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आजिविका के क्षेत्र में सफलता व उन्नति प्राप्त करने के लिये व्यक्ति में अनेक गुण होने चाहिए, सभी गुण एक ही व्यक्ति में पाये जाने संभव नहीं है. किसी के पास योग्यता है तो किसी व्यक्ति के पास अनुभव पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. कोई व्यक्ति अपने आजिविका क्षेत्र में इसलिये सफल है कि उसमें स्नेह पूर्ण व सहयोगपूर्ण व्यवहार है।
सफलता के लिये पूरी तौर से समर्पण तथा एकाग्र मेहनत की आवश्यकता होती है, इन सब गुणौ का बोध तीसरा घर कराता है, जिससे पराक्रम के घर के नाम से जाना जाता है, तीसरा भाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण है क्यों की यह दशम घर से छठा घर है, इस घर से व्यवसाय के शत्रु देखे जाते है, इसके बली होने से व्यक्ति में व्यवसाय के शत्रुओं से लडने की क्षमता आती है, यह घर उर्जा देता है, जिससे सफलता की उंचाईयों को छूना संभव हो पाता है।
प्रत्येक व्यक्ति का भावी जीवन स्तर उसके द्वारा अध्ययनकाल में किया गया परिश्रम ही तय करता है। अध्ययनकाल में यदि उसका परीक्षा परिणाम निरंतर अच्छा रहता है, तो प्रायः यह निश्चित होता है कि वह व्यक्ति आगे जाकर सुखी जीवन व्यतीत करेगा और उसका जीवन स्तर अच्छा होगा। यही कारण है, शिक्षा के प्रति वर्तमान समय में जागरूकता बढ़ती जा रही है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि प्रत्येक अभिभावक की यह ईच्छा होती है कि उसकी संतान जीवन में अच्छे मुकाम पर पहुंचे और उसका नाम रोशन करे, लेकिन इस उद्देश्य की प्राप्ति प्रत्येक विद्यार्थी के लिए आसान नहीं होती है। शिक्षा के इतना महत्वपूर्ण होने पर भी देखा जाता है कि सभी विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते हैं। एक विद्यार्थी की कई समस्याएं हो सकती हैं। जैसे अध्ययन में मन नहीं लगना, ध्यान एकाग्र नहीं होना, स्मरण शक्ति कम होना, अध्ययनेतर गतिविधियों में अधिक लिप्त रहना आत्मविश्वास की कमी होना, मेहनत करने पर भी अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं होना इत्यादि। यदि ऐसी किसी समस्या से आप अथवा आपकी संतान रूबरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में ज्योतिष आपके लिए एक अच्छे सहायक का कार्य कर सकती है।
किसी व्यक्ति के स्वभाव, उसकी शिक्षा, उसके भावी जीवन इत्यादि का निर्णय उसकी जन्मपत्रिका देखकर किया जा सकता है। यहां ज्योतिष के अनुसार उक्त स्थितियों से संबंधित कतिपय योगों का उल्लेख किया जा रहा है। शिक्षा के लिए जन्मकुंडली में पंचम भाव, पंचमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश, चतुर्थेश, गुरु व बुध इनका मुख्य रूप से विचार करना चाहिए। यदि इनमें से अधिकतर की स्थिति शुभ नहीं है, अर्थात नीच, अस्तगत, शत्रुगत या पापकर्तरीगत है तो प्रायः ऐसे विद्यार्थियों का अध्ययन में मन नहीं लगता है। बहुत प्रयास करने पर भी वे एक सीमा तक ही अध्ययन कर पाते हैं।
लग्न से जातक की प्रकृति, उसके स्वभाव एवं आचार विचार का पता लगाया जाता है। यदि शनि का लग्नेश पर या लग्न पर प्रभाव हो व राहु की भी लग्न या लग्नेश पर दृष्टि हो तो प्रायः ऐसे विद्यार्थी अधिक आलसी होते हैं। सुबह उठकर पढ़ना उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। पढ़ते समय भी उन्हें अध्ययन के दौरान ही नींद आ जाती है। यदि लग्न एवं लग्नेश दोनों ही चर राशियों में एवं चंद्रमा पाप पीड़ित या निर्बल हो तो अध्ययन में ध्यान एकाग्र नहीं हो पाता है, किताब तो सामने होती है, लेकिन ध्यान कहीं और ही रहता है। घंटों पढ़ने के बाद भी पता चलता है कि याद तो कुछ हुआ ही नहीं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि जन्म कुंडली में लग्नेश यदि अष्टम भाव में हो, निर्बल हो, पाप पीड़ित हो या अस्तगत हो अथवा सूर्य नीच राशिगत हो या शनि के साथ हो, तो आत्मविश्वास बहुत कम होता है। ऐसे विद्यार्थी प्रायः कक्षा में सबसे पीछे बैठते हैं। जन्मकुंडली में बुध एवं गुरु ये दोनों अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। यदि ये पापकर्तरी योग में हों, निर्बल हों अथवा अशुभ स्थिति में हों या पंचम भाव में पाप ग्रह स्थित हो, तो स्मरण शक्ति कमजोर होती है और विषय वस्तु याद करने के बाद भी परीक्षा आने तक मस्तिष्क से गायब सी हो जाती है। अध्ययनकाल के दौरान शनि या राहु की अंतर्दशा चल रही हो एवं जन्मपत्रिका में भी इनकी स्थितियां अनुकूल नहीं हो, शुक्र, मंगल की युति जन्मकुंडली में हो, राहु मंगल का संबंध लग्न अथवा पंचम भाव में बन रहा हो, तो ऐसे जातक अध्ययन काल में अध्ययन की अपेक्षा अन्य असामयिक एवं अनैतिक गतिविधियों में अधिक संलग्न रहते हैं। पढ़ाई इनके लिए दूसरे नंबर का कार्य होता है।
अध्ययन के दौरान यदि साढ़ेसाती अथवा ढैया चल रही हो, राहु-मंगल या शुक्र मंगल की युति लग्न, पंचम या ग्यारहवें भाव में हो, तो ऐसे जातक प्रायः कुसंगति में पड़कर अध्ययन पर ध्यान नहीं देते हैं। यह भी देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि से युक्त होने पर भी ऐसे जातक कुसंगति में पड़कर पढ़ाई से भागने लगते हैं। द्वितीय भाव में या लग्न में राहु या शनि स्थित हो और चंद्रमा भी राहु, शनि या केतु के साथ स्थित हो, साथ ही पंचमेश एवं लग्नेश भी पाप प्रभाव में हो तो विद्यार्थियों को अध्ययनकाल में सिगरेट, गुटका या अन्य दुव्र्यसन शीघ्र अपनी ओर खींच लेते हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार जन्म कुंडली के सभी ग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि दी गई है, तथा गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है, ये दो ग्रह मुख्य रुप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति मे सहायक ग्रह माना जाता है, एेसे अधिकारियों के लिये जिनका कार्य मुख्य रुप से जनता की सेवा करना है, उनके लिये शनि का महत्व अधिक हो जाता है, क्योकि शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच के सेतू है, कई प्रशासनिक अधिकारी नौकरी करते समय भी लेखन कार्य द्वारा अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में भी सफल हुए है, यह मंगल व बुध की कृपा के बिना संभव नहीं है, इसी लिय मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है।
सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दोनों ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद की प्राप्ति में सहायक हैं। जनता से अधिक वास्ता पड़ता है, इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की कड़ी है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है, और ये बली हों तो, जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी में अवश्य मनवाता है।
इसके अतिरिक्त शुक्र यदि अधिक बली हो, चंद्रमा या मंगल से संबंध बनाए, मंगल पंचम या तृतीय भाव में स्थित हो एवं बुध-गुरु निर्बल हो, तो ऐसे विद्यार्थी अध्ययनकाल में फिल्म देखने में अथवा घूमने-फिरने में अपना समय बर्बाद करते हैं और इनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। लग्न व लग्नेश चर या द्विस्वभाव राशि में हो और शनि या राहु लग्न में स्थित हो, तो ऐसे विद्यार्थी प्रायः अध्ययन के प्रति लापरवाह होते हैं, अध्ययन कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हैं। आलस्य से युक्त होते हैं और परीक्षा के दिनों में ही पढ़कर परीक्षा पास करना इनकी फितरत होती है।
जन्मकुंडली में गुरु यदि नीच राशिगत हो, निर्बल हो या पाप प्रभाव में हो एवं लग्नेश की भी ऐसी ही स्थिति हो, तो विद्यार्थी निःसंदेह अध्ययन करता है अर्थात उसमें दूरदर्शिता की कमी होती है। वह अध्ययन तो करता है लेकिन अध्ययन से संबंधित उद्देश्यों या लक्ष्यों का निर्धारण वह नहीं करता है। भाग्य उसे जहां ले जाता है, वहीं वह चला जाता है।
शुक्र और चंद्रमा यदि त्रिक भावगत हों, नीच राशिगत हों या पाप प्रभाव में हो एवं मंगल की अपेक्षा शनि अधिक बली हो, तो ऐसे विद्यार्थी व्यवस्थित ढंग से न तो रहते हैं और न ही अध्ययन करते हैं। उनका अध्ययन कक्ष प्रायः अस्त व्यस्त ही रहता है। अध्ययन का कोई निश्चित समय भी नहीं होता है।
कोई अपनी वाकशक्ति के बल पर आय प्राप्त कर रहा है. तो किसी को अपनी कार्यनिष्ठा के कारण सफलता की प्राप्ति हो पाई है. अपनी कार्यशक्ति व दक्षता के सर्वोतम उपयोग करने पर ही इस गलाकाट प्रतियोगिता में आगे बढने का साहस कर सकता है. आईये देखे की ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कौन से ग्रह से व्यक्ति में किस गुण का विकास होता है.
1. कामकाज की जानकारी व समझ —
काम छोटा हों या बडा हों, उसे करने का तरीका सबका एक समान हों यह आवश्यक नहीं, प्रत्येक व्यक्ति कार्य को अपनी योग्यता के अनुसार करता है. जब किसी व्यक्ति को अपने कामकाज की अच्छी समझ न हों तो उसे कार्यक्षेत्र में दिक्कतों का सामना करना पड सकता है. व्यक्ति के कार्य को उत्कृ्ष्ट बनाने के लिये ग्रहों में गुरु ग्रह को देखा जाता है.
कुण्डली में जब गुरु बली होकर स्थिति हो तथा वह शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों तो व्यक्ति को अपने क्षेत्र का उतम ज्ञान होने की संभावनाएं बनती है। गुरु जन्म कुण्डली में नीच राशि में , वक्री या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हों तो व्यक्ति में कामकाज की जानकारी संबन्धी कमी रहने की संभावना रहती है. सभी ग्रहों में गुरु को ज्ञान का कारक ग्रह कहा गया है. गुरु ग्रह व्यक्ति की स्मरणशक्ति को प्रबल करने में भी सहयोग करता है. इसलिये जब व्यक्ति की स्मरणशक्ति अच्छी होंने पर व्यक्ति अपनी योग्यता का सही समय पर उपयोग कर पाता है।
3.कामयाबी योग :कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है।सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति : उच्च पदाधिकारी बनाता है।द्वितीय, षष्ठ एवं दशम् भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता।केंद्र में गुरु स्थित होने पर उच्च पदाधिकारी का पद प्राप्त होता है।
2. कार्यक्षमता व दक्षता —
किसी भी व्यक्ति में कार्यक्षमता का स्तर देखने के लिये कुण्डली में शनि की स्थिति देखी जाती है। कुण्डली में शनि दशम भाव से संबन्ध रखते हों तो व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में अत्यधिक कार्यभार का सामना करना पड सकता है. कई बार ऎसा होता है कि व्यक्ति में उतम योग्यता होती है. परन्तु उसका कार्य में मन नहीं लगता है।
इस स्थिति में व्यक्ति अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाता है. या फिर व्यक्ति का द्वादश भाव बली हों तो व्यक्ति को आराम करना की चाह अधिक होती है. जिसके कारण वह आराम पसन्द बन जाता है. इस स्थिति में व्यक्ति अपने उतरदायित्वों से भागता है. यह जिम्मेदारियां पारिवारिक, सामाजिक व आजिविका क्षेत्र संबन्धी भी हो सकती है. शनि बली स्थिति में हों तो व्यक्ति के कार्य में दक्षता आती है.
3. कार्यनिष्ठा – जन्म कुण्डली के अनुसार व्यक्ति में कार्यनिष्ठा का भाव देखने के लिये दशम घर से शनि का संबन्ध देखा जाता है । अपने कार्य के प्रति अनुशासन देखने के लिये सूर्य की स्थिति देखी जाती है. शनि व सूर्य की स्थिति के अनुसार व्यक्ति में अनुशासन का भाव पाया जाता है. शनि व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग बनाता है. कुण्डली में शनि जब बली होकर स्थित होंने पर व्यक्ति अपने कार्य को समय पर पूरा करने का प्रयास करता है.
4. स्नेह, सहयोगपूर्ण व्यवहार कई बार व्यक्ति योग्यता भी रखता है उसमें दक्षता भी होती है. परन्तु वह अपने कठोर व्यवहार के कारण व्यवसायिक जगत में अच्छे संबध नहीं बना पाता है. व्यवहार में मधुरता न हों तो कार्य क्षेत्र में व्यक्ति को टिक कर काम करने में दिक्कतें होती है. चन्द्र या शुक्र कुण्डली में शुभ भावों में स्थित होकर शुभ प्रभाव में हों तो व्यक्ति में कम योग्यता होने पर भी उसे सरलता से सफलता प्राप्त हो जाती है. अपनी स्नेहपूर्ण व्यवहार के कारण वह सबका शीघ्र दिल जीत लेता है. बिगडती बातों को सहयोगपूर्ण व्यवहार से संभाल लेता है. चन्द्र पर किसी भी तरह का अशुभ प्रभाव होने पर व्यक्ति में सहयोग का भाव कम रहने की संभावनाएं बनती है.
5. यान्त्रिक योग्यता आज के समय में सफलता प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को कम्प्यूटर जैसे: यन्त्रों का ज्ञान होना भी जरूरी हो. किसी व्यक्ति में यन्त्रों को समझने की कितनी योग्यता है. यह गुण मंगल व शनि का संबन्ध बनने पर आता है. केतु को क्योकि मंगल के समान कहा गया है. इसलिये केतु का संबन्ध मंगल से होने पर भी व्यक्ति में यह योग्यता आने की संभावना रहती है. इस प्रकार जब जन्म कुण्डली में मंगल, शनि व केतु में से दो का भी संबन्ध आजिविका क्षेत्र से होने पर व्यक्ति में यन्त्रों को समझने की योग्यता होती है!
6. वाकशक्ति बुध जन्म कुण्डली में सुस्थिर बैठा हों तो व्यक्ति को व्यापारिक क्षेत्र में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. इसके साथ ही बुध का संबन्ध दूसरे भाव / भावेश से भी बन रहा हों तो व्यक्ति की वाकशक्ति उतम होती है. वाकशक्ति प्रबल होने पर व्यक्ति को इस से संबन्धित क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में सरलता रहती है
7. बाधा के योग भाव दूषित हो तो अशुभ फल देते है। ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो काममे बाधा आती है |लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में ,तो भी बाधा आती है . लग्न कुंडली में जो भाव, भावेश व भाव कारक अच्छी स्थिति में हों, उस भाव के जीवन में अच्छे फल मिलेंगे और जो भाव, भावेश व भाव कारक अशुभ स्थिति में हों, उसके फल नहीं मिलेंगे।