ईशनिंदा पर पाक में ब्रितानी नागरिक को मौत की सजा

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-प्रमोद भार्गव-    pak

खुद को पैगम्बर बताने वाले एक ब्रिटिश मूल के मुस्लिम नागरिक को पाकिस्तान की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई है। इससे जाहिर होता है कि पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरवाद के जहर की पैरवी वहां कानून और अदालत भी करते हैं। ईशनिंदा के बहाने, मौत के ऐसे फरमान प्रतिक्रियास्वरूप अन्य देशों के नागरिकों व विपरित धर्मावलंबियों को अपने धर्म के प्रति कट्टर बनाने का काम भी करते हैं। हैरानी इस बात पर भी है कि जब दुनिया भूमण्डलीकरण के दौर में विश्वग्राम का स्वरूप ले रही हो, तब भी पाकिस्तानी शासक कठमुल्लाओं व आतंकवादियों के दबाव में इस एकपक्षीय कानून में कोई संशोधन करने को तैयार नहीं हैं ? जब भी पाकिस्तान का कोई धार्मिक उदारवादी नेता या नागरिक इस कानून में संशोधन की बात उठाता है, उसे चरमपंथी मौत के घाट उतार देते हैं। वहां के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज भट्टी और पाक के ही पंजाब प्रांत के राज्यपाल सलमान तासीर की ईशनिंदा कानून में बदलाव की बात करने पर चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी।
ईशनिंदा मामले में पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर की एक अदालत ने 70 वर्षीय एक ब्रितानी मूल के व्यक्ति को ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा सुनाई है। मौत की सजा के बाद आई खबरों में बताया है कि मुहम्मद असगर नाम के इस व्यक्ति ने खुद को पैगबंर घोषित कर दिया था। इस सिलसिले में असगर ने पुलिस समेत तमाम लोगों को पत्र भी लिखे थे। इन्हीं पत्रों का दस्तावेजी साक्ष्य मानकर असगर को ईशनिंदा कानून के तहत 2010 में गिरफ्तार किया था। असगर के वकीलों ने उसे मानसिक रोगी करार देते हुए बचाने की कोशिश भी की थी, लेकिन असगर के मानसिक रोगी होने का चिकित्सा प्रमाण-पत्र उनके पास नहीं था। लिहाजा अदालत ने असगर को मानसिक रोगी मानने से इनकार कर दिया। असगर को मौत की सजा सुनाने का आधार, उनके इस कबूलनामे को भी बनाया गया कि उन्होंने अदालत के न्यायाधीशों के सामने भी खुद को पैगंबर घोषित किया। लेकिन इसके उलट असगर के वकीलों का कहना है कि आरोपी का बयान लेते वक्त अदालत ने कक्ष से सभी वकीलों, मीडियाकर्मियों और सामाजिक कार्यकताओं को बाहर कर दिया था। पूरी न्यायिक कार्रवाई बंद कमरे में की गई। इसलिए अदालत की कार्रवाई को पक्षपाती माना जा रहा है। हालांकि स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग शहर के रहने वाले असगर के जीने की आस उसके वकीलों ने अभी छोड़ी नहीं है। वे उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती देंगे। इन अदालतों ने पर्याप्त सबूतों के अभाव में ईशनिंदा कानून के तहत निचली अदालतों के आए फैसले को पलटा भी है।
पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून इतना एकपक्षीय व अतार्किक है कि कोई व्यक्ति भूलवश भी ईश्वर की निंदा कर दे तो उसका माफी मांगने के बावजूद बचना मुश्किल है। बच्चों तक को इस कानून के तहत कठोरतम सजाएं दी गई हैं। यहां तक इस कानून में बदलाव की बात करने वालों को भी चरमपंथी मौत के घाट उतार देने में कोई कोताही नहीं बरतते पाकिस्तान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहे शाहबाज भट्टी और पंजाब प्रांत के राज्यपाल सलमान तासीर की चरमपंथियों ने सिर्फ इसीलिए हत्या कर दी थी।
शाहबाज भट्टी का अपराध यह था कि वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सासंद शेरी रहमान की तरफ से ईशनिंदा कानून में संशोधन के लिए पेश विधेयक में संषोधन का समर्थन कर रहे थे। पाकिस्तान सरकार में वे अकेले ईसाई मंत्री थे। इस समर्थन के बाद उन्हें मार देने की चरमपंथियों से धमकियां भी मिलीं। उन्होंने अपनी जान खतरे में होने की आशका भी जताई। लेकिन सरकार ने अपने एकमात्र अल्पसंख्यक मंत्री की जान की कोई परवाह नहीं की। आखिरकार चरमपंथियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। पंजाब प्रांत के उदारवादी राज्यपाल सलमान तासीर ने जब इस घटना की निंदा करते हुए ईशनिंदा कानून में परिर्वतन की जरूरत जताई तो उन्हें भी इस्लामिक कट्टरवादियों ने मार डाला था। इन हत्याओं और अब मुहम्मद असगर को फांसी की सजा सुनाने के बाद साफ होता है कि पाकिस्तान की आबोहवा में चरमपंथियों ने एक ऐसा सामाजिक अपातकाल थोपा हुआ है, जिसमें उदार सोच की विवेकपूर्ण अभिव्यक्ति को भी कोई जगह नहीं है। इस साये की छाया रावलपिंडी अदालत की दीवारों पर भी चस्पा थी, शायद इसीलिए अदालत ने असगर के वकीलों को अदालत के कक्ष के बाहर कर बंद कमरे में बयान की कगाजी खानापूर्ति की। जबकि दुनिया के किसी भी देश की स्थापित न्याय व्यवस्था में ऐसा नियम नहीं है कि किसी आरोपी का बयान दरवाजे बंद करके लिया जाए? जिस देश की अदालतें तक निष्पक्ष न हों, तो समझा जा सकता है कि अल्पसंख्यक वहां कैसी दहशत और किन गंभीर हालातों में जीवनयापन करने को विवश हैं। जब चरमपंथियों के भय से निर्विवाद न्याय की उम्मीद ही खत्म हो जाएगी, तो यह आशका बढ़ेगी ही कि कहीं पाकिस्तान के सत्ता तंत्र को एक दिन चरमपंथी हथिया न लें? एक परमाणु हथियार संपन्न देश में यदि ऐसा होता है तो यह पड़ोसी देशों ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। पाकिस्तान में चरम उग्रवाद का खतरा इसलिए पैदा हुआ, क्योंकि वहां एक समय सिंहासनरूढ़ शासकों ने कट्टरपंथ और आतंकवाद के माध्यम से सामरिक और रणनीतिक लक्ष्यों को साधने का खुला खेल खेला। यहां तक की सेना की वर्दी में आतंकवादियों की भारतीय सीमा में भी घुसपैठ कराकर धोखे से भारतीय सैनिकों के सिर कलम करने की बर्बरतापूर्ण हरकत को इजाजत दी। हालांकि अब यही कट्टरपंथी पाकिस्तानी हुकूमत के लिए संकट का सबब बने हुए हैं। यही असामाजिक तत्व पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षश लोकतंत्र एवं उदार समाज की स्थापना में बड़ी बाधा हैं। लिहाजा जब भी कोई ईशनिंदा कानून को कट्टरता से छुटकारे की वकालत करता है तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। डर का यह अदृश्य फरमान शासन-प्रशासन से लेकर न्याय व्यवस्था तक में व्याप्त हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान की उदारवादी ताकतें इस दुश्चक्र से निकलने का रास्ता नहीं तलाश पा रही हैं। जाहिर है, चरमपंथियों के प्रभाव का दखल पाकिस्तान के लिए तो बड़ा खतरा है ही और भारत समेत दुनिया के तमाम उदारवादी धर्मनिरपेक्षश लोकतंत्रों के लिए भी आसन्न खतरा है।

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  1. यह भी तो देखिये कि वहाँ इस्लाम को मानने वाले भी कितने सुरक्षित हैं.इन बन्दों के साथ जो भी हुआ वह ईश निंदा या सुधर की पैरवी करने के लिए हुआ पर उसी इस्लाम को मानने वाले शिया समर्थक व अनुूाि क्या सुरक्षित हैं. जब धर्म कट्टर व क्रूर बन जाता है तो वह धर्म का चोला छोड़ चूका होताहै,इसलिए उन्हें धार्मिक मानना गलत होगा यह उन्मादियों का काम है जिनसे वहाँ की सरकार ही इच्छा शक्ति से दमन कर सकती है.

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