जब तक पाकिस्तान की नीति और नियत नहीं बदलती तब तक भारत को सतर्क रहना होगा !

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Lahore: Prime Minister Narendra Modi is greeted by his Pakistani counterpart Nawaz Sharif on his arrival in Lahore on Friday. PTI Photo/ Twitter MEA(PTI12_25_2015_000195B)

terrorismवैसे तो भारत-पाकिस्तान के जन -निर्वाचित नेताओं के बीच कभी खुशी -कभी गम का भाव बना ही रहता है। २५ मई -२०१४ को जब मोदी जी की ताजपोशी के मौके पर पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज शरीफ भारत तशरीफ़ लाये तो भारत में उनका सभी ने शानदार स्वागत किया। लेकिन जब पिछले महीने भारतीय प्रधान मंत्री श्री मोदी जी काबुल से लौटते हुए लाहौर पहुंचे और शरीफ को जन्म दिन की बधाई दी तो पाकिस्तान की फौज के मुखिया राहिल शरीफ और आतंकी हाफिज सईद जैसे आदमखोरों को यह पसंद नहीं आया। हालाँकि मोदी जी ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया,फिर भी भारत के अधिकांश राजनैतिक दलों और नेताओं ने मोदी जी की इस सौजन्य एवं निजी यात्रा का आमतौर पर स्वागत ही किया।किन्तु अब जबकि राहील शरीफ के पालतू कुत्तों ने पठानकोट एयरबेस पर अपनी लार टपकाई तो कांग्रेस और विपक्ष ने मोदी सरकार और भाजपा को उनके बड़बोलेपन की याद भर दिलाई है।

पठानकोट एयरबेस आतंकी हमले में न केवल भारतीय सुरक्षा तंत्र मदहोश पाया गया बल्कि पंजाब पुलिस तो गले-गले तक नशे में डूबी हुई पाई गयी है। मोदी जी को उनके वीरतापूर्ण चुनावी तेवर भी अवश्य याद दिलाये जाने चाहिए,’कि हम जब कभी सत्ता में आयंगे और यदि आतंकियों ने भारत की ओर टेडी नजर से देखा,तो हम पाक्सितान में घुसकर मारेंगे !” हमें यह याद रखना चाहिए कि मोदी जी ने अभी तो लाहौर में सिर्फ आधा कप कश्मीरी चाय ही पी है ! यदि कुछ और बेहतर कदम उठायँगे तो क्या होगा ? वेशक काग्रेस ने भी बहुत कुछ गलतियाँ की होंगी ! और इसीलिये कांग्रेस सत्ता से बाहर है। किन्तु अब सत्तारूढ़ भाजपा नेता और उनके पिछलग्गुओं को अपनी शर्मिंदगी छिपाने के लिए कुछ तो शौर्य दिखाना चाहिए! किन्तु वे तो अपने ही कपडे फाड़ने पर आमादा हैं। इनसे देश तो संभल नहीं रहा ,आतंकियों ने उनकी नाक में दम कर रखा है और भाजपा प्रवक्ता उलटे अपने ही देशवासियों पर हमले किये जा रहे हैं ! नंगई की हद है !

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की शराफत पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। किन्तु सेना प्रमुख याने आर्मी चीफ -जनरल राहील शरीफ में शराफत नामकी चीज नदारद है। यह शख्स भारत के खिलाफ हमेशा ही जहर उगलता रहता है । कुछ दिनों पहले ही उसने फ़रमाया था कि भारत कभी भी अमेरिका जैसी जुर्रत न करें, वर्ना भारत को बहुत बुरा अंजाम भुगतना पडेगा । इससे पहले भी कई मौकों पर उनके फौजी प्रवक्ताओं और खुद परवेज मुसर्रफ ने भी भारत के खिलाफ एटम बम के इस्तेमाल की प्रत्यक्ष धमकियाँ दीं हैं। राहील शरीफ तो कश्मीर समेत तमाम नीतिगत मुद्दों पर भी बात करने से बाज नहीं आते। दरअसल पाकिस्तान के फौजी जनरल अपनी ही मुल्क की चुनी हुई सरकार को पैरों तले रौंदते रहने के आदी हैं। मुझे अच्छी तरह याद है कि बीते दिनों ही नवाज शरीफ ने अपने बड़बोले पाकिस्तानी मंत्रियों को भारत के खिलाफ गैर जिम्मेदाराना और भड़काऊ बयान देने से बचने के लिए आह्वान किया था। लेकिन इंतना काफी नहीं है। बल्कि जिस दिन नवाज शरीफ अपने आर्मी चीफ राहील शरीफ की जुबान पर नियंत्रण कर सकेंगे या जिस दिन कोई और निर्वाचित पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अपनी फौज पर कंट्रोल कर सकेगा उस दिन ही भारत-पाकिस्तान वार्ता सम्भव होगी ! तभी पाकिस्तान में भी असली लोकतंत्र होगा।

तमाम दुश्वारियों और विपरीत परिस्थितियों के भारत -पाकिस्तान के बीच दोस्ती की वकालत करने वाले लोग हिम्मतपस्त नहीं हैं। छोटी के शायर शहरयार का शेर है _

“स्याह रात नहीं लेती है नाम ढलने का ,यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का। ”

भारत-पाकिस्तान के आपसी समबन्धों की जटिलतम गहराई को नापने के लिए नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ बाकई संजीदा हैं ! किन्तु मोदी जी मजबूर हैं ,क्योंकि उधर पाकिस्तान की ओर से ताली बजाने में संगति के लिए नवाज शरीफ के हाँथ आजाद नहीं है। मोदी जी को यह याद रखना चाहिए कि यही मजबूरी भारत के अन्य तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों की भी रही है। पाकिस्तान की सेना में ८०% पंजाबी हैं अर्थात पंजाबियों का कब्ज़ा है। ये घोर भारत विरोधी हैं। क्योंकि देश विभाजन के समय हुई मारकाट की काली छाया उधर अभी भी मंडरा रही है। और १९७१ में बाङ्लादेश निर्माण के समय पाकिस्तानी फौज को भारतीय जनरलों के सामने जो शर्मनाक अवस्था में घुटने टेकने पड़े वो नासूर भी अभी तक ताजा है। फिर भी अम्न के मसीहा दोनों ओर हैं ,जो अक्सर गाया करते हैं कि “कोशिश करने वालों की कभी हरा नहीं होती “!लकिन जब तक पाकिस्तान की नीति और नियत नहीं बदलती भारत को शतर्क रहना होगा !

यदि कोई नापाक आतंकी समूह हमारे [भारत के] मुल्क के सुरक्षा तंत्र पर हमला करे , और हमारा सुरक्षा तंत्र नाकाम साबित हो जाए ,मात्र पांच आतंकियों को मारने में हमारे १० जवान शहीद हो जायें ,२० जवान घायल होकर मौत का इंतजार करते रहें , पंजाब पुलिस का एक एसपी और बीएसएफ वाले मुँह छिपाते फिरें ,और प्रचंड जनादेश वाली ‘राष्ट्रवादी’ केंद्र सरकार मुँह बाए टुकुर-टुकुर ताकती रहे तो इस शर्मनाक स्थिति पर वही फ़िदा हो सकता है जिसका जमीर मर चुका हो ! मेरी सामान्य सी विवेक बुद्धि के अनुसार इस आतंकी आक्रमण की घटना पर न केवल पंजाब सरकार को ,न केवल केंद्र सरकार को बल्कि समूचे राष्ट्र को शर्मिंदा होना चाहिये ! यह अत्यंत खेद की बात हैं कि दुश्मन के घ्रणित और परोक्ष आक्रमण का उचित प्रतिकार करने के बजाय या तथाकथित ‘मुँह तोड़ जबाब’ देने के बजाय ,सत्ता पक्ष के नेता और उनके दुमछल्ले खुद ही अपने कपडे फाडे जा रहे हैं।

जब -जब भारत और पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें या जनता द्वारा निर्वाचित लोकप्रिय नेतत्व दोनों देशों में अमन एवं तरक्की के लिए कोई कदम उठाते हैं ,कोई द्विपक्षीय वार्ता या मेल-मिलाप की कोशिश करते हैं , तब-तब अनायाश ही पाकिस्तान के अंदर की कुछ अलोकतांत्रिक और हिंसक शैतानी ताकतें’ रायता ढोल देतीं हैं। पाकिस्तान की ये काली ताकतें हमेशा ही ऐंसा कुकृत्य किया करती हैं। जैसा कि अभी-२ से ६ दिसंबर -१६ तक उन्होंने पठानकोट एयरबेस पर हमला करके अपना हरामीपन दिखाया है ।अमन और इंसानियत के शत्रु वर्ग का इरादा स्पष्ट है कि भारत में खुशहाली न आ पाये ! भले ही उसके लिए पाकिस्तान के दो नहीं बल्कि पांच टुकड़े हो जाएँ ! उनका इरादा स्पष्ट है कि सीमाओं पर अमन तथा राष्ट्रों में परस्पर सौहाद्र के लिए भारत – पाकिस्तान में कोई वार्ता कभी भी सफल न हो। उनके अनुसार यदि कुछ करना हो तो छिपकर जंग ही करो , यदि लड़ाई भी हो तो भारत की सरजमीन पर हो ! यहीं विध्वंश करो। ताकि अमन के फ़ाख्ते सांस ही न ले सकें और शैतान की अम्मा दोनों मुल्कों की निर्दोष आवाम का लहू जी भरकर अनंतकाल तक पीती रहे !

यह सच है कि इन काली ताकतों में पाकिस्तान के अधिकांस कठमुल्ले ,मजहबी आतंकी और भारत से रार ठाने बैठे फौजी जनरल शामिल हैं। ये नहीं चाहते कि भारत -पाकिस्तान में कोई समझौता हो !इसके विपरीत एक सच यह भी है कि बहुत से तरक्की पसंन्द पाकिस्तानी ,उदारवादी राजनीतिज्ञ ,प्रगतिशील बुद्धिजीवी , कलाकार ,संगीतकार,व्यापारी और पाकिस्तान की अमनपसंद आवाम भी चाहती है कि भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता हो ! इधर भारत की अधिकांस शान्तिकामी जनता ,सभी राजनीतिक दल [शिवसेना के अलावा], अधिकांस राज नेता ,,कलाजगत , बुद्धिजीवी और साहित्यकार तहेदिल से चाहते हैं कि न केवल पाकिस्तान बल्कि सभी पड़ोसि मुल्कों से हमारे मैत्रीपूर्ण संबंध हों ! भारत की विदेशनीति का सारतत्व है कि बिना किसी तीसरे को कष्ट पहुंचाए हमारी आपस में हरएक पड़ोसी से दोस्ताना सुलह सफाई हो। पूरे दक्षेस में अमन हो। उपमहाद्वीप के देशों में शांति-मैत्री और भाईचारा हो ! भारत में इस सिद्धांत को नेहरू से लेकर मोदी तक सभी ने चाहे-अनचाहे माना है। क्योंकि भारत की गंगा-जमुनी तहजीव का यही नीति निर्देशक सिद्धांत है।

भारत में चाहे -जिस विचारधारा की पार्टी का शासन हो ,कांग्रेस का नेहरू,शाश्त्री ,इंदिरा शासन हो ,जनता पार्टी का मोरारजी शासन हो ,व्यक्तियों -गुटों -गठबंधनों -महागठबन्धनों का शासन हो या एनडीए -प्रथम अर्थात अटल बिहारी सरकार का शासन हो! यूपीए -एक या यूपीए -दो का शासन हो , और अब एनडीए -दो की मोदी सरकार का शासन हो या आइन्दा कोई क्रांति हो जाए और किन्ही अज्ञात क्रांतिकारियों का शासन हो , लेकिन फिर भी भारत उन मानवीय मूल्यों को कभी नहीं छोड़ने वाला ,जो सृजन,अमन ,न्याय ,समानता ,विश्वबंधुता, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के लिए जगद विख्यात हैं। लोकतंत्र और सहअस्तित्व से भारत कभी मुँह नहीं मोड़ सकता। पाकिस्तान के फ़ौजी जनरल ,मजहबी कटटरवादी एवं आईएस के खुनी दरिंदे मानवता के नाम पर क्रूर कलंकी और पातकी हैं।जबकि दुनिया जानती है कि भारत -अमन और विश्व शांति का पक्षधर है।

इस सिद्धांत के अनुकरण से अतीत में भले ही नेहरू युग में भारत को कुछ असफलता मिली हो ,किन्तु इंदिरा युग में भारत ने न केवल अतीत की भूलों से सीखा बल्कि पाकिस्तान को चीरकर बांग्ला देश भी बना डाला। वेशक उस दौर में कुछ समय के लिए भारत को सोवियत संघ ‘ जैसा विश्वसनीय मित्र मिला। जिसने अपनी पूरी ताकत से भारत को संयुक्त राष्ट्र में सम्मान से खड़े होने लायक बनाया। इंदिरा जी ने भारत-सोवियत मैत्री संघी से भारत को गौरवान्वित किया। इस राष्ट्रीय सम्मान के लिए तत्कालीन विपक्ष के कद्दावर नेता अटल बिहारी बाजपेई ने भी इंदिरा जी को ‘दुर्गा’ का अवतार कहा था।

लेकिन जब अटल जी प्रधान मंत्री बने तो एनडीए -1 के शासनकाल में भारत को तीन बार शर्मिंदा होना पड़ा। पहली बार तब जब कि कारगिल युद्ध हुआ और वेवजह भारत के सैकड़ों सपूत शहीद हो गये। दूजे तब जब भारत पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस को आतंकियों ने बम से ही उड़ा दिया। तीसरा तब जब एनडीए सरकार के विदेशमंत्री जसवंतसिंह खुद बिरयानी और कैदी आतंकी छुड़ाकर लेकर काबुल गए. और विमान अपहर्ता आतंकियों के चंगुल से भारतीय सैलानियों को छुड़ा पाये । अटल सरकार की शर्मिंदगी का एक वाक्या और है ,जब परवेज मुसर्रफ और उसके साथ आये लवाजमें को दिल्ली -आगरा में खूब मटन -बिरयानी खिलाई गयी ,किन्तु बात तब बिगड़ गयी जब खुद अटलजी के वामहस्त ने ही वार्तारूपी दूध में नीबू निचोड़ दिया। तब यदि ‘संघ’ या आडवाणी रूकावट नहीं बनते तो अटल जी को इस तरह शर्मिंदा नहीं होना पड़ता और आज मोदी जी की भी जग हंसाई नहीं होती !आजादी के बाद स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे शर्मनाक दौर हैं कि जब पाक प्रशिक्षित आतंकी पंजाब की सीमाओं पर दनादन घुसते रहे ,क्वंटलों से गोला बारूद अपने साथ पठानकोट एयरबेस में ले गए। क्या बीएसएफ वाले सोते रहे? क्या पंजाब पुलिस दारू-अफीम में ढेर थी ? क्या भारत सरकार के अफसर और मंत्री इतने नाकारा हैं कि जब एयर बेस पर आतंकी गोलियां बरस रहने थीं तब ये लोग अपने -अपने तयशुदा प्रोग्राम में व्यस्त थे ?

पठानकोट एयरबेस पर ‘जैस -ए -मुहम्मद’ नामक कुख्यात आतंकी समूह के हमले के ४ दिन बाद जब भारत सरकार की नींद खुली तो उसके प्रवक्ता ने अंगड़ाई लेकर अलसाते हुए पाकिस्तान सरकार से कहा- ‘जब तक आप ‘जैस-ए -मुहम्मद ‘पर उचित कार्यवाही नहीं करते ,तब तक हमारी- आपकी वार्ता आगे नहीं बढ़ सकती’ !इसका तातपर्य है कि ‘न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी ‘। वार्ता की सफलता की शर्तों को अन्य शब्दों में कुछ इस प्रकार भी कह -सुन सकते हैं !”जब तक सूरज पश्चिम से उदित नहीं होगा ,जब तक कोई बृहन्नला बाप नहीं बन जाता या जब तक कोई बाँझ स्त्री मातृत्व को प्राप्त नहीं कर लेती तब तक हम पाकिस्तान की इस चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकार से कोई बात नहीं करेंगे। यह भी संभव है कि ये नवाज कुछ शरीफ हो ,किन्तु वो राहील कदापि ‘शरीफ’ नहीं हो सकता। -:श्रीराम तिवारी:-

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