खतरनाक पर्यावरणीय खतरा है बढ़ता ध्वनि प्रदूषण 

शोर प्रदूषण आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है। और आजकल हमारे देश के बड़े शहरों में बहुत अधिक शोर प्रदूषण हो रहा है। यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर शोर प्रदूषण है क्या ? और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं ? वास्तव में, शोर प्रदूषण अनुपयोगी ध्वनि होती है जिससे मानव तो मानव यहां तक कि जीव-जंतुओं तक को भी परेशानी होती है। वास्तव में,जब शोर की तीव्रता पर्यावरण में अत्यधिक हो जाती है तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आज हमारे देश की लगातार जनसंख्या बढ़ रही है और जनसंख्या वृद्धि के साथ ही यातायात के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। विकास के साथ ही विभिन्न औधोगिक कल-कारखानों में भी अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है और यही कारण भी है कि शोर(ध्वनि) प्रदूषण में भी इजाफा हुआ है। ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌इसके अलावा बिजली कड़कना, बिजली गिरना आदि जैसी कई प्राकृतिक घटनाएं, जो शोर उत्पन्न करतीं हैं, भी मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।यहां बताना चाहूंगा कि ध्वनि प्रदूषण देश में लाखों लोगों के जीवन पर बहुत ही प्रतिकूल व नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि शोर और स्वास्थ्य के बीच सीधा संबंध पाया जाता है। शोर से संबंधित समस्याओं में तनाव से संबंधित बीमारियाँ, उच्च रक्तचाप, चिड़चिड़ापन, श्रवण हानि, नींद में व्यवधान, सिरदर्द, एकाग्रता में कमी आदि को शामिल किया जा सकता हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार निंद्रावस्था में आस-पास के वातावरण में 35 डेसीबल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए।जानकारी मिलती है कि 80 डेसीबल  से ऊपर की आवाज को खतरनाक ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में माना जाता है। यहां यह भी गौरतलब है कि शोर की वजह से मेटाबॉलिज्म से जुड़े रोग, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज तक का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि बस बहुत बार तेज शोर से हार्ट अटैक तक का भी खतरा रहता है। वास्तव में,शोर की अधिक तीव्रता हृदय की धड़कन को बहुत प्रभावित करती है एवं उस में अनियमितता अर्थात तेज या धीमे ह्रदय स्पंदन जैसी समस्याएं उत्पन्न कर देती है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण के कारण अकेले यूरोप में हर साल 16,600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है और 72,000 से अधिक को अस्पताल में भर्ती  होने की जरूरत पड़ती है। एक अन्य आंकड़ें के अनुसार  आज तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से यूरोप में हर साल 48,000 लोग दिल की बीमारी से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है। यदि हम यहां ध्वनि प्रदूषण के विभिन्न स्त्रोतों की बात करें तो इसमें क्रमशः टीवी, रेडियो, कूलर, स्कूटर, कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रेन, जहाज, रॉकेट, घरेलू उपकरण, वाशिंग मशीन, लाउड स्पीकर, स्टीरियो, टैंक, तोप,फैक्ट्री, विभिन्न मशीनरी, औधोगिक व आवासीय इमारतों का निर्माण, कार्यालय के विभिन्न उपकरण,आडियो मनोरंजन सिस्टम, आतिशबाजी, सैन्य उपकरण,तथा दूसरे सुरक्षात्मक उपकरणों के अलावा सभी प्रकार की आवाज करने वाले साधन उपकरणों या कारकों को ध्वनि प्रदूषण का स्त्रोत माना जा सकता है। वैसे,ध्वनि प्रदूषण के अन्य कारणों में धरने प्रदर्शन, रैलियां, नारेबाजी, राजनीतिक और गैर-राजनीतिक रैलियों में उमड़ने वाली अनियंत्रित भीड़, कार्यक्रम में एकत्रित जनसमूहों का एक साथ वार्तालाप करना शामिल है। उपर्युक्त सभी कारणों से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। वास्तव मे आज के समय में शोर नियंत्रण के आदेश महज खानापूर्ति बन कर रह गये हैं ‌‌। आज बाजार में लाउड स्पीकरों पर,डीजे पर कानफोडू शोर सुनने को मिल जाएगा। विभिन्न मैरिज पैलेसों में भी डीजे पर शोर को सुना जा सकता हैं,जिसकी आवाज बहुत ही तेज होती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस कानफोडू शोर पर रोक की आवश्यकता है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि ध्वनि प्रदूषण जंगली और मानव जीवन के साथ पेड़-पौधों तक को भी प्रभावित करता है। तेज ध्वनि से पशुओं का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इसके कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं और हिंसक हो जाते हैं। हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं। ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। नियमित रूप से तेज ध्वनि से सुनने से कान के पर्दे फट सकते हैं। इसके अलावा तेज ध्वनि हमारे स्थायी या अस्थायी रुप से बहरेपन का कारण बन सकती है। ध्वनि प्रदूषण से सबसे ज्यादा परेशानी अस्पतालों में मरीजों, विद्यालयों, घरों में विद्यार्थियों, शिक्षकों को होती है। जानकारी देना चाहूंगा कि ध्वनि का स्तर 80 डीबी से 100 डीबी होने पर यह हमें बहरा बना सकता है। यह बहुत ही संवेदनशील है कि आज शहरों में आबादी वाले स्थानों में, अस्पतालों व विद्यालयों के पास तेज प्रेशर हार्न, लाउडस्पीकर बजाये जाते हैं। इन्हें रोकने की जरूरत है। हालांकि समय समय पर हमारे देश की विभिन्न राज्य सरकारें, प्रशासन वाहनों पर लगे डीजे पर सख्ती से रोक लगाते हैं, लेकिन कुछ दिनों के बाद स्थिति डाक के तीन पात वाली हो जाती है ‌‌। बाजारों में, गलियों में, मोहल्लों में शोर प्रदूषण किया जाता है लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। बहुत से स्थानों पर आज भी था रात्रि के दस बजने पर तेज आवाज में डीजे बजाने पर  रोक पहले से ही जारी है। यहां तक कि आदेश का उल्लंघन करने पर डीजे लगे वाहन व म्यूजिक सिस्टम तक जब्त करने तक की बातें कही जाती हैं लेकिन धरातलीय स्तर पर विरले ही इस पर कार्रवाई होती है। आज के समय में कानफोडू संगीत जस की तस समस्या बना हुआ है। धार्मिक कार्यक्रम हो या फिर कोई भी मांगलिक अवसर, या कोई पार्टी या फंक्शन हो, बहुत शोर किया जाता है। रात भर डीजे बजाये जाते हैं। विवाह समारोहों के दौर में सड़कों पर बड़ी संख्या में वाहनों पर लगे डीजे गांव-शहरों में फिर से नजर आने लगे हैं। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि शादियों में बजने वाले डीजे की आवाज 100 डीबी से भी अधिक होती है। हैरत की बात है कि डीजे के लिए वाहनों में मनमाना बदलाव तक कर लिया जाता है जबकि यातायात नियम इसकी अनुमति नहीं देते। बुलेट मोटरसाइकिल को आवाज के साथ तेज दौड़ाना आज युवाओं का एक फैशन सा हो गया है और हैरानी की बात है कि कभी कभार ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होती है।यहां बताना चाहूंगा कि ध्वनि प्रदूषण हमारे काम करने की क्षमता और गुणवत्ता को कम करता है। यह हमारी एकाग्र क्षमता को प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण गर्भवती महिलाओं के व्यवहार में चिड़चिड़ापन आता है। कई बार तो गर्भपात(एबोर्शन) तक की स्थिति बन जाती है। यह हमारी मानसिक शांति को भंग करता है। आज के समय में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम भी अहम मसला है जिस तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। रात दस बजे बाद तेज आवाज में म्यूजिक बजने पर कार्रवाई का फरमान पिछले कई सालों से स्थायी रूप से लागू है। यहां तक कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बारे में सख्त गाइडलाइन जारी कर रखी है, लेकिन नियमों के उल्लंघन पर शायद ही किसी के खिलाफ कार्रवाई होती है। यहां जानकारी देना उचित होगा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण को गंभीरता से लेते हुए  (2005) 5 एससीसी 733 (पृष्ठ 782) आदेश जारी करते हुए कहा कि लाउडस्पीकर की आवाज 75 डीबी से कम रखी जानी चाहिए। सार्वजनिक आपात स्थिति को छोड़कर रात में (रात के 10.00 बजे से सुबह 6 बजे के बीच) किसी ध्वनि एम्पलीफायर का उपयोग नहीं  किया जाना चाहिए। बहरहाल, बता दूं कि (आंकड़ों के मुताबिक) जब से सड़कों पर वाहनों में लगे डीजे का इस्तेमाल होने लगा है, ध्वनि प्रदूषण के स्तर में खासी बढ़ोतरी देखी गई है। यहां तक भी देखा गया है कि सरकारी बसों में भी टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम लगे होते हैं। आज के समय में,बच्चों, बुजुर्गों और अस्पतालों में भर्ती  मरीजों के स्वास्थ्य को लेकर ध्वनि प्रदूषण एक बहुत बड़े खतरे के रूप में सामने आया है। तेज आवाज में संगीत बजने पर कान के पर्दे फटना, दर्द होना व बहरेपन की शिकायतें भी आजकल बढ़ी हैं। विद्यार्थियों को पढ़ाई में बहुत असुविधा होती है। ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए अत्यधिक शोर उत्पन्न करने वाली मशीन में साइलेंसर के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत है। विभिन्न धार्मिक कार्यों, शादी बरातों, पार्टियों, फंक्शन्स आदि में एक उचित ध्वनि तीव्रता तक ही साउंड को बजाया जाना चाहिए, और उल्लंघन करने वालों पर उचित लेकिन सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए।जगह जगह पर सड़क किनारे डेसीबल मीटर लगाये जाने चाहिए जिससे कि ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को चेक किया जा सके।कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को ध्वनि इससे अपने कानों की सुरक्षा के लिए कानों में विशेष प्रकार के इयर प्लग्स आदि का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे मशीनों की तीव्र ध्वनि से कानों को क्षति न पहुंचे। भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में जाने से हमें बचना चाहिए ‌‌। इसके अलावा हमें अपने घरों के आसपास और सड़क के किनारों पर वृक्ष लगाने चाहिए। क्योंकि ये इसको रोकने में काफी मददगार साबित होते हैं। इन वृक्षों को हम ग्रीन मफलर के नाम से भी जानते हैं।सरकार द्वारा ध्वनि कंट्रोल कानून के तहत लोगो को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। अंत में यही कहना चाहूंगा कि प्रकृति व हमारी सेहत दोनों के लिए ही ध्वनि प्रदूषण बहुत विनाशकारी और घातक है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक पर्यावरणीय खतरों में से एक है।  विशेषज्ञों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण, जानवरों के प्रजनन चक्र और पालन-पोषण तक में बाधा डाल रही है जिसके कारण कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा तक बढ़ गया है। अतः आइए हम ध्वनि प्रदूषण को रोकने में अपना योगदान दें और हमारे स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण को भी ठीक रखें।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला

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