कहर बरपाता डेंगू का डंक

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डेंगू के उपचार से बेहतर है बचाव

योगेश कुमार गोयल

            डेंगू वैसे तो हर साल खासकर बारिश के मौसम में लोगों पर कहर बनकर टूटता रहा है लेकिन इस वर्ष उत्तराखंड में इसके कारण महामारी जैसे हालात नजर आने लगे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक राज्य में डेंगू के मरीजों की संख्या दो हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है और डेंगू के कई मरीज मौत की नींद सो चुके हैं। उत्तराखण्ड के अलावा पश्चिम बंगाल में भी डेंगू के बहुत सारे मामले सामने आ चुके हैं और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। सितम्बर माह के पहले सप्ताह में ही प्रदेश की मुख्यमंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी ने बताया था कि डेंगू से करीब 10500 लोग प्रभावित हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष कोलकाता और आसपास के जिलों में बारिश देर से शुरू हुई अन्यथा डेंगू के कहर को लेकर वहां स्थिति और भी भयावह होती। हालांकि ममता का कहना है कि उनके राज्य में डेंगू के वायरस ज्यादातर बांग्लादेश से आने वाले लोगों के कारण ही फैल रहे हैं। दरअसल बांग्लादेश के कुल 64 जिलों में से लगभग सभी में डेंगू फैला हुआ है, जहां अब तक इसके बीस हजार से भी अधिक मामले दर्ज हुए हैं और कई दर्जन लोगों की मौत हुई है। दूसरी ओर दिल्ली में इस बार राज्य सरकार के ‘10 हफ्ते, 10 बजे, 10 मिनट’ अभियान का अच्छा असर देखने को मिला है। यहां डेंगू के मामलों में पिछले वर्षों के मुकाबले काफी कमी दर्ज की गई है। दिल्ली में जहां डेंगू के वर्ष 2015 में 15867, 2016 में 4431, 2017 में 4726 और 2018 में 2798 मामले दर्ज हुए थे, वहीं इस साल 14 सितम्बर तक 171 मामले ही दर्ज हुए हैं। डेंगू के मामलों में कमी का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान को मिल रहा व्यापक जन समर्थन भी है।

            देश के अनेक राज्यों में हर साल इसी प्रकार डेंगू का कहर देखा जाता है, हजारों लोग डेंगू से पीडि़त होकर अस्पतालों में भर्ती होते हैं, जिनमें से कई दर्जन लोग मौत के मुंह में भी समा जाते हैं। ऐसे में डेंगू के मामलों में हो रही बढ़ोतारी के साथ-साथ इस रोग की भयावहता की चर्चा सर्वत्र होती है। हालांकि डेंगू की दस्तक तो प्रतिवर्ष सुनाई पड़ती है किन्तु हर तीन-चार वर्ष के अंतराल पर डेंगू एक महामारी के रूप में उभरकर सामने आता है और तभी हमारी सरकारें तथा स्थानीय प्रशासन कुम्भकर्णी नींद से जागते हैं। प्रतिवर्ष मानसून के बाद देशभर में डेंगू के कई हजार मामले सामने आते हैं। डेंगू की दस्तक के बाद डॉक्टरों व प्रशासन द्वारा आम जनता को कुछ हिदायतें दी जाती हैं लेकिन डॉक्टर व प्रशासन इस मामले में खुद कितने लापरवाह रहे हैं, इसका उदाहरण डेंगू फैलने के बाद भी कमोवेश सभी राज्यों में जगह-जगह पर फैले कचरे और गंदगी के ढ़ेर तथा विभिन्न अस्पतालों में सही तरीके से साफ-सफाई न होने और अस्पतालों में भी मच्छरों का प्रकोप हर साल देखकर स्पष्ट रूप से मिलता रहा है। प्रशासनिक लापरवाही का आलम यही रहता है कि ऐसी कोई बीमारी फैलने के बाद एक-दूसरे पर दोषारोपण कर जिम्मेदारी से बचने की होड़ दिखाई देती है।

            डेंगू का प्रकोप अब पहले के मुकाबले और भी भयावह इसलिए होता जा रहा है क्योंकि अब डेंगू के कई ऐसे मरीज भी देखे जाने लगे हैं, जिनमें डेंगू के अलावा मलेरिया के भी लक्षण होते हैं और दोनों बीमारियों के एक साथ धावा बोलने से कुछ मामलों में स्थिति बेहद खतरनाक हो जाती है। डेंगू के कुछ ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं, जब सप्ताह भर बाद ही रोगी के शरीर में ज्यादातर अंगों ने काम करना बंद कर देते हैं और रोगी दम तोड़ देता है। कुछ ऐसे भी मरीज मिले हैं, जिनमें डेंगू के शिकार होने के बावजूद बुखार और तेज सिरदर्द जैसे डेंगू में आम लक्षण नदारद थे बल्कि वे केवल शारीरिक थकान की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे, जहां उनमें रक्त जांच के बाद डेंगू की पुष्टि हुई। आमतौर पर सामने आने वाले लक्षणों रहित ऐसे मामले डॉक्टरों के लिए भी परेशानी का सबब बन जाते हैं।

            डेंगू बुखार एक वायरल संक्रमण है। यह एक खतरनाक बीमारी है, जो ऐडीस मच्छर के काटने से होती है, जो हमारे घरों के आसपास खड़े पानी में ही पनपता है। ऐडीस मच्छर काले रंग का स्पॉटेड मच्छर होता है, जो प्रायः दिन में ही काटता है। डेंगू का वायरस शरीर में प्रविष्ट होने के बाद सीधे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र पर हमला करता है। इस मच्छर का सफाया करके ही इस बीमारी से पूरी तरह से बचा जा सकता है। प्रायः मानसून के बाद ही डेंगू के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं। डेंगू प्रायः दो से पांच दिनों के भीतर गंभीर रूप धारण कर लेता है। ऐसी स्थिति में प्रभावित व्यक्ति को बुखार आना बंद हो सकता है और रोगी समझने लगता है कि वह ठीक हो गया है लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है बल्कि यह स्थिति और भी खतरनाक होती है। अतः बेहद जरूरी है कि आपको पता हो कि डेंगू बुखार होने पर शरीर में क्या-क्या प्रमुख लक्षण उभरते हैं। डेंगू के अधिकांश लक्षण मलेरिया से मिलते-जुलते होते हैं लेकिन कुछ लक्षण अलग भी होते हैं। तेज बुखार, गले में खराश, ठंड लगना, बहुत तेज सिरदर्द, थकावट, कमर व आंखों की पुतलियों में दर्द, मसूडों, नाक, गुदा व मूत्र नलिका से खून आना, मितली व उल्टी आना, मांसपेशियों व जोड़ों में असहनीय दर्द, हीमोग्लोबिन के स्तर में वृद्धि, शरीर पर लाल चकते (खासकर छाती पर लाल-लाल दाने उभर आना), रक्त प्लेटलेट (बिम्बाणुओं) की संख्या में भारी गिरावट इत्यादि डेंगू के प्रमुख लक्षण हैं।

कैसे हो डेंगू से बचाव?

            बीमारी कोई भी हो, उसके उपचार से बेहतर उससे बचाव ही होता है और डेंगू के मामले में तो बचाव ही सबसे बड़ा हथियार माना गया है। उचित सावधानियां और सतर्कता बरतकर ही इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है। घर की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है। आपके घर या आसपास के क्षेत्र में डेंगू का प्रकोप न हो, इसके लिए जरूरी है कि मच्छरों के उन्मूलन का विशेष प्रयास हो। डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का पनपना रोकें। निम्नलिखित बातों पर अवश्य ध्यान दें:-

–           अपने घर में या घर के आसपास पानी जमा न होने दें। जमा पानी के ऐसे स्रोत ही डेंगू मच्छरों की उत्पत्ति के प्रमुख कारक होते हैं। यदि कहीं पानी इकट्ठा हो तो उसमें केरोसीन ऑयल या पैट्रोल डाल दें ताकि वहां मच्छरों का सफाया हो जाए।

–           पानी के बर्तनों, टंकियों इत्यादि को अच्छी प्रकार से ढ़ककर रखें।

–           कूलर में पानी बदलते रहें। यदि कूलर में कुछ दिनों के लिए पानी का इस्तेमाल न कर रहे हों तो इसका पानी निकालकर कपड़े से अच्छी तरह पोंछकर कूलर को सुखा दें।

–           खाली बर्तन, खाली डिब्बे, टायर, गमले, मटके, बोतल इत्यादि में पानी एकत्रित न होने दें। बेहतर यही होगा कि ऐसे कबाड़ और इस्तेमाल न होने वाले टायर इत्यादि को नष्ट कर दें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कहीं भी पानी जमा होकर सड़ न रहा हो।

–           घर के दरवाजों, खिड़कियों तथा रोशनदानों पर जाली लगवाएं ताकि घर में मच्छरों का प्रवेश बाधित किया जा सके।

–           पूरी बाजू के कपड़े पहनें। हाथ-पैरों को अच्छी तरह ढ़ककर रखें।

–           मच्छरों से बचने के लिए मॉस्कीटो रिपेलेंट्स का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना मच्छरों से बचाव का सस्ता, सरल, प्रभावी और हानिरहित उपाय है।

–           रोगी को हर हाल में पौष्टिक और संतुलित आहार देते रहना बेहद जरूरी है।

–           डेंगू होने पर तुलसी का उपयोग बेहद लाभकरी है। आठ-दस तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10-15 पत्तों को एक गिलास पानी में उबाल लें और जब पानी आधा रह जाए, तब पी लें।

–           नारियल पानी पीएं, जिसमें काफी मात्रा में इलैक्ट्रोलाइट्स होते हैं, साथ ही यह मिनरल्स का भी अच्छा स्रोत है, जो शरीर में ब्लड सेल्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।

–           विटामिन सी शरीर के इम्यून सिस्टम को सही रखने में मददगार होता है। इसलिए आंवला, संतरा, मौसमी जैसे विटामिन सी से भरपूर फलों का सेवन करें।

–           बुखार होने पर पैरासिटामोल का इस्तेमाल करें और ध्यान रखें कि बुखार किसी भी हालत में ज्यादा न बढ़ने पाए लेकिन ऐसे मरीजों को एस्प्रिन, ब्रूफिन इत्यादि दर्दनाशक दवाएं बिल्कुल न दें क्योंकि इनका विपरीत प्रभाव हो सकता है। हां, उल्टियां होने पर रोगी को नसों द्वारा ग्लूकोज चढ़ाना अनिवार्य है।

–           डेंगू के लक्षण उभरने पर तुरंत योग्य चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

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