मारियों नरोन्हा
पति जब शराब के नशे में देर रात घर लौटता है तो ऐसी स्थिति मे वो जबरन अपनी पत्नि पर शारीरिक संबध बनाने का दबाव डालता है ।इस परिस्थिति का सामना अधिकतर महिलाओं को करना पड़ता है चाहे वो शहरी क्षेत्र मे रहने वाली शिक्षित महिला हो या ग्रामीण क्षेत्र की अशिक्षित महिला। लेकिन कभी कभी जागरुक होने और कभी जागरुक न होने के कारण पति द्वारा हर रोज पत्नि पर शारीरिक संबध बनाने का दबाव पत्नि के लिए भारी पड़ जाता है और अंत्तः वो गर्भवती हो ही जाती है क्योंकि गर्भ को रोकने वाले सारे उपाय जैसे- कौपर टी, गर्भनिरेधक दवाईयों का प्रयोग वो नही कर पाती। करे भी कैसे ? पति द्वारा अचानक दिया जाने वाला दबाव उसे इतना समय ही नही देता कि वो इन उपायों के प्रयोग कर सके। हमारे देश मे महिलाओं के गर्भवती होने के कारणों मे यह चर्चित कारण है। घटना पूर्ण रुप में गर्भवती होने के बाद भी इस प्रक्रिया को बार बार दुहराया जाता है। इसके पीछे कई भ्रम हैं जिनमें सबसे बड़ा है बेटो की चाहत रखना औऱ बेटो द्वारा मिलने वाली आर्थिक मदद और वंश को आगे बढ़ाने को एकमात्र कारण मानना। ऐसे मे सरकार द्वारा चलाई जाने वाली परिवार नियोजन योजना कितनी कारगर है इस बारे मे दिल्ली स्थित चरखा फीचर्स के डिप्टी एडीटर मौ0 अनिस उर रहमान खान कहते हैं- ” यूँ तो राज्य एंव केन्द्रीय स्तर पर अनगिनत परिवार नियोजन की योजनाएं चल रही है। इसके अतिरिक्त स्वंय सेवी संगठन भी इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रही हैं। लेकिन हमारे समाज मे इसका प्रयोग करने मे झिझक महसूस किया जाता है, क्योंकि लोग इस संबध मे जानकारी लेने और देने को ऐब समझते है। यही कारण है कि सरकारी एंव गैर सरकारी स्तरो पर अनगिनत दवाएं और दूसरे उपाय मौजूद हैं। मगर जागरुकता न होने के कारण और जागरुकता लेने मे शर्म करने के कारण लोग उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। ऐसा करने से विशेष रुप में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है”।
बिहार की राजधानी पटना मे रहने वाली 45 वर्षीय रुखसाना बानो जिनके तीन बच्चें हैं। परिवार नियोजन के बारे बताती हैं- “शादी हो जाए और ज्यादा दिनों तक बच्चा न हो तो लोग उसे अच्छा नही मानते, घर परिवार वाले ताने भी सुनाते हैं, ऐसे मे सेहत की चिंता कौन करता है और ये सरकार तो बहुत सारे तरीके बनाती है लेकिन पति पत्नि को कब कितने बच्चे चाहिए ये तो वही तय करेगें सरकार का इससे क्या लेना देना।“
राजधानी पटना में होमियोपैथी के क्षेत्र में सेवा देने वाली डॉक्टर चंदा कुमारी परिवार नियोजन की जागरुकता पर प्रकाश डालते हुए कहती है “मेरे क्लिनिक पर हर रोज कई महिलाएं इस समस्या को लेकर आती हैं कि उन्हे अनचाहा गर्भ ठहर गया जबकि अभी वो मां नही बनना चाहती थी। मैं अक्सर ऐसी महिलाओं को परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय के बारे में बताती हुँ लेकिन उनकी तरफ से जवाब एक ही आता है कि पति नही चाहते कि इन उपायों का प्रयोग करुं। हांलांकि मैं हमेशा उन्हे समझाती हुँ कि इस मुद्दे पर खुलकर अपने पति से बात करें लेकिन बहुत कम महिलाएं ही इतनी हिम्मत कर पाती हैं।”
परिवार नियोजन को अपनाने से कोई लाभ है या नही इस सवाल के जवाब मे बिहार के जिला जहानाबाद के निवासी इरफान आलम जो पिछले दो वर्षो से कुवैत की कंपनी में सिविल इजिंनियर के पद पर कार्य़रत है कहते हैं- “मेरा परिवार काफी बड़ा है शुरुआत से अम्मी और अब्बु को बहुत मुशकिल से सब बच्चों को पातले देखा है। इसलिए मैनें सोचा है कि शादी के बाद शुरु से ही परिवार योजना को लेकर सर्तक रहुँगा ताकि पत्नि और बच्चों दोनो का स्वास्थय सही रहे । ज्यादा बच्चे होने से मां का स्वास्थय खराब हो जाता है जिससे बच्चें को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।”
परिवार नियोजन वास्तव मे कितना महत्वपूर्ण है इस सवाल के जवाब में महिला पत्रकार श्रृंखला पांडेय कहती है “परिवार नियोजन सिर्फ इसलिए मह्तवपूर्ण नही है क्योंकि इससे बच्चों के बीच अंतराल रखने मे सहायता मिलती है बल्कि ये इसलिए भी महत्वपूर्ण कि मंहगाई के इस दौर में ज्यादा बच्चों के लालन पालन में भी दिक्कत आती है। और इसके कारण बच्चे अच्छी शिक्षा से भी वंचित रह जाते हैं। आप देखिए कि परिवार नियोजन की कड़ी कहां से कहां तक जुड़ी है और हमारे जीवन पर कैसा प्रभाव डालती है। इसलिए आवश्यक है कि हम परिवार नियोजन की मह्त्वपूर्णता को इस नजरिए से भी देखें।”
उपर्युक्त विचारों की रोशनी में परिवार नियोजन के बारे लोगो की सोच साफ झलकती है जबकि इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ो पर नजर डालें तो मालुम होता है कि वैश्विक स्तर पर हर साल 5 लाख 29 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान होती है । इनमें 1 लाख 36 हजार अर्थात 25.7 प्रतिशत महिलाएं भारत की हैं। आंकड़े ये भी बताते हैं कि गर्भवस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के समय हर पांच मिनट पर एक भारतीय मां की मौत होती है। जिनमें से दो तिहाई मां की मौत बच्चा पैदा होने के बाद होती है। आपातकालीन प्रसव के बाद गर्भाशय फट जाने से प्रति एक लाख में 83 माताएं मौत की शिकार हो जाती है। इस संबध में मातृत्व मृत्यु दर 17.7 प्रतिशत,जबकि नवजात मृत्यु दर 37.5 प्रतिशत है।
जनसंख्या के क्षेत्र मे काम करने वाली दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन पापुलेशन फाउन्डेशन ऑफ इंडिया के अनुसार 1995- 2015 तक वैश्विक स्तर पर 272000 महिलाओं को मां बनने के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ी, जिसका मुख्य कारण संक्रमण था।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं लेकिन हम चाहतें हैं कि इन आंकड़ो मे कमी आए तो इसके लिए न सिर्फ सरकार बल्कि उससे कहीं ज्यादा हम सबको परिवार नियोजन के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा और उपलब्ध विकल्पो को पत्नि और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए जीवन मे अपनाना होगा। क्योंकि एक स्वस्थ मां ही स्वस्थ परिवार का आधार होती है।