भाजपा की पराजय के निहीतार्थ

सिद्धार्थ मिश्र”स्‍वतंत्र”

कर्नाटक चुनावों में भाजपा की भारी पराजय निश्‍चय ही पूर्व निर्धारित बात थी । ऐसे में इन परिणामों को आगामी लोकसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्‍य में देखना हास्‍यास्‍पद ही होगा । स्‍पष्‍ट सी बात है हर चुनाव की कसौटी अलग अलग पैमानों पर की जाती है । यथा विधानसभा चुनाव प्रदेश की समस्‍या से तो लोकसभा चुनावों की प्राथमिकता राष्‍ट्रीय मुद्दों से निर्धारित की जाती है । ऐसे में भाजपा की पराजय का अर्थ लोकसभा चुनावों में उसकी दावेदारी कमजोर होना नहीं हो सकता । हां ये बाते बड़बोले कांग्रेसी दिग्‍गजों की समझ से परे है । इन चुनावों में भाजपा अपनी गलत नीतियों,भ्रष्‍टाचार एवं भीतरघात से हारी है न कि कांग्रेस की चमकदार छवि या विशेष योग्‍यता के कारण । हां इतनी बुरी हार अवश्‍य अप्रत्‍याशित कही जा सकती है । वैसे इसके कारण भी स्‍पष्‍ट हैं डिफरेंसेज एवं अनुशासित होने के दावे के साथ सत्‍ता संभालने वाली भाजपा के बड़े नेता करीब आधा दर्जन बार आपस में ही भिड़ गए और सरकार ज्‍यादातर अस्थिर ही प्रतीत हुई । उस पर भी भ्रष्‍टाचार ने कोढ़ में खाज का काम किया ऐसे में जनता के पास कांग्रेस को मौका देने के अलावा कोई विकल्‍प शेष नहीं था और ये स्‍पष्‍ट जनादेश उसी के प्रतीक के तौर पर देखा जा सकता है ।

इस मामले को समझने के लिए उदाहरण देना चाहूंगा । उत्‍तर प्रदेश में राम मंदिर के मुद्दे पर कल्‍याण सिंह के नेतृत्‍व में सत्‍ता में आई भाजपा को कहीं न कहीं कल्याण सिंह की बगावत ने प्रभावित अवश्‍य किेया । ये अलग बात की दूसरी पार्टी बनाकर कल्‍याण सिंह भी कुछ खास नहीं कर सके और आखिर में उन्‍हें वापस भाजपा की ओर मुड़ना ही पड़ा । हां इस रार का नतीजा ये हुआ कि भाजपा आज भी इस प्रदेश में वनवास काट रही है । कोई बड़ी बात नहीं है कि ये इतिहास अगर कर्नाटक में स्‍वयं को दोहरा दे । जहां तक मत प्रतिशत का प्रश्‍न है तो वो निश्चित तौर पर २००८ में भी कांग्रेस के ही पक्ष में था और आज भी है । वास्‍तव में ये चुनाव केंद्र सरकार की विफलता को भुनाने को मौका हो सकते थे लेकिन तब जब वह स्‍वयं इन दागों से दूर रह पाती । आप ही सोचिये अपने शासन के आधे से अधिक समय आपस में ही लड़ रहे नेताओं ने प्रदेश में किस प्रकृति का विकास किया होगा ? जब विकास नहीं है जनता के पास विकल्‍प स्‍पष्‍ट थे । यहां एक बात दोबारा स्‍पष्‍ट करना चाहूंगा कि भाजपा की ये नाकामी कर्नाटक के संदर्भ में देखी जानी चाहीए न कि राष्‍ट्रीय मुद्दों के संदर्भ में ।

बहरहाल कर्नाटक में भाजपा की पराजय का एक मात्र कारण है आत्‍मानुशासन की कमी एवं महत्‍वाकांक्षाओं की बढ़ोत्‍तरी । इसी के फलस्‍वरूप प्रदेश में एक तरफ जहां भ्रष्‍टाचार की घटनाओं का बल मिला तो दूसरी ओर विधानसभा की गरिमा भी गिरी । इतना सब कुछ होने के बाद भी क्‍या भाजपा वापसी कर सकती थी ? जवाब है नहीं,येद्दयुरप्‍पा ने अपने शासन काल प्रदेश में भ्रष्‍टाचार को गति प्रदान कर दी थी,इसमें अवैध खनन संबंधी मामलों को सर्वोपरी माना जा सकता है । इसके अलावा विधानसभा में पोर्न मूवी देखने के मामले को भी  भुलाया नहीं जा सकता । इन सारी बातों को देखकर एक प्रश्‍न अवश्‍य उभरता ,क्‍या यही भाजपा की डिफरेंस है जो उसे औरों से बेहतर बनाती है ? क्‍या ये वही भाजपा जिसके बड़े नेता जीवन भर विपक्ष में बैठने को तैयार रहा करते थे  ?  यदि नहीं तो किस डिफरेंस की बात हो रही है ?  गाल बजाकर हकीकत को नहीं बदला जा सकता ।

ये सत्‍य है कि आरोपों को ध्‍यान में रखकर भाजपा आलाकमान ने येद्दयुरप्‍पा को इस्तिफा देने पर विवश कर दिया ,लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी । इन विषम परिस्थितियों में आगामी लोकसभा चुनावों को  देखते हुए भाजपा को दूसरों पर आरोप लगाने से पूर्व अपने गिरेबां में एक बार अवश्‍य झांकना होगा । जहां तक प्रश्‍न है भाजपा के स्‍टार प्रचारक नरेंद्र मोदी की नाकामी का तो ये कहना भी निरी मूर्खता होगी । नरेंद्र मोदी कोई विज्ञापित डिटर्जेंट केक नहीं हैं जो हर दाग धो सकते हैं । ये सत्‍य है अपने सुशासन को उन्‍होने गुजरात में सिद्ध किया है लेकिन इसके बावजूद वे कर्नाटक के भाजपा नेताओं के चरित्र का ठेका नहीं ले सकते । हां एक बात के लिए भाजपा की प्रशंसा अवश्‍य की जा सकती है,वो है अपने जनाधार वाले बड़े नेता येद्दयुरप्‍पा से इस्तिफा मांगने का साहस दिखाने की । गौर करें कि कोलगेट,राष्ट्रमंडल खेल,सीबीआई की फाईल में छेड़छाड़ आरोप समेत कई संगीन आरोपों के बावजूद मनमोहन जी को ईमानदार कहना क्‍या प्रदर्शित करता है ? अभी हाल ही पवन बंसल के भांजे की कारस्‍तानी ने एक बार दोबारा कांग्रेस के मूल चरित्र को सबके सामने ला दिया है । ध्‍यान रखीये ये समस्‍त बड़े आरोप आगामी लोकसभा चुनावों में बड़ी भूमिका निभाएंगे । गरीबी,महंगाई,बेरोजगारी एवं भ्रष्‍टाचार जैसे संगीन मुद्दे कांग्रेस की कब्र खोदने के लिए पर्याप्‍त हैं । यहां बात दोबारा उन्‍हीं डिफरेंसेज पर आकर रूक जाती है , अतएव यदि भाजपा केंद्र की सत्‍ता का स्‍वप्‍न देख रही तो निश्चित तौर पर उसे अपने और विरोधी के बीच स्‍पष्‍ट अंतर प्रदर्शित करना होगा । ये अंतर चारित्रिक एवं यर्थाथ के धरातल पर दिखना चाहीए न कि शब्‍दों या वाणी व्‍यायाम के स्‍तर पर । अब वक्‍त आ गया है कि जब देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा को एक दोबारा आत्‍मनि‍रीक्षण के दौर से गुजरना पड़ेगा । भ्रष्‍टाचार के कीचड़ में कमल खिलाने के लिए भाजपा को कर्नाटक चुनावों के निहीतार्थ तलाशने ही होंगे ।

1 COMMENT

  1. karnataka vidhansabha chunav me BJP ko mili karari parajay se kangress aaj bhale hi oochhal rahi ho, lekin ooski parajay ka matalab yah nahi hai ki agle varsh hone ja rahe loksabha chunav me bhi vah achha pradarshn nahi kar payegi. Bhrastachar, ghuskhori sahit Vibhinn muddon ko lekar desh me aaj jo mahaul ban raha hai, vah ooske liye hi sarvadhik chintajanak sabit ho sakta hai.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here