
यह अचानक हुआ क्या
विकास की इस तेज की दौड़ में
हमने क्या खोया और क्या पाया
समझ ही न पाये
सुविधाओं को विकास मान कर
चल पड़े नयी राह पर
कब जाने किस मोड़ पर बदल गया सब कुछ
जाने कब धड़े और सुराही का पानी पीते पीते
बोतल का पानी पीना सीख गये
यह अचानक हुआ क्या
विकास की इस तेज होती दौड़ में
क्या खोया और क्या पाया
जंगलों, नदियों और जमीन को बांटा
जीव-जंतु, पशु-पक्षी और
पेड़-पौधे और नदियां, कुछ नहीं छोड़ा
देखा ही नहीँ कि
भोग करते करते कहीं ऐसा ना हो
सोचने विचारने का मौका ना हो
यह अचानक हुआ क्या
विकास की इस तेज होती दौड़ में
क्या खोया और क्या पाया
संसार, समाज, आस-पास
सब बटा-बटा सा दिखता है
जीवाणुओं का बोलबाला है
हमें छिन्न भिन्न कर जीना सिखाएगा
अब तो विचारो कुछ तो सोचो
ऐसे कब तक जी पाएंगे
कैसे जीवन का आनन्द उठायेंगे
यह अचानक हुआ क्या
विकास की इस तेज होती दौड़ में
समझ ही न पाये
क्या खोया और क्या पाया
• मनु शर्मा