मुस्लिम पुजारी करते है शिव आरती
आज हमारे देश की कुछ सियासी पाट्रिया और कुछ राजनेता कुर्सी पाने की खातिर जिस प्रकार की गन्दी राजनीति पर उतारू हो गये है। साम्प्रदायिक दंगे करा कर हिंदू मुस्लिम, मस्जिद मंदिर, छोटी जाति, बडी जातियो में हमे बाटकर हम भारतवासियो के दिलो में जिस प्रकार ये लोग नफरत का जहर भर रहे है वो निसंदेह हमारी देश की एकता अखंडता के लिये बहुत ही खतरनाक है। इस धर्म की राजनीति का सब से बुरा प्रभाव हमारी युवा पी पर पड रहा है। आज से दस बीस साल पहले ऐसा कुछ भी नही था। हम सब लोग तमाम त्यौहार और शादी विवाह की रस्मे मिलजुल कर मनाते थे। गॉव और कस्बो में शाम को चौपाले सजती थी हुक्के की गुडगुडाहट के बीच सांग और लोक गीतो कीे धुनो के बीच लोग प्यार सौहार्द के साथ ईद दिवाली दशहरा होली का गुलाल खेलते थे। और खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करते थे। गॉव के हर एक बुजुर्ग का युवा पी सम्मान करती थी चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम।
आज राह से पूरी तरह भटकी हुई सत्ता के भूखे भेडियो रूपी राजनेताओ की इस दौर की राजनीति ने फजा में किस कदर साम्प्रदायिक जहर भर दिया है। गॉव और कस्बो की बात तो छोडिये आज एक ही घर में सिर्फ कुर्सी के कारण भाई भाई के खून का प्यासा हो गया है। बाप बेटे का और बेटा बाप के खून का प्यासा है। पर आज भी हमारे मुल्क कश्मीर घाटी में जिसे मुगल बादशाह शाहजहॉ ने जन्नत का खिताब दिया था ये जन्नत भी गन्दी राजनीति के कारण दोजख बन गई। इस घाटी में उगने वाले तमाम खूबसूरत फूलो को बारूद के धुए ने काला और बदरंग बना दिया। इस सब के बावजूद आज भी देश में ऐसी तमाम मिसाले हम भारतवासियो की ओर से सुनने को मिलती है जिसे सुनकर अमन पसन्द लोगो का सीना गर्व से फूल जाता है।
ऐसी ही एक मिसाल कश्मीर घाटी के पहलगाम में लिद्दर नदी के किनारे स्थित 900 वर्ष प्राचीन शिव मन्दिर में आज भी देखने को मिलती है। जिस के पुजारी मुस्लिम है। कश्मीर घाटी का यू तो ये एक मात्र ही मंदिर है। इस मंदिर का संचालन लम्बे समय से पंडित राधा कृष्ण के नेतृत्व में स्थानीय कश्मीरी पंडित संघ किया करता था लेकिन 1989 में हिंदू कश्मीर पंडितो को कश्मीरी आतंकवाद के चलते कश्मीर छोडना पडा। कश्मीर छोडने से पूर्व पंडित जी ने पास के गॉव में रहने वाले अपने मुस्लिम मित्र अब्दुल बट्ट को मंदिर का पूरा दायित्वयह कह कर दिया था कि तुम रोज मंदिर के दरवाजे खोलकर इस की साफ सफाई कर दिया करना। और वायदे के मुताबिक अब्दुल बट्ट ने वर्ष 2004 में हुए तबादले से पहले तक रोज मंदिर की देखरेख करना और उस का दरवाजा खोलना और बंद करना जारी रखा। अब्दुल बट्ट के बाद मेोह0अब्दुल्लाह और गुलाम हसन ने इस मामालाक मंदिर की जिम्मेदारी जब से ली है तब से आज तक मंदिर के दरवाजो को बन्द नही होने दिया। इस मंदिर की घंटियो के बजने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। मोह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन का कहना है कि हम केवल मंदिर की देखरेख ही नही करते बल्कि रोज मंदिर में आरती भी करते है। मंदिर में स्थित तीन फुट ऊॅचे शिवलिंग की सुरक्षा का ही सिर्फ ध्यान नही रखते बल्कि मोह0अब्दुल्लाह और गुलाम हसन रोजाना ये भी ध्यान रखते है कि कोई भी श्रृद्वालु मंदिर से प्रसाद लिये बगैर न चला जाये।
राजा जयसूर्या द्वारा निर्मित इस मंदिर का महत्तव एक समय ऐसा था कि कोई भी अमरनाथ यात्री इस मंदिर के दशर्न किये बगैर अपनी आगे की यात्रा शुरू नही करता था। दरअसल मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन मंदिर की सेवा ही नही करते बल्कि भगवान शिव में आपार आस्था भी रखते है। इन के द्वारा मंदिर के अन्दर समय समय पर मरम्मत का कार्य भी करवाया जाता है। मंदिर का तमाम काम ये लोग आतंकवादियो की धमकियो के बावजूद सुचारू रूप से चला रहे है। मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन ने यू तो कश्मीरी पंडितो के इस मंदिर की सुरक्षा हेतु हरेक जिम्मेदारी का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है फिर भी ये लोग चाहते है कि इस मंदिर के असली हकदार कश्मीरी पंडित लौट आये और अपने इस मंदिर की तमाम जिम्मेदारिया फिर से सभाल लें।
इस सुन्दर और अनोखे शिव मंदिर में भगवान गणेश, पार्वती, और हनुमान की मूर्तिया भी स्थिपित है इस के अलावा मंदिर परिसर के अन्दर कलकल करता एक दूधिया झरना भी बहता है पिछले चार वर्षो में इस मंदिर के दशर्न के लिये आने वाले हिन्दू श्रृद्वालुओ की सॅख्या में भी काफी वृद्वि हुई है। इन श्रृद्वालुओ में अब वो लोग भी शामिल है जो यहा से अपने अपने घर और ये मंदिर छोड कर चले गये थे पर अब ये लोग एक पर्यटक के रूप में इस मंदिर के दशर्न करने आया करते है। 900 वर्ष पुराने इस शिव मंदिर की देखरेख करते इन मुस्लिम पुजारियो द्वारा नियमित रूप से मंदिर में भोले बाबा की आरती कि जाती है और श्रृद्वालुओ में प्रसाद बाटा जाता है। मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन की मेहनत और आस्था देखकर हिन्दू श्रृद्वालुओ की खुशी देखते ही बनती है। भगवान के दशर्न के साथ साथ कुछ श्रृद्वालु मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन के दशर्न कर पॉव छूकर आशीर्वाद भी प्राप्त करते है। हिन्दू मुस्लिम एकता की ऐसी तमाम मिसाले फिरकापरस्त लोगो के मुॅह पर बार बार तमाचे मारती है पर कुत्ते की टेडी पूंछ की तरह ये राह से भटके कुछ राजनेता और कुछ धर्म के ठेकेदार फिर भी सीधे नही हो पा रहे
आदरणीय जाफरी जी…सुन्दर लेखन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद| सच में अद्भुत एवं सुखदाई घटना का आपने वर्णन किया है| सच है कहाँ एक तरफ कश्मीर में मजहब के नाम पर लोगों को मार मार कर भगाया गया और कहाँ उसी कश्मीर में मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन जैसे लोग भी हैं जिन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द का एक उदाहरण दिया है| ऐसे ही लोग सच्चे भारतीय हैं|
फिर से आपको लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद…
सादर
दिवस