पंच में परमेश्वर की आत्मा कहीं खो गई ?

       भारत की आत्मा गांवों में बसी है इसलिए देश के सभी गांवों में सर्वसमाज पृथक या सार्वजनिक रूप से अपने यहां के सभी प्रकार के विवादों को पंच परमेश्वर की न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास कर पंचायत के द्वारा दिये गए निर्णय को स्वीकार कर पंच परमेश्वर की जयकारा के नारे लगाता था, पर यह व्यवस्था अनेक स्थानो पर ध्वस्त हो चुकी है। सामाजिक रीति रिवाजों तथा सामाजिक आयोजनों सहित,बिना पुलिस कोर्ट कचहरी का मुंह देखे अपने आपसी विवाद को पंचायत में बिना एक पैसा खर्च किए निर्णय देने वाले पंच-परमेश्वर समाज को एक माला में पिरोने का काम यही पंचायत करती थी, फिर क्या कारण है की सदियों पुरानी यह पंचायत व्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है। हमें ऐसी आदर्श पंचायतों ओर उसके नीति निर्धारक पंच परमेश्वर का जानना जरूरी है। आखिर क्या कारण है कि पंच ओर पंचायत दुर्दशा झेल रही है जबकि अधिकांश जगह यह समाज के 10 प्रतिशत लोगों कि भागीदारी पर घिसट रही है, अगर शेष 90 प्रतिशत समाज को लोग भी इसमें शामिल हो जाये तो 10 प्रतिशत लोगों के द्वारा कि जा रही मनमर्जी पलक झपकते ही समाप्त हो जाएगी ओर पंचायत में पारदर्शिता आने से अब तक अन्याय सह रहे लोगों को राहत मिलेगी।  

       हम अब तक पंच परमेश्वर की जो अवधारणा अपने मन मस्तिष्क में बनाए हुये जिस तरह पंच या पंचायत को जानना या मानना का डंका पीटते आए हो, असल में हमारा जानना ओर मानना उसी प्रकार का रहा है जैसे हम अपने शरीर को दिये गए नाम को जानते हो किन्तु इस शरीर की आत्मा, मन, चित्त को इस अहंकार के कारण कभी जान नहीं पाते, की हम वास्तव में है कौन? फिर भी जाने बिना हम जानने की उद्घोषणा करते अघाते नहीं है। असल में हमारा इस प्रकार का जानना हमारे लिए ही नही अपितु समाज के लिए भी अनर्थकारी है, इसलिए हम अपनी समझ ओर सोच को ही पूर्ण मानते हुये गहन अंधकार में तीर चला रहे होते है। हम गहरी नींद में सोने वाले है इसलिए हमें नींद से जागकर पंच परमेश्वर ओर पंचायत को उनके मूल स्वरूप मे जानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। पंच को समझना है तो पंच शब्द का अर्थ जानना जरूरी है। ध्यान दीजिए कि पंच शब्द जगत के पंचीकरण स्वरूप का प्राणतत्व है जहां सारा जगत पंचतत्व के संयोग से उत्पन्न ओर नाश होकर पंचतत्व में विलीन हो जाता है इसलिए इस जगत को परमेश्वर ने पंचतत्व में विभक्त कर पाँच योनियों की सृष्टि जिसमें अंडज, पिंडज, उष्मज, स्थावर ओर देव बनाए ओर उन सभी से पंच प्राण की सत्ता निर्मित की है। जीवन का परम सत्य यह भी है की पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु ओर आकाश को पंचगुण की प्रधानता प्राप्त है ओर प्रत्येक जीव, प्राणी की यह देह शरीर पंचतत्वों से निर्मित पंच तरंगों जैसे प्रकृति, स्वरूप, अवस्था क्रिया ओर योनि में जीवन पाने के बाद जीता है ओर सभी में पंचीकरण स्वरूप तत्व की अथाह पंच निधि की सम प्रधानता है ।

       मनुष्य देह में पंच तत्वों की पंच निधि के अलावा कुछ नही है। गोरख पंथ के संत भरतरी जी  ने उल्लेख किया है कि- पंचतत्व सब जग उपजाया, पंचतत्व सब देव बनाया। पंचतत्व भोगे चौरासी , पंचतत्व जोगी सन्यासी॥ पंचतत्व राजा महाराजा,पंचतत्व जड़ चेतन साजा। पंचतंत्र पुरुष अरु स्त्री, पंचतत्व गोरख भरतरी॥ पंचतत्व से खाली कहाँ,ज्ञान बुद्धि जावे नहीं जहां॥ स्पष्ट है यह सारा ब्रह्मांड पंचतत्व से पूर्ण है इसलिए जगत कि स्थूल प्रकृति ओर सूक्ष्म प्रकृति के प्रत्येक अंग अंग में यह पंचा कार पंचतत्व चौदह भुवन में अपनी सत्ता का विस्तार किए हुये है। चूंकि मानवीय समझ ओर बुद्धि पंच के गणित का उत्तर पाने हेतु उत्सुक है इसलिए अतींद्रिय ज्ञान सागर में  पंच करण के अनमोल खजाने से एक मोती पंच को लेकर बात करनी है। सामान्य छात्र के लिए पंच का अर्थ होता है पाँच। इस पंच अर्थात पाँच में परमेश्वर का वास माना है। मनुष्य की देह पंच इंद्रिय शब्द, स्पर्श, रूप, रस ओर गंध की स्वामिनी कही गई है जो पंच ज्ञानेंद्रिया भी है। समूचा ब्रम्हाँड़ पंचतत्त्व अर्थात आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी से निर्मित है ओर इन प्रत्येक तत्वों के पाँच पाँच गुण है इसलिए सनातन धर्म भी पंच प्राण की उद्घोषणा करता है। यही कारण है की हमारे ऋषि-मुनियों ने सर्व समाजों के प्राणियों के सर्व कार्य सम्पादन की बागडोर पंच के हाथों सौंप सामाजिक न्याय व्यवस्था का संतुलन सुनिश्चित किया।

       सर्ववर्ग के सम्प्रदायो ओर समाजों ने पंच परमेश्वर के गुणों को आत्मसात करते हुये घर में ही सहज, सरल ओर सस्ता न्याय हेतु पंचायत व्यवस्था को स्वीकार किया ताकि प्रत्येक समाज के रहवासी जहां निवास करते है वहाँ अपने-अपने समाज के हर व्यक्ति के जन्म से मृत्यु के बीच किसी भी प्रकार की सामाजिक ज़िम्मेदारी, रीति रिवाज की पालना, अथवा विपरीत आचरण पर उत्पन्न विवाद व घर परिवार व समाज के सभी प्रकार के झगड़े फसाद मिटाने का अधिकार पंच को देकर उसे परमेश्वर की सामर्थ्य प्रदान की है। इस तरह पंच परमेश्वर की बनाई सृष्टि में एक उत्कृष्ट समाज की रचना के साथ समाज की परिस्थियों ओर उन परिस्थियों के बीच मानवीय मूल्य ओर चेतना की सुगंध को बनाए रखने का भाव था, जिसका मूलमंत्र पंच के सुयोग्य पद पर आसीन व्यक्ति पंचत्व से परमेश्वर सृष्टि की रचना को साकार कर सके।

       आज समूचे समाजजन पर पंच वृत्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह ओर मद कि हैवानियत सवार है इसलिए इन विकाररूपी शैतानों के सामने पंच परमेश्वर की आत्मा भी इनके शिकंजे में फस चुकी है। विचार कीजिये कि पंचेंद्रिय का स्वामी यह शरीर पंच सम्प्रदाय में परमेश्वर की उपासना कर पंचामृत से परमेश्वर को प्रतिमा का स्नान कराता है वहीं 9 वर्ष तक कि कन्याओं में नवदुर्गा कि छवि देखता है 9 वर्ष के बालको में लंगूरवा के रूप में शिव, हनुमान को देखकर परमात्मा के समान भाव लिए इनपर उतनी ही ममता रखता है फिर वह पाँच परमेश्वर ओर पंचायत की मर्यादा को क्यो ओर कैसे भंग कर सकेगा। कुछ का मानना रहा है कि पंचेन्द्रिय के स्वामी को वश में कर लेने से परमेश्वर सहज में वश में हो सकता है किन्तु जहां किसी प्रकार के वाद विवाद या आपसी झगड़े आदि मामलों के निर्णय देने की बात आए तब पंच अपने पंचप्राण के अहंकार से पहले अंतकरण में शिवोहम के साक्षात्कार से दिये गए न्यायपूर्ण निर्णय से धर्म की स्थापना करने के साथ समाज का विश्वास भी अर्जित करते है, पर आज यह अविश्वास क्यों है, इसका चिंतन ओर इस पर कार्य करने हेतु घर में दुबके लोग जिम्मेदार है जो हमेशा से पंचायत पर उंगली उठाते है। जबकि वे भूल जाते है कि धर्म में पंचसंस्कार, तीर्थों में पंचगंगा और पंचकोसी आदि का गौरव पंच शब्द से परमेश्वर अधिष्ठित करता है।

           अब बात पंचायत की ले लीजिये जिसे सम्पन्न करने के लिए प्रत्येक समाज-वर्ग में निवास करने वाले एक सामान्य गरीब मजदूर व्यक्ति से लेकर उच्चशिक्षित, उच्च पदासीन एवं रईस धनवान हो, उसे सामाजिक वाद विवाद में निर्विकार रूप से अपना पक्ष या सुझाव  रखने का अधिकार प्राप्त है। सर्वसाधारण संसारी, व्यवहारी लोग चाहे वे शिक्षित हो या अशिक्षित वे समाज के प्रधान दायित्वों पर महाते, चौधरी, दीवान, जमादार आदि जातिगत निर्धारित न्यायिक  पदों पर पदासीन रहते आए है ओर वे समाज के प्रतिनिधि बतौर भी समाज की रीति रिवाजों, शादी विवाहों, जन्म मृत्यु के संस्कारों में शामिल रहकर नियमो का पालन कराते है। पंचायत के ये न्यायिक पदासीन के विषय में कहा जाता है कि ये उनकी पंचायत के समक्ष आने वाले हर तरह सा पारिवारिक विवादों की सुनवाई प्रक्रिया से लेकर निर्णय तक अपने अन्तर्मन से न्याय सुना दूध का दूध ओर पानी का पानी कर देते है। एक दसक पहले तक शतायु पार कर चुके कुछ पंचों से मैं चर्चा कर चुका था तब वे अपने युवापन को याद कर उस समय होने वाली सामाजिक पंचायतों के कई संस्मरण सुना चुके जिन्हे स्थानाभाव के कारण व्यक्त कर पाना संभव नही किन्तु कहावत इस प्रकार है –पाँच पंच मिलि कीजे काज, हारे जीते होय न लाज। तब पंच जिसको जैसा ठहरा देते थे वह वैसा ही बन जाता था। अर्थात तब पंचायत के निर्णय की अवहेलना करने वाले का सामाजिक बहिष्कार कर समाज में उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था।

       पिछले चालीस पैतालीस वर्षों से अपने समाज की पंचायतों का साक्षी रहा हूँ तब समाज के किसी भी बलवान, धनवान, विद्वान को पंच ओर पंचायत की मर्जी के विरुद्ध खड़ा नहीं पाया है, हा पेतीस साल के लगभग एक मामला जरूर देखने में आया जहा जिसका हुक्का पानी समाज ने बंद किया उस घर में एक धनवान ने अपने शिक्षित बेटे को व्याह दिया। पंचायत की अवमानना का मामला था, पंचायत हुई उस धनवान को पंचायत में बुलाया ओर सामाजिक निर्णय अनुसार उन्हे सर्वसम्मति से दी सजा को स्वीकारा तब पंचायत के समक्ष पहली बार कानून के जानकार बेटे ने सबको थाने में बंद कराने के धमकी दे अपने पिता को ले गए, पूरी पंचायत में सन्नाटा पसरा था, शिक्षित बेटे के पिता को पंचायत की सजा तो नही मिली, किन्तु यह मामला पंचायत के समक्ष उदाहरण बन गया। हा कोई भी पंचायत से वाद विवाद कर झगड़ा करे, यह बात नही आई, पर हम किसी भी उच्च पद या मुकाम को छु ले पंचगंगा का हाथ छोड़ने वाले किसी भी व्यक्ति की गुजर बसर नही होनी बल्कि पंचो का श्राप झेलना है।  

       आज वे ही दस प्रतिशत लोग पंचायत का संचालन कर पीढ़ी दर पीढ़ी महाते चौधरी,दीवान, जमादार आदि पदों पर आसीन रहकर एक ढर्रे पर आंखे गढ़ाए चल रहे है ओर शेष नब्बे प्रतिशत अपने घरों में रूढ़िवादी न होने का दावा कर पंचायतों में शामिल नही हो रहे है। इन नब्बेप्रतिशत नकारा लोगों के कारण समाज की सारी व्यवस्थाए चौपट है ओर अनेको का जीवन संकटापन्न है। ये नब्बे प्रतिशत शिक्षित,उच्च शिक्षित ओर सम्पन्न है जो समस्याओं का सामना करने के लिए समाज की व्यवस्था को नष्ट करने पर आमादा रहकर अपना सर्वस्व नाश करने पर कटिवद्ध है। वे भूल जाते है अपने घरों में शादी विवाह जन्म मृत्यु के अवसर पर उन्हे इन्ही पंचों की शरण लिए बिना उनका कोई भी कार्य रीति रिवाजों से पूरा नहीं होने वाले, इसलिए अपने स्वार्थ के लिए वे पंचों के हाथ पकड़ कर चलते है। अब आवश्यकता है अपने स्वार्थ के लिए नहीं अपितु पूरे समाज को एक आदर्श समाज एक मजबूत समाज बनाने की, अगर आप सहमत हो तो आज ही तैयार होकर अपने घरों की चारदीवारी की सीमाओं को लांघकर पंचायत में नियमित रूप से शत प्रतिशत उपस्थिती देने की ताकि ये दस प्रतिशत लोगों ने जो अपने मनमानी से अव्यवस्था फैलाकर गंदगी फैला रखी है उसे साफ किया जा सके। पंच के मुखिया सहित अन्य पदाधिकारिओ को शत प्रतिशत समाज के समक्ष चयन कर चली आ रही पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा को विदा करना आवश्यक है। जरा समझिए इन दस प्रतिशत पंचों की पंचायत पर डर,लालच, दबाव या नाते-रिश्तों को निभाने का दोष लगाकर घर पर बैठना ठीक है,यदि नही तो घर छोडकर पंचायत में आइए ओर पंच परमेश्वर पर कलंक मिटाने के लिए अपने अंदर के पंच का ईमान, निष्ठा, धर्म-कर्म, ज्ञान विवेक ओर मानवता का परिचय दीजिये। बहुत हुआ जो न्यूनतम संख्या में हठी, दुराग्रही लोग पंचायतों में अपने मन का धन , कोरा पद ओर झूठी प्रशंसा के लिए समाज के साथ अन्याय करे ओर खुद की अंतरात्मा को धोखा दे, यह नहीं चलने दीजिएगा।

       एक विचार के बाद अपनी बात समाप्त करूंगा। आप अपने जीवन में आए दिन अपने आसपास समाज के किसी घर में एक मृत्यु देखते है। मृतक के प्रति हमारी सारी संवेदना दिखावटी हो गई है, हम उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होने उसके घर पहुँच तो जाते है किन्तु जैसे ही अर्थी उठती है, तो नब्बे प्रतिशत लोग वाहनों पर सवार हो शमशान घाट पर अर्थी की प्रतीक्षा में गप्पे हांकते है ओर दस प्रतिशत यानी नाममात्र दस पंद्रह लोग शव को उठाए पैदल आते है। क्या कारण है न्याय की दुहाई देने वाले पंच पंचायत के ये लोग मृतआत्मा के साथ हजार कदम पैदल नहीं चल सकते, क्या ये सब लँगड़े लूले, अपंग, बीमार है, जिन्हे सहारे के जरूरत है। विचारिये क्या मरने वाले के प्रति हमारा अपनापन खोखला ओर दिखावटी है जो मृतात्मा के शव की दुर्गति करने के लिए अपनी ओर समाज की अपकीर्ति करा रहे है। अगर पढ़े लिखे अपने जीवन में पंच की भूमिका निभाए ओर आत्मवंचन करे तो जब मृतक के प्रति आपका यह लज्जित करने वाली सहानुभूति है तो यह परंपरा आने वाले समय में आपके आत्मविसर्जन किए जाने के कारण नष्ट हो जाएगी ओर लोग मृतक को कंधा देने न आकार घरों में ही रहेंगे ओर मृतक को शववाहन के हवाले किया जाकर किराए के लोगों द्वारा अंतिमयात्रा ही नही अपितु अंतिम संस्कार भी सम्पन्न कराया जाएगा जिसके लिए नब्बे प्रतिशत घरों मे रहने वाले जिम्मेदार होंगे ओर वे ही पंच ओर परमेश्वर की आत्मा के हत्यारे ठहराए जाएँगे।

आत्माराम यादव पीव

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