अंतरिक्ष से संचार क्रांति लाने का संदेश दे रहा इसरो

वर्ष 2023 भारत के लिए अंतरिक्ष में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण रहा। यह बात सभी को विदित ही है कि 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 ने श्रीहरिकोटा में अवस्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी और भारतीय अंतरिक्ष यान ने 5 अगस्त 2023 को चंद्र कक्षा में निर्बाध रूप से प्रवेश किया। जब लैंडर ने 23 अगस्त 2023 को चंद्र दक्षिणी ध्रुव के निकट एक सफल लैंडिंग की तो यह भारत के लिए एक बहुत ही बड़ा व ऐतिहासिक कदम था। उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-3 की चन्द्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग के बाद इसरो द्वारा आदित्य-एल 1 सूर्य मिशन की लॉन्चिंग दुनियाभर में चर्चा का विषय रहे थे।इसी क्रम में अब भारत सरकार ने हाल ही में गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष में भारत की पहली उड़ान के लिए चयनित एयरफोर्स के चार पायलटों के नाम भी बताए हैं। इनमें क्रमशः ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला शामिल हैं, जिनके नाम स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 फरवरी 2024 को केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र का दौरा करने एवं गगनयान मिशन की तैयारियों की समीक्षा करने के बाद जारी किए हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि,  ‘ये चार नाम या चार इंसान नहीं हैं। 140 करोड़ आकांक्षाओं को अंतरिक्ष में ले जाने वाली शक्तियां हैं। 40 साल के बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाने वाला है। इस बार टाइम भी हमारा है, काउंटडाउन भी हमारा है और रॉकेट भी हमारा है।’बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि गगनयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का एक मिशन है और इस मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष मिशनों को कक्षा में भेजा जाएगा। इन तीन मिशनों में से 2 मानवरहित होंगे, जबकि एक मानव युक्त मिशन होगा। यह भी जानकारी देना चाहूंगा किअक्तूबर 2023 में अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने गगनयान के पहले टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) को भी लॉन्च किया था और वर्तमान में इसरो की नजर गगनयान मिशन पर है जिसके तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाया जाएगा। सच तो यह है कि गगनयान मिशन को कई चरणों के जरिए सफलता के अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। दरअसल, गगनयान में क्रू एस्केप सिस्टम (सीईएस) सबसे खास है। इसरो के अनुसार, फ्लाइट टेस्ट व्हीकल अबॉर्ट मिशन1 में किसी अनहोनी की दशा में अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने में यह क्रू-एस्केप प्रणाली काम आएगी। उड़ान भरते समय अगर मिशन में कोई भी गड़बड़ी हुई तो यह प्रणाली क्रू मॉड्यूल के साथ यान से अलग हो जाएगी, कुछ समय उड़ेगी और श्रीहरिकोटा से 10 किमी दूर समुद्र में उतरेगी। इसमें मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को नौसेना की ओर से समुद्र से सुरक्षित वापस लाया जाएगा। इसके बाद दूसरा परीक्षण वाहन टीवी-डी2 मिशन और गगनयान (एलवीएम3-जी1) का पहला मानव रहित मिशन होगा। परीक्षण वाहन मिशन (टीवी-डी3 और डी4) की दूसरी श्रृंखला और रोबोटिक पेलोड के साथ एलवीएम3-जी2 मिशन की अगली योजना बनाई गई है। एजेंसी के मुताबिक, चालक दल मिशन की योजना सफल परीक्षण वाहन के नतीजे और उन मिशनों के आधार पर बनाई गई है जिनमें कोई चालक दल नहीं है। दरअसल इसरो इस मिशन के लिए लगातार कड़ी मेहनत कर रहा है और किसी भी हाल और परिस्थितियों में अंतरिक्ष यात्रियों को खोना नहीं पड़े इसके लिए इसरो द्वारा छह परीक्षणों की एक श्रृंखला तैयार की गई है। जानकारी देना चाहूंगा कि पिछले साल अक्टूबर में हुए एक अहम परीक्षण में यह सामने आया है कि रॉकेट में गड़बड़ी होने पर चालक दल सुरक्षित बाहर निकल सकता है। बहरहाल, पाठकों को यह भी विदित हो कि गगनयान देश का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है जिसके तहत चार अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में भेजे जायेंगे । मीडिया के हवाले से यह सामने आ रहा है और इस मिशन को वर्ष 2024 के आखिर या वर्ष 2025 की शुरुआत तक अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। इसी साल यानी कि वर्ष 2024 में मानव रहित परीक्षण उड़ान भरी जायेगी, जिसमें एक व्योममित्र रोबोट को भेजा जाएगा। बताता चलूं कि गगनयान मिशन तीन दिवसीय मिशन है। मिशन के लिए 400 किलोमीटर की पृथ्वी की निचली कक्षा पर मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और फिर सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि गगनयान मिशन के सफल होने पर भारत उन देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा, जिन्होंने खुद चालक दल अंतरिक्ष यान लॉन्च किया है। बताता चलूं कि अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ही यह काम कर पाए हैं। यहां यह बात कहना ग़लत नहीं होगा कि आज इसरो संपूर्ण विश्व में अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक मिसाल बनकर उभर रहा है और अंतरिक्ष मिशनों का लगातार भारतीयकरण(स्वदेशीकरण) हो रहा है। हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर लगातार अग्रसर हैं और हमने काफी हद तक मिशन गगनयान का भारतीयकरण कर दिया है। यह इसरो के वैज्ञानिकों की बड़ी सफलता है। इसरो की पूरी टीम इसके लिए बधाई की पात्र है। हमारे लिए इससे बेहतर और बड़ी उपलब्धि और भला क्या हो सकती है कि गगनयान मिशन के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले अधिकतर पुर्जे हमारे देश भारत में ही बने हैं। सच तो यह है कि इसरो की उपलब्धियां हम सभी का सिर संपूर्ण विश्व में ऊंचा करतीं हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि चालीस साल पहले हमारे देश के राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि उस समय अंतरिक्ष से सोयूज टी-11 की क्रू के साथ ज्वॉइंट कॉन्फ्रेंस के जरिए देश ने पहली बार अंतरिक्ष में मौजूद अपने नागरिक(राकेश शर्मा) के साथ बात की थी। उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा ने पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है? तो उन्होंने हिंदी में जवाब दिया था- ‘सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्ता हमारा।’ उल्लेखनीय है कि राकेश शर्मा को ‘हीरो ऑफ द सोवियत यूनियन अवॉर्ड’ से भी नवाजा गया और वो इकलौते भारतीय हैं, जिन्हें ये सम्मान मिला। इसके साथ ही उन्हें अशोक चक्र से भी सम्मानित किया गया। हाल फिलहाल, हमारे देश काचंद्रयान-3 मिशन चांद के उस दक्षिणी हिस्से पर उतरा, जहां इससे पहले अमरीका और रूस जैसे अंतरिक्ष खोजी देशों का कोई यान नहीं उतर पाया था। रूस ने हमारे साथ-साथ ऐसा ही अभियान लांच किया था, लेकिन वह असफल रहा। हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। हमारा आदित्य – एल 1 अभियान(सूर्य मिशन) धरती से 15 हजार किलोमीटर दूर अवस्थित होकर सूर्य की जांच-पड़ताल कर रहा है। आज अंतरिक्ष अभियानों का लगातार व्यवसायीकरण हो रहा है, विश्व के अनेक देश हमारे इसरो के अभियानों में लगातार रूचि दिखा रहे हैं और अपने उपग्रह प्रक्षेपित करवा रहे हैं। आज हमारा इसरो विश्व के अनेक देशों के उपग्रह प्रक्षेपित करके अंतरिक्ष से संचार क्रांति लाने का संदेश दे रहा है और अब तो निजी निवेशकों को भी इस अभियान यात्रा में शामिल होने का संदेश दे दिया गया है। निःसंदेह वर्ष 1969 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की स्थापना के बाद भारत लगातार अंतरिक्ष में ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर रहा है। जरूरत बस इस बात की है कि बेहतर अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु अधिक से अधिक बजट की ज़रूरत की पूर्ति होती रहे और साथ ही साथ इसरो के अभियानों को सरकार द्वारा पर्याप्त समर्थन के अलावा निजी भागीदारियों से भी जोड़ना होगा।
सुनील कुमार महला

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