कुर्द समुदाय के लोगों का भारत से मदद की मांग की

कुर्दिस्तान
कुर्दिस्तान
कुर्दिस्तान

डा. राधेश्याम द्विवेदी
विस्तृत अर्थ में कुर्दिस्तान से अभिप्राय उस प्रदेश से है जहाँ कुर्द लोग निवास करते हैं। कुर्द कट्टर सुन्नी मुसलमान, योद्धा, कुशल घुड़सवार, बंजारा जाति के लोग हैं। यह प्रदेश एनातोलिया के दक्षिणपूर्व पहाड़ों तथा जागरूस श्रेणी के उत्तरपश्चिम स्थित है और तुर्की, ईरान और इराक तीन देशों में बँटा है। कुर्द लोग गर्मी में पशुओं के साथ पहाड़ी चरागाहों पर चले जाते हैं। जाड़े में घाटियों में रहते है। इनके खेमे गारे, मिट्टी, ईटं और लकड़ी के बने होते हैं। इनका अतिथिसत्कार प्रसिद्ध है। सीमित अर्थ में कुर्दिस्तान ईरान के एक उस्तान (प्रांत) का नाम है जो उत्तर में अजरबैजान, दक्षिण में किरमान शाह, पूर्व में ईराक की सीमा और पश्चिम में गेरूस और हमदान के उस्तानों से घिरा है। इसका मुख्य नगर सिनंदाज (सिन्नेह) है। यहाँ का मुख्य उद्योग गलीचा, ऊन और नमदा है। यहाँ कुर्द आबादी रहती है और यह तुर्की तथा इराक की सीमा के करीब है। कुर्दिस्तान प्रांत ईरान की उस धरती का एक भाग है जिस पर माद जाति का शासन रहा है।
कुर्द समुदाय का संबंध आर्य जाति से है जो लगभग चार हज़ार वर्ष पूर्व पूरब की ओर से इस क्षेत्र में पहुँची थी और बाद में उसने उत्तर पश्चिम तथा उरूमिये नदी के पूर्व की ओर पलायन किया। तख़्ते जमशीद में दारयूश के शिलालेख के अनुसार माद जाति के लोग वर्ष 550 ईसा पूर्व में हख़ामनेशी शासन के अधीन थे। कुर्दिस्तान प्रांत का क्षेत्रफल 28203 वर्ग किलो मीटर है और यह ईरान के पश्चिम में स्थित है।इस प्रांत में 9 ज़िले, 23 नगर, 26 तहसीलें और 83 ग्राम सभाएं हैं। बाने, बीजार, सक़्किज़, सनन्दज, दीवानदर्रे, कामयारान, क़रवे, मरीवान और सर्वाबाद इस प्रांत के सबसे महत्वपूर्ण नगर हैं। इस प्रांत की जलवायु उत्तरी क्षेत्र में अपेक्षाकृत ठंडी तथा दक्षिणी क्षेत्रों में संतुलित व मरुस्थलीय है। दक्षिणी क्षेत्र में बड़ी- बड़ी चरागाहें और उपजाऊ मैदान स्थित हैं। वसंत ऋतु में कुर्दिस्तान प्रांत की जलवायु बड़ी ही मनमोहक होती है और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस प्रांत की भाषा कुर्दी है जो विभिन्न बोलियों में बोली जाती है। भाषा विशेषज्ञों का मानना है कि कुर्दी भाषा, हिंदी, युरोपीय तथा ईरानी भाषा के गुट से संबंधित है। कुर्दी भाषा यूँ तो विभिन्न बोलियों में बोली जाती है किंतु किरमान्जी व सूरानी इसके दो मुख्य स्वरूप हैं।
कुर्दिस्तान की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और इस प्रांत के 32 प्रतिशत लोग खेती-बाड़ी का काम करते हैं। कुर्दिस्तान के अधिकांश लोग विभिन्न रंगों में स्थानीय वस्त्र पहनते हैं जिनमें पजामा, लम्बा कुर्ता, पगड़ी और शाल शामिल है। कुर्दिस्तान प्रांत में बड़ी संख्या में प्राचीन अवशेष एवं प्राकृतिक आकर्षण पाए जाते हैं। इस प्रांत में इस्लाम से पूर्व के काल के भी अनेक अवशेष मौजूद हैं जिनमें ज़ीविये के प्राचीन टीले, करफ़्तू गुफा और तंगीवर के शिलालेख आदि का नाम लिया जा सकता है। इसी प्रकार इस्लामी काल के बाद के भी अनेक अवशेष हैं जिनमें मस्जिदे दारुल एहसान, सफ़वी काल की आसिफ़ुद्दीवान इमारत और बाबा गरगर के मज़ार की ओर संकेत किया जा सकता है
संघर्ष की कहानी: अमरीका या इराक कभी नहीं चाहेगा कि उत्तरी इराक का इलाका एक अलग देश बन जाय लेकिन आज जो हालात हैं उन पर अगर एक नज़र डालें तो कुछ वर्षों के अंदर ही एक स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की संभावना नज़र आने लगती है. इराक के उत्तरी हिस्से में तीन राज्य ऐसे हैं जिनको कुर्द राज्य कहा जाता है.इन्हीं तीन राज्यों की जो प्रांतीय सरकार है वह केआरजी यानी कुर्दिश रीजनल गवर्नमेंट के नाम से जानी जाती है.1980 के दशक में जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कुर्दों को दबाना शुरू किया तो एक दौर तो ऐसा भी आया कि साफ़ लगने लगा था कि कुर्द कौम के सामने अस्तित्व का संकट आने वाला था लेकिन जिस अमरीकी हमले ने सद्दाम हुसैन और उनके साथियों को तबाह कर दिया उसी हमले के बाद कुर्दों को आत्मनिर्भर बनने का बहुत बड़ा मौक़ा मिला. बताते हैं कि जब सद्दाम हुसैन ने कुर्दों को औकात बताने का अभियान शुरू किया था तो एक लाख कुर्दों की जान गयी थी, चार हज़ार गाँव तबाह हो गए थे और दस लाख लोगों को घरबार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. आज सीरिया से भाग कर आये हुए मोहजिरों को देख कर इराकी कुर्द इलाकों में सहानुभूति के लहर दौड जाती है क्योंकि अभी बीस साल से कम वक़्त हुआ जब अपनी ही ज़मीन पर उत्तरी इराक के यह कुर्द शरणार्थी के रूप में रहने के लिए अभिशप्त थे.उस दौर में भी कुर्द स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं हुआ था. कुर्दों की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाला जंगजू संगठन पेश्मरगा पूरी तरह से भूमिगत तरीके से अपणा काम करता रहा था. यह कुर्दों की अस्मिता की रक्षा करने वाला संगठन है और 1920 से ही सक्रिय रूप से कुर्द सम्मान के लिए लड़ाई लड़ता रहा है .जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कुर्दों के खिलाफ दमन का सिलसिला शुरू किया तो सबसे बड़ा झटका पेश्मर्गा को ही लगा था लेकिन 1991 में जब संयुक्त राष्ट्र ने अमरीकी दबाव के चलते ईराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो कुर्दों को थोड़ा राहत मिली थी. लेकिन चारों तरफ से ज़मीन से घिरा इलाका परेशानियों से घिरा ही रहा.
अब सब कुछ बदल रहा है. कुर्दिस्तान के कुर्द राज्यों में अब दक्षिणी इराक से ज़्यादा शान्ति है. ताज़ा खोज से पता लगा है कि इस इलाके में मुख्य इराक की तुलना में तेल के भण्डार भी ज़्यादा हैं. कुल पचास लाख की कुर्द आबादी है लिहाजा इलाके पर आबादी का दबाव भी नहीं है. शायद इसीलिये सीरिया के संघर्ष से शान्ति की तलाश में भागे हुए करीब डेढ़ लाख सीरियाई कुर्दों को यहाँ इस तरह से बसाया जा रहा है जैसे वे यहाँ के कुर्दों के बिछुडे हुए रिश्तेदार हों. अनुमान है कि इस साल के अंत तक सीरिया से भागकर आने वाले कुर्दों की संख्या साढ़े तीन लाख तक पंहुच सकती है लेकिन कुर्दिस्तान में शरणार्थियों के बोझ को कहीं भी महसूस नहीं किया जा रहा है. पूर्वी इलाकों से भी कुर्द जाति के लोग यहाँ रोज़गार की तलाश में आ रहे है. क्योंकि पूर्व से आने वाले कुर्द इरानी नागरिक हैं और इरान में भी राजनीतिक उत्पीडन की कमी नहीं है और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से लागू की गयी पाबंदियों के चलते हालात बहुत ही खराब हैं. इरानी कुर्दों का भी यहाँ स्वागत किया जा रहा है. उत्तरी इराक के कुर्द इलाके में आजकल काम की कमी नहीं है. उत्तर के पड़ोसी देश तुर्की के उद्योगपति बहुत बड़े पैमाने पर इराक में काम कर रहे हैं और उनका मुख्य ध्यान उत्तरी इराक के कुर्द इलाके में ही केंद्रित है.
अलग देश की मांग:-ऐसे माहौल में कुर्दिस्तान रीज़नल गवर्नमेंट की दबी हुई इच्छा अक्सर सामने आ जाती है और वे अपनी आजादी को मुकम्मल रूप दे देने के लिए तड़प उठते हैं. उनकी इच्छा है कि कुर्द राज्यों के रूप में जिन तीन राज्यों को स्वीकार कर लिया गया है उनको इराक की अधीनता से छुट्टी मिले लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि किरकुक सहित उसके आसपास के वे इलाके भी उनके हिस्से में आ जाएँ जहां कच्चे तेल के भारी भण्डार बताए जाते हैं. कुर्दिश रीज़नल गवर्नमेंट में शामिल दोनों ही शासक और विपक्षी पार्टियां आपस में तो लड़ती रही हैं लेकिन जब स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की बात आती है तो दोनों एक हो जाती हैं. 2003 के अमरीकी हमले के बाद से कुर्दों ने अपने उन गाँवों को फिर से बसा लिया है जो इराकी दमन के चलते तबाह कर दिए गए थे. आजकल हालात ठीक हैं. मुख्य इराक में बिजली की भारी कटौती रहती है लेकिन कुर्दिस्तान में बिजली की कोई कमी नहीं है. कुर्दिस्तान खुले आम आज़ादी की बात करते हैं. माहौल में भी चारों तरफ आज़ादी ही आज़ादी है. इराक के बहुसंख्यक शिया लोग भी अब चाहते हैं कि रोज रोज की झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि कुर्द आबादी अलग ही हो जाए क्योंकि जातीय विभिन्नता अब पूरी तरह से राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर चुकी है. वैसे भी दक्षिणी इराक पर लगातार अल कायदा के हमले होते रहते हैं और पड़ोसी देश सीरिया की शिया हुकूमत की स्थिरता पर स्थायी रूप से सवालिया निशान लग चुका है . इराकी हुक्मरान भी दबी जुबान से कहते पाए जाते हैं कि कुर्दो के बढते राष्ट्रवाद से बचने का तरीका यह है कि उनको काबू में करने की बात भूलकर उनको अलग होने दिया जाए और जो भी बचा हुआ इलाका है,उसमें शान्ति के साथ हुकूमत की जाय लेकिन इराक के प्रधानमंत्री अभी भी कुर्दों को उसी तरह का सबक सिखाने के लिए व्याकुल नज़र आ रहे हैं जिस तरह का सबक कभी तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने सिखाया था.
इराक के मौजूदा प्रधानमंत्री कुर्दों के हमेशा ही दमन की नीति का पालन करने में विश्वास करते हैं.उन्होंने किरकुक में सेना भेज दिया था .कुर्द क्षेत्रीय सरकार के अधिकारियों और नेताओं में घबडाहट फ़ैल गयी थी और वहाँ भी उनके लड़ाकू संगठन पेश्मर्गा को चौकन्ना कर दिया गया था. बात बिगड़ने से बच गयी लेकिन तल्खी बढ़ गयी क्योंकि झगडा खत्म नहीं हुआ बस टल गया .कुर्दों को अपमानित करने के उद्देश्य से ही मार्च में जब बजट पेश किया गया तो भी कुर्दों के साथ उसी तरह की नाइंसाफी हुई जैसाकि किसी विदेशी और कमज़ोर ताक़त के साथ किया जाता है . इराक की संसद ने 118 अरब डालर का केंद्रीय बजट पास किया तो उसमें से केवल साढ़े छः करोड डालर का प्रावधान विदेशी तेल कंपनियों को उस कर्ज को अदा करने के लिए कुर्द क्षेत्रीय सरकार को दिया गया . कुर्द नेताओं में भारी नाराज़गी व्याप्त हो गयी क्योंकि उनका कहना है कि उनके ऊपर विदेशी तेल कंपनियों का साढ़े तीन अरब डालर का क़र्ज़ है और बजट में उसके दो प्रतिशत का ही इंतज़ाम किया गया है. इस फैसले का ही नतीजा है कि कुर्द संसद सदस्यों और मंत्रियों ने इराक की केंद्रीय सरकार से इस्तीफा दे दिय . अब इराक की केंद्रीय सरकार में कोई भी कुर्द प्रतिनिधित्व नहीं है.
स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की तरफ जाता घटनाक्रम:-यह सारा घटनाक्रम स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की तरफ ही जाता है . वैसे भी लगता है कि नेताओं खासकर इराकी ,अमरीकी और इरानी नेताओं की मर्जी के खिलाफ वक़्त एक अलग कुर्दिस्तान की बात कह रहा है .कुर्द क्षेत्रों में रहने वाले यह तर्क देते हैं कि इराक के संविधान में यह व्यवस्था है कि आटोनामस इलाके अपने तेल की संपदा का केंद्रीय हुकूमत से अपने को अलग करके विकास कर सकते हैं इसी नियम के तहत बहुत सारी विदेशी कंपनियों ने कुर्दिस्तान में भारी तेल सम्पदा की तलाश के बाद कुर्दिश रीज़नल गवर्नमेंट के साथ उत्पादन शेयर करने का समझौता किया और अब वहाँ बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां मौजूद हैं और बहुत बड़ा विदेशी धन लगा हुआ है. वे कभी नहीं चाहेगें कि कुर्द क्षेत्र में किसी तरह की अशान्ति हो. अब कुर्द क्षेत्रीय सरकार ऐलानियाँ इराक की केंद्रीय सरकार को धमकाती रहती है और इराक वाले उस पाइपलाइन को बंद कर देते हैं जिसके ज़रिए कुर्दिस्तान का कच्चा तेल तुर्की जाता है. इस से तुर्की को भी परेशानी होती है. जिसके कारण यह सारा माल ट्रक से जाता है. इसका एक नतीजा यह हो रहा है कि तुर्की और कुर्द राज्य में दोस्ती बहुत प्रगाढ़ हो रही है और अब इराक से स्वतंत्र रूप से एक पाइपलाइन पर काम चल रहा है और उम्मीद है कि कि सितम्बर तक यह पाइपलाइन तैयार हो जायेगी. इन सारी बातों से इराकी सरकार की चिंता बहुत बढ़ चुकी है. प्रधानमंत्री मलीकी को चिंता है कि अगर कुर्दिस्तान तेल की ताक़त के बल पर उनको धमका सकता है तो अन्य जातियों के प्रभाव वाले क्षेत्र भी उसकी नकल करने लगेगें . कुर्दिस्तान की घटनाओं की अमरीकी मीडिया में विस्तार से चर्चा होने लगी है. प्रतिष्ठित इक्नामिस्ट ने भी इस बात को गंभीरता से उठा दिया है .बताया गया है कि अमरीका और इरान भी इस बात से चिंतित हैं क्योंकि अमरीका इस क्षेत्र में किसी तरह का झगडा नहीं चाहता और इरान को डर है कि अगर अलग कुर्दिस्तान देश बन गया तो इराक की कुर्द आबादी को काबू में कर पाना बहुत मुश्किल होगा. बहरहाल जो भी होगा भविष्य में होगा लेकिन इस इलाके की ताज़ा राजनीतिक हालात ऐसे हैं जिसके बाद एक स्वतन्त्र सार्वभौम कुर्द देश की स्थापना की संभावना साफ़ नज़र आने लगी है.
भारत से मदद की गुहार:-बलूचस्तान के बाद मदद के लिए एक और आवाज़ कुर्दिस्तान से भी आई है कि भारत को कुर्दों के संघर्ष में मदद के लिए आगे आना चाहिए। इराक के स्वशासित कुर्द क्षेत्र ने भारत से मांग की है कि भारत आईएसआईएस से उसकी लड़ाई में उसे मदद दे। कुर्दों का कहना है कि आईएसआईएस के डर से सीरिया से भागकर कुर्दिस्तान में शरण ले चुके 18 लाख लोगों को दवा और भोजन दे पाना अकेले उसके लिए संभव नहीं है। अब भारत एशिया महाद्वीप में संघर्ष करते लोगों के लिए बड़े भाई की भूमिका अख्तियार कर चुका है। सो अब महिला लड़ाकू ब्रिगेड की बहादुरी के लिए जानें जाने वाले कुर्दिस्तान ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। ज्ञात हो इन महिला फाइटर्स से आईएसआईएस के लड़ाके भी से डरते हैं क्योंकि उनकी मान्यता है कि अगर वे महिलाओं के हाथों मारे जाएंगे तो उन्हें नर्क जाना पड़ेगा।
अब भारत को तय करना है कि कुर्दों द्वारा इस गुहार को पर वो क्या फैसला लेती है, क्योंकि इराक भारत का मित्र देश है और कुर्दो का एक बड़ा भाग इराक का हिस्सा है। लेकिन दूसरी हकीकत ये है कि भारत ने अभी हाल ही में कुर्दिस्तान की राजधानी इरबिल में अपना वाणिज्य दूतावास खोला है और आईएसआईएस के चंगुल में फंसे 39 भारतीयों को छुड़ाने में उसे कुर्दों के मदद की जरूरत है। मोसूल में फंसी भारतीय नर्सों को आईएसआईएस के चंगुल से छुड़ाने में भी पिछले साल कुर्दों ने भारत की मदद की थी। जानकार कहते हैं कि जब से आईएसआईएस ने भारत से लड़ाके बुलाने शुरू किए हैं, तब से भारत की पश्चिम एशिया नीति में बदलाव दिखाई पड़ रहा है। इरबिल में दूतावास का खोला जाना उसी बदलाव का नतीजा है। तेल की अकूत भंडार वाले कुर्दिस्तान में कट्टर धार्मिक मान्यताओं की जगह नहीं है, वो आने वाले समय में एक आजाद मुल्क बन सकता है और भारत के लिए पश्चिम एशिया में एक साथी भी। सूत्रों का कहना है कि इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत कुर्दों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ाएगा। उसे हर कदम पर नैतिक समर्थन भी देगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,749 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress