प्रकृति से प्यार व लगाव नहीं रखने से वह निभाएगी ही दुश्मनी

-अशोक “प्रवृद्ध”

जंगलो, पहाड़ों, नदी- नालों, सडकें, आकाश, समुद्र और समस्त संसार को अपना समझने वाला दुनिया का सर्वाधिक ताकतवर जीव मनुष्य आज एक छोटे से दिखाई नहीं पड़ने वाले सूक्ष्म जीव से डरकर घरों में कैद होने को विवश है । इतना सूक्ष्म कि सूक्ष्मदर्शी से भी दिखाई नहीं पड़ने वाले एक छोटे से महीन से विषाणु अर्थात वायरस से डरकर अमेरिका जैसी सुपर पॉवर दुबक गई है, दुनिया में सबसे बड़ी सेना रखने वाला चीन को घुटनों पर ला दिया । मनुष्य के समान दूसरा जीव बनाने की तैयारी में लगे इटली के डॉक्टर अब अपने देश के इंसानों को भी नहीं बचा पा रहे है । भगवान तक को नहीं मानने वाले स्पेन के नास्तिक खौफ में हाथ जोड़े खड़े है कि अब ईश्वर ही किसी तरह स्पेन के लोगों को बचा सकता है। दुनिया को मिटाने की बात करने वाला उत्तर कोरिया का तानाशाह आज अपने ही लोगों नहीं बचा पा रहा है और खुद को इस्लाम का रहनुमा बताने वाला ईरान अपने देश के मुसलमानों के शवों को छिपा रहा है । अपनी ताकत के बल के अहंकार में जीने वाला मनुष्य यह सोचने लग जाता है कि वही सबसे बड़ा है और वह बहुत कुछ कर सकता है । लेकिन आसन्न वैश्विक महामारी चीनी (कोरोना) विषाणु ने यह सिद्ध कर दिया है कि कोरोना तो अभी एक ट्रेलर मात्र है और इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रकृति से खिलवाड़ करने के परिणामस्वरूप होने वाली दुष्प्रभाव  के अंजाम की पूरी फिल्म की तस्वीर आखिर कैसी होगी? क्योंकि इसके छोटे से ट्रेलर में ही संसार के सारे रिश्ते- नातों और सम्बन्धों के पैर उखड़ते दिखाई दे रहे हैं । पुत्र अपनी माता से दूर भाग रहा है, पत्नी अपने पति से कह रही है, आप बाहर से आये हैं मुझसे और बच्चों से दूर ही रहिए । विदेश अथवा प्रदेश में रह रहे कोरोना पीड़ित बेटे को माँ कह रही है सीधा घर मत आना पुत्र, कुछ दिन कहीं बाहर समय व्यतीत कर लेना । प्रेमिका का हाथ पकड़कर सात जन्मों तक साथ निभाने के वादे करने वाला प्रेमी अचानक गायब हो गया ।  मित्र अपने मित्र को अपने घर नहीं बुला रहा है । यह कैसी खामोशी है? प्रत्येक घर में सन्नाटा पसरा है, लोग अलग-अलग कमरों में बैठे हैं । जिन जगहों पर कभी इन्सान घुमा करते  थे, वहां उन सड़कों पर आज कोरोना घूम रहा है । किसी पुलिस वाले की चालान काटने की हिम्मत नहीं हो रही है । रफाल, अपाचे, चिनूक, जैसे लड़ाकू विमान, मिसाइल, परमाणु बम लिए संसार की सभी सेनाएं बेबस नजर आ रही हैं । प्रायः सभी जगह लॉकडाउन है । गाँव बंद, कस्बे बंद, शहर बंद, घर- दूकान बंद,  बाग़- बगीचा बंद, क्रीडा स्थल बंद, बस बंद, ट्रेन हवाई जहाज सब कुछ बंद है । बिल्कुल मध्यकाल और फिर भारतवर्ष विभाजन के समय की भांति राजधानी दिल्ली और अन्य शहरों में आजीविकोपार्जन हेतु बाहर से आये लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर वापिस अपने घरों के लिए पैदल जा रहे हैं । सिर पर लिबड़ी बर्तना ढोए अर्थात अपने जीवन जीने की सभी सामग्रियां लिए बाल बच्चों के साथ पैदल ही अपने घर गाँव के लिए निकल पड़े हैं । उधर इसी महामारी के कारण  पाश्चात्य विज्ञान लाचार है, विद्र्शों में बड़ी- बड़ी वाहनें खडी की खडी हैं, आलीशान महंगे भवन खाली पड़े हैं, धर्मस्थल बंद हैं, उनमें धार्मिक क्रिया- कलाप बंद हैं, दुनिया के दुःख हरने वाला पोप अपने ही देश में मास्क लगाकर रहम की भीख मांग रहा है, रोम का पादरी वेंटिकन सिटी में अकेले खड़ा ईसा मसीह से प्रार्थना कर रहा है । भारत में चंगाई सभा लगाकर मरीजों का इलाज करने वाले और पवित्र जल का छीटा देकर गंभीर रोगों को भगाने का ढोंग करने वाले इसाई पादरी सेनेटाईजर का इस्तेमाल कर रहे है । अर्थात सभी प्रकार के ढोंग की पोल खुल गई और  सबकी अकड़ की हवा निकल गई । और लोग पाश्चात्य जीवन शैली का त्याग कर सनातन वैदिक धर्म की ओर पुनर्वापसी करते हुए नमस्कार, वैदिक मन्त्र का उच्चारण, यज्ञ, योग, समाधि,  हवन आदि सनातन वैदिक जीवन पद्धति की ओर आकर्षित होने लगे हैं और इन सब वैदिक पद्धति को अपनी जीवन में शामिल करने को आतुर नजर आने लगे हैं । कारण यह है कि मानव द्वारा निर्मित सभी कृत्रिम सुख व आराम के तरीके इस महामारी के समक्ष परास्त हैं और यह सूक्ष्म सा विषाणु पूर्व में हुए दो विश्व युद्धों की तरह लाशें गिनवा रहा है, दूसरी ओर इन्सान द्वारा आविष्कृत सम्पूर्ण विज्ञान की ताकत खड़े- खड़े उस विनाश लीला को देखने के लिए अभिशप्त नजर आ रहा है । अधिकांश जन दृश्य -श्रव्य माध्यमों पर बताये जा रहे मृतकों के आंकड़े, संक्रमितों की संख्या, और शेष जीवित मनुष्यों को बचाने की होने वाली कवायदों को देखने में दिन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन यह आखिर कब तक चलेगा?  अगर अभी भी हमने प्रकृति से अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी अर्थात सनातन प्रकृति के विरुद्ध जीवन जीने की अपनी आदत नहीं छोडी तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी मृत्यु पर मृत्योपरान्त की जाने वाली सनातन कर्म करने के लिए भी लोग नहीं बचेंगे अर्थात इस ट्रेलर के बाद की पूरी चलचित्र की अभी कल्पना भी नहीं किया जा सकता ।

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस एक निर्जीव पदार्थ है। उसे ज्ञान नहीं है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को इसका शिकार बनाना ठीक नहीं है। वह वायरस प्रकृति में घटने वाले नियमों के अनुसार छूत का रोग बन कर वायरस के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को रोग का शिकार बनाता है। इस प्रकार संक्रमित हुए लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता हैं। विश्व के तीन चौथाई  देशों में यह रोग पहुंच चुका है। चीन तथा इटली में इसका प्रभाव सर्वाधिक है। इटली के लोगों ने आरम्भ में कुछ असावधानियां की जिससे वहां के अधिक लोग इस रोग से मृत्यु के ग्रास बने हैं। इन मृतकों में  60 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के लोग अधिक थे। युवाओं में भी इस रोग का प्रभाव हो रहा है, परन्तु यह युवाओं में वृद्धों की अपेक्षा कम होता है।

इस रोग का ऐसा आतंक है कि सारा संसार इस रोग से पीड़ित होकर रह गया है और उन देशों के निवासियों का सामान्य जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। भारत में भी इस रोग के कुछ रोगी हैं। यह रोग उन भारतीयों से भारत पहुंचा है जो मुख्यतः चीन व इटली आदि देशों से भारत आये हैं। अमेरिका एक विकसित राष्ट्र है। वहां सभी प्रकार की चिकित्सा आदि की सुविधायें उपलब्ध हैं, परन्तु इस रोग ने अमेरिका को भी त्रस्त किया है। देश -विदेश के लोग अपने कार्यालयों में न जा कर घर पर रहकर ही अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं। यही स्थिति भारत में भी है। देश के लोग न तो स्वयं संक्रमित हों और न दूसरों को संक्रमित करें, यह सोचकर भारत सरकार ने ऐसे अनेक आपातकालीन उपाय किये हैं। सरकार को इस वायरस व संक्रमण रोग का पता चलते ही उसने सभी सावधानियां बरतनी आरम्भ कर दी थी। जिससे हमारे देश में मृतकों की संख्या अन्य कुछ देशों की अपेक्षा कम है, जबकि हमारे देश की जनसंख्या चीन के बाद विश्व में सर्वाधिक है। देश में गरीबी व भुखमरी भी है, लेकिन सरकार के उपायों से संक्रमण निर्बल व दुर्बल जनता तक नहीं पहुंच पाया। इसका प्रभाव प्रायः शहरों एवं महानगरों में अधिक हैं जहां हवाई अड्डे हैं और लोग जहां से विदेश अधिक आते जाते हैं। आश्चर्यजनक यह भी है कि विज्ञान ने प्रायः सभी प्रकार के रोगों की ओषधियां बनाई हैं, परन्तु इस वायरस का उपचार अभी तक किसी को पता नहीं है। भारतीय सरकारी प्रचार तन्त्र पर यह स्पष्ट बताया जा रहा है कि इस चीनी विषाणु का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। इसका उपचार करने वाली वैकसीन अभी बनी नहीं है। रोग के लक्षणों के अनुसार इन्फैक्शन दूर करने की ओषधियां दी जा रही हैं। कुछ लोगों को उनकी शारीरिक शक्ति, सामथ्र्य व इम्यूनिटी के अनुरूप लाभ हो रहा है।  

निष्कर्षतः वर्तमान संसार में प्रचलित चिकित्सीय पद्धतियों और इलाज के तरीकों से इस चीनी विषाणु से लड़ाई में मिली अल्प सफलता से यह सिद्धप्राय है कि हमें अभी ही सम्भल जाने की आवश्यकता है, क्योंकि एक दिन शंख, घंट, ताली अथवा थाली बजाकर इस चीनी विषाणु से लड़ रहे चिकित्सकों, देश की सेवा अथवा विधि व्यवस्था में लगे सैनिकों, पुलिसकर्मियों व अन्यान्य सरकारीसेवकों को धन्यवाद ज्ञापित तो किया जा सकता है, लेकिन इस वैश्विक महामारी को लम्बी अवधि तक चकमा नहीं दिया जा सकता है । यह परम सत्य है कि जब तक हम समस्त संसार को अपना मानते हुए इस चराचर जगत में निवास करने वाले सभी जीव- जन्तुओं को अपना समझकर उससे प्राकृतिक लगाव अनुभव नहीं करेंगे, तब तक प्रकृति भी हमें अपना समझ हमसे लगाव नहीं करेगी और हमसे दुश्मनागत निभाएगी ही, वह अपना बदला लेगी ही, और झटके में मानव के अहंकार, इन्सान के गुरुर को तोड़ेगी ही, इसमें कोई शक नहीं । क्योंकि प्रकृति भी भला अपने दुश्मन को अपना क्यों समझेगी?

Previous articleतबलीगी जमात की कालिमा को धोने के उपक्रम
Next articleब्रितानिया हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा “जलियांवाला बाग नरसंहार”
अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here