Home साहित्‍य लेख ब्रितानिया हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा “जलियांवाला बाग नरसंहार”

ब्रितानिया हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा “जलियांवाला बाग नरसंहार”

दीपक कुमार त्यागी
भारत की आजादी से पहले ब्रितानिया हुकूमत सत्ता के मद में चूर होकर देश की निर्दोष आम जनता पर आयेदिन बहुत अत्याचार करती थी, अगर किसी भी व्यक्ति को उनके क्रूरता अत्याचार व हैवानियत की पराकाष्ठा देखनी हो, तो उसको इतिहास के झरोखे में जाकर कुछ पन्नों को ही पलटना होगा, उससे ही अंग्रेज शासकों की क्रूरता व वहशीपन का अंदाजा लग जाता है। वैसे तो देश के इतिहास में “आजादी के परवानों” के वीरगाथाओं के किस्सों से और उन पर अंग्रेजों के अत्याचारों के रक्तरंजित किस्सों से ना जाने कितनी पुस्तकें भरी हुई हैं। लेकिन उनमें 13 अप्रैल वर्ष 1919 की बैशाखी के दिन अमृतसर के “जलियांवाला बाग” में हुआ नरसंहार एक ऐसा किस्सा है जिसने पूरी दुनिया के सामने ब्रितानिया हुकूमत की राक्षसी सोच व भारत में उनके द्वारा किये जा रहे अत्याचार को उजागर कर दिया था।
विश्व के अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार इतिहास के सबसे नृशंस नरसंहारों में शुमार 13 अप्रैल 1919 भारतीय इतिहास का ये वो काला क्रूर दिन था जो हर भारतीय को सदियों तक ना भूल पाने वाले बहुत ही गहरे जख़्म दे गया था। हालांकि”जलियांवाला बाग नरसंहार” भारत की आजादी के लिए चलाये जा रहे राष्ट्रीय आंदोलन में हमेशा एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में भी देखा जाता रहा है। इस क्रूरता पूर्ण व इंसानियत को शर्मसार करने वाले जघन्य हत्याकांड ने तत्कालीन अंग्रेज शासकों के शासन का जनविरोधी क्रूर और दमनकारी चेहरें की पूरी दुनिया के सामने पोल खोलकर रख दी थी। क्योंकि उस समय अंग्रेजों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में यह दावा किया जाता था कि अंग्रेजों का राज भारतीयों के लिए वरदान है, ब्रितानिया हुकूमत उनके भले के लिए काम करती है, उनके इस झूठे दावे को “जलियांवाला बाग नरसंहार” ने विश्व समुदाय के सामने उजागर कर दिया था। जब ब्रितानिया हुकूमत “रॉलेट एक्ट” लेकर आयी  थी तो उसका देश के आमजनमानस में बहुत ही व्यापक स्तर पर विरोध होना शुरू हो गया था। देश में उस समय ब्रितानिया हुकूमत के जनविरोधी निर्णयों के चलते जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। जिसमें पंजाब प्रांत की जनता विरोध करने में सबसे आगे थी। 
वैसे तो आज देश के अधिकांश लोगों को पता है कि “जलियांवाला बाग” में उस समय क्या हुआ था, लेकिन आइए आज हम सभी देशवासी 101 साल पहले के भारतीय इतिहास में झांक कर देखते है और हम सभी भारतवासी “जलियांवाला बाग हत्याकांड” के बारें में जानकर, देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले उन सभी नाम व अनाम वीर जाब़ाज शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करें, जिन्होंने माँ भारती के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण खुशी-खुशी देश पर न्यौछावर कर दिये थे।
पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में स्थित स्वर्ण मंदिर से “जलियांवाला बाग’ की दूरी बमुश्किल एक किलोमीटर होगी, यह बाग चारों तरफ मकानों व ऊंची-ऊंची दीवारें से घिरा हुआ है और उस समय अंदर जाने का सिर्फ एक ही बेहद संकरा रास्ता मौजूद था। बैसाखी के पावन पर्व के चलते 13 अप्रैल 1919 के  दिन लोगों की भारी भीड़ स्वर्ण मंदिर में दर्शन कर रही थी, अधिकांश भीड़ मंदिर में दर्शन करने के बाद “जलियांवाला बाग” में शांति सभा में शामिल होने जा रही थी, धीरे-धीरे लोगों के बाग के अन्दर जमा होने के चलते वहां लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी और वहां पर लगभग 25 से 30 हजार लोगों की भारी भीड़ शांति सभा के लिए इकट्ठा हो गई थी। इस भीड़ में बच्चे, युवा, अधेड़, बुजुर्ग व महिलाएं शामिल थी। शाम के चार बजे तक तो सभा स्थल पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन अचानक वहां जमा लोगों को नेपथ्य से सैनिकों के भारी बूटों की आवाज़ सुनाई दी और बाग के संकरे रास्ते से 50 सैनिक ब्रिगेडियर जनरल रेजिनॉल्ड डायर के नेतृत्व में वहां पहुंचे और ऊंची जगह पर दोनों तरफ़ फैल कर मोर्चा संभालने लगे। उन सैनिकों में 25 गोरखा और 25 बलूच सैनिक थे, जिनमें से आधों ने बैठकर और आधों ने खड़े हो कर सभा में शामिल पब्लिक पर फायरिंग करने की पोज़ीशन ले ली। उसके बाद क्रूर जनरल डायर ने बिना एक सेकेंड गंवाए निर्दोष लोगों की भारी भीड़ पर सैनिकों को फायरिंग करने का आदेश दिया। सैनिकों ने निशाना लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के लोगों पर जबरदस्त फायरिंग करनी शुरू कर दी। खड़े हुए और घुटने के बल बैठे हुए सैनिक लोगों पर चुन-चुन कर निशाना लगाकर मार रहे थे। उनकी एक भी गोली बर्बाद नहीं जा रही थी। ब्रितानिया फौज की बरसती गोलियों से बचने के लिए लोगों ने इधर-उधर रास्ता खोजना चाहा लेकिन बदकिस्मती से वहां आने और जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था, जिस रास्ते पर जनरल डायर की फौज ने अपना कब्जा जमा रखा था। जिसके चलते अंग्रेजों के सैनिकों की गोलियों के सामने लोगों की जिंदगी और मौत के बीच का फासला बेहद कम हो गया था। थोड़ी ही देर में बाग में चारों तरफ खून की होली खेले जाने के चलते हाहाकार मच गया लोग अपनी जान बचाने के लिए बदहवास हालत में इधर-उधर दौड़ने लगे, ऊंची-ऊंची दिवारों को फांदने की कोशिश करने लगे, कुछ महिलाओं, बच्चों व अन्य लोगों ने बाग में स्थित कुएं में कूदकर जान बचानी चाही, लेकिन यह कुआं भी उनमें से अधिकांश लोगों के लिए काल बन गया और बहुत सारे लोगों के कुएं में कूदने के चलते, दबने से काफी लोगों की मौत हो गयी। बहुत सारे लोग एकमात्र संकरी गली वाले प्रवेश द्वार पर जमा होकर बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। जिन्हें जनरल डायर के सैनिकों ने चुन-चुन कर अपना निशाना बनाया। बाग में हर तरफ लोगों की लाशें गिरने लगी या वो घायल हो कर गिरने लगे। हर तरफ गोलियां की तड़तड़ाहट के बाद भयानक मंजर था, लेकिन लोगों में अपना व ब्रितानिया हुकूमत का खौफ पैदा करने की रणनीति बनाए बैठा निर्दयी जनरल डायर का इतने से मन नहीं भरा, उसने सैनिकों को हुक्म दिया कि वो अपनी बंदूकें लगातार लोड करके उस तरफ सबसे अधिक फायरिंग करें जिधर सबसे ज्यादा लोगों की भीड़ जमा है। डायर के आदेश पर ये फायरिंग करीब दस मिनट तक बिना रुके लगातार होती रही। जनरल डायर के आदेश के बाद उसके सैनिकों ने करीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं, जिसकी गवाही आज भी बाग की दीवारों पर जगह-जगह काफी सारी गोलियों के निशान के रूप में दर्ज है। निर्दोष लोगों पर गोलियां चलाने वाले सैनिक जब रुके तो ब्रितानिया हुकूमत के द्वारा जारी आधिकारिक आकड़ों के अनुसार 379 जिंदा लोग लाश बनकर इधर-उधर जमीन पर पड़े थे। हालांकि अंग्रेजों की हुकूमत के द्वारा जारी इन आकड़ों पर हमेशा बहुत ज्यादा मतभेद रहा है। अनाधिकारिक तौर पर हमेशा कहा जाता है कि इस घटना में क़रीब एक हज़ार से अधिक लोगों को गोलियों से छलनी करके मौत के घाट उतार दिया गया था और पंद्रह सौ से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस घटना में मरने वालों में छोटे बच्चे, जवान नवयुवक, अधेड़, बुजुर्ग व महिलाएं सब शामिल थे।
“जलियांवाला बाग” में हुए इस नृशंस हत्याकांड के बाद वहां चारों-तरफ बहुत ही भयावह मंजर था, जान बचाने के लिए लोगों के इधर-उधर भागने की वजह से उठी धूल और चारों तरफ ख़ून से लिपटे घायल लोगों व फायरिंग में मारे गये लोगों की लाशों का ढेर लगा हुआ था। बाग की भूमि बहुत अधिक खून बहने  से रक्तरंजित हो गयी थी। अंग्रेज सैनिकों ने किसी व्यक्ति की छाती गोली छलनी की थी, तो किसी का पेट, सिर, आँख, हाथ, जांघ आदि में गोली लगी थी, हर तरफ मृतकों के बीच पड़े घायलों की चीख पुकार मची थी, लेकिन ब्रितानिया हुकूमत की क्रूरता के चलते उनको मदद करने वाला वहां कोई व्यक्ति नहीं था। निर्दोष लोगों को मशीन गन से भुनवाने वाले और इस हत्याकांड के बाद  “अमृतसर के कसाई” के नाम से मशहूर जनरल डायर ने जब फायरिंग बंद हो गई तो वहां न घायलों के लिए उपचार के लिए चिकित्सा सुविधा की कोई व्यवस्था की थी और न लाशों के अंतिम क्रियाक्रम करने के लिए कोई व्यवस्था की थी। 
बल्कि “जलियांवाला बाग” में नरसंहार करने के बाद जनरल डायर शाम को साढ़े छह बजे के आसपास अपने कैंप पहुंचा, जहां उसने तुरंत पूरे शहर की बिजली और पानी कटवाने व लोगों को घर से ना निकलने देने के आदेश जारी कर दिया था। क्रूर जनरल डायर ने रात 10 बजे शहर का एक बार फिर से दौरा किया, ये देखने के लिए कि लोगों के घर से बाहर न निकलने के उसके दिये गए आदेशों का सही ढंग से पालन हो रहा है या नहीं। इससे अधिक क्रूरता की और क्या बात हो सकती थी कि लोगों के अपने प्यारें परिजन, रिश्तेदार और दोस्त “जलियांवाला बाग” में जमीन पर घायल पड़े तड़प-तड़प कर मर रहे रहे थे और अमृतसर के लोगों को उनकी मदद करने के लिए घर से बाहर आने तक की इजाज़त नहीं थी। उस रात पूरा अमृतसर शहर अपने घरों में बंद रहकर अपनों की मदद ना कर पाने के अफसोस में जगकर तड़पता रहा था, शहर में हर तरफ क्रूर शासक के अत्याचार के चलते मातम का मनहूस सन्नाटा छाया था। अंग्रेजों की बर्बरतापूर्ण, क्रूरतापूर्ण व कायराना हरकत ने भारत के लोगों को झकझोर कर रख दिया था। इस नरसंहार के बाद देश की आजादी की लड़ाई को एक नयी दिशा मिली और आवाम में देश की आजादी की मांग बहुत तेज हो गई थी।
इस हत्याकांड के 100 साल बाद वर्ष 2019 में ब्रिटिश हुकूमत ने इस घटना पर अपना अफसोस जताया था, जो एकदम नाकाफी है। लेकिन देश की देशभक्त जनता “जलियांवाला बाग हत्याकांड” के शहीदों की हमेशा ऋणी रहेगी वो उनका ऋण कभी नहीं उतार सकती, देश की आजादी में उनका अनमोल योगदान उनका बलियादान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। “जलियांवाला बाग” का वो भीषण नरसंहार ब्रिटिश हुकूमत पर हमेशा एक बदनुमा कायराना हरकत के दाग की तरह लगा रहेगा। देश के अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान का वह दिन भारत कभी भी नहीं भूल सकता। आज उनकी पावन स्मृति में “जलियांवाला बाग नरसंहार” की बरसी पर अमर शहीद बलिदानियों को हम सभी देशवासी कोटि-कोटि नमन करते हुए, श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
।। जय हिन्द जय भारत ।।।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।

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