पानी की कमी की चुनौतियों को कम करने के नए तरीकों की खोज जरूरी।

23 अगस्त से 1 सितंबर 2023 तक हम सभी विश्व जल सप्ताह मनाने जा रहे हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व जल सप्ताह का उद्देश्य पानी की कमी की चुनौतियों को कम करने के नए तरीकों की खोज करना और जल संकट तथा स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से इसके संबंधों से निपटना है। यह सर्वविदित ही है कि प्राणी जगत व वनस्पति जगत के लिए जल का बहुत ही महत्व है, क्यों कि जल ही जीवन है। लेकिन यह बहुत ही महत्वपूर्ण, गंभीर व संवेदनशील है कि 

आज विकास की अंधी दौड़ और विलासिता भरी जिंदगी में प्राकृतिक संसाधनों का तो जैसे कोई मोल नहीं रह गया है। जल संसाधन भी इनमें से एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जल पृथ्वी पर उपलब्ध एक सीमित संसाधन है लेकिन जल के प्रति एक साधारण सी मानवीय सोच यह है कि जल इस पृथ्वी से कभी भी समाप्त न होने वाला एक संसाधन है लेकिन यह ठीक नहीं है। जल का मानव और संपूर्ण जीव जगत के लिए बहुत महत्व है इसलिए बढ़ती आबादी, बढ़ती मांग व औधोगिक विकास के बीच जल का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग आज के समय की आवश्यकता है। यदि हम जल की बूंद बूंद को नहीं बचायेंगे तो आने वाले समय में जल की बहुत बड़ी समस्या मानवजाति ही नहीं संपूर्ण प्राणी जगत व वनस्पति जगत के समक्ष बहुत बड़ा संकट पैदा हो सकता है। इसीलिए शायद यह बात भी कही जाती है कि यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो यह जल यानी पानी के लिए ही लड़ा जाएगा।नीति आयोग के ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स )’ की मानें तो भारत के लगभग 600 मिलियन से अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि साल 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी।  बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व जल सप्ताह वैश्विक जल मुद्दों और अंतर्राष्ट्रीय विकास से संबंधित चिंताओं को दूर करने हेतु वर्ष 1991 से स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय जल संस्थान (एस आई डब्ल्यू आई) द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2010 में यूनाइटेड नेशन ने “सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के अधिकार” को मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी थी। इस साल विश्व जल दिवस 2023 की थीम अक्सेलरेटिंग चेंज यानी ‘परिवर्तन में तेजी’ रखी गयी है। उल्लेखनीय है कि ब्राजील के रियो डि जेनेरियो के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में साल 1992 में विश्व जल दिवस मनाने की पहल की गई थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह प्रस्ताव पारित स्वीकार कर लिया गया और साल 1993 में 22 मार्च को पहली बार ‘विश्व जल दिवस’ मनाया गया। यदि हम यहां जल से संबंधित आंकड़ों की बात करें तो अनुमान है कि धरती पर मौजूद साफ पानी का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा धरती के ऊपर और लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा धरती के नीचे विभिन्न गहराइयों में मिलता है। इंडिया वाटर पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार धरती की सतह के ऊपर तथा भूमिगत जल के रूप में लगभग 390 लाख क्यूबिक किलोमीटर पानी मिलता है। इस पानी का लगभग 75 प्रतिशत भाग अर्थात 292.5 लाख क्यूबिक किलोमीटर पानी बर्फ की ग्लेशियरों, नदियों, तालाबों और झीलों में मिलता है। नदियों, तालाबों और झीलों में मिलने वाले पानी की कुल अनुमानित मात्रा लगभग 1.3 लाख क्यूबिक किलोमीटर हैं धरती के वातावरण (वायुमंडल) में भाप के रूप में मौजूद पानी की मात्रा बहुत ही कम है। यह मात्रा धरती पर मिलने वाले कुल पानी का लगभग 0.035 प्रतिशत या लगभग 0.1365 लाख क्यूबिक किलोमीटर है। आंकड़े बताते हैं कि जमीन के नीचे मिलने वाला पानी लगभग 97.5 लाख क्यूबिक किलोमीटर है। इस अनुमानित मात्रा में से लगभग 700 मीटर की गहराई तक मिलने वाले भूमिगत जल की मात्रा लगभग 42.9 लाख क्यूबिक किलोमीटर और 700 से 3800 मीटर की गहराई तक मिलने वाले पानी की मात्रा लगभग 54.6 लाख क्यूबिक किलोमीटर है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि जमीन की सतह पर बहने वाले पानी की तुलना में भूमिगत जल की मात्रा बहुत अधिक है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि विश्व के 1.6 अरब से भी ज्यादा लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। इसका मतलब यह है कि आज दुनिया लगातार बड़े जल संकट की ओर लगातार बढ़ती चली जा रही है। आज अनेक नदियां, तालाब, कुएं, बावड़ियां सूख चुके हैं, नदियों, तालाबों, कुओं के पुनरूद्धार, संरक्षण की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विशेषकर छोटी नदियां विलुप्त हो चुकीं हैं। 2001 के आंकड़ों को यदि हम देखें, तो आज की तस्वीर काफी गंभीर हो चुकी है। भारत में प्रति व्यक्ति भूमिगत जल की उपलब्धि 5,120 लीटर हो गई है। पानी का जमीन से लगातार दोहन किया जा रहा है।

एक महत्वपूर्ण तथ्य के अनुसार हर दिन औसतन 321 अरब गैलन पानी मनुष्यों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें 77 अरब गैलन पानी अकेले पृथ्वी के भीतर से निकाला जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी आई है और जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के कारण हुआ है। जलवायु परिवर्तन ने अनेक झीलों और जलाशयों के पानी को खत्म कर दिया है। यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में अमेरिकी विज्ञान एजेंसी नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन यानी कि एन ओ ए ए ने यह चेतावनी जारी की है कि अगले छह माह में समुद्र के तापमान में रिकार्ड बढ़ोत्तरी होने की संभावना है और इससे जलवायु पर दूरगामी प्रभाव पड़ने तय हैं। यहां तक कहा गया है कि यदि दुनिया के समंदर और अधिक गर्म हुए तो भारत में सूखे जैसे हालात होंगे। वास्तव में अल-नीनो से संपूर्ण विश्व की जलवायु पर काफी प्रभाव पड़ा है। यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि अल-नीनो एक भौगोलिक घटना है। यह प्रशांत महासागर में होती हैं। इसमें दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट से ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट की ओर गर्म समुद्री हवाएं बहती हैं। ये गर्म हवाएं समुद्री सतह के पानी को गर्म करके ऑस्ट्रेलिया की ओर धक्का देती हैं। इस तरह प्रशांत महासागर की सतह पर गर्म पानी की बड़ी धारा दक्षिण अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया की ओर बहने लगती है। महासागर का ये गर्म पानी ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट और उसके आसपास जमा हो जाता है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि अल-नीनो से धरती के पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण पर असर पड़ रहा है और सूखे के हालात भी पैदा हो रहे हैं। आज पानी की लगातार कमी होती चली जा रही है क्यों कि बरसात के जल को सहेजने पर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसके कारण भी जल संकट पैदा हुआ है। आज पानी को व्यर्थ व अनावश्यक रूप से बहाया जाता है।इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर (आइजीआरसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरे एक साल में 30 दिन तक पानी के संकट से जूझते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगले तीन दशक में पानी का उपभोग एक फीसदी की दर से भी बढ़ता है तो दुनिया को बड़े जल संकट से गुजरना होगा। उल्लेखनीय यह भी है कि विश्व के सभी महाद्वीप में रहने वाले लगभग 2.8 बिलियन लोग प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक महीने जल संकट से प्रभावित होते हैं। यहां यह सोचनीय है कि आखिर जल संकट के प्रमुख कारण क्या हैं तो इस बारे में जानकारी देना चाहूंगा कि आज भारत ही नहीं अपितु विश्व के लगभग लगभग सभी देशों में 

जल संरक्षण, जल प्रबंधन और जल गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ठोस नीति और रणनीति का अभाव जल संकट का प्रमुख कारण है। सच तो यह है कि आज के समय में पृथ्वी पर जल का संरक्षण, इसकी सुरक्षा, जल का सही प्रबंधन व इसकी बेहतर गुणवत्ता एक बहुत ही संवेदनशील व गंभीर मुद्दा है, जिस पर गंभीर चिंतन मनन के साथ ही क्रियान्वयन अपेक्षित है। जल बचाने के लिए इसके सदुपयोग के बारे में जन जागरूकता बढ़ाये जाने की जरूरत आज बहुत ही अहम व महत्वपूर्ण है। वर्षा जल संग्रहण पर भी पर्याप्त ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कृषि में इजरायल की पद्धति पर बूंद बूंद सिंचाई पद्धति पर हमें बल देना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो टपकन टैंक/ड्रिप/स्प्रिंकल सिंचाई के उपयोग से सिंचाई जल के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है। इतना ही नहीं, हम सभी को इस्तेमाल किये हुए पानी का फिर से शौचालयों अथवा बगीचों में फिर से इस्तेमाल और रिसाइकिलिंग करके पानी का संरक्षण करना होगा। घरेलू स्तर पर जल का उचित व संयमित उपयोग एवं विभिन्न उद्योग धंधों में पानी के चक्रीय उपयोग जल संरक्षण में सहायक हो सकते हैं। यह भी एक तथ्य है कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। हालाँकि, भारत में निष्कर्षित भू-जल का केवल 8 फीसद ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि, इसका 80 फीसद भाग सिंचाई में और शेष 12 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। ऐसे में देश में भू-जल की मात्रा में भी दिनों-दिन कमी आ रही है। जल बचाने के लिए हमें जलाशयों का निर्माण करना होगा वहीं दूसरी ओर हमें प्राचीनतम जल स्त्रोतों का पुनरूद्धार भी करना होगा। भूमिगत जल संरक्षण के लिए भूमिगत जल का कृत्रिम रूप से पुनर्भरण किया जा सकता है। हमें कम पानी की जरूरत वाली फसलों पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा। इसके अलावा, कैचमेंट एरिया प्रोटेक्शन यानी कि सीएपी के माध्यम से जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण करके जल के साथ-साथ मृदा का भी संरक्षण किया जा सकता है। यह विधि सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जाती है। नहरों, पानी के स्त्रोतों आदि की तली को पक्का करना होगा, क्यों कि कच्चे होने से पानी का रिसाव बहुत होता है।भूमिगत जल की रिचार्जिंग तथा व्यय को रोकना होगा।नदी तथा नालों पर बाँध बनाकर जल संरक्षण किया जाता है। जल को प्रदूषित होने से बचाना भी एक प्रकार से जल संरक्षण ही है।दांत ब्रश करते समय, दाढ़ी बनाते समय नल को लगातार चालू नहीं रखना चाहिए। गाड़ी को नल के बजाय बाल्टी व मग में पानी से धोना चाहिए। शावर, टब की जगह बाल्टी से स्नान कर सकते हैं। रसोई के पानी को बगीचे आदि में काम में लिया जा सकता है। वाशिंग मशीन में बार बार की बजाय एक साथ कपड़े धोये जा सकते हैं। वाशिंग मशीन के स्थान पर बाल्टी, मग का इस्तेमाल करके हाथ से कपड़े धोने पर भी पानी की बचत होगी। इसके अलावा पौधों को पानी देने के लिए वाटरिंग कैन का प्रयोग हम कर सकते हैं। जानवरों को भी बाल्टी से बगीचे में नहला सकते हैं, इससे बगीचे में भी पानी लग जाएगा और जानवरों को भी नहला सकेंगे। विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर टोंटियां ठीक करवानी चाहिए और इन्हें उपयोग में न लाने की स्थिति में बंद रखना चाहिए। इनसे बहुत पानी बह जाता है। फर्श साफ करने के लिए बाल्टी का प्रयोग किया जा सकता है। हाथ से बर्तन धोते समय नल से पानी न बहने दिया जाए। नहाते समय अधिक पानी न बहाया जाए। बार बार फ्लश का उपयोग न करें।अपने हाथ धोते समय, झाग बनाते समय पानी बंद कर दें। अपने सभी नलों पर जल-बचत करने वाले एरेटर स्थापित करें। सबसे बड़ी बात पानी की कीमत समझें और जितना हो सकता है पानी की बचत करें। अंत में यही कहूंगा कि -‘ रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गये न उबरे मोती, मानुष चून।।’

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