कश्मीरी पंडित नेता अश्विनी कुमार चरंगू

कश्मीरी पंडित समुदाय के जिन सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और नेताओं की चर्चा और प्रशंसा मुक्त-कंठ से होती है, उनमें उल्लेखनीय हैं: सर्वश्री कश्यप बन्धु,शिवनारायण फोतेदार,बीरबल धर,श्यामलाल सराफ,गोपी कृष्ण,टीकालाल टपलू आदि।इसी श्रृंखला में श्री अश्विनी कुमार चरंगू का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जा सकता है।इस आलेख में अश्विनीजी के व्यक्तित्व-कृतित्व तथा उनके योगदान को उजागर करना अभीष्ट है।

सादा जीवन और उच्च विचार के धनी अश्विनीजी छात्र-जीवन-काल से ही राष्टवादी विचारों से ओतप्रोत रहे हैं।प्रसिद्ध कश्मीरी नेता स्व० टीकालाल टपलू उनके आदर्श राजनीतिक हीरो/गुरु रहे हैं।(ये वही अमर शहीद स्व० टपलू हैं जिनकी जिहादियों ने कश्मीर में निर्मम हत्या की थी और देश तमाशा देखता रहा।) मृदु भाषी,शालीन और कर्मठ प्रवृत्ति के जुझारू नेता अश्विनी चरंगु जी से कश्मीरी पंडित समुदाय को बड़ी आशाएं हैं।कुछेक महीने पूर्व शिकागो में विश्व स्तर का जो धार्मिक सम्मेलन हुआ था,उसमें अश्वीनीजी ने शिरकत कर कश्मीरी पंडित समाज का गौरव बढ़ाया था।जो काम स्व० पंडित टीकलाल टपलू जी ने हाथ में लिया था, उस अधूरे काम को चरंगु साहब पूरा करेंगे,ऐसा विश्वास है।प्रभु उन्हें दीर्घायु,आत्मबल और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें।

1989-90 में कश्मीर में हुए पंडितों के त्रासदीपूर्ण और भयावह विस्थापन के बाद घाटी से जिस प्रकार हिंदुओं का निष्कासन हुआ, उसमें अपने निर्वासन के दौरान चरंगू ने पंडितों को जम्मू आदि शरणार्थी-कैम्पों में बसाने की और उनकी हर संभव सहायता करने की सफल कोशिश की।

लगभग तीन दशकों के निर्वासन के दौरान श्री चरंगू हर स्तर पर कश्मीरी पंडितों के अधिकारों,उनकी समस्याओं और उनकी पीडाओं को दूर करने के लिए यत्नशील रहे।समाज की सेवा ख़ास तौर पर विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वे अच्छी तरह और निर्बाध गति से सेवा कर सकें, इसके लिए इन्होंने अपने निजी हितों की चिंता न करते हुए 49 साल की उम्र (2007) में समाजाजिक कार्यों के लिए अपना पूरा समय समर्पित करने हेतु भारतीय स्टेट बैंक की स्थायी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।

श्री चरंगू कश्मीर मामलों के जानकार ही नहीं,अच्छे विचारक,चिंतक और मननशील बुद्धिजीवी भी हैं। कश्मीर और कश्मीरी पंडितों के प्रकरण को उजागर करने के लिए इन्होंने कई क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सिलसिलेवार तरीके से पंडितों का पक्ष रखा है जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुयी है।इस प्रसंग में इन्होंने कई देशों की यात्राएं भी की है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में कश्मीर के हिंदुओं से जुड़े आठ वर्षों से चले आ रहे मानव-अधिकार-हनन के मामले को लेकर लड़ने में भी इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

ऐतिहासिक अमरनाथ आंदोलन के दौरान श्री चरंगू आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक थे। तत्कालीन सरकार ने इन्हें बुक भी किया था और बाद में सीजेएम, जम्मू द्वारा इन्हें जमानत दे दी गई थी। तत्पश्चात 31 अगस्त 2008 को सरकार और आंदोलन-कर्मियों के बीच हुए समझौते के प्रावधानों के अनुसार मामलों को वापस ले लिया गया।

समाज-सेवा के लिए श्री चरंगू को पिछले दो दशकों में विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया है, विशेष रूप से उनमें से कुछेक इस प्रकार से हैं: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जन कल्याण समिति, महाराष्ट्र (2011) द्वारा परम-पूज्य गुरुजी-राष्ट्रीय-पुरस्कार, (2011) । ग्लोबल ह्यूमन राइट्स डिफेंस, नीदरलैंड (2005) द्वारा मानवाधिकार पदक। पनुन-कश्मीर द्वारा कश्मीरी-पंडित-विशिष्ट सम्मान (2008) और कश्मीर ओवरसीज एसोसिएशन-यूएस (2008) द्वारा विशिष्ट मान्यता/सम्मान।

श्री चरंगू हमेशा भाजपा के कार्यकलापों में निष्ठापूर्वक योगदान देते रहे हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा के आम चुनाओं के दौरान जम्मू/ऊधमपुर से प्रत्याशी डॉ0 जितेंद्र सिंहजी के चुनाव-अभियान के लिए बराबर कार्यशील रहे ।

श्री चरंगू को भा०जपा०, जम्मू-कश्मीर प्रदेश-अध्यक्ष श्री रविंदर रैना जी द्वारा दिसंबर 2018 में औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया।जनवरी 2019 में जम्मू में एक समारोह में श्री राम माधव जी और डॉ० जितेंद्र सिंह जी की उपस्थिति में ये कर्मठ कार्यकर्त्ता चरंगूजी बीजेपी में शामिल हुए। बीजेपी पार्टी ने फरवरी 2019 में चरंगूजी को “कश्मीर मामलों के भाजपा के प्रदेश-प्रवक्ता” की जिम्मेदारी सौंपी, जिसका वे लगातार कर्तव्यपरायणता के साथ निर्वहन कर रहे हैं।

श्री चरंगू जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और देश के कई अखबारों और पत्रिकाओं के लिए कश्मीर-समस्या, आतंकवाद, राजनीति, संस्कृति और मानव-अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर पिछले तीन दशकों से एक स्तंभकार के रूप में नियमित रूप से लिखते आ रहे हैं। कश्मीर समस्या,पंडितों के विस्थापन की त्रासदी,कश्मीर में आतंकवाद आदि पर लिखे इनके लेखों,संस्मरणों आदि की संख्या सैंकड़ों में है।

जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है शिकागो में स्वामी विवेकानंद की १२५वीं जयंती के अवसर पर आयोजित विश्व हिन्दू सम्मेलन में श्री चरंगू ने भागीदारी की और अपने धर्मनिष्ठ विचारों से श्रोताओं को मुग्ध किया।

जनता ख़ास तौर पर कश्मीरी विस्थापित पंडितों से सम्पर्क साधने और उनके दुखदर्द से जुडी समस्याओं को दूर करने के लिए श्री चरंगू मासिक दौरे करते हैं।माह के पहले सप्ताह में जम्मू में, दूसरे सप्ताह में श्रीनगर में और तीसरे सप्ताह में पुनः जम्मू में और चौथे सप्ताह में दिल्ली में जन-सुनवाई करते हैं।इनके इस तरह के जन-सम्पर्क ने इन्हें कश्मीरी पंडितों के बीच आशातीत रूप से लोकप्रिय बनाया है।

धारा 370 और 35A के निरस्त होने और जम्मू और कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद, चरंगू एक विशेष मिशन के तहत कश्मीर में विस्थापित हिंदुओं को ससम्मान घाटी में बसाने के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।कोविड-१९ से जनित महामारी ने जहाँ पूरे विश्व को जकड़ लिया है वहां जम्मू-कश्मीर प्रांत भी इस संकट से जूझ रहा है। श्री चरंगू जन सहयोग से जम्मू क्षेत्र में ज़रूरतमंदों और अभावग्रस्त मजदूरों,कामगारों और निराश्रितों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करने में कोई कसर नहीं उठा रहे हैं। इनकी योग्यताओं,क्षमताओं और अनुकरणीय सेवा-भावी वृत्ति कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए प्रेरणादायिनी शक्ति का काम करती रही है।

श्री चरंगू कश्मीर की धरती के पुत्र हैं और वहां की जमीनी हकीकतों से वाकिफ हैं।इस लगनशील नेता से कश्मीरी पंडितों को बड़ी आशाएं हैं।

डा० शिबन कृष्ण रैणा

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