स्वधर्म को जानो बुराई नहीं अच्छाई मानो

धर्मनिरपेक्षता

—विनय कुमार विनायक
मैं स्वधर्म को पहचानता हूं
बुराई नहीं अच्छाई को जानता हूं
मैं उस भगवान राम को मानता हूं
जिन्होंने माता पिता की आज्ञा मानी
अनुज हेतु त्याग,लघुजनों को मान दिया!

मैं उस राम की निंदा करता हूं
जिन्होंने अति आदर्शवाद दिखाकर
परित्याग किया धर्मपत्नी सीता का साथ
अबला नारी को वन-वन भटका दिया
विप्र गुहार पर तपी शूद्र का संहार किया!

मैं उस राम को आदर्श मानता हूं
जिन्हें जन अफवाह का तनिक ना भय हो
जिनका रावण भांजा शंबुक नहीं सर्व दलित
वनवासी और अपनी परिणीता पर हाथ हो!

मैं उस कृष्ण की अराधना करता हूं
जिनके साथ प्रेम की मुरली हो
मगर राधा नहीं रुक्मिणी का हाथ हो
मैं उस कृष्ण की वंदना करता हूं
जो जयदेव विद्यापति सूर के गीत में नहीं
गीता की सत्यमेव जयते वाणी में जीवंत हो!

मैं धर्मराज युधिष्ठिर के
उस धर्म की घोर निंदा करता हूं
जिसके पालन में अनुज की पतिम्बरा नारी
द्रोपदी से सामूहिक विवाह रचा लिया
वाकवीरा माता कुंती के आदेश के बहाने!

मैं उस धर्मराज से बगावत करता हूं
जिसमें पाशा खेला जाता हो और हारे को
निज धर्मपत्नी को दांव लगाने उकसाता हो
नारी जाति की महिमा खंडित करके!

मैं भगवान परशुराम के उस परशु धर्म
व पितृ भक्ति को धिक्कारता हूं जिसके बूते
वे मातृहंता, मानव रक्त पिपासु बन गए थे!

स्वधर्म मजहब का उतना ही पालन करो
जिससे सृष्टि हित, मानव का ना अहित हो
किसी अवतार नबी से उतना ही प्यार करो
जिसमें दिखावा व रुग्ण मानसिकता नहीं हो
जिससे दूसरों की आस्था नहीं आहत हो!

किसी अवतार नबी का विचार उतना ग्रहण हो
जितना समकालीन जनमत हेतु अनुकूल लगे
जो मानव समाज के प्रतिकूल कभी नहीं हो
धर्म मजहब के नाम कोहराम क्यों मचाते हो
धर्म मजहब की ढेर मान्यताएं कालातीत होती
स्वधर्म को जानो बुराई नहीं अच्छाई मानो!
—विनय कुमार विनायक

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