आम भारतीय का अब हवाई जहाज में सफर करना हो गया है आसान

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लिमटी खरे

भारत में अब बदलाव दिखाई देने लगा है। कल तक सार्वजनिक परिवहन के सहारे यात्रा करने वाले अनेक परिवार अब अपने निजि वाहनों में सफर करते नजर आते हैं। एक समय था जब गांव में जिसके घर पर टेलीफोन के तार जाया करते थे, जिसके घर एक श्वान पला होता था, जिसके घर मोटर सायकल हुआ करती थी वही अमीर माना जाता था और अगर उसके घर के सामने टमटम या कार खड़ी हो तो क्या कहने।

कुछ सालों पहले तक आम भारतीय सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर ही आश्रित हुआ करते थे। गरीब गुरबे सरकारी यात्री बस में यात्रा करना ही सौभाग्य समझा करते थे, जिन स्थानों पर रेलगाड़ी आती जाती थी, वहां रेलगाड़ी के जनरल डिब्बे में ही मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग सफर किया करते थे। हवाई यात्रा तो सभी के लिए एक सपने से कम नहीं था।

हवाई यात्राओं की बात की जाए तो देश में 18 फरवरी 1911 में पहली बार व्यवसायिक उड़ान भरी थी हवाई जहाज ने, वह भी इलहाबाद से यमुना के उस पार 9.7 किलोमीटर दूर नैनी तक के लिए। इस विमान को डाक सेवा के लिए उपयोग में लाया गया था। इसके बाद हवाई सेवाओं में उत्तरोत्तर प्रगति तो हुई पर विमानों में किराया इतना हुआ करता था कि आम आदमी इसमें बैठने की जुर्रत ही नहीं कर पाता था।

2016 के बाद हवाई सेवाओं में किराए में कमी दर्ज की जाने लगी। इसका कारण यह था कि 2016 के बाद हवाई अड्डे उन निजि एयरलाईंस के लिए खोल दिए गए जो पैसेंजर एयर लाईंस चलाना चाह रहे थे। इसके बाद निजि एयर लाईंस में प्रतिस्पर्धा के चलते महज दो हजार रूपए में ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक की हवाई टिकिट मिलना आरंभ हुई तो मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों का हवाई यात्रा का सपना साकार होने लगा।

देश में जहां जहां हवाई अड्डे थे वहां तो उड़ान संचालित होने लगीं थीं किन्तु दरभंगा जैसे छोटे हवाई अड्डे ने एक साल में पौने छः लाख यात्रियो की आमद के साथ हवाई नक्शे में अपनी जगह बना ली। आज देश में लाखों यात्री बेखटके हवाई यात्रा करते नजर आते हैं। वर्तमान में युवा चाहते हैं कि वे कम से कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान तो जाएं पर किफायती दरों पर।

यही कारण है कि विभिन्न वेब साईट्स और एप्स के जरिए वे एक डेढ़ माह पहले से ही अपनी यात्रा को शेड्यूल कर सस्ती हवाई टिकिटों को बुक करा लेते हैं। इस तरह से बुकिंग कराने पर अमूमन उन सभी को हवाई टिकिट न केवल सस्ती दरों पर मिलती है वरन यह रेलगाड़ी में एसी सेकंड क्लास से कम दर पर मिल जाती है। इस तरह उनका समय और पैसा दोनों बच जाते हैं।

विमानन इंडस्ट्री के उतार चढ़ाव पर अगर आप नजर डालें तो कांग्रेस के शासनकाल में 2005 से 2013 के बीच जिस तरह की नीतियां अपनाई गईं थीं, उसके अनुसार देश में लगभग आधा दर्जन एयरलाईंस अपना करोबार समेटने पर मजबूर हो गईं थीं। विमानन मंत्रालय के द्वारा अपनी अधिकांश प्रक्रियाओं एवं अनुमतियों आदि को ऑन लाईन कर दिया गया। इसके बाद लगभग एक दर्जन क्षेत्रीय एयरलाईंस न केवल आरंभ हुईं वरन उनका संचालन बहुत ही आसानी से किया भी जाने लगा।

एक अनुमान के अनुसार वित्तीय वर्ष 2013 – 2014 में घरेलू विमान सेवाओं में यात्रा करने वाले यात्रियों की कुल तादाद छः करोड़ थी जो 2019 – 2020 में लगभग ढाई सौ गुना बढ़कर 14 करोड़ 10 लाख तक पहुंच गई। विमानन इंडस्ट्री को भरोसा है कि वित्तीय वर्ष 2023 – 2024 में घरेलू विमान सेवाओं में यात्रियों की तादाद 40 करोड़ तक पहुंच सकती है।

वैसे तो विमानन क्षेत्र में वही प्रवेश करना चाहता है अथवा इसकी खबरों में वही दिलचस्पी लेतेा है जो आर्थिक रूप से सक्षम हो। इसके बाद भी हम अपने दर्शकों को यह बताना चाहते हैं कि जिस तरह की खबरें नागर विमानन मंत्रालय से आ रही हैं उसके अनुसार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रयास है कि आने वाले समय में हवाई सेवा विस्तार के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं में छोटे मझौले शहरों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। जहां जहां हवाई पट्टियां बनी हुई हैं, वहां नियमित हवाई सेवाएं आरंभ करने के मार्ग प्रशस्त किए जाएंगे। इसके अलावा विदेश सेवा के लिए भी अनेक देशों और शहरो की कनेक्टिविटी के लिए भी कार्ययोजनाएं बनाई जाने वाली हैं।

फ्लाईंग क्लब्स, फ्लाईंग ट्रेनिंग आर्गनाईजेशन, एयर कार्गो, एयरक्राफ्ट लीजिंग, ड्रोन आदि पर भी विमानन विभाग अपना ध्यान केंद्रित करने जा रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा ड्रोन महोत्सव में शिरकत भी की थी। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो ड्रोन के रूप में एक नई क्रांति का आगाज जल्द ही हो सकता है। यह सब कुछ केंद्र सरकार की इसी दूरगामी सोच का नतीजा माना जा सकता है। इन सभी क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाओं के द्वार भी खुलने की उम्मीद की जा रही है।

कुल मिलाकर दूरगामी सोच अगर रखी जाए तो देश में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी सरकारी सुविधाओं के साथ ही साथ उसके लिए अकल्पनीय चीजों को भी उसकी जद में लाया जा सकता है। इसका साक्षात उदहारण सस्ती हवाई यात्रा को मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लिए सुलभ कराना माना जा सकता है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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