करता है , इसलिए इसके प्रभु राम जगत नियंता परमेश्वर हैं और हनुमान जी पूँछधारी बंदर है । इस संगठन के बड़े-बड़े तथाकथित विद्वान भी इस प्रकार की पाखंड और विज्ञान विरुद्ध बातों में फंसे पड़े हैं । 
यही कारण है कि संघ को कभी आर्य समाज जैसी वैज्ञानिक सोच रखने वाली संस्थाओं का समर्थन नहीं मिल पाता है और ना ही यह आर्य समाज को अपने साथ लेकर चलने की बात करता है । क्योंकि आर्य समाज इसके प्रत्येक प्रकार के पौराणिक पाखंडवाद का विरोधी है । यद्यपि राष्ट्रवाद के नाम पर कुछ आर्य समाजी पृष्ठभूमि के लोग संघ का समर्थन करते पाए जाते हैं , परंतु दांव लगते ही संघ आर्य समाज और आर्य जनों को मिटाने में देर नहीं करता है । अनेकों आर्य समाजी भवनों पर अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण संघ कब्जा कर चुका है । इतना ही नहीं देश में हिंदू महासभा के अस्तित्व को मिटाने में भी संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । इस संगठन को पनपने न देने के लिए संघ हर संभव प्रयास करता है । जिससे संघ को हिंदू महासभा का सहयोग भी मिल नहीं पाता है। भारत के धर्म ,संस्कृति और इतिहास पर तार्किक आधार पर लिखने वाले विद्वान जनों को संघ प्रोत्साहित नहीं करता है। यह उन्हीं लोगों को प्रोत्साहित करता है जो पौराणिक पाखंडवाद के पोषक हो और उसी प्रकार भारतीय धर्म ,संस्कृति और इतिहास की व्याख्या करने के अभ्यासी हों।
संघ अपनी अवधारणाओं में जीता है और उनमें वह किसी भी प्रकार के भौतिक तर्कवाद को कोई स्थान नहीं देता है । यद्यपि यह इस्लाम में ‘अक्ल के दखल ‘ न देने की बात का विरोध भी करता है और उसका उपहास भी उड़ाता है , परंतु स्वयं भी पौराणिक अंधविश्वास और पाखंड में जीता है । जिससे इसे दूसरे दलों को या सांप्रदायिक संगठनों को सांप्रदायिक या दक्षिणपंथी संगठन करने का अवसर मिलता है। इस प्रकार के आरोपों से हिंदू समाज का भी बहुत बड़ा वर्ग प्रभावित होता है , और वह संघ जैसे देशभक्त संगठन को भी सांप्रदायिक मानने लगता है । जिसके चलते यह नहीं कहा जा सकता कि आरएसएस संपूर्ण हिंदू महासंघ समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन है।
संघ ने भाजपा को भी अपने ही रंग में रंग लिया है ।सत्ता के व्यामोह में फंसी भाजपा संघ से दूर नहीं हो पाती है । यही कारण है कि भाजपा में भी गंगा की आरती में बड़े बड़े नेता तक उपस्थित हो जाते हैं । ना तो उन्हें आरती के यथार्थ का बोध है और ना ही उन्हें वेद विज्ञानवाद से कोई संबंध है । उन्हें वोट चाहिए और यदि वोट लोगों की आस्था से खिलवाड़ करके मिलते हैं तो वह ऐसा कर सकते हैं । जब वह ऐसा करते हैं तो भारतीय वैज्ञानिक धर्म को ,तर्कशास्त्र और दर्शनशास्त्र को वह विदेशियों और अपने विरोधियों की दृष्टि में उपहास का पात्र बना देते हैं । इससे भाजपा भी मुसलमानों की भांति जड़वाद से बंधी हुई दिखाई देती है । यह एक प्रकार से भाजपा की सांप्रदायिकता है । भाजपा आर्यत्व के विकार अर्थात हिंदुत्व के स्वरूप को अपना चुकी है । वह हिंदुत्व को आर्यत्व का स्थानापन्न नहीं बना पाई और ना ही बना पाएगी । जबकि इस देश में हिंदुत्व को आर्यत्व का स्थानापन्न बनाकर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है । आर्यत्व अर्थात श्रेष्ठत्व और श्रेष्ठत्व अर्थात भारत के वैदिक दर्शन और तर्कशास्त्र के अनुसार प्रत्येक पदार्थ और प्रत्येक परिस्थिति के साथ न्याय करना । भाजपा निश्चय ही भारत की अंतश्चेतना की ऊंचाई को न तो समझ सकी है और न समझ सकेगी । यही भाजपा की सबसे बड़ी दुर्बलताहै । अपनी इसी दुर्बलता के कारण भाजपा हिंदुत्व के मूल आर्यत्व को समझने में असफल रही है । इस के बड़े-बड़े नेता आज भी इसी मान्यता के हैं कि भारत 1000 वर्ष तक विदेशियों का गुलाम रहा और जो कुछ पुराणों में वेद विरुद्ध लिखा है वह सब कुछ ठीक है । एक भी भाजपा नेता ने कभी मंचों से यह नहीं कहा कि भारत एक दिन भी गुलाम नहीं रहा। इसके विपरीत भारत विदेशियों को अपनी पवित्र भूमि से भगाने , मिटाने और हटाने के लिए हजार वर्ष से अधिक समय तक संघर्ष करता रहा । राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में भाजपा सत्ता में आते ही कांग्रेस की बी टीम बन कर अपना काम करती है।
वह इतिहास के पुनर्लेखन से पीछे हट जाती है और यदि पुनर्लेखन कराती है तो उसके मुखिया वह लोग बनते हैं जो इतिहास की पौराणिक व्याख्या करते हैं। भाजपा और संघ के इसी प्रयास को उनके विरोधी इतिहास का भगवाकरण कहते हैं । भाजपा इस्लाम और ईसाइयत को यदि विदेशी धर्म नहीं कह सकती है तो इससे भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कराने की मांग या भाजपा से ऐसी अपेक्षा करनेवाले निश्चय ही मूर्खों के स्वर्ग में रह रहे हैं । भाजपा और संघ भारत को भारत के रूप में नहीं समझ सके हैं और ना ही इसे सही रूप में स्थापित कर पाए हैं । 
भाजपा के नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति का देश के लोगों ने स्वागत किया था और आज भी लोगों में वह सर्वाधिक लोकप्रिय हैं । कांग्रेस के राहुल गांधी अभी भी उनसे बहुत पीछे हैं और लोगों का उनमें अधिक भरोसा भी नहीं है । प्रधानमंत्री की विदेश नीति और कार्यशैली से लोग खुश भी हैं और सहमत भी हैं, पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से तो भाजपा के कार्यकर्ता और नेता भी खुश नहीं है। इसी प्रकार अरुण जेटली की नीतियों से भी लोग दुखी हैं। इन दोनों को झेललकर भी लोग प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैं तो यह बड़ी बात है । संगठन और आम आदमी के बीच से यदि अरुण जेटली और अमित शाह निकल जाएं तथा लोगों का या कार्यकर्ताओं का प्रधानमंत्री से सीधा संवाद हो सके तो परिस्थितियां बहुत बेहतर हो सकती हैं । प्रधानमंत्री श्री मोदी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को यदि समय रहते हटा देते तो यह शर्मनाक हार जो भाजपा ने राजस्थान में देखी है उसे देखने से बच जाती । अत: पीएम को अमित शाह और अरुण जेटली की नीतियों से भी लोगों को मुक्ति दिलानी चाहिए । लोगों ने भाजपा को झटका दिया है , अपने प्रधानमंत्री को नहीं। 
इससे पता चलता है कि मतदाता के सामने एक ओर प्रधानमंत्री मोदी खड़े थे तो दूसरी ओर भाजपा । ऐसे असमंजस में फंसे मतदाता ने विकल्प हीनता के कारण कांग्रेस को चुन लिया । यदि राष्ट्रवाद के नाम पर कोई और भी बेहतर विकल्प इन प्रदेशों के लोग भाजपा के सामने खड़ा देखते तो सत्ता निश्चित रूप से कांग्रेस को ना मिलती । तब राष्ट्र निर्माण को समर्पित उसी विकल्प को सत्ता मिलती जो भाजपा से मुक्ति दिलाने में सक्षम दिखाई पड़ता । हमारा मानना है कि भाजपा की विकल्पहीनता की स्थिति ने कांग्रेस को ऊर्जा दी है और अपने चुनावी मुद्दों से दूर भागती भाजपा और संघ के अहंकारी स्वभाव ने इस पार्टी को निराशा में धकेल दिया है । लगता है कि अब श्री मोदी ही इन दोनों संगठनों के लिए आशा का एकमात्र केंद्र हैं। 

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