ओलिम्पिक 2021 में भारत के चमकने की उम्मीदें

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ललित गर्ग-
खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश एवं दुनिया के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एकाग्रता का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अनूठा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी माप बन जाते हैं और जो माप बन जाते हैं वे मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ, सकारात्मक एवं कोरोना महामारी को परास्त करने की  स्थिति है। कोरोना महामारी के भय के माहौल के बीच टोक्यो में खेलों के महाकुम्भ ओलिम्पिक 2021 का आयोजन मनुष्य के मन और माहौल को बदलने का माध्यम बनेगा, ऐसा विश्वास है। भले ही सालभर की देरी से इसका आयोजन हो रहा है, लेकिन यह महामारी के मानवता पर असर एवं घावों को अपने तरीके से भूलाने का माध्यम बनेगा। ओलिम्पिक 2021 के उद्घाटन के वर्चुअल समारोह ने नए सवेरे का संदेश दिया है। इससे दुनिया में ऊर्जा का संचार होगा, विश्वास, उम्मीद एवं उमंग जागेगी। इस समारोह ने दिखाया कि मानव प्रजाति महामारी से जूझने का हौंसला रखने के साथ-साथ इससे उबरने में भी सक्षम है। जीवन के प्रति सकारात्मक रवैये को भी ये ओलिम्पिक खेल नया आयाम देंगे। कोरोना के खतरे के बीच इनके आयोजन ने दिखा दिया है कि मानव किसी भी मुसीबत से एकजुट होकर लड़ सकता है।
कोरोना काल के अंधकार के बीच ओलिम्पिक का आयोजन वास्तव में हमारी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का सशक्त माध्यम है। इस खेलों के महाकुम्भ से निश्चित ही अस्तित्व को पहचानने, दूसरे अस्तित्वों से जुड़ने, विश्वव्यापी पहचान बनाने और अपने अस्तित्व को दुनिया के लिये उपयोगी बनाने की भूमिका बनेगी। यद्यपि कोरोना काल में ओलिम्पिक के आयोजन के औचित्य पर सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। यह पहला ओलिम्पिक है, जिसे सिर्फ दस हजार लोग स्टेडियम में आकर देख सकेंगे, स्टेडियम में आम लोग नहीं बल्कि राजनयिक, आयोजन समिति से जुड़े सदस्य, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति के सदस्य और कुछ प्रायोजक मौजूद रहेंगे।
जापान के टोक्यो शहर में यह दूसरा ओलिम्पिक है, इससे पहले 1964 में ओलिम्पिक का आयोजन कर चुका है। भले ही इस बार ओलिम्पिक में न दर्शक होंगे और न ही खिलाड़ियों में पहले जैसा उत्साह रहेगा, पर विश्वास है कि जो सपने कोरोना के कारण अधूरे थे, वे पूरे होंगे। देश एवं दुनिया की अस्मिता पर कोरोना महामारी के कारण छायी भय एवं निराशा की नित-नयी विपरीत स्थितियों की धुंध को चीरते हुए दुनिया के खिलाड़ी एवं खेल प्रतिभाओं के जज्बे से ऐसे उजालों का अवतरण होगा कि दुनिया के हर नागरिक का सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा। एक ऐसी रोशनी को अवतरित किया जायेगा जिससे दुनियावासियों को प्रसन्नता, अभय एवं आशा का प्रकाश मिलेगा जो कोरोना के दर्द को भुलाने का माध्यम बनेगा।
कोरोना के संकटकालीन दौर में इन खेलों का आयोजन साहस का काम है। ओलिम्पिक शुरू होने से पहले ओलिम्पिक से जुड़े 80 से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। यद्यपि टोक्यो प्रशासन ने ओलिम्पिक को सुरक्षित बनाए रखने के बहुत सारे उपाय किए हैं। टोक्यो में आपातकाल लागू है। लेकिन शहर में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। अब सबसे बड़ा सवाल है कि टोक्यो ओलिम्पिक में भारत की झोली में कितने पदक आएंगे। इस बार हमारे देश के खिलाड़िओ ने ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई किया है और उनकी तैयारी भी अच्छी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रहे हैं, उन्हें एवं समूचे देश को उम्मीद है कि भारत लंदन ओलिम्पिक में लाए गए पदों की न केवल बराबरी करेगा बल्कि उससे ज्यादा भी हासिल कर लेगा। हमारे खिलाड़िओ ने कड़ी मेहनत की है लेकिन लॉकडाउन के कारण खिलाड़ियों का प्रशिक्षण काफी प्रभावित हुआ है।
राष्ट्र का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है, भले ही रास्ता कितना ही कांटों भरा हो, अवरोधक हो। देश में प्रतिभाओं और क्षमताओं की कमी नहीं है। चैंपियंस अलग होते हैं, वे भीड़ से अलग सोचते एवं करते हैं और यह सोच एवं कृत जब रंग लाती है तो बनता है इतिहास। हमारे खिलाड़ी कुछ इसी तरह चैंपियन बनकर उभरेगे, दुनिया को चौंकाएंगे, सबके प्रेरणा बनेंगे, ऐसा विश्वास है।
जिन एथलीटों से हम पदक लाने की उम्मीद कर रहंे हैं उनमें विनेश फौगाट, नीरज चोपड़ा, पीवी सिंधू, दीपिका कुमारी, मेरीकॉम, बजरंग पूनिया, अमित फंगाल, सौरभ चौधरी, मीरा बाई चानू और मनुभाकर आदि शामिल हैं। लेकिन हमें ऐसी सोच विकसित करनी होगी कि पदक जीतने के बाद नहीं बल्कि उन्हें हर तरफ से क्वालीफाई होने से चार-पांच साल पहले प्रोत्साहन और समर्थन मिलना चाहिए। वर्ष 2008 बीजिंग ओलिम्पिक में अभिनव बिन्द्रा व्यक्तिगत तौर पर गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने थे। लंदन ओलिम्पिक में भारत की ओर से गगन नारंग और विजय कुमार ने मेडल जीता। अब तो भारत की ओर से निशानेबाजों की एक नई पौध तैयार है। सौरभ चौधरी और मनुभाकर के नेतृत्व में ये पौध झंडे गाड़ने एवं नया इतिहास बनाने के लिए तैयार हैं। तीरंदाज दीपिका कुमारी और अतानु राय जबर्दस्त फार्म में है। पीवी सिंधू और मेरीकॉम को नजरंदाज किया ही नहीं जा सकता। अगर हम लंदन ओलिम्पिक से आगे निकल गए तो यह भारत के लिए नई शुरूआत होगी। आमतौर पर ओलिम्पिक में खिलाडी सिर्फ अपने प्रदर्शन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं लेकिन इस बार खिलाड़िओ के मन में कोरोना संक्रमण का भी भय होगा। जाहिर है कि सही वक्त पर, सही प्रतिभा को प्रोत्साहन एवं प्राथमिकता मिल जाए तो खेलों की दुनिया में देश का नाम सोने की तरह चमकते अक्षरों में दिखेगा।
हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए, लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन इसी बीच कई उदाहरण सामने आए, जिनमें जरा मौका हाथ आने पर उनमें से किसी ने दुनिया से अपना लोहा मनवा लिया। अनेक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बहुत कम वक्त के दौरान अपने दम से यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया भर में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। हमारे पास ऐसे नामों का अभाव रहा है, कुछ ही नाम है जिनको दशकों से दोहराकर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी उषा।
यूं तो भारतीय ओलिंपिक संघ की स्थापना 1923 में हुई, लेकिन मानव जाति की शारीरिक सीमाओं की कसौटी समझे जानेवाले इस क्षेत्र में पहली उल्लेखनीय उपलब्धि 1960 के रोम ओलिंपिक में मिली, जब मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहकर कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्धा में 38 वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ भारतीय समय बना रहा। चार वर्ष बाद टोक्यो में गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवें स्थान पर रहे। 1976 में मांट्रियल में श्रीराम सिंह 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचे, जबकि शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। 1980 में मॉस्को में पीटी उषा का आगमन हुआ जो 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं। एशियाई खेलों में कुछ ऐथलीटिक स्वर्ण जरूर हमारे हाथ लगे।
किसी अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स ट्रैक पर भारतीय एथलीट के हाथों में तिरंगा और चेहरे पर विजयी मुस्कान, इस तस्वीर को हर हिंदुस्तानी बार-बार देखना चाहता है। ऐथलेटिक्स को लेकर 2021 के टोक्यो ओलिंपिक से हमें बेहद उम्मीदें हैं। क्योंकि यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं। एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। पदक बहुतों को मिलते हैं पर सही खिलाड़ी को सही पदक मिलना खुशी देता है। ये देखने में कोरे पदक हैं पर इसकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही अन्तर्राष्ट्रीय ऐथलेटिक्स में भारत की साख को बढ़ाया है। ओलंपिक खेलों में विजयगाथा लिखने को बेताब देश की बेटियां, अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचने को तत्पर है, उनकी आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने को जीत का हार पहनते देखने का यह समय निश्चित ही रोमांचित एवं गौरवान्वित करने वाला होगा।

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