भारत का इतिहास रहा है संत शक्ति से प्रेरणा लेनें का

nitish and modi राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चे यानि एन डी ए के घटक के तौर पर जनता दल यूनाइटेड जो कि पिछले दस वर्षों से भाजपा के साथ बिहार में अपना आधार विस्तारित करते हुए आज सत्ता सुख भोग रहा है को अचानक आवश्यक- अनावश्यक, उचित –अनुचित और बिना सोचे व्यक्तव्य जारी करनें की रपत पड़ गई लगती है. हाल ही में जब गुजरात के आम चुनावों में चमकदार हेट ट्रिक जमानें के बाद पुनर्नियुक्त हुए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री पद आसीन होनें की आशाओं के चलते जदयू को जिस प्रकार के अनावश्यक और असमय बुरे बुरे स्वप्न आ रहें हैं और जिस प्रकार जदयू के नेता भयमुक्ति और तनावमुक्ति के लिए मजारों पर जाकर गंडे ताबीज पहननें को उत्सुक और उद्दृत हो रहें हैं उससे लगता है कि वह भी व्यवहारिक और जन आधारित राजनीति की अपेक्षा तुष्टिकरण की कुत्सित और घृणित राजनीति की ओर पींगे बढ़ा रहें हैं.

 

इन परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में जब विश्व हिन्दू परिषद् के वयोवृद्ध नेता व प्रखर चिन्तक अशोक जी सिंघल की ओर से व्यक्तव्य आया कि कुम्भ में एकत्रित संत वृन्द से विमर्श कर व संत समाज की ओर से आगामी प्रधानमन्त्री के नाम की घोषणा की जायेगी तब जदयू के प्रवक्ता शिवानन्द तिवारी ने धृष्टता पूर्वक कह दिया कि “अब यदि साधू संत प्रधानमन्त्री तय करेंगे तो लोकतंत्र का क्या होगा.” ऐसा कहते समय जदयू के अधिकृत प्रवक्ता को ध्यान रखना चाहिए था कि हमारें भारतीय समाज और इस भारतभूमि के शासकों को संत शक्ति की मंत्रणा और परामर्श से शासन चलातें हुए करोड़ो वर्ष हो गएँ हैं. भारतीय इतिहास इस बात का प्रामाणिक और सशक्त साक्ष्य है कि हमारें शासक और राजा महाराजा जब जब संत और साधू शक्ति से प्रभावित रहें है केवल तब तब ही भारत विश्व का सर मौर बना और सोनें की चिड़िया कहला कर सम्पूर्ण विश्व में मार्गदर्शक बना. शिवानन्द तिवारी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस ब्रह्म भूमि बिहार में वे जन्में और पले बढ़ें हैं उसी बिहार की भूमि पर जन्में और सम्पूर्ण विश्व के राष्ट्राध्यक्षों और सभ्यताओं को अर्थ शास्त्र के प्रणेता कौटिल्य यानि कि चाणक्य संत ही थे. जदयू के प्रवक्ता शिवानन्द तिवारी को कम से कम एक बिहारी होनें के नाते इस बात का गौरव भान होना चाहिए व यह भी स्मरण रखना चाहिए कि वे जिस संत शक्ति को हिकारत भरी दृष्टि से देख रहें हैं वह संत शक्ति बिहार के भोजपुरिया अंचल में संत कबीर के रूप में जन्म लेकर पुरे देश के शासनाध्यक्षों को नीति रीति का पाठ पढ़ा चुकी है. क्या बिहार में जन्में शिवानन्द सम्पूर्ण विश्व के राजाओं, महाराजाओं को सुशासन और नीति सुनीति का पाठ सिखानें वालें बिहार में ही जन्में महान दिग्दर्शक भगवान बुद्ध को भी भूल गएँ हैं? जदयू प्रवक्ता शिवानन्द की ही कर्मभूमि बिहार में जन्में एक और संत शक्ति के प्रतीक गुरु गोविन्द सिंग की प्रेरणास्पद, अद्भुत और चमत्कृत कर देनें वाली राजनीति को कैसे विस्मृत कर सकतें हैं?? बिहार में जन्में गुरु गोविन्द सिंग की संत शक्ति ने उस समय राजनीति नहीं की होती तो संभवतः न शिवानन्द जैसे सैकड़ो भारतीयों के सिर कटनें से बचे होते न हम !!! गठबंधन की राजनीति में उनकें आका नीतिश की महत्वकांक्षा गणित को बिगड़ता देख शिवानन्द और स्वयं नीतिश उल जुलूल व्यक्तव्य देकर कभी संत शक्ति को कोसतें हैं तो कभी यह कहकर देश के एक सौ दस करोड़ हिन्दुओं का अपमान करतें हैं कि “कोई हिंदूवादी इस देश का प्रधानमन्त्री नहीं बन सकता” उन्हें कम से कम उनकी जन्मभूमि बिहार में ही जन्में संत शक्ति के उज्जवल प्रतीक और शिरोमणि विश्व पथ प्रदर्शक भगवान महावीर को अवश्य स्मृत रखना चाहिए था. बिहार में ही जन्में संत भगवान महावीर ने जिस प्रकार अनेकों राजाओं, महाराजाओं और सम्राटों की राजनीति को जनोन्मुखी, कल्याणोंन्मुखी और देशोंन्मुखी बनाया वैसा उदाहरण विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है.

जदयू के अतिमहत्वाकांक्षी नीतिश और उनकें सारथी शिवानन्द को ध्यान रखना चाहिए कि बिहारी अस्मिता हमेशा राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी रहीहै. हजार बरसों तक पाटलिपुत्र संत शक्ति के कारण ही देश की सांस्कृतिक राजधानी रहा और संतो के प्रभाव से ही पाटलिपुत्र का इतिहास ही देश का इतिहास बन गया!!! भगवान महावीर, भगवान बुद्ध,चाणक्य,अजातशत्रु, अशोक महान, दार्शनिक अश्वघोष, रसायन शास्त्र के जनक नागार्जुन, चिकित्सक जीवक और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट जैसे महापुरुष इस धरती पर हुए, जो संत ही थे जो निस्स्संदेह प्रयाग इलाहबाद में हो रहें कुम्भ में एकत्रित साधुओं के साथ साथ हमारें ही पूज्य पूर्वज थे और जिनसे भारत को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली; इस परंपरा पर कौन गर्व नहीं करता? मुझे खेद है कि मैं यहाँ सम्पूर्ण देश की तो छोडिये केवल नीतिश के बिहार के भी सभी राजनीति को प्रभावित करनें वालें संतो का नाम स्मरण कर नहीं लिख पा रहा हूँ किन्तु मुझे इस संत शक्ति और उसकी राजनैतिक प्रेरणा के इतिहास और संभावित भविष्य पर गर्व व अभिमान है किन्तु लगता है नीतिश और शिवानन्द को इस सब पर गौरव नहीं है.

गठबंधन की राजनीति को पाठ पढानें के नाम पर नित नई चुनौती देते जदयू के नेताओं और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्षता वादी नेताओं को नरेन्द्र मोदी के नाम से परहेज करनें के स्थान पर उनका समुचित आकलन करना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी यह तथ्य समझ लेना चाहिए की देश के मतदाताओं की मनोस्थिति नरेंद्र मोदी के नाम पर एक मत होती दिख रही है. मोदी ने गुजरात में विकास और प्रगति के नए आयाम गढ़कर कर जिस प्रकार कांग्रेस और उनकी अपनी भाजपा में ही उनकें विरोधियों को जिस प्रकार जन स्वीकार्यता के माध्यम से चुप्पी की अँधेरी सुरंग में धकेल दिया है वह सराहनीय है. ऐसा लगनें के पर्याप्त और एकाधिक कारण है कि नरेन्द्र मोदी की अगुआई में चुनाव लड़नें की स्थिति में भाजपा सीटों के जादुई आकड़े को पार कर नई राजनीति का सूत्रपात कर सकती है. देश में प्रधानमन्त्री के लिए जिस प्रकार उनकें नाम को स्वीकारा जा रहा है उससे लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में यदि वे प्रधानमन्त्री के घोषित उम्मीदवार के तौर पर सामनें होतें हैं तो मतदाता सांसद के प्रत्याशी की योग्यता के आधार पर नहीं वरन केवल नरेन्द्र मोदी के मोर्चे या दल का सांसद होनें के कारण वोट देगा. आगामी लोकसभा चुनाव सांसदों के नाम पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के नाम पर लड़ा जाएगा और यह देश का पहला अवसर होगा जब देश वासी सांसद नहीं बल्कि सीधे प्रधानमन्त्री बनानें की लालसा से मतदान करेंगे.

 

1 COMMENT

  1. Nitish kumar has nothing to do with Jayprakashnarayan or Rammnohar Lohiya except to fool people for votes and these two leaders in their time never did anything remotely to appease Muslims or any individual but Nitish kumar is now out of fear from B.J.P. and Congress is talking nonsense about Modi which people know very well and i fear that J.D.U. party will pay heavy price in next local, state or general elections and may disintegrate.
    Now I have heard from J.D.U leaders in Bihar that after Nitish who?
    Nitish kumar does not want any body to challenge him and there is no obvious leader to replace him so J.D.U . in Biihar is very much a one man show which may come to an end vey soon.

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