‘वात्सत्य पीठ’ सुखद शांति एवं अध्यात्म का नीड़ होगा

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-ः ललित गर्ग:-

साधना से मुक्ति और मोक्ष की आस में आस्था का प्रवाह यहां उमड़ता-घुमड़ता है। राजधानी दिल्ली की भीड़भाड एवं हलचल के बीच यह वही कोना है जहां आकर एक विलक्षण एवं वात्सल्य की प्रतिमूर्ति साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने चीर निद्रा पायी। उनकी स्मृतिभूमि अब वात्सत्यपीठ के रूप में आकार ले रही है, जिसका शिलान्यास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत 27 अगस्त, 2023 को करने जा रहे हैं। संवेदनहीनता एवं संकीर्णताओं के बीच एक आस गूंजती है, यह आस है वात्सल्य की, करुणा की, संवेदनाओं की। इसी आस में निहित है जीवन का वास्तविक संगीत, जीवन का वास्तविक अर्थ। जिनके कारण हम है, हमारा अस्तित्व है, इसी में समाया है मोक्ष एवं मुक्ति का सुख। जहां आकर संबुद्ध हुआ जा सकेगा, ध्यानी हुआ जा सकेगा। यह वही मिट्टी है जिसकी खूशबु में महकेगी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की अनगिन वात्सल्य कथाएं।
लगभग सात दशकों से साधना भूमि बने अध्यात्म साधना केन्द्र के जर्रे-जर्रे में महकती है, गंूजती है इबादतें, प्रार्थनाएं एवं आध्यात्मिकता की स्वर रश्मियां। अब इसमें जुड़ रहा है एक नया आयाम वात्सल्य पीठ के रूप में। इक्कीसवीं सदी तो महिलाओं के वर्चस्व की सदी मानी जाती है। उन्होंने विभिन्न दिशाओं में सृजन की ऋचाएं लिखी हैं, नया इतिहास रचा है। अपनी योग्यता और क्षमता से स्वयं को साबित किया है। अध्यात्म के क्षेत्र में भी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने एक छलांग लगाई और जीवन की आदर्श परिभाषाएं गढ़ी। अध्यात्म की उच्चतम परम्पराओं, संस्कारों और जीवनमूल्यों से प्रतिबद्ध इस महान विभूति ने, चैतन्य रश्मि ने, आध्यात्मिक गुरु ने, वात्सल्य ऊर्जा ने जैन धर्म के प्रमुख तेरापंथ संप्रदाय में 19 वर्ष की उम्र में दीक्षित होकर राष्ट्रसंत अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी की महनीय कृति के रूप में लोकप्रियता पायी थी। जैसे कृष्ण-प्रेम में मीरा दीवानी हुई, वैसे ही तुलसी-भक्ति में साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने भक्ति एवं सृजन का सन्देश दिया, वात्सत्य प्रतिमूर्ति बन 750 साध्वियों का नेतृत्व किया और स्त्री-चेतना की सशक्त आवाज बनी। सात सौ साध्वियों के परिवार को संभालना दुनिया का बड़ा आश्चर्य है, यह आश्चर्य तब और बड़ा हो जाता है जब इसमें स्नेह एवं वात्सल्य समाया हो, इसीलिये साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा के स्मृति स्थल को वात्सल्य पीठ के रूप में विलक्षण आध्यात्मिक शक्ति केन्द्र बनाया जा रहा है, जो एक स्वप्न, एक कल्पना का यथार्थ होगा, जहां की बहुआयामी एवं अलौकिक आध्यात्मिक छटाएं अपने नाम की सार्थकता सिद्ध कर रही होगी।
तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों के निर्देशन में तेरापंथ के विशाल साध्वी संघ का नेतृत्व करने वाली संघ महानिर्देशिका और महाश्रमणी को आचार्य महाश्रमण ने शासनमाता  एवं असाधारण साध्वीप्रमुखा के महनीय संबोधनों से संबोधित किया। उनकी स्मृति-स्थल को ‘वात्सल्य पीठ’ का नाम दिया, जो अब एक विलक्षण, अद्भुत एवं अपूर्व आध्यात्मिक स्थल बनने जा रहा है। इस अनूठे आध्यात्मिक स्थल को आकार देने की जिम्मेदारी श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, दिल्ली को दी गयी है, जिसके अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया एवं अन्य पदाधिकारी इस कार्य में जुटे हैं।
‘वात्सत्य पीठ’ एक प्रकाश गृह होगा। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला अनूठा आध्यात्मिक ज्योति केन्द्र। यहां पहुंच कर हर व्यक्ति प्रकाश का साक्षात्कार करने की अपनी अभीत्सा का पूरा होते हुए देख सकेगा। क्योंकि ज्योति की यात्रा मनुष्य की शाश्वत अभीप्सा है। इस यात्रा का उद्देश्य है, प्रकाश की खोज। प्रकाश उसे मिलता है, जो उसकी खोज करता है। कुछ व्यक्तित्व प्रकाश के स्रोत होते हैं। वे स्वयं प्रकाशित होते हैं और दूसरों को भी निरंतर रोशनी बांटते हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ऐसा ही एक लाइटहाउस था यानी प्रकाश-गृह, जिसके चारों ओर रोशनदान थे, खुले वातायन था। इस वात्सल्य पीठ को भी ऐसा ही स्वरूप दिया गया है, जिसमें रोशनदान है, खुले वातायन है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की प्रखर संयम साधना, श्रुतोपासना और आत्माराधना से उनका समग्र जीवन उद्भासित है। आत्मज्योति से ज्योतित उनकी अंतश्चेतना, अनेकों को आलोकदान करने में समर्थ थी। उनका चिंतन, संभाषण, आचरण, सृजन, संबोधन, सेवा- ये सब ऐसे खुले वातायन थें, जिनसे निरंतर आलोक प्रस्फुटित होता रहता था और पूरी मानवजाति को उपकृत कर रहा था।
‘वात्सत्य पीठ’ सुखद शांति का नीड़ होगा, उल्लास एवं करुणाभरे इस अन्तस्तल में जीवन को नयी दिशा एवं नया मुकाम मिल सकेगा। क्योंकि इसमें साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा के जीवन की ज्ञान, दर्शन और चरित्र की त्रिवेणी प्रवहमान होगी। ऐसा संभव इसलिये होगा कि उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक और चुंबकीय था, आंतरिक व्यक्तित्व उससे हजार गुणा निर्मल और पवित्र था, वे करुणा एवं वात्यल्य साक्षात् मूर्ति थी। वे व्यक्तित्व निर्माता थीं, उनके चिंतन में भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना प्रतिबिम्बित थी। वे मुस्कान से मोक्ष की पथिक थी। उनकी वैचारिक उदात्तता, ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजनधर्मिता, अप्रमत्तता और विनम्रता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती हैं। उनकी सत्य-निष्ठा, चरित्र-निष्ठा, सिद्धांत-निष्ठा और अध्यात्म-निष्ठा अद्भुत थीं। अनुशासन और प्रबंधन पटुता से उन्होंने तेरापंथ में नए आयाम उद्घाटित किए थे। उन्होंने संतता एवं साधना को सृजन का आयाम दिया था, उनकी साधुता एक संकल्प था मानव जीवन को सुंदर बनाने का, लोगों की भलाई और स्वयं के निर्माण का। इससे संसार से सम्बन्ध टूटता नहीं बल्कि परमात्मा से जुड़ आत्म-साधना द्वारा जीवन पूर्णतः मानव उत्थान, समाज कल्याण, सेवा, दया और सद्मार्ग के कर्मों का पर्याय बन जाता है। इस तरह वे व्यक्ति-क्रांति से विचार-क्रांति की दीपशिखा बनी, इसी दीपशिखा की उर्मियां इस स्थल को जीवंतता प्रदान करेंगी।
‘वात्सत्य पीठ’ उन्नत जीवन एवं आध्यात्मिक की अमिट रेखाएं खींचेगा। क्योंकि साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने अपने सम्पूर्ण जीवन में अपने कर्तृत्व की अमिट रेखाएं खींची हैं, वे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगी। उन्हें हम साहित्य स्रष्टा के साथ-साथ धर्म क्रांति और समाज क्रांति के सूत्रधार कह सकते हैं। उनके विराट व्यक्तित्व को किसी उपमा से उपमित करना उनके व्यक्तित्व को ससीम बनाना होगा। उनके लिए तो इतना ही कहा जा सकता है कि वे विलक्षण थीं, अद्भुत थीं, अनिर्वचनीय थीं। उनकी अनेकानेक क्षमताओं एवं विराट व्यक्तित्व का एक पहलू है उनमें एक सृजनकार का बसना। वे एक उत्कृष्ट एवं संवेदनशील साहित्यकार थीं। साहित्य-सृजन व संपादन के क्षेत्र में तेरापंथ धर्मसंघ की आप प्रथम साध्वीप्रमुखा थीं, आपमें साहित्य-लेखन और साहित्य-संपादन की बेजोड़ कला थी। यह आपकी सजगता और अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि आपके द्वारा लिखित साहित्य व संपादित ग्रंथों की एक विस्तृत सूची है जो बड़े-बड़े बुद्धिजीवी, धुरंधर विद्वानों को भी आाश्चर्यचकित कर देती है। आपने सहज भाव से खुद को साधना पथ पर अर्पित किया और ज्ञान, ध्यान, अध्ययन, साहित्य सृजन और मौन इस साधना के मूल कर्म बन गये, व्यक्तिगत अपेक्षा मानो कहीं थी ही नहीं जीवन में। एक सौ गं्रथों का तुलसी वाङ्मय तथा इस कड़ी में आचार्यश्री तुलसी की आत्मकथा के रूप में ‘मेरा जीवन मेरा दर्शन’ के 20 भाग प्रकाशित होना उनके साहित्यकार स्वरूप को व्यक्त करता हैं। उन्होंने एक सफल साहित्यकार, प्रवक्ता और कवयित्री के रूप में साहित्य जगत में सुनाम अर्जित किया है। ऐसी ही उपलब्धियों एवं कीर्तिमानों में ‘वात्सत्य पीठ’ में संजोया जायेगा।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा के पास विविध विषयों का ज्ञान भंडार था, उनकी वाणी और लेखनी में ताकत थी। प्रशासनिक क्षमता थी, नेतृत्व की क्षमता थी, प्रबल शक्तिपुंज थीं। वे श्रमशीलता का पर्याय थी, उनकी ग्रहणशीलता भी अद्भुत थी। जहां कहीं भी कुछ नया देखा तत्काल ग्रहण कर लिया। उनके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के सतरंगे चित्र को और अधिक चमकाने वाला गुण है स्फुरणाशील प्रतिभा। उन्होंने अपनी इस प्रतिभा के द्वारा ही विकास के यात्रा पथ पर अगणित द्वीप स्तंभ स्थापित किये थे। वे जैन शासन की एक ऐसी असाधारण उपलब्धि हैं जहां तक पहुंचना हर किसी के लिए संभव नहीं है। वे सौम्यता, करुणा, वात्यल्यता, शुचिता, सहिष्णुता, सृजनशीलता, श्रद्धा, समर्पण, स्फुरणा और सकारात्मक सोच की एक मिशाल थीं। कोई उनमें बौद्ध भिक्षुणी का रूप देखता था तो कोई मदर टेरेसा का। कोई उन्हें सरस्वती का अवतार मानता था तो कोई उनमें अरविंद आश्रम की श्री मां और बैलूर मठ की मां शारदा का साम्य देखता था। कोई उनमें महादेवी वर्मा की विशेषता पाता था। उनकी विकास यात्रा के मुख्य तीन पायदान थें- संकल्प, प्रतिभा और पुरुषार्थ।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की जीवनयात्रा एक संत की, एक अध्यात्मदृष्टि संपन्न ऋषि की तथा एक समाज निर्माता की यात्रा बनी। इस तरह हम जब आपके व्यक्तित्व पर विचार करते हैं तो वह प्रवहमान निर्झर के रूप में सामने आता है। उनका लक्ष्य सदा विकासोन्मुख रहा। ऐसी विलक्षण जीवन और विलक्षण कार्यों की प्रेरक साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की स्मृति में निर्मित हो रहा ‘वात्सल्य पीठ’ निश्चित ही मानवता को एक नया प्रकाश देगा, दिशा देगा।

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