पिछले कुछ समय से ‘खाप पंचायतें’ अपने तुगलकी फरमान सुनाने और ‘ऑनर किलिंग’ के आरोपों में घिरा होने के कारण ‘खौफ पंचायतों’ में तब्दील हो चुकी हैं। इन खाप पंचायतों का दबदबा अधिकतर उत्तरी भारत में है। इन खाप पंचायतों ने एक के बाद एक कई बेतुके और गैर-कानूनी फैसले सुनाकर अपनी छवि को स्वयं धूमिल किया है। हरियाणा की खाप पंचायतें ‘जोणधी-प्रकरण’, ‘ढ़राणा प्रकरण’, ‘वेदपाल हत्याकाण्ड’, ‘बलहम्बा हत्याकाण्ड’ और ‘मनोज-बबली हत्याकाण्ड’ जैसे कई मामलों में अच्छी खासी बदनाम हुई हैं। एक के बाद एक कानून की धज्जियां उड़ाने वाली घटनाओं ने खापों को खलनायक बनाकर रख दिया। इस समय हरियाणा में लगभग 110 खापें अस्तित्व में हैं, जिनमें से 72 खापों की सक्रियता दर्ज की गई है। आजकल खापों की मनःस्थिति एकदम विचित्र हो चली है। एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में महिलाओं पर कई तरह की पाबन्दियों वाले फरमान सुनाने के बाद खाप पंचायतें एक बार फिर भारी बदनामी का सामना कर रही हैं। दूसरी तरफ, हरियाणा में जीन्द जिले के बीबीपुर गाँव की महिलाओं ने कन्या-भू्रण हत्या को रोकने के अपने अनूठे आन्दोलन में खाप चौधरियों को अपने साथ जोड़कर खापों को एक नया रूप देने की अनूठी कोशिश की है। दरअसल, बीबीपुर गाँव की महिलाएं तब राष्ट्रीय सुर्खियों में आईं थीं, जब गत 18 जून को उन्होंने अपने गाँव में देश की प्रथम महिला ग्राम सभा करने का श्रेय हासिल किया था और कन्या-भू्रण हत्या रोकने के अभियान का झण्डा बुलन्द किया था। इस अभियान को व्यापक रूप देने के लिए उन्होंने सभी खापों को गत 14 जुलाई की महापंचायत में आने और कन्या-भू्रण हत्या को रोकने का महा-ऐलान करने का आमंत्रण दिया था। लगभग सौ खापों ने इस सर्वखाप महापंचायत में हाथ उठाकर कन्या-भू्रण हत्या को रोकने के लिए जागरूकता आन्दोलन चलाने और सरकार से कन्या-भू्रण हत्या के दोषियों पर धारा 302 के तहत केस चलाने की माँग को समर्थन दिया। खापों के इस नए रूप को देखकर हर कोई अचम्भित था। इसी महापंचायत में खापों को ‘सच का सामना’ करवा चुके आमिर खान व उसकी पत्नी को भी आमंत्रित करने का प्रस्ताव भी रखा गया था, ताकि उन्हें खापों की सामाजिक कार्यप्रणाली से अवगत करवाया जा सके और खापों के प्रति उनके विचारों को बदला जा सके। लेकिन, आखिरी समय में इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। हुआ यूं कि जैसे ही गत 3 जून को देशभर में नासूर बनती जा रही ‘ऑनर किलिंग’ के परिपेक्ष्य में ‘इज लव ए क्राइम’ (क्या प्यार करना गुनाह है?) मुद्दे पर आधारित ‘सत्यमेव जयते’ का प्रसारण हुआ, खाप चौधरियों के तेवर तीखे हो गए। इसके अगले ही दिन इस मुद्दे पर आमिर को बुरी तरह कोसने के लिए बैठकों का दौर शुरू हो गया। हालांकि ‘ऑनर किलिंग’ जैसी अपराधिक घटनाओं में खाप पंचायतों की संदेहास्पद भूमिका को स्पष्ट करने और खापों के पक्ष को देश व समाज के सामने रखने के उद्देश्य से आमिर खान ने ‘सर्वजातीय महम चौबीसी खाप’ के पाँच सदस्यीय टीम को आमंत्रित भी किया था। लेकिन, आमिर खान के सीधे और सटीक सवालो�� के चक्रव्युह में खाप के पाँचों सदस्य बुरी तरह फंसते चले गए और वे देशभर में सामने आई खापों की नकारात्मक छवि को बदलने में पूरी तरह नाकाम रहे। खाप पंचायतों की कार्यशैली पर आमिर के करारे कटाक्षों से घायल खाप चौधरियों ने अपने चिरपरिचित अन्दाज में आनन-फानन में बैठकें करनीं शुरू कीं और ‘सत्यमेव जयते’ पर रोक लगाने, कानूनी कार्यवाही करने व इस कार्यक्रम का बहिष्कार करने जैसे प्रस्तावों पर चर्चाएं की जानें लगीं। एक बार तो कुछ चौधरियों की तरफ से इस मुद्दे को साम्प्रदायिकता का रंग देने की भी कोशिशें शुरू हो गईं थीं। खाप बैठकों में आमिर खान को मुस्लिम बताकर हिन्दू संस्कृति पर सुनियोजित हमला तक बताया जाने लगा था। वैसे अधिकतर खाप चौधरियों की इस संदर्भ में आमिर को यह सलाह रही कि चूंकि आमिर मुस्लिम है, उसे हिन्दू संस्कृति और खाप संस्कृति का जरा भी ज्ञान नहीं है। ऐसे में उन्हें खाप पंचायतों पर कटाक्ष करने का कोई अधिकार नहीं है और अपनी गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी चाहिए। हालांकि आमिर खान ने यह कहकर खापों की इस मांग को ठुकरा दिया कि हमने कुछ भी नहीं किया है। हमने केवल सच्चाई सामने रखी है। कई खाप बैठकों में कई रचनात्मक सुझाव भी रखे गए। एक सुझाव के अनुसार, किसी सामाजिक मुद्दे पर खाप पंचायत आयोजित की जाए और उसमें आमिर खान को आमंत्रित किया जाए। इससे आमिर खान खाप पंचायत की कार्यप्रणाली से पूर्णतः रूबरू हो सकेंगे और खाप पंचायतों के प्रति अपनी गलत धारणाओं को बदलेंगे। इस सुझाव को कुछ खाप पंचायतों ने अमलीजामा पहनाने के लिए कमर कसी और ऐसे आयोजन के लिए संभावनाएं तलाशनें लगीं। उन्हें तब सफलता मिली जब जीन्द जिले के गाँव बीबीपुर की महिलाएं ‘कन्या-भू्रण हत्या’ को रोकने के लिए देश की प्रथम महिला ग्राम सभा आयोजित करके राष्ट्रीय सुर्खियों में पहुंचीं और इस अभियान को व्यापक बनाने के लिए 14 जुलाई को आयोजित महापंचायत में प्रदेश की खापों को भी आमंत्रित किया गया। नौगामा खाप पंचायत ने ‘कन्या भ्रूण हत्या’ जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पर आयोजित होने वाली इस महापंचायत में खापों की सकारात्मक तस्वीर पेश करने के लिए आमिर खान व उनकीं पत्नी किरण को भी आमंत्रण पत्र भेजने की जबरदस्त पैरवी की। आमंत्रण पत्र भेजने के लिए बीबीपुर गाँव के युवा सरपंच सुनील जागलान को अधिकृत किया गया। आमंत्रण पत्र तैयार भी हो गए। लेकिन, ऐन वक्त पर कई खापों ने आमिर खान को महापंचायत में न बुलाने का फरमान सुना दिया। इस फरमान के आगे सरपंच सुनील जागलान को भी घुटने टेकने पड़े और आमिर खान को महापंचायत में न बुलाने के फरमान पर अपनी मुहर लगानी पड़ी। उम्मीद के मुताबिक गत 14 जुलाई को खाप के चौधरी महापंचायत में पहुंचे और अपनी नकारात्मक छवि को बदलने की लाख कोशिश भी की। लेकिन, खाप चौधरी अपनी सकारात्मक छाप छोड़ने में नाकायाब रहे। यह दूसरी बात है कि मीडिया के माध्यम से प्रायोजित तरीके से गाँव के सरपंच व हरियाणा सरकार ने खापों को एक नया मुखौटा पहनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, असलियत को लाख दबाने के बावजूद, सबके सामने आ ही जाती है। इस महापंचायत में भी खापों की असलियत को बुद्धिजीवियों ने बखूबी भांप लिया। मंच से खाप चौधरियों को हाथ उठाकर कन्या भ्रूण हत्या रोकने के नाम पर समर्थन देना, एक तरह से विवश किया गया था। दिल से खाप चौधरियों ने कन्या-भू्रण हत्या के खिलाफ कोई रचनात्मक प्रस्ताव अथवा सुझाव पेश नहीं किया। मीडिया में सुनियाोजित तरीके से भ्रामक प्रचार करवाया गया कि खाप चौधरियों ने महिलाओं के साथ पहली बार मंच सांझा किया। जबकि, हकीकत यह थी कि खाप पंचायत में महिलाओं को बुरी तरह दरकिनार करके रखा गया और एक कोने में घूंघट (पर्दा) में मुंह ढ़ंककर दुबकी बैठी रहीं और चौधरी पूरे गर्व के साथ सीना फुलाए और मुंछों पर ताव देते नजर आए। मंच से चंद ही महिलाओं को चंद मिनट ही अपने विचार देने का मौका दिया गया। घूंघट से मुंह ढ़के एक-दो वृद्ध महिलाओं को बंद माईक हाथ में पकड़ाकर अपने विचार व्यक्त करने के स्थान पर मूक अभिनय करने और समाचार-पत्रों में अच्छी छवि बनाने के लिए फोटो करवाने जैसी गुस्ताखियां सबके सामने परोसी गई। महापंचायत में खाप चौधरियों के चेहरों पर यह साफ दिखाई दे रहा था कि महिलाओं के बुलावे पर उन्हें यहां आना पड़ा है और न चाहते हुए भी उन्हें खाप पंचायत में महिलाओं की उपस्थिति को सहन करना पड़ रहा है। मंच से जितने भी खाप चौधरी बोले, सभी ने कन्या-भू्रण हत्या के लिए सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को दोषी ठहराने का राग अलापा। पहले एक घण्टे के दौरान ही खाप चौधरियों ने कन्या-भू्रण हत्या को रोकने के सन्दर्भ में ठोस निर्णय लेने के लिए खापों की ग्यारह सदस्यीय कमेटी की घोषणा की, जिसमें एक भी महिला प्रतिनिधि का नाम नहीं था। कमेटी की घोषणा के तुरंत बाद ही खाप चौधरियों में तू-तू, मैं-मैं हो गई और निर्णय हुआ कि यहीं पर प्रस्ताव रखा जाए और हाथ उठाकर उस प्रस्ताव को स्वीकृति दी जाए। महापंचायत में दो पंक्तियों का प्रस्ताव रखा गया कि कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अभियान चलाया जाएगा और सरकार को इसके लिए कठोर कार्यवाही करनी चाहिए। सभी ने हाथ उठाए और बस हो गया कन्या-भू्रण हत्या रोकने में खापों का विशिष्ट योगदान! सभी बुद्धिजीवी, शोधकर्ता, महिलाएं, समाजसेवी, मीडिया आदि सब अवाक् रह गए। सभी को उम्मीद थी कि खाप चौधरी अपनी शैली के मुताबिक इस सामाजिक मुद्दे पर कोई ठोस और कड़े फैसले लेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसी के साथ महापंचायत से अधिकतर लोग रवाना हो गए। लेकिन, फिर किसी ने खाप चौधरियों को अहसास करवाया कि चंद मिनटों में अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करके उनकी छवि सुधरने वाली नहीं हैं। इसके लिए कम से कम कुछ घंटे तो भाषणबाजी चलनी ही चाहिए। तदुपरांत फिर से थोड़े से दर्शकों की उपस्थिति में ही भाषणबाजी का क्रम शुरू कर दिया गया। इसी बीच मौका देखकर सभी खाप चौधरी मंच से खिसक लिए और स्कूल के एक कमरे में जाकर गुप्त मंत्रणा में जुट गए। इस मंत्रणा में खापों की वास्तविक मनःस्थिति से साक्षात्कार हुआ, जोकि बड़ा ही चौंकाने वाला रहा। इस मंत्रणा में खाप चौधरियों के बीच सिर्फ इसी विषय को लेकर विचार-मन्थन चलता रहा कि आखिर वे अपने वर्चस्व व अस्तित्व को कैसे बचाए रखें? खाप चौधरियों ने इस बात पर खुलकर चिंता जाहिर की, कि उनके बाद खाप पंचायतें समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि नई पीढ़ी खापों में जरा भी विश्वास नहीं करती और आज भी कोई तवज्जो नहीं देती। इसके साथ ही खाप चौधरियों ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की पंचायत द्वारा महिलाओं पर बेतुका पाबंदियों के मसले पर रणनीति बनाई। खाप चौधरियों को इस बात का अहसास था कि इस तरह के फरमान आज संभव भी नहीं हैं और सही भी नहीं हैं। चूंकि, मामला खाप पंचायतों की इज्जत का है तो हमें एकजूटता का परिचय देना चाहिए। इसी के साथ खाप चौधरियों ने अपनी इज्जत और वर्चस्व को बनाए रखने के लिए किसी भी हालत में खापों के साथ खड़ा होने की ही प्रतिबद्धता जताई और किसी भी खाप पर कानूनी शिकंजा कसने की सूरत में एकजूट होने का संकल्प दोहराया। लेकिन, इस संकल्प में भी खाप चौधरियों में भारी संशय लग रहा था। क्योंकि खाप चौधरी इस तथ्य से भी भारी चिंतित थे कि अब उनके बीच पहले जैसी एकजूटता नहीं रही। सुप्रीम कोर्ट व मीडिया की सख्ती से सरकार भी खापों पर कानून का कठोर कोड़ा चलाने के लिए बाध्य हो गई है। ऐसे में, कहीं उनकी चौधराहट जेल की सलाखों के पीछे बिखरती न दिखाई दे, इसी डर के मारे कई खापों में दहशत व्याप्त हो चुकी है। इसके साथ ही इस गुप्त मंत्रा में खाप चौधरियों ने निकट भविष्य में एक बड़ी सर्वखाप महापंचायत बुलाने का निर्णय भी लिया, जिसमें खापों के संविधान में कुछ संशोधन किए जा सकें। दरअसल कुछ खापों के चौधरी इस बात से सख्त नाराज थे कि कन्या-भू्रण हत्या के मसले पर जिस तरह से गाँव के सरपंच ने महिलाओं के माध्यम से इक्कठा किया है और उनका इस्तेमाल किया है, वह भविष्य में न हो। कुछ खाप चौधरियों ने तो यहां तक भी कहा कि कन्या-भ्रूण हत्या जैसा मुद्दा खाप पंचायतों के स्तर का ही नहीं है। खापों की यह असली तस्वीर है। इस तस्वीर को प्रस्तुत करने का मूल मकसद यह बताने का है कि हरियाणा में जिस प्रायोजित तरीके से मीडिया के माध्यम से खापों की असली तस्वीर को छुपाया जा रहा है, वह सिर्फ दिखावा भर है। वास्तविकता यह है कि समाज के प्रबुद्ध लोगों, मीडिया व माननीय न्यायालायों ने सरकार को तुगलकी फरमान सुनाने वाली इन खाप पंचायतों पर कड़ी कार्यवाही करने व कठोर कानून बनाने के लिए बाध्य किया हुआ है, इसी लिए खाप पंचायतें राजनीतिकों को वोटों के नाम पर ब्लैकमेल करने से चूक नहीं रही हैं। कोई भी राजनीतिक दल इन खापों की खिलाफत करके अपने वोट बैंक को दांव पर नहीं लगाना चाहता है। इसी मंशा के चलते ही गत दिनों हरियाणा सरकार के मुखिया भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने खापों के सामाजिक पक्ष की जबरदस्त पैरवी की थी। मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि ‘‘वे राज्य में ‘ऑनर किलिंग’ के बेहद खिलाफ हैं, लेकिन इसका दोष पंचायतों पर मढ़ना उचित नहीं है। खाप पंचायत अपने अधिकार व सामाजिक मर्यादा से बाहर जाकर फैसला नहीं लेतीं।’’ मुख्यमंत्री की इस प्रतिक्रिया के बारे में बुद्धिजीवियों कयास लगा रहे हैं कि संभवतः अपना वोट बैंक खो जाने के डर से वे ऐसा कह रहे हैं, अर्थात् कहीं न कहीं वे भी खापों के हाथों ब्लैकमेल हो रहे हैं! कमाल बात यह है कि अभी खापों ने अभी सिर्फ कन्या-भू्रण हत्या रोकने का समर्थन भर किया है, अभी इस समस्या के समाधान में कोई अह्म भूमिका नहीं निभाई है और न ही कोई सकारात्म परिणाम सामने आया है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने आनन-फानन में खाप चौधरियों के नाम से बीबीपुर की ग्राम पंचायत को एक करोड़ रूपये देने का ऐलान कर दिया है। इसके उलट जिन ग्राम पंचायतों ने बिना किसी दिखावे और तामझाम के वास्तव में कन्या-भू्रण हत्या रोककर लिंगानुपात को संतुलित किया है और कन्याओं की संख्या को अप्रत्याशित तरीके से बढ़ाया है, उन्हें इतना बड़ा पुरस्कार आज तक मुख्यमंत्री ने नहीं दिया है। मुख्यमंत्री के इस दोहरे रवैये पर प्रश्नचिन्ह उठना स्वभाविक है। हरियाणा के मुख्यमंत्री की तर्ज पर ही राष्ट्रीय लोकदल के युवा नेता और मथुरा से सांसद जयंत चौधरी ने बागपत में खाप पंचायत के उस तालीबानी फरमान का समर्थन किया है, जिसमें 40 साल से कम महिलाओं को घर से बाहर अकेले न निकलने, महिलाओं व युवतियों को मोबाईल इस्तेमाल न करने और प्रेम विवाह न करने जैसी हिदायतें शामिल थीं। रालोद सुप्रीमो चौधरी अजीत सिंह के सुपुत्र जयंत चौधरी द्वारा इन बेतुके फरमानों का समर्थन करने के पीछे सियासी मजबूरियां स्पष्ट झलकती हैं। क्योंकि जाटों के नाम पर राजनीति करने वाले चौधरी अजीत सिंह के लिए चुनौती बनकर उभरे कथित जाट नेता प्रो. यशपाल मलिक ने इस खाप पंचायत में शिरकत की थी और जाटों के बीच अपनी पैठ मजबूत बनाने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी थी। अपने जाट वोट बैंक को खिसकते देखकर चौधरी अजीत सिंह ऐसा कोई भी कदम उठाने से परहेज कर रहे हैं, जिससे उनका वोट बैंक प्रभावित हो। इसी के मद्देनजर वे जाटों के आरक्षण की मांग को लेकर गृहमंत्री के दरबार में अपनी हाजरी भी लगा चुके हैं। वैसे तो देश भर में बड़े पैमाने पर खाप पंचायतें तुगलकी फरमान सुनाने से बाज नहीं आ रही हैं और साथ ही ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं सामने आ रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भी खाप पंचायतों को कई बार ‘ऑनर किलिंग’ मसले पर खूब झाड़ पिलाई हैं। केन्द्रीय स्तर पर भी खाप पंचायतों पर नकेल डालने के लिए सख्त कानून बनाने पर गंभीरता से विचार हो रहा है। इस मसले पर सरकार के तीन दिग्गज व कानून विशेषज्ञ मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल, गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली खूब विचार-विमर्श कर चुके हैं। वर्ष 2010 में खाप पंचायतों के तुगलकी फरमानों पर नकेल कसने के लिए केन्द्र सरकार ने कानून में संशोधन करने के लिए एक मंत्री समूह गठित करने का निर्णय भी लिया था। लेकिन, राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में यह मामला यूं ही अटका हुआ है। हाल फिलहाल यह मामला जीओएम के अधीन बताया गया जा रहा है।
bde sharm ki bat h rajesh ji aap haryana ki khap panchyato ko badnam kr rhe ho , khap humari h hm unke faslo ko mange
शाण्डार ळीःआ ःआई.