वैज्ञानिक कुशलता का परिचायक है एकीकृत दृष्टिकोण

डॉ. शंकर सुवन सिंह

वास्तविक ज्ञान ही विज्ञान है। प्राकृतिक विज्ञान प्रकृति और भौतिक दुनिया का व्यवस्थित ज्ञान होता है,या फ़िर इसका अध्ययन करने वाली इसकी कोई शाखा। असल में विज्ञान शब्द का उपयोग लगभग हमेशा प्राकृतिक विज्ञानों के लिये ही किया जाता है। इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं : भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान। रसायन का वास्तविक ज्ञान, रसायन विज्ञान है। भौतिकी का वास्तविक ज्ञान, भौतिक विज्ञान है। जीव का वास्तविक ज्ञान, जीव विज्ञान है। कृषि का वास्तविक ज्ञान, कृषि विज्ञान है। खाद्य का वास्तविक ज्ञान, खाद्य विज्ञान है। दुग्ध का वास्तविक ज्ञान दुग्ध विज्ञान है। आदि ऐसे अनेक क्षेत्रों में विज्ञान है। रसायन, भौतिकी, जीव-जंतु, कृषि, खाद्य, दुग्ध, आदि अनेक क्षेत्रों के वास्तविक ज्ञान से राष्ट्रहित संभव है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है। विज्ञान का सम्बन्ध ज्ञान से है अर्थात नए ज्ञान की खोज (डिस्कवर)। प्रौद्योगिकी का सम्बन्ध अविष्कार (इन्वेंशन) से है। बिना ज्ञान के अविष्कार संभव नहीं है। मकान रूपी अविष्कार, स्तम्भ रूपी ज्ञान पर टिका हुआ है । बिना नीव या स्तम्भ के मकान का खड़ा हो पाना असंभव है। उसी प्रकार विज्ञान के बिना, प्रौद्योगिकी का होना असंभव है। एक पुरानी कहावत है – आवश्यकता अविष्कार की जननी है। जब मानव को जीवित रहने के लिए कुछ जरूरी हो जाता है तो वह किसी भी तरह से उसे प्राप्त करने के लिए जुट जाता है। इसका अर्थ यह है कि आवश्यकता हर नए आविष्कार का मुख्य आधार है। यह मानवीय आवश्यकता ही थी जिसने पहले व्यक्ति को खाने के लिए भोजन खोजने, रहने के लिए घर का निर्माण करने और जंगली जानवरों से बचने के लिए हथियार बनाने का कार्य किया। यदि इन सभी चीजों की मनुष्य अस्तित्व के लिए ज़रूरत नहीं होती तो वह इन सभी का आविष्कार नहीं करता। मानव जीवन की जरूरतें ही अविष्कार का कारण बनी। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रौद्योगिकी मानव जीवन की जरूरतों को पूरा करती है। विज्ञान का लक्ष्य ज्ञान प्राप्त करना है जबकि प्रौद्योगिकी का लक्ष्य वैज्ञानिक सिद्धांतों को लागू करने वाले उत्पादों का निर्माण करना है। आधुनिक विज्ञान की त्वरित खोजों ने प्रौद्योगिकी को तेजी से विस्तार करने में सक्षम बनाया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच का यह सम्बन्ध तकनीकी परिवर्तन की गति को संभव बनाया है। विज्ञान नए ज्ञान को,अवलोकन और प्रयोग के माध्यम से व्यवस्थित रूप से खोजता है। प्रौद्योगिकी विभिन्न उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का अनुप्रयोग है। विज्ञान हमेशा उपयोगी होता है। प्रौद्योगिकी, मानव जीवन के लिए उपयोगी हो सकता है या हानिकारक हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक कंप्यूटर उपयोगी हो सकता है पर बम हानिकारक होगा। विज्ञान का उपयोग भविष्यवाणियां करने के लिए किया जाता है जबकि प्रौद्योगिकी, मानव जीवन को सरल बनाता है और लोगों की आवश्यकता को पूरा करता है। अतएव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उच्चारण एक साथ किया जाता है। टिकाऊ भविष्य के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण का होना आवश्यक है। मानव जीवन के भविष्य को शानदार और टिकाऊ बनाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी दोनों को एक साथ लेकर चलना होगा। भारत में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में सन् 1986 से प्रति वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (नेशनल साइंस डे) मनाया जाता है। प्रोफेसर सी वी रमन (चंद्रशेखर वेंकटरमन) ने सन् 1928 में कोलकाता में इस दिन एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी,जो ‘रमन प्रभाव’ के रूप में प्रसिद्ध है। रमन की यह खोज 28 फरवरी 1930 को प्रकाश में आई थी। इस कारण 28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस कार्य के लिए उनको 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस दिवस का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना,प्रेरित करना तथा विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति सजग बनाना है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस देश में विज्ञान के निरंतर उन्नति का आह्वान करता है तथा इसके विकास के द्वारा ही हम समाज के लोगों का जीवन स्तर अधिक से अधिक खुशहाल बना सकते हैं। रमन प्रभाव में एकल तरंग- धैर्य प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक) किरणें जब किसी पारदर्शक माध्यम ठोस,द्रव या गैस से गुजरती है तब इसकी छितराई किरणों का अध्ययन करने पर पता चला कि मूल प्रकाश की किरणों के अलावा स्थिर अंतर पर बहुत कमजोर तीव्रता की किरणें भी उपस्थित होती हैं। इन्हीं किरणों को रमन-किरण भी कहते हैं। भौतिक शास्त्री सर सी वी रमन एक ऐसे महान आविष्कारक थे,जो न सिर्फ लाखों भारतीयों के लिए बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। यह किरणें माध्यम के कणों के कम्पन्न एवं घूर्णन की वजह से मूल प्रकाश की किरणों में ऊर्जा में लाभ या हानि के होने से उत्पन्न होती हैं। रमन किरणों का अनुसंधान की अन्य शाखाओं जैसे औषधि विज्ञान,जीव विज्ञान,भौतिक विज्ञान,खगोल विज्ञान तथा दूरसंचार के क्षेत्र में भी बहुत महत्व है। मुंशी प्रेमचंद ने क्या खूब कहा है -“विज्ञान में इतनी विभूति है कि वह काल के चिह्नों को भी मिटा दे। विज्ञान में ढेर सारी खूबियां होती है जो राष्ट्र को प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस(नेशनल साइंस डे) सत्र 2022 ई. का प्रसंग (थीम) है – सतत भविष्य के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण। इस थीम से स्पष्ट होता है कि “आत्मनिर्भर भारत” के निर्माण में भारत के वैज्ञानिक कौशल की प्रमुख भूमिका होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से जुड़े वैज्ञानिक संस्थानों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और स्वायत्त वैज्ञानिक संस्थानों में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उत्सव कार्यक्रमों में सहयोग, उत्प्रेरण और समन्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। डीएसटी ने 1987 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना की। ये पुरस्कार हर साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर प्रदान किए जाते हैं। इसी के साथ-साथ, विज्ञान दिवस पर विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा एसईआरबी महिला वैज्ञानिकों को उत्कृष्टता पुरस्कार और लोकप्रिय विज्ञान लेखन के लिए पीएचडी एवं पोस्ट डॉक्टोरल शोधार्थियों को ‘अवसर’ (एडब्ल्यूएसएआर) पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं। कोई भी राष्ट्र बिना मानव के संभव नहीं है। राष्ट्र मानव श्रृंखला से ही निर्मित होता है। विज्ञान सत्य को उजागर करता है। विज्ञान असत्य पर सत्य की जीत का परिचायक है। विज्ञान अंधविश्वास को ख़त्म करता है। विज्ञान जीवन को विश्वास से परिपूर्ण करता है। सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल ने कहा था कि “विज्ञान व्यग्रता और अन्धविश्वास रूपी जहर की अचूक दवा है।“ सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल,(22 मई 1859 – 7 जुलाई 1930) एक स्कॉटिश चिकित्सक और लेखक थे। देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2022 के बजट में विशेष प्रावधान किए गए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी) को केंद्रीय बजट (बजट) 2022-23 में 14,217 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। मंत्रालय में तीन विभाग विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), जैव प्रौद्योगिकी विभाग और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को 6,000 करोड़ रुपये, जैव प्रौद्योगिकी विभाग को 2,581 करोड़ रुपये और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग को 5,636 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इन सभी विभागों ने देश में कोविड-19 महामारी से निपटने में अहम भूमिका निभाई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं को 2,894 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। वहीं, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के लिए 1,680 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के तहत केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के लिए 39 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2021-22 में 35 करोड़ रुपये से अधिक है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद को 5,562 करोड़ रुपये दिए गए हैं। विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में आज भारत दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। विश्व में भारत तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति है, जिसमें 634 विश्वविद्यालय सालाना 16,000 से अधिक डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक प्रकाशनों की संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर नौवें स्थान पर है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण वैज्ञानिक कुशलता का परिचायक है। एकीकृत दृष्टिकोण से समन्वयता, समता, सरलता और सफलता का जन्म होता है। भारत के दीर्घकालिक भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में समन्वित दृष्टिकोण जरुरी है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण मानव जीवन को सबल बनाता है। अतएव हम कह सकते हैं कि वैज्ञानिक कौशल आत्मनिर्भरता का प्रतीक है और एकीकृत दृष्टिकोण वैज्ञानिक कुशलता का प्रतीक है।

लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह

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