विजय सहगल
15-16 जून 2020 की रात पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी मे भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प को हर भारतीय अभी भी नहीं भूला है जब इस खूनी संघर्ष मे हमारे देश के 20 बहादुर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे भारत माता के मस्तकाभिमान को झुकने नहीं दिया। भारत और चीन के बीच ये अब तक की सबसे हिंसक झड़प थी। इस संघर्ष मे कर्नल संतोष बाबू सहित 20 वीर सैनिक शामिल थे जिन्होंने अपने देश के लिये अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे देश की रक्षा की। सारे देश ने अपने इन बीर सपूतों के इस बलिदान को नम आँखों से याद किया था। इस संघर्ष मे चीन के भी अनेक सैनिक मारे गये थे लेकिन उन चीनी सैनिकों का दुर्भाग्य देखिये कि अपने देश के लिये बलिदान के बावजूद उनके देश और परिवार के लोग अपने सपूतों के बलिदान को याद भी न कर सके क्योंकि चीनी सरकार ने चीनी सैनिकों की संख्या को छिपाया और मात्र चार सैनिकों की मौत को स्वीकार किया हालांकि आस्ट्रेलियाई समाचार पत्र “द क्लैक्सन” के अनुसार इस संघर्ष मे चीन के कम से कम 42 सैनिक मारे गये थे, तभी से भारत और चीन के बीच ये सीमा गतिरोध कायम हो गया था।
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने बताया कि इस गतिरोध को दूर करने हेतु दोनों देशों के सैनिक और राजनयिक स्तर की अनेक दौरों की वार्ताएं हुई और अंततः 21 अक्टूबर 2024 को रूस के कजान शहर मे ब्रिस्क देशों की बैठक के दौरान एक बड़ी खबर सामने आई कि भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख मे, वास्तविक सीमा रेखा पर चल रहे गतिरोध का समाधान निकलता दिखाई दे रहा है। इस समझौते के हो जाने पर भारत और चीन की सेनाएँ जून 2020 की स्थिति के अनुसार सीमा पर गश्त लगाएगी जैसा कि पहले से होता आ रहा था। सूत्रों के अनुसार पूर्वी लद्दाख क देपसांग और डेमचॉक क्षेत्र मे जहां दोनों देशों की सेनाओं ने गश्ती का रास्ता रोका हुआ था, अब पुनः एक दूसरे के सेनाएँ 2020 की स्थिति के अनुसार गश्त कर सकेंगी। गलवान घाटी मे दोनों देशों की झड़प के बाद देपसांग और डेमचॉक क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों मे चीनी सेनाओं ने गश्ती मार्ग को रोक दिया था इसके जवाब मे भारतीय सेनाओं ने भी अन्य दूसरे क्षेत्रों के गश्ती मार्ग मे अबरोध खड़े कर चीनी और भारतीय सेनाएँ एक दूसरे के सामने खड़ी हुई थी। ऐसा पहली बार हुआ था जब भारतीय सेनाओं ने चीनी सेनाओं को ललकारते हुए पहली बार टक्कर देते हुए उनके सामने खड़ी थीं। कुछ क्षेत्र ऐसे भी थे जहां अबरोधों के चलते दोनों देशों की सेनाएँ गश्त नहीं कर सकती थी। पेङ्गोंक एरिया, गलवान और गोगरा और हॉट स्प्रिंग क्षेत्र के इस बफर जोन मे भी अब पेट्रोलिङ्ग शुरू होने की संभावना है जैसा की 2020 के पूर्व की स्थिति मे था। भारत और चीन के बीच हो रहे इस समझौते पर ये तो निश्चित है कि यदि सही और सकारात्मक सोच के साथ और समुचित तरीके से प्रयास किए जाये तो बड़े से बड़ा विवाद बातचीत से सुलझाया जा सकता है।
भारत और चीन के बीच होने वाले इस समझौते से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रतिक्रियाएँ आना स्वाभाविक था । देश के अंदर विपक्ष द्वारा आये दिन चीन के सीमा विवाद पर मनगढ़ंत आरोप प्रत्यारोप लगा कर देश को भ्रमित करने के इरादों पर अब पानी फिर जाएगा। वहीं दूसरी ओर अमेरिका के वैश्विक वर्चस्व पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है, क्योंकि एक ओर जहां अमेरिका ने जिस तरह यूक्रेन को रूस के साथ हुए युद्ध मे बीच मझधार मे छोड़ दिया और वर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया वहीं इज़राइल के फिलिस्तीन, ईरान और लेबनान के साथ हुए युद्ध मे भी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सका। अमेरिका की विश्व राजनैतिक पटल पर इन आरोपों के चलते उसकी विश्वसनीयता मे भी भारी कमी आयी वही दूसरी ओर रूस ने चीन के साथ भारत के सीमा विवाद के समाधान मे अपरोक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर एक सच्चे मित्र का परिचय दिया। रूस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन के साथ युद्ध मे अपनी अपनी छवि मे हुए ह्रास को भारत और चीन के बीच होने वाले इस सीमा समझौते मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण अपनी प्रासंगिकता को विश्व मे पुनः एक बार स्थापित कर दिया।
मंगलवार दिनांक 22 अक्टूबर 2024 को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियांग ने भी सुनिश्चित किया कि दोनों देश एक समाधान पर पहुँच गये है। कूटनैतिक स्तर पर उच्च विदेशी अधिकारियों के निर्देश पर लगातार चली इन वार्ताओं से दोनों देशों की सीमा क्षेत्र के मामलों के लिये परामर्श और समन्वय के लिये बनी कार्यकारी समिति (डबल्यूएमसीसी) की अनेक बैठके हुई। कोशिशें सैनिक स्तर पर ही नहीं राजनयिक स्तर पर भी चल रही थी। चीनी पक्ष का कहना था कि भारत चीन के बीच पूर्ण सीमा समझौते के पूर्व उन द्विपक्षीय मुद्दों पर समहमति और सम्झौते पर आगे बढ़ना चाहिये जिन पर सहमति हो चुकि है, लेकिन भारत का स्पष्ट मत था जब तक वास्तविक सीमा रेखा पर 2020 के पहले कि स्थिति कायम नहीं हो जाती तब तक दोनों देशों के सम्बन्ध सामान्य नहीं हो सकते। इस स्पष्टोक्ति ने भी चीन को इस समझौते पर आने को मजबूर किया।
इन अनेक स्तरीय वार्ताओं के दौर की मीटिंग के पश्चात ब्रिस्क देशों की मीटिंग मे रूस के कजान शहर मे शामिल होने आ रहे चीन और भारत देश के प्रमुखों के बीच इस संधि पर हस्ताक्षर होने की संभावनायेँ बनी। इसके बावजूद सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र दुवेदी ने इस समझौते पर अपनी प्रितिक्रिया देते हुए सही कहा कि चीन के समझौते के बावजूद भारत सतर्क है। यहाँ यह कहना अतिसन्योक्ति न होगी कि भारत सरकार ने बड़ी चतुराई से, धैर्य और कूटनैतिक रणनीति के तहत बिना किसी युद्ध, धमकी और वैश्विक दबाव के, चीनी सरकार को समझौते के लिये मजबूर कर दिया और ये सिद्ध कर दिया कि ये 21वी शताब्दी का बदला हुआ भारत है जिसको ताकत के बल पर झुकाया नहीं जा सकता।
विजय सहगल