सीमा पार के संविधान पर एक विहंगम दृष्टि

मनी राम शर्मा 

तुर्की के संविधान के अनुच्छेद 40 के अनुसार लोक पद धारण करने वाले व्यक्ति के अवैध कृत्यों से होने वाली हानि के लिए राज्य द्वारा पूर्ति की जाएगी| राज्य ऐसे अधिकारी के विरुद्ध अपना अधिकार सुरक्षित रखता है| भारत में ऐसे प्रावधान का नितांत अभाव है|  कानून में स्थापित व्यवस्था के अनुसार नागरिकों को मतदान और चुने जाने, व  राजनैतिक गतिविधियों या राजनैतिक पार्टी  में स्वतंत्रतापूर्वक संलग्न होने तथा रेफ्रेंडम में भाग लेने  का अधिकार है| भारत में ऐसे प्रावधान का नितांत अभाव है तथा मतदान का अधिकार एक सामान्य अधिकार है जिसके लिए कोई प्रभावी  उपचार कानून में उपलब्ध नहीं हैं | राजनैतिक वैमनस्य से या लापरवाही से मतदाताओं के नाम काटे जाना भारत में सामान्य सी घटना है |आस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तो मताधिकार को मानवाधिकार के रूप में परिभाषित कर रखा है| तुर्की के संविधान के अनुसार  राजनैतिक पार्टियों की गतिविधियां, आतंरिक विनियम और क्रियाकलाप लोकतान्त्रिक  सिद्धांतों के अनुरूप होंगे| भारत में राजनैतिक पार्टियों के अपने विधान हैं जिनका देश के संविधान से कोई सरोकार नहीं है और उनमें अधिनायक वाद की बू आती है| यहाँ पार्टियां व्हिप जारी करके सदस्य को इच्छानुसार मतदान से रोक देती हैं | पार्टी सदस्य पार्टी के प्रतिनिधि अधिक व जनता के प्रतिनिधि कम होते हैं|

तुर्की के संविधान में नागरिकों और (पारस्परिकता के सिद्धांत पर) विदेशी निवासियों को सक्षम अधिकारी तथा टर्की की महाराष्ट्रीय सभा (संसद) को अपने या जनता से सम्बंधित प्रार्थना और शिकायतें लिखने का अधिकार है| स्वयं  से संबंधित आवेदन का परिणाम बिना विलम्ब के लिखित में सूचित किया जायेगा| भारत में यद्यपि ऐसी प्रक्रिय औपचारिक रूप में तो  विद्यमान है किन्तु सदनों के सचिवालयों ने इसे लगभग निष्क्रिय कर रखा है तथा व्यक्तिगत मामले इसके दायरे में नहीं आते हैं  व उनके निपटान की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होने से मनमानापन के अवसर अनंत रूप से खुले हैं| तुर्की के संविधान में चुनाव न्यायिक अंगों के सामान्य प्रशासन व पर्यवेक्षण में संपन्न होंगे| भारत में चुनावों के पर्यवेक्षण के लिए चुनाव आयोग जैसी संस्था अलग से कार्यरत है|

तुर्की के संविधान के अनुच्छेद 84 के अनुसार जो संसद सदस्य बिना अनुमति या कारण के एक माह में पांच बैठकों में उपस्थित होने में विफल रहता है उस स्थिति पर सदन का ब्यूरो बहुमत से निर्णय कर  सदस्यता निरस्त कर सकेगा|  भारत में ऐसे आवश्यक प्रावधान का नितांत अभाव है| संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवानिवृति व्यवस्थाएं कानून द्वारा विनियमित की जाएँगी | सदस्य का मासिक वेतन वरिष्ठतम सिविल सेवक के वेतन से अधिक नहीं होगा व यात्रा भत्ता उस वेतन के आधे से अधिक नहीं होगा|  भारत में ऐसे स्पष्ट  प्रावधान का नितांत अभाव है और जन प्रतिनिधियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के प्रस्ताव निर्बाध रूप से  सर्वसम्मति से ध्वनिमत से पारित किये जाते हैं| आगे अनुच्छेद 137 में कहा गया है कि लोक सेवा में रत कोई भी व्यक्ति, अपने पद और हैसियत पर बिना ध्यान दिए, यदि यह पाता है कि उसके वरिष्ठ द्वारा दिया गया कोई आदेश संविधान, या किन्ही उपनियमों, विनियमों, कानूनों  के प्रावधानों के विपरीत है तो उनकी अनुपालना नहीं करेगा, और ऐसे आदेश देने वाले अधिकारी को विसंगति के विषय में सूचित करेगा| फिर भी यदि उसका वरिष्ठ यदि आदेश पर बल देता है व उसका लिखित में नवीनीकरण  करता है तो उसके आदेश की पालना की जायेगी किन्तु ऐसी स्थिति में आदेश की अनुपालना करने वाला जिम्मेवार नहीं ठहराया जायेगा| भारत में ऐसे प्रावधान का नितांत अभाव है| एक आदेश यदि अपने आप में अपराध का गठन करता है तो किसी भी सूरत में उसकी अनुपालना नहीं की जायेगी, ऐसे आदेश की अनुपालना करने वाला अपने दायित्व से मुक्त नहीं होगा|

 

तुर्की के संविधान के अनुच्छेद 138 के अनुसार विधायी व कार्यपालक अंग तथा प्रशासन, न्यायालयों के निर्णयों का अनुपालन करेंगे; ये अंग  और प्रशासन उनमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं करेंगे और न ही उनकी पालना में कोई विलम्ब करेंगे| भारत में ऐसे  प्रावधान का नितांत अभाव है व स्वयं न्यायालय के कार्मिक भी  किसी न किसी बहाने से पालना से परहेज करते रहते हैं और न्याय प्रशासन मूक दर्शक बना रहता है| आगे  के अनुच्छेदों में कहा गया है कि समस्त न्यायलयों के निर्णय औचित्य के विवरण  के साथ लिखित में होंगे| भारत में ऐसे आवश्यक प्रावधान का नितांत अभाव है| न्यायपालिका  दायित्व है कि वह परीक्षण यथा संभव शीघ्र और न्यूनतम लगत पर पूर्ण करेंगे| भारत में ऐसे आवश्यक प्रावधान का नितांत अभाव है| न्यायाधीशों और  लोक अभियोजकों के कानून के अनुसार कर्तव्य निष्पादन के सम्बन्ध में इस बात का अनुसन्धान कि क्या उन्होंने कर्तव्य निर्वहन में कोई अपरध किया है, या उनका व्यवहार और प्रवृति उनकी  हैसियत और कर्तव्यों के अनुरूप है व यदि आवश्यक हो तो उनसे सम्बंधित जाँच  और अनुसन्धान न्याय मंत्रालय की अनुमति से न्यायिक निरीक्षकों द्वारा की जायेगी| न्याय मंत्री किसी न्यायाधीश या लोक अभियोजक, जो जांच किये जाने वाले न्यायधीश या लोक अभियोजक से वरिष्ठ हो, से  जांच की अपेक्षा कर सकेगा| भारत में ऐसे आवश्यक प्रावधान का नितांत अभाव है जिससे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की अमरबेल फलफूल रही है| आगे  के अनुच्छेदों में कहा गया है कि संवैधानिक न्यायालय के स्थानपन्न या नियमित न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने के लिए उच्च संस्थान में अध्यापक, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और वकील का चालीस वर्ष से अधिक उम्र का होना आवश्यक होगा और उच्च शिक्षा पूर्ण करना  या उच्च शिक्षण संसथान में न्यूनतम पन्द्रह वर्ष का अध्यापन का अनुभव आवश्यक है या न्यूनतम  पन्द्रह वर्ष वकील के रूप में प्रैक्टिस या लोक सेवा में होना आवश्यक है| भारत में ऐसे आवश्यक प्रावधान का नितांत अभाव है| इंग्लैंड में भी इसी प्रकार की योग्यताएं लोर्ड चांसलर के लिए बताई गयी हैं किन्तु भारत में तो न्यायिक पद मात्र वकीलों के लिए सुरक्षित करके भ्रष्टाचार के लिए मानो एक चरगाह ही सुरक्षित कर लिया गया है|

अब पाठकगण से मेरा सादर अनुरोध है कि वे निर्णय करें कि हमारा संविधान किस प्रकार बेहतर है या हमें अनावश्यक महिमा मंडन करने का  उन्माद है| यदि देश की आतंरिक न्याय व्यवस्था शक्तिहीन और अलोकतांत्रिक रही तो जन विश्वास डगमगा सकता है व हमारा अस्तित्व ही संदिग्ध हो जायेगा| मेरा विचार है कि अब समय आ गया है कि हमें न्यायिक सुधारों के लिए मात्र देशीय चिंतन पर ही निर्भर  नहीं रहना है अपितु सीमा पार के अनुभवों का भी लाभ उठाना है तभी विश्व व्यापार में शामिल भारत अपने सशक्त अस्तित्व को प्रमाणित कर सकेगा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here