यमुना में बढ़ता प्रदूषण का कहर

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-ललित गर्ग-

यमुना की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत एवं बढ़ते प्रदूषण पर पिछले चार दशकों से लगभग हर सरकार कोरी राजनीति कर रही है, प्रदूषणमुक्त यमुना का कोई ईमानदार प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दिया है। क्या दिल्ली में कोई ऐसी जगह है जहाँ आपको यमुना का साफ पवित्र निर्मल जल दिखाई दे? क्योंकि जहाँ भी आप जाएंगे, हर जगह यमुना का पानी काला एवं झागभरा ही नजर आएगा। यमुना की साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैं, लेकिन लगता है सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये। यही कारण है कि इस नदी में प्रदूषण की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि साल-दर-साल पानी और गंदा व यमुना की स्थिति खराब ही हुई है। राजधानी दिल्ली की जनता केवल वायु प्रदूषण के कहर से ही नहीं जूझ ही रही है, बल्कि अब यमुना के जहरीले पानी ने भी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। लम्बे समय से यमुना के पानी में अमोनिया की बढ़ी मात्रा ने चिंताएं बढ़ा दी है। दिल्ली में यमुना में पानी में बर्फ के पिंडों की तरह झाग तैर रहे हैं। पानी अत्यधिक जहरीला हो चुका है। इस कारण कई इलाकों में पीने के पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ने और पानी के जहरीले होने की समस्या कोई आज की नहीं है। ऐसा पिछले कई सालों से देखा जा रहा है।
दिल्ली का जीवन भी कभी यमुना से जुड़ा था, कभी यह दिल्ली यमुना के कारण ही बसी थी। यह एक इतिहास सम्मत तथ्य है कि राजधानी के रूप में दिल्ली के स्थान को यमुना के आकर्षक स्वरूप और पेयजल के लिए मीठे पानी की उपलब्धता के कारण चुना गया था। इतना ही नहीं, यमुना ने एक शहर के रूप में राजधानी के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लगभग सभी ऐतिहासिक विवरणों में दिल्ली के एक प्रमुख संसाधन के रूप में यमुना की सुंदरता, धार्मिक आस्था एवं शुद्ध पेयजल का उल्लेख है। लेकिन इस जीवनदायिनी यमुना को हमने अपने लोभ, स्वार्थ, लापरवाही के कारण जहरीला बना दिया है। कारखानों से निकलने वाले तेल, कैमिकल, धुंआ, गैस, एसिड, कीचड़, कचरा, रंग ने सबसे अधिक इसे प्रदूषित किया है। अगर यह इसी प्रकार चलता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा जब दिल्ली की जनता को शुद्ध पानी नहीं मिलेगा। ज्यादा चिन्ताजनक है कि बीमारियों को पनपाने में यमुना का प्रदूषण मुख्य कारण होगा।
इस गंभीर होते यमुना के प्रदूषण एवं जहरीले होने के बावजूद कोई सार्थक एवं प्रभावी उपचार होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। लंबे समय से यह समस्या बनी रहने के बावजूद इसके समाधान का रास्ता निकालने को कोई तैयार नहीं है। बल्कि यमुना के नाम पर राजनीतिक दल जमकर राजनीति करते हैं, एक दूसरे दलों एवं पडौसी राज्य एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पला झाड़ लेते हैं। यमुना के प्रदूषण के लिए दिल्ली सरकार पड़ोसी राज्यों हरियाणा और उत्तर प्रदेश को इसका जिम्मेदार ठहरा रही है, तो दूसरी ओर ये राज्य इसके लिये दिल्ली सरकार की गलत नीतियों एवं उदासीनता को दोषी मानती है। कुल मिलाकर यमुना का यह संकट राजनीति के दुश्चक्र में उलझ कर रह गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यमुना प्रदूषण मुक्त कैसे हो?  लगातार बढ़ता दिल्ली का जल संकट इन स्थितियों में कैसे समाधान पाये? जब आपके द्वार की सीढ़ियां मैली हैं तो अपने पड़ौसी की छत पर गन्दगी का उलाहना मत दीजिए। हमें कुछ ऐसा करना होगा ताकि मरने के बाद स्वर्ग में रहने के की बजाय मरने से पहले स्वर्ग रहे।
विडम्बनापूर्ण त्रासदी है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की औद्योगिक इकाइयों से जो अपशिष्ट और जहरीले रसायन निकलते हैं, उन्हें यमुना में छोड़ दिया जाता है। वैसे यह समस्या देश की तमाम छोटी-बड़ी नदियों के साथ है। नदियों के प्रति हमारा यह उपेक्षापूर्ण रवैया हमारी जीवनरक्षक नदियों को जहरीला बनाता रहा है।  ये नदियां जिन शहरी इलाकों खासतौर से औद्योगिक शहरों से गुजरती हैं, वहां का अपशिष्ट इनमें बहा दिया जाता है। इसलिए आज ज्यादातर नदियां खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी हैं। दिल्ली की समस्या इसलिए ज्यादा गंभीर एवं घातक होती जा रही है कि एक यमुना ही तो है जो दिल्ली के लिये शुद्ध जल आपूर्ति का साधन है। दिल्ली में साफ पानी के स्रोत काफी कम हैं, ऐसे में यमुना नदी पर निर्भरता जरूरत से ज्यादा रहती है। राजधानी दिल्ली में साफ पानी की बड़ी समस्या है। सिर्फ जगह बदलती हैं, लेकिन गंदे पानी की शिकायत सब जगह समान रूप से देखने-सुनने को मिल जाती हैं।  इसकी एक बड़ी वजह यमुना नदी का वो गंदा पानी भी है जो समय के साथ ना सिर्फ और ज्यादा विषैला होता जा रहा है, बल्कि कई बीमारियों का कारण भी बन रहा है।
यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदगी को सीधे नदी मे बहा देती है। साथ ही धार्मिक वजहों के चलते तमाम मूर्तियों व अन्य अवशिष्ट पूजा सामग्री का नदी में विसर्जन करने की परम्परा। औद्योगिक प्रदूषण, मल-मूत्र और धार्मिक सामग्री का नदी में विसर्जन प्रदूषण की मुख्य वजह हैं, लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा। ठंड के मौसम में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। ऐसे में यमुना को प्रदूषित होने से कैसे बचाया जा सकता है?
यमुना की प्रदूषण-मुक्ति के लिये सरकार के साथ-साथ जन-जन को जागना होगा। सरकार की सख्ती एवं जागरूकता ज्यादा जरूरी है। यमुना प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय हरित पंचाट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकाय औद्योगिक इकाइयों के लिए समय-समय सख्त नियम बनाते रहे हैं। पर लगता है कि इनके दिशानिर्देशों पर अमल करवाने वाला तंत्र कमजोर साबित हो रहा है। वरना क्या कारण है कि सख्ती के बाद भी औद्योगिक कचरा और जहरीले रसायन यमुना में बहाए जा रहे हैं? औद्योगिक इकाइयों को सख्त हिदायत है कि वे तरल कचरा नदियों में प्रवाहित न करें। पर जिस सरकार, उसके महकमे और कानून प्रवर्तन एजंसी पर इसे सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी है, लगता है वह काम ही नहीं कर रही। यह एक तरह का भ्रष्टाचार है, गैर-जिम्मेदारी है। यमुना के प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को मिलकर काम करने की जरूरत है, न कि राजनीति करने की। जब तक तीनों राज्य साथ बैठ कर चर्चा नहीं करेंगे, कार्ययोजनाओं पर कदम नहीं बढ़ाएंगे और एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहेंगे तो कोई नतीजा नहीं निकलने वाला, बल्कि दिनोंदिन यह संकट गहराता जाएगा। कुछ समस्याएं राजनीतिक नफा-नुकसान से ऊपर होती है। उन्हें राजनीतिक नजरिये से नहीं, मानवीय नजरिये से देखना होता है।  अन्यथा जीवन मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जायेगा। मनुष्य के भविष्य के लिए यह चिन्ता का बड़ा कारण हैं। दिल्ली की यमुना इसी प्रकार अगर प्रभावित एवं प्रदूषित होती रही तो अगली शताब्दी में दिल्ली की बहुत कुछ विशेषताएं समाप्त हो जाएंगी। क्या आप ऐसी सुबह चाहेंगे जब दिल्ली का जीवन घोर अंधेरों से घिरा हो? विडम्बना यह है इस ओर हमारे दायित्व के प्रति हम सबने आंखें मूंद रखी हैं।
हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार वर्षा के वक्त खुद को फिर से साफ करके देती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा क्यों कर देते है? अगर दिल्ली की यमुना को अप्रदूषित करना है तो एक-एक व्यक्ति को उसके लिए सजग होना होगा। प्रकृति ने जो हमें जीवनदायिनी नदियां दी है और जोे रोज नया जीवन देती हैं, उसे हम प्रदूषित नहीं करें।

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