निर्णायक समय में खुलकर दें अन्ना को समर्थन

अन्ना फिर अनशन पर थे और उन्होंने घोषणा कर दी थीकि या तो जन लोक पाल बिल पारित होगा या उनका बलिदान होगा| चार दिन के सन्नाटे के बाद जनता फिर जंतर मंतर पर अपने दुलारे संत के समर्थन में भीड़ के रूप में हाज़िर थी| एक साल पूर्व यहीं से रस पिलाक्र र विजयी घोषणा के साथ अन्ना का अनशन तुड़याया गया था|पर जैसा कि जानकार समझ रहे थे कि यह एक छलावा मात्र है|आज भारत में कहने को तो लोकतंत्र है पर यथार्थ में हमारा शाशन तंत्र अंग्रेजी शासन से भी गया गुजरा तानाशाही का जीता जागता उदाहरण है| सत्ता चोरों और बेईमानों के हाथों में है|जैसा लोकपाल अन्ना हज़ारे चाहते हैं यदि वह परित हो गया तो देश के सभी मंत्री एवं आधे से ज्यादा सांसद विधायक जेलों में हॊंगे| वर्तमान कानून भ्रष्टाचार करने की खुली छूट देता है देश का कानून केवल गरीबों क्मजोरों और उन पर लागू होता है जिनका कोई माई बाप नहीं है|जिनके पास पैसा है पहुंच है उनका कानून कुछ भी नहीं कर पाता| आज आम आदमी त्रस्त है बिना पैसे दिये कहीं काम नहीं होता लाख शिकायत करो भ्रष्टाचारियों का कुछ नहीं होता बहुत से बहूत कुछ दिन के लिये उसे छुट्टी पर भेज दिया जाता है अथवा स्ट्रांसफर कर दिया जाता है| मलाईदार पद मलाईदार मंत्रालय आदि जुमले आज सर्वप्रचलित हैं| क्या सरकार इनका मतलब नहीं जानती| अन्ना ने भरपूर प्रयास किया कि जन आंदोलन के द्वारा सत्ता पर बैठे मठाधीशों के कान पूँछ हिलाकर उन्हें जन लोकपाल बिल पास करने के लिये मजबूर किया जाये परंतु जब उन्होंनें देखा कि इन सत्ता के भूखे भेड़ियों को अहिंसा के रास्ते चलकर और अनशन द्वारा महात्मा गांधी बनकर मांगे मनवाना असंभव है तो उन्होंने चुनावी मैदान में कूदने की घोषणा कर दी|आखिर लोहे को लोहे से ही काटा जा सकता है| जैसे को तैसा ,टिट फार टेट आज के समय की मांग है| अंधों के आगे रोना अपने दीदे खोना|

,आखिर अन्ना ने वही किया जिसकी जरूरत थी| सरकार की शातराना चाल थी कि अनशन द्वारा केजरीवाल अन्ना हज़ारे इत्यादि संपूर्ण अन्ना के सदस्यों को मार डाला जाये|अनशन द्वारा मांगें मनवाने का तरीका अब पुराना हो गया है भूखे मर जाने पर बेईमान सरकारों को कोई फर्क नही पड़ता|मरो या जियो बला से उन्हें तो अपनी कुर्सी अपनी पदवी प्यारी है|भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार हो गया है|नेताओं को केवल पैसा प्यारा है| ऐसे में अनशन की धमकियों का कोई असर नहीं होता| मगर चुनावी दंगल में कूदने की घोषणा के बाद अन्ना के कंधों पर भारी उत्तरदायित्व आ पड़ा है क्योंकि सत्ता के धुर भूखे ,राजनीति के पुराने मंझे हुये खिलाड़ियों के विरुद्ध चुनाव लड़ना और विजय पाना आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा है|धर्म जाति वर्गों में बंटे वोटर्स को पक्ष में करना बहुत टेड़ी खीर है फिर चुनाव पैसों का खेल है तन बल जन बल बाहु बल इन बलों के आगे नैतिकता का बल कितना कारगर होगा यह तो परिणाम ही बतायेंगे परंतु बहुत कठिन है डगर पनघट की | बेईमान बनाम ईमान, नैतिक बनाम अनैतिक, सच बनाम झूठ धर्म बनाम अधर्म संप्रदायकिता बनाम धर्म निर्पेक्षता के युद्ध में किसकी विजय होती है यही देखना बाकी होगा|यह उन हालातों में जबकि सचाई के दूर दूर तक दर्शन नहीं होते बिना पैसों के चुनाव लड़ना दिवा जागते में स्वप्न देखने जैसा है|फिर अन्ना अच्छे लोगों का चुनाव कैसे कर पायेंगे|देखने वाली बात तो यह है कि आज अच्छे लोगों को कोई पहचानता भी नहीं है| किसी शहर में वहां कॆ गुंडों बदमाशों का पता सब जनते हैं किंतु शरीफ आदमा को कम ही लोग पहचानते हैं| अच्छे की जमात में से छांटे गये उम्मीदवार गुंडे और दादा टाईप लोगों के मुकाबले कितने टिक पायेंगे यह भी सोचने का विषय होगा| इन सीधे सादे लोगों को कौन संरक्षण देगा कौन इनके जान माल की रक्षा करेगा,यह भी देखना होगा| कितनी घुड़कियां धमकियां मिलेगीं कितने लोगों को शारीरिक हानि पहुँचाई जायेगी इस पर भी ध्यान देना होगा|मामला आमूल चूल व्यवस्था परिवर्तन का है असत पर सत की विजय का है देवताओं को आसुरी शक्तियों से लड़ना है तो कठनाईंयां तो होगीं परंतु जैसा कहा जाता है सच में बहुत ताकत होती है ,सत्यमेव जयते तब अन्ना हज़ारे की विजय असंभव भी नहीं है| आवश्यक्ता है जनता इस मुहीम को किस रूप में लेती है|बेईमानी से सब त्रस्त हैं भ्रष्टाचार से सारा देश जूझ रहा है और आसमान की ओर जाती मँहगाई मुँह बाये खड़ी है ऐसे में आम जनता को अपनी ओर मोड़ना कठिन नहीं होना चाहिये,किंतु सवाल विश्वास दिलाने का है|क्रांतियो ने बड़े से बड़े राज सिंहासनो को पलटा है तब यहां भी ऐसे उलटफेर से इंकार नहीं किया जा सकता| आम जनता को चाहिये कि वे खुलकर अन्ना का सपोऱ्ट करें एक बार मौका दॆं सत्ता बदलें फिर परिणाम देखें|

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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