गृहमंत्री राजनाथसिंह ने चार दिन कश्मीर में बिताने की पहल करके बहुत ही सामयिक कदम उठाया है। इसी समय दो दिन के लिए कांग्रेस का एक प्रतिनिधि-मंडल भी जम्मू-कश्मीर जानेवाला है, जिसका नेतृत्व पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहनसिंह करेंगे। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि राजनाथसिंह ने पहले ही पहुंचकर श्रेय लूटने की कोशिश की है। मैं सोचता हूं कि राजनाथजी की पहल इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि आज कश्मीर में उनकी छवि कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रधानमंत्रियों से बेहतर है, हालांकि नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को 80 हजार करोड़ का अनुदान देकर, प्राकृतिक प्रकोप के वक्त जबर्दस्त मदद करके और अपनी दीवाली वहां मनाकर कश्मीरी दिलों में उतरने की भरपूर कोशिश की है।
राजनाथ सिंह के इस बयान ने बहुत-से बाड़े तोड़ दिए हैं कि उनके दरवाजे सबके लिए खुले हैं याने हुर्रियत के नेता और आतंकवादी भी आकर बात करना चाहें तो वे उनसे करेंगे। हुर्रियत के नेताओं ने हड़ताल का नारा दिया है लेकिन वे चाहें तो हड़ताल के दौरान भी गृहमंत्री से बात कर सकते है।। गर्मागर्म युद्ध के दौरान भी दो देशों के कूटनीतिज्ञ आपस में बात करते हैं या नहीं ? अब तो पाकिस्तान के सेनापति कमर बाजवा ने भी कश्मीर के सवाल को बातचीत से हल करने का बयान दिया है। हुर्रियत नेताओं को कम से कम पाकिस्तानी सेनापति की सलाह तो माननी ही चाहिए। हुर्रियत नेता गृहमंत्री से मिलें या न मिलें लेकिन जो दर्जनों प्रतिनिधि मंडल उनसे श्रीनगर में मिल रहे हैं, वे उन्हें कई सार्थक और सामयिक सुझाव दे रहे हैं। कश्मीर के सिखों ने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ विशेष रियायतें भी मांगी हैं। राजनाथसिंह की इस पहल का एक सुपरिणाम तो यह भी होगा कि मुख्यमंत्री महबूबा की पीडीपी और भाजपा सरकार में अब बेहतर समन्वय हो सकेगा। दोनों के बीच आया तनाव दूर होगा। धारा 35 ए और 370 के बारे में फैली गलतफहमियां भी दूर होंगी। जम्मू-कश्मीर में नियुक्त होनेवाले नए राज्यपाल के लिए एक उत्तम कार्य-सूची भी तैयार हो जाएगी। राजनाथजी की कश्मीर-यात्रा पर नाराज होने की बजाय यह अधिक अच्छा होगा कि कांग्रेसी-नेताओं को मिलनेवाले सुझाव और आलोचनाओं को वे सरकार तक पहुंचाए, क्योंकि यह मामला पार्टीबाजी का नहीं, देश का है।