झूठ को स्वीकार्य नहीं है बिहार का सच

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श्री प्रदीप श्रीवास्तव की रपट ”झूठ की परतों में छिपा बिहार का सच” 23 जनवरी को जनसत्ता के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ था। श्री श्रीवास्तव का मानना है कि बिहार आज भी बीमारु राज्य है। इस राज्य के विकास के संबंध में सीएसओ के द्वारा प्रस्तुत ऑंकड़ा महज नीतीश कुमार के ऑंकड़ों की बाजीगरी का पर्याय है, क्योंकि सीएसओ के द्वारा प्रस्तुत ऑंकड़ा बिहार सरकार का ही ऑंकड़ा है। कृषि और उद्योग में पिछड़ा हुआ राज्य 11 फीसदी के औसत विकास दर को कभी प्राप्त नहीं कर सकता है। लेकिन आश्चर्यजनक रुप से श्री श्रीवास्तव ने अपनी रपट में रपट के सा्रेत का खुलासा तक नहीं किया है।

ज्ञातव्य है कि सीएसओ द्वारा प्रस्तुत विकास का ऑंकड़ा सीएसओ की बजाए राज्य सरकार का है, इस बात को सबसे पहले साफ करने वाले थे श्री प्रणव सेन। श्री प्रणव सेन फिलवक्त सांख्यकीय मंत्रालय में विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जब सीएसओ ने सभी राज्यों की विकास दर से संबंधित अपनी रिर्पोट प्रकाशित की थी तो श्री प्रणव सेन कुंभकरण की तरह सो रहे थे और अब अचानक जाग गये हैं।

श्री श्रीवास्तव अपनी रपट में कहते हैं कि सीएसओ के पास किसी भी प्रदेश के दावों की प्रमाणिकता को मापने के लिए कोई यंत्र नहीं है। अगर यह सच है तो सीएसओ द्वारा प्रस्तुत विकास के ऑंकड़ों पर कैसे यकीन किया जा सकता है? चाहे वह ऑंकड़ा बिहार के बारे में हो या फिर गुजरात के बारे में।

यहाँ यह कहना भी समीचीन होगा कि यदि उत्ताराखंड 9.31 फीसदी, उड़ीसा 8.74 फीसदी, झारखंड 8.45 फीसदी और छतीसगढ़ 7.35 फीसदी की दर से विकास कर सकता है तो फिर बिहार क्यों नहीं ऐसा चमत्कार कर सकता है? ध्यान रहे, ये राज्य भी बीमारु राज्य की श्रेणी में आते हैं।

श्री श्रीवास्तव का कहना है कि राज्य सरकार ने अपने फरवरी 2009 के आर्थिक सर्वे में राज्य की विकास दर को 5.74 फीसदी माना था तो वह एक महीने में बढ़कर 11.44 फीसदी कैसे हो गया? उल्लेखनीय है कि सीएसओ के द्वारा प्रस्तुत रपट में वित्तीय वर्ष 2008-09 के दौरान बिहार का विकास दर 11.03 फीसदी रहा है न कि 11.44 फीसदी। यहाँ दूसरा पहलू यह है कि यदि बिहार सरकार ने ही अपने विकास का ऑंकड़ा सीएसओ को दिया था तो नीतीश कुमार या बिहार के नौकरशाहों को फरवरी 2009 के आर्थिक सर्वे में दिये गये 5.74 फीसदी और 11.03 फीसदी के बीच के अंतर को समझने लायक गणित तो आती ही है।

पुनश्च: श्री श्रीवास्तव का कहना है कि राजग सरकार का कार्यकाल वित्तीय वर्ष 2004-05 में लगभग 5 महीने का ही रहा था, क्योंकि राजग की सरकार नवबंर 2005 के आखिरी सप्ताह में सत्ता पर काबिज हुई थी। इसलिए वित्तीय वर्ष 2004-05 में पा्रप्त 12.17 फीसदी के विकास दर में पूरा योगदान राजग सरकार का नहीं था, पर श्री श्रीवास्तव अक्टूबर 2005 तक बिहार विकास किस दर से कर रहा था के बारे में चुप हैं?

वित्तीय वर्ष 2005-06 में बिहार का विकास दर 1.49 फीसदी रहा था, जोकि वित्तीय वर्ष 2006-07 में बढ़कर 22.00 फीसदी हो गया। इस संबंध में श्री श्रीवास्तव का कहना है कि विकास की दर में इस तरह से उतार-चढ़ाव नहीं आ सकता है।

किन्तु सच का आईना कुछ और बोल रहा है। सांख्यकीय मंत्रालय के ऑफिसयल बेवसाईट एमओएसपीआई.एनआईसी.इन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2004-05 में बिहार का विकास दर 10.20 फीसदी था, वहीं वित्तीय वर्ष 2005-06 और वित्तीय वर्ष 2006-07 में विकास दर क्रमश: 7.98 तथा 18.28 फीसदी था।

खैर, यदि श्री श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत ऑंकड़ों को सच मान भी लिया जाये तो भी विकास के दरों में आये उतार-चढ़ाव को अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता है। जंगल को राज्य बनाने के क्रम में विकास के दर में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक ही है। इस संदर्भ के आलोक में यह भी बताना जरुरी है कि वित्ताीय वर्ष 2003-04 में बिहार में 5.15 फीसदी का नकारात्मक विकास दर था। इससे स्पष्ट है कि श्री नीतीश कुमार ने अपनी शुरुआत शून्य से भी पीछे से की थी।

अपनी रपट में श्री श्रीवास्तव कहते हैं कि नीतीश सरकार को विकास के वाहकों को देश के सामने लाना चाहिए। ऐसा लगता है कि श्री श्रीवास्तव बंद कमरे में अपनी रपट लिखते हैं या बिहार के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं या उन्हें केवल स्कूप चाहिए। किसी भी प्रदेश का विकास सिर्फ ऑंकड़ों सें नहीं होता है। विकास को देखा भी जा सकता है और छुआ भी जा सकता है। पर इसके लिए उस प्रदेश में जाने की जरुरत होती है।

विकास के वाहक कौन से हैं? विकास कैसे होता है? राज्य और वहाँ के निवासियों की विकास में क्या भूमिका होती है? इन पहलूओं से अवगत होने के बाद ही हम किसी भी प्रदेश में विकास के होने या नहीं होने के बारे में बात कर सकते हैं।

विकास के वाहक-अर्थशास्त्र के नियम को मानें तो विकास का मूल आधार शिक्षा, कृषि, स्वास्थ, निर्माण क्षेत्र,उधोग एवं सेवाक्षेत्र में विकास के होने को माना जा सकता है।

विकास कैसे होता है- विकास की पहली कसौटी सुशासन है। सुशासन से ही कानून-व्यवस्था को सही किया जा सकता है। कानून-व्यवस्था के चाक-चौबंद होने पर ही विकास के अन्य वाहक पनप सकते हैं और आज वास्तव में बिहार में सुशासन है और विकास के वाहक भी फल-फूल रहे हैं। बिहार के राजस्व में भी तेजी से वृद्वि हो रही है। वित्ताीय वर्ष 2004-05 में बिहार ने तकरीबन 2919 करोड़ रुपया राजस्व के रुप में अर्जित किया था, वहीं बिहार का राजस्व वित्ताीय वर्ष 2008-09 में बढ़कर 5256 करोड़ हो गया है। इसके अलावा वर्तमान में केन्द्र सरकार से प्राप्त राशि का उपयोग भी बिहार में बेहतर तरीके से हो रहा है।

राजग सरकार के 4 सालों के कार्यकाल में कुल 317 अपहरण के केस दर्ज किये हैं, जबकि पिछले सरकार के 4 सालों के कार्यकाल में 1393 अपहरण के केस दर्ज किये गये थे। मोहम्मद शहाबुद्वीन से लेकर पप्पू यादव सरीखे डॉन आज सलाखों के पीछे हैं।

शिक्षा: बिहार में लगातार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हो रहा है। प्राथमिक शालाओं में बच्चों की उपस्थिति बढ़ रही है। आई आई टी और निफ्ट ने बिहार में दस्तक दे दिया है। 25 मॉडल महाविधालय भी बिहार में खुल चुके हैं। हजारों की संख्या में प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली की गई है।

कृषि: बिहार में अभी भी तकरीबन 90 फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए सरकार ने बैंको से कहा है कि वे अधिक से अधिक संख्या में के सी सी किसानों को दें, ताकि उनका पीछा सूदखोरों और महाजनों से छूट सके और वे उन्नत तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित हों। वित्तीय वर्ष 2008-09 में बैंकों ने 59.80 फीसदी के सी सी का वितरण किसानों के बीच किया था। निश्चित रुप से वित्तीय वर्ष 2009-10 में इस प्रतिशत में और भी बढ़ोतरी होगी।

स्वास्‍थ्‍य: स्वास्‍थ्‍य क्षेत्र में विकास के लिए भी सरकार कृत संकल्पित प्रतीत होती है। सभी सरकारी अस्तपतालों में नि:शुल्क ईलाज किया जा रहा है और साथ में नि:शुल्क दवाईयों का वितरण भी किया जा रहा है। दूर-दराज के इलाकों में भी प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र खोले जा रहे हैं। ए एन एम और ए ग्रेड नर्सों की लगातार संविदा के आधार पर नियुक्ति की जा रही है।

आधारभूत संरचना के क्षेत्र में विकास : आधारभूत संरचना के क्षेत्र में बिहार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है सड़क का निमार्ण। कहा भी गया है कि सड़क विकास की धमनियाँ होती है। लालू प्रसाद तो बिहार की सड़कों को हेमामालिनी का गाल नहीं बना सके, किन्तु नीतीश कुमार ने यह करिश्मा का दिखाया।

6800 किलोमीटर सड़क की मरम्मत की जा चुकी है। आवश्यकता के अनुसार नये सड़कों का भी निमार्ण किया गया है। 1600 पुलों का निमार्ण विगत 4 बरसों में हो चुका है। आज पूरे बिहार में सड़क मार्ग से यात्रा करना सरल एवं सुगम हो चुका है।

शायद यही कारण है कि ऑटोमोबाईल की बिक्री बिहार में 45 फीसदी की दर से 2009 में बढ़ी है। जबकि दूसरे राज्यों में इसी दौरान ऑटोमोबाईल की बिक्री 25 फीसदी तक घटी है। यह ऑंकड़ा जाहिर करता है कि बिहारियों की कमाई में इजाफा हुआ है। साथ ही यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि बिहार में रंगदारी का युग खत्म हो चुका है और कानून-व्यवस्था अपने स्वर्णकाल में है।

नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन की सहायता से कांटी और नवीनगर में 2012 तक 1900 मेगावाट का उत्पादन शुरु हो जाएगा। इस क्षेत्र में केन्द्र सरकार से अपेक्षित सहयोग की आवश्यकता है, जोकि फिलहाल बिहार को प्राप्त नहीं हो रहा है।

उद्योग: उद्योग-धन्धों का विकास भले ही पूर्ण तरीके से बिहार में नहीं हो सका है। फिर भी राजग के कार्यकाल में निजी क्षेत्र की तरफ से लगभग 20000 करोड़ का निवेश किया गया है। बंद पड़े चीनी के मिलें बदस्तुर चालू किये जा रहे हैं। आज की तारीख में बनमखी, बक्सर और बिहटा के चीनी मिल चालू अवस्था में हैं। बक्सर, अररिया और पूर्णिया में चावल के मिलों में काम चल रहा है। भागलपुर, गया, नांलदा, दरभंगा, मधुबनी, सिवान और पटना जिले में कपड़ा मिलों को अधतन किया जा रहा है। पुर्णिया में जूट पार्क खुला है।

सेवा क्षेत्र: सच कहा जाये तो सबसे अधिक विकास बिहार में 55 फीसदी सेवा क्षेत्र में ही हुआ है। सेवा क्षेत्र का ही एक हिस्सा निमार्ण क्षेत्र में भी तेजी से विकास हो रहा है। अपार्टमेन्ट तेजी से बन रहे हैं। बिहार राज्य में सीमेंट की आवक आज 18 फीसदी है। बिहार इंडस्ट्री एसोसियेशन के प्रेसीडेन्ट श्री के पी केसरी के अनुसार केवल निर्माण क्षेत्र में निजी क्षेत्र ने तकरीबन 1500 करोड़ रुपयों का निवेश पिछले चार सालों में किया है। यही कारण है कि आज जमीनों और फ्लेटों की कीमत सामान्य आदमी की पहुँच से बाहर चला गया है।

मॉल, मल्टीप्लेक्स, बड़ी-बड़ी दुकानें और निजी संस्थान पूरे प्रदेश में अपने पैर पसार रहे हैं। राज्य में मोबाईल की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। मोबाईल उधोग आज बिहार में स्वरोजगार का बहुत बड़ा स्रोत है। इतना ही नहीं यहाँ मोबाईल की सेवा देने वाले संस्थान भी खुल रहे हैं और साथ में निजी और सरकारी बैकिंग संस्थान की संख्या भी बिहार में बढ़ रही है। इलाहाबाद बैंक ने वित्ताीय वर्ष 2008-09 के दौरान सबसे अधिक 18 फीसदी की दर से बिहार में विकास किया है जोकि अन्य प्रदेशों से बहुत ज्यादा है। ग्रामीण बिहार को वाईमेक्स तकनीक से अधतन किया जा रहा है। ताकि सेवाक्षेत्र अच्छी तरह से वहाँ भी अपना पैर जमा सके।

राज्य और वहाँ के निवासियों की विकास में क्या भूमिका होगी : कुशासन का दौर खत्म हो चुका है। फिर भी सब कुछ सुधरने में वक्त तो लगेगा ही। विषेष तौर पर स्वास्थ व शिक्षा पर खास घ्यान देने की जरुरत है। सुरेश तेंदुलकर समिति के रिर्पोट के अनुसार आज भी बिहार में 54.47 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहने के लिए मजबूर हैं। इस ऑंकड़े में भी बहुत जल्दी सकारात्मक बदलाव आने की सम्भावना है।

जादू की छड़ी न तो राज्य सरकार के पास है और न ही बिहार में रहने वालों के पास। सबकुछ बदलने में वक्त तो लगेगा ही। सरकार अपना काम कर रही है। गेंद अब बिहारियों के पाले में है। अब प्रदेश के कुम्हार वही हैं। देखना है वे कैसे बेहतर माहौल को खुशहाली में तब्दील करते हैं? आज का समय है उनके बदलने का। नीतीश कुमार मंझे हुए समझदार राजनीतिज्ञ हैं। वे चुनाव को मद्वेनजर रखकर गलतबयानी करने वाले कदापि नहीं हैं। वे काम करने में विश्वास करते हैं। साथ ही आज की पब्लिक भी इतनी बेवकूफ नहीं है कि वह ऑंकड़ों के लालीपॉप से खुश हो जाये। आज रेलवे की अच्छी स्थिति नीतीश कुमार के ही कारण है। रेलवे में सुधार के लिए प्लेटफार्म नीतीश कुमार ने ही तैयार किया था।

अस्तु जरुरत है कि श्री प्रदीप श्रीवास्तव जी बिहार का भ्रमण करें। अपनी ऑंखों से वस्तुस्थिति देखें, समझें और गुणें और उसके बाद ही अपनी रपट दें। ताकि सच सामने आ सके। भा्रमक खबर से न तो उनका भला होगा और न ही किसी और का।

-सतीश सिंह

4 COMMENTS

  1. पत्कार्तिता करनी चाहिए परन्तु श्रीवास्तव जी जो बचे मन लगाकर पर्ठे है उसे आगे सही मार्क्स न मिले तो उनका मनोबल टूट जाता है.पोसिटिवे सोचिये ऐसा न हो की मेरे जैसा भी आदमी आपको कोसने लगे.

  2. अब ये तो जगजाहिर है की पत्रकारिता में प्रायोजित पत्रकारों का खेल काफी फैला है.तो आपके द्वारा चर्चित लेख उसी का उदहारण है.कांग्रेस लालू सहित सब में हडकंप फ़ैल गया है की अब बिहार में विकास जातिवाद पर भारी पड रहा है.वे घबराये हुए हैं की अब बिहार हाँथ में आने वाला नहीं है.बिक़े हुए लेखक और उनका दुष्प्रचार इसका सबूत है.जनसत्ता का लेख भी .आपका विश्लेषण काबिले तारीफ है.

    @ मुकेश जी आपसे सहमत हुआ जा सकता है. लेकिन यह भी जानिए की दसकों की कोढ़ कुछ सालों में गायब नहीं दिखेगी .
    और नितीश चाहे जितना चाह लें ,काम तो सरकारी मशीनरी से ही करना है . उसका निकम्मापन और भ्रष्ठ्ता जादू की छडी से नहीं दूर किया जा सकता है न कानूनों के तहत उनसे निजात मिल सकती है . कोसी प्रकरण को इस आलोक में भी देखें तो बात काफी समझ में आ जायेगी .
    केंद्र का वादा करके भी आबंटित पैसा न दिया जाना किस राजनीती का अंग है वह भी बताना पड़ेगा ? सच तो यह है की ये स्वार्थी शक्तियां नितीश और बिहार को फेल करने पर उतारू हैं.
    मीडिया प्रबंधन की भी सीमायें होती हैं . वे रात को दिन या उल्टा साबित नहीं कर पाते.अगर पूर्वाग्रह मुक्त हो बिहार जाकर देखें तो दिख भी जायेगा .
    हाँ बिहार से रावण राज्य की पूरी बिदाई नहीं हुयी है क्योंकि उसकी जड़ें एक लम्बे अरसे से बहुत गहराई हैं .राम राज्य भी बहुत दूर है पर उस संभावना की ओर नितीश ने कदम तो बढ़ाये ही हैं.

  3. बहुत सही लिखा आपने, लेकिन यह भी सच है की बिहार की जो वास्तविक छवि है रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है ,जहां तक विकास का सवाल है तो राज्य को अभी भी विकास के पायदान पे कायम रहने के लिए एक सफल भूमिका की जरुरत है, तथा कथित सुशासन बाबु ने जिस तरह से अपने हर भाषण में घोषणाओ का जो उन्होंने अम्बार लगाया उस पर वे खड़े नहीं उतड़े और एक समय उनका नाम घोषणा मंत्री के नाम से भी से जाना गया . राज्य सरकार अपनी हर असफलता को केंद्र के बहाने छुपाने में सफल रहे लेकिन कोशी कांड में राज्य सरकार की नाकामी सबको मालूम है जो की हालिया रिपोर्ट से जाहिर हो चूका है .जिस मुद्दे पे वे सत्ता में आये उसपे फ़िलहाल उतरने में तो असफल ही रहे हैं और जहाँ तक बात है विकास का वो राज्य प्रायोजित मीडिया प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

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