भारत का अतीत कभी मरा नहीं है

धर्मनिरपेक्षता

—विनय कुमार विनायक
हिन्दुत्व का स्वभाव सर्वदा से ऐसा,
कि यह जितना ही परिवर्तित होता,
उतना ही मूल के करीब आ जाता!

चौबीस तीर्थंकरों और एक बुद्ध ने,
हिन्दुत्व औ”सनातन वैदिक धर्म में,
व्यापक सुधार लाए थे जोर-शोर से,
किन्तु वैदिक धर्म जस का तस है!

भारत का अतीत कभी मरा नहीं है,
भारत का अतीत कल भी जीवित था,
आज भी जीवित हैं, कल भी रहेगा!

बुद्ध महावीर के पूर्व यज्ञ कर्मकांड था,
आज भी यज्ञ हवन कर्म होता रहता है,
आज भी अग्नि समक्ष सात फेरे लगते,
आज हर-वर्ष कृषक नवान्न यज्ञ करते!

आज भी इन्द्र, वरुण, अग्नि, शनि की
अराधना होती है,सूर्याहू को बलि पड़ते!
मगर बुद्ध व जिन यहां बुत बन गए!

आज भी बौद्ध-जैन धर्म के त्रिपिटक-आगम
ग्रंथ नही, बल्कि वेद, उपनिषद, गीता, पुराण,
रामायण, महाभारत हिन्दुओं के घर में होते,
राम,कृष्ण,विष्णु,शिव, गणेश, हनुमान सरीखे,
आज भी हिन्दू धर्म के देवी-देवता पूजे जाते!

बहुत जोर अजमाया इस्लाम और ईसाई ने,
किन्तु हिन्दुत्व पर व्यापक असर नहीं पड़ा,
सर्वदा से हिन्दुत्व,अपनी मातृभूमि में अड़ा!

हिन्दुत्व का ये स्वभाव रहा है कठिनाई के
अभाव में बेफ्रिक होके सो जाना,फिर निद्रा
तब टूटती,जब वज्राघात किया जाता उनपे!

ईसाई धर्म प्रचारकों और ब्रह्म समाज ने
हिन्दुत्व को पश्चिमाभिमुख कर दिया था,
कबीर के बाद विचारों का हो गया था अंत,
हिन्दुत्व के सामने न कोई कबीर सा संत,
और ना कोई तुलसी-चैतन्य सा भक्त था!

मगर भारत में हिन्दुत्व की सुप्तावस्था और
ईसाईयत के कुप्रचार से हिन्दुत्व मरा नहीं था,
बल्कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,मैथिलीशरण गुप्त,

जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा,
दिनकर,बच्चन जैसों की लेखनी में जीवंत!
विनय कुमार विनायक

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