कैसा ये विकास है ?
जिसमें होता है तुम्हारा विकास
तुम्हारे रुपयों का विकास
तुम्हारे घर का विकास
करके हमको सर्वनाश
फिर ये कैसा विकास ?
कोयले की कालिख में
इस कदर लिपटे हैं हम
की यह जलने और जलाने का
जारी है विकास
कोयले के कारोबार से
सफ़ेद लिबास का विकास
लेकिन एक भी कालिख का
दाग नहीं है तुम्हारे सफ़ेद पोशाक के आस-पास
काश कुछ तो होता आस
रुकता ये प्रकृति और पर्यावरण का विनाश
थमता उन सांसों में दूषित धुएं का विकास
स्नायु तन्त्र से तीव्र सांसों की रफ़्तार का विकास
जीवन से तीव्र मृत्यु का विकास
बचपन से तीव्र बुढ़ापे का विकास
अब ठहराव की राह ढूंढ़ रहा
झरिया का बेरहम विकास
झारखण्ड के झरिया का विकास एक ऐसा विकास जिसके बारे में जानकार लगा की अब लोग बड़े निष्ठुर हो गए और ऐसा विकास तो कतिपय नहीं होना चाहिए। लालच एक सीमा त्यागने के बाद ललकारती भी है। प्रकृति के दुःख को अनसुना करना खतरनाक साबित हो सकता है। इस देश के लिए हमारे सामने उत्तराखंड का उदाहरण सबसे बड़ा है लेकिन अभी भी सभी सो रहे हैं और झारखण्ड का झरिया अपने जर्जर विकास पर रो रहा है। झरिया के बारे में जानकार मैं हतप्रभ रह गयी कि ऐसे भी अवस्था में लोग कैसे जीवन व्यतीत कर रहे हैं? इस पर मैंने कविता लिखी है जिसका शीर्षक है झारखंड के झरिया का जर्जर विकास।
pl next poem
फिनेवेरय fine
वैरी fine