किस काम की है, यह मौत की सजा ?

गुड़गांव की एक 19 वर्षीय युवती के साथ 29 मई की रात बलात्कार की जो घटना हुई है, वह निर्भया-कांड से कम मर्मांतक नहीं है। एक आटो रिक्शा में सवार दो युवकों और उसके ड्राइवर ने उस युवती के साथ न सिर्फ बलात्कार किया बल्कि उसकी आठ माह की बेटी की भी उन्होंने हत्या कर दी। रोती हुई उस बच्ची को बलात्कार के बाद उन वहशियों ने एक पत्थर पर दे मारा। जब उस युवती और उसके रिश्तेदारों ने गुड़गांव के थाने में रपट लिखाने की कोशिश की तो पुलिस वालों ने उन्हें सलाह दी कि वे सिर्फ उस बच्ची की हत्या की रपट लिखवाएं, बलात्कार पर ध्यान न दें। उन्हें 3 जून को होने वाली राष्ट्रपति की गुड़गांव यात्रा का इंतजाम करना है। इस घटना को अब एक सप्ताह हो गया है लेकिन अभी तक ये बलात्कारी हत्यारे पकड़े नहीं गए है।

अगर उन्हें पकड़ भी लिया गया तो क्या होगा ? पांच-सात साल मुकदमा चलेगा। दोनों तरफ के वकील पैसे खाएंगे। हमारे जज अंग्रेजी कानून की बाल की खाल उधेड़ते रहेंगे और अगर अपराध सिद्ध हो गया तो किसी पर कुछ जुर्माना होगा, किसी को कुछ साल की सजा होगी और कोई छोड़ दिया जाएगा। यदि किसी को मृत्युदंड मिला भी तो वह भी निरर्थक होगा, क्योंकि मरी हुई बच्ची को जिंदा नहीं होना है और बलात्कृता स्त्री की कटु स्मृति मिटनी नहीं है।

मृत्युदंड से किसी को कोई भी सबक नहीं मिलना है, क्योंकि तब तक लोग इस कांड को ही भूल जाएंगे और मृत्युदंड जेल की किसी कोठरी में दे दिया जाएगा। जंगल में मोर नाचा, किसने देखा ? बलात्कार की सजा इतनी सख्त होनी चाहिए कि किसी के मन में बलात्कार का विचार पैदा होते ही उसकी सजा की भयंकरता घनघनाने लगे। याने बलात्कार के मुकदमों का निपटारा प्रायः एक माह में ही होना चाहिए और मृत्युदंड बंद कोठरी में नहीं, जेल की चारदीवारी में नहीं, बल्कि कनाट प्लेस और चांदनी चौक जैसे खुले स्थानों पर दी जानी चाहिए और उनका जीवंत प्रसारण सभी चैनलों पर होना चाहिए। देखें, फिर देश में बलात्कारों की संख्या एकदम घटती है या नहीं ?

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