-फखरे आलम-
वह ऐसा खुशनसीब और बड़े लेखक थे जो सरहद के दोनों ओर जनता के दिलों पर राज करते-करते अलविदा कर गये। उनके चले जाने पर खबरें और लेख भारतीय मीडिया की तरह पाकिस्तानी मिडिया में भी छपे। मगर जाने-माने पत्राकारों के लेख भी वहां की मीडिया ने छापे। पाकिस्तानी मीडिया ने छापा कि खुशवंत सिंह की मौत भारत-पाकिस्तान के मध्य टी-20 के हलचल ने पिफका कर दिया और इतने बड़े लेखक के मोत की खबर जैसे कहीं गुम सी हो गई और महान लेखक एक स्कोर से अपनी उम्र की सनचूरी लगाने से चुक गए।
वह वर्तमान समय के उन गिने चुने लेखक और साहित्यकारों में से थे, जिन्हें सीमा और सरहद कभी नहीं बांट पाई, जबकि कुछ लोग उन्हें बदतमीज, पागल और सनकी समझते थे। उनकी प्रत्येक रचना और पुस्तक ज्ञान का समंदर है जो शब्द की गहराईयों का पता देती है। वही हंसते-हंसते इतिहास को खंगालती है।
खुशवंत सिंह पाकिस्तान खुशाब स्थित बडाली में जन्मे थे। ट्रेन-टू पाकिस्तान में उन्होंने बंटवारे का दर्द दिखाया है। उन्होंने जीवनभर नास्तिक होने की बात की और अपने सिख धर्म पर दो भाग में पुस्तक लिखी, वह उन्हें एक इतिहासकार की श्रेणी में खड़ा करता है। जब गोलडेन टेम्पल पर सैनिक अभियान हुआ तो उन्होंने विरोधस्वरूप छद्म पुरस्कार वापस कर दिया था। उन्हें भारत में पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वाला समझा जाता रहा।
खुशवंत सिंह ने बार-बार कहा और लिखा था कि पाकिस्तान में उनके बहुत से मित्रा थे, जिसके कारण वह पाकिस्तान से हमदर्दी रखता था। उनके सबसे प्रिय मित्रा मंजूर कादिर और फैज अहमद फैज नहीं रहे। यह कहते थे कि उस जमीन पर हमारे बहुत सारे दोस्त दफन है और पूरे पाकिस्तान को कब्रगाह नहीं बनाओ। उन्होंने सौ से अधिख पुस्तकें और हजार से ऊपर लेख लिखे जो एक से बढ़कर एक है। उन्होंने मृत्यु को अपने प्रिय विषय के रूप में अपनी लेखनी में प्रयोग करते आए। उन्होंने अपनी खामियों और अपनी आलोचना बार-बार करते और स्वयं अपना मजाक स्वयं बनाते, जो पढ़ने वालों को खूब लुभाता था। उन्हें गवर्नेंट कॉलेज लाहौर के छात्र होने पर गर्व था और अपने कॉलेज जिसने कभी इकबाल और फैजअहमद फैज जैसे कवि और विचार पैदा किए थे। उन्हें उर्दू भाषा और साहित्य से प्रेम था और वह भारत में उर्दू भाषा के लिए हमेशा चिंतित दिखाई दिए। वह भगवान को नहीं मानते थे, मगर भगवान से बहुत डरते थे। दी एण्ड ऑफ इण्डिया के नाम से भारत में समाप्त होते धर्मनिरपेक्षता पर अनमोल पुस्तक लिखी थी।
1971 में 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी कैदियों पर प्रथम उन्होंने ही इन्दिरा गांधी और भूटो के मध्य शिमला वार्ता करवाया था। उन्होंने दोनों देशों के मध्य वीजा नीति की आलोचना की और दोनों देशों मे मध्य वीजा समाप्त करवाना चाहते थे। वह दोनों देशों को अच्छे पड़ोसी नहीं, बल्कि सहयोगी मित्र के रूप में देखने की तमन्ना रखते थे।
खुशवंत सिंह का ट्टणी है। उर्दू भाषा और महान कवि व विचारक इकबाल जिनकी रचनाओं का अनुवाद उन्होंने अंग्रेजी भाषा में किया और उन्होंने लगभग सभी बड़े और छोटे उर्दू के लेखकों और कवियों पर कलम चलाए। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि इस्लामी जगत आभारी है खुशवंत सिंह का जिन्होंने सलमान रशदी की खुले रूप से आलोचना की थी और उनकी पुस्तक सटेनिक का भारत से सम्पादन का विरोध किया था। उन्होंने रशदी के सम्बंध में कहा था कि वह मुस्लिम परिवार में जरूर जन्मा, मगर वह इस्लाम को नहीं जानता। 16 फरवरी 2008 को उन्होंने इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद साहब पर लेख लिखा और यह लेख टेलीग्राफ में छपा, साथ ही उन्होंने विश्व से कहा कि वह मुहम्मद साहब पर करन आर्मस्टाण की रचनाएं अवश्य पढ़ें। यह था उनका अन्य धर्म के प्रति सम्मान। उन्होंने भी किसी धर्म और समुदाय को आहत नहीं की, यही कारण रहा कि भारत में उन्हें बहुत सम्मान मिला।