कोरोना की रामबाण दवा नहीं है रेमडेसिविर

क्यों हो रही है रेमडेसिविर के लिए इतनी मारामारी?
– योगेश कुमार गोयल

कोरोना की दूसरी लहर भारत में इतना भयानक रूप धारण कर चुकी है कि पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट को कहने पर विवश होना पड़ा कि यह दूसरी लहर नहीं बल्कि सुनामी है और अगर हालात ऐसे ही चलते रहे तो अनुमान लगाए जा रहे हैं कि अगले कुछ महीनों के भीतर मौतों का कुल आंकड़ा कई लाखों में पहुंच सकता है। इन दिनों कोविड संक्रमण के प्रतिदिन साढ़े चार लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और हजारों लोगों की रोजाना मौत हो रही हैं। यही कारण है कि कोरोनावायरस के तेजी से बढ़ते मामलों की वजह से देशभर में अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा कोरोना के इलाज में बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित कुछ दवाओं की मांग में इतनी जबरदस्त वृद्धि हो गई है कि स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ने लगी हैं और रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी के मामले देशभर से लगातार सामने आ रहे हैं। हालांकि एंटीवायरल दवा ‘रेमडेसिविर’ का उत्पादन देश में कई कम्पनियां करती हैं लेकिन अचानक मांग में आई तेजी के चलते इसकी किल्लत इतनी ज्यादा हो रही है कि मुनाफाखोरों को आपदा को अवसर में भुनाने में कोई शर्म नहीं आ रही। हालांकि रेमडेसिविर की मांग को देखते हुए पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा इसकी कीमतें घटाने का फैसला लिए जाने के बाद इसका उत्पादन करने वाली सात अलग-अलग कम्पनियों ने इसके दाम 899 से 3490 रुपये के बीच तय कर दिए लेकिन आज भी यह दवा 30 से 70 हजार और कहीं-कहीं एक लाख से भी ज्यादा में बेची जा रही है।
एक ओर जहां लोगों के बीच एक-एक रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए मारामारी मची है, वहीं आए दिन देशभर में अलग-अलग स्थानों पर पुलिस द्वारा इनकी कालाबाजारी करने वाले गिरोहों के सदस्यों को गिरफ्तार कर उनके पास से इन इंजेक्शनों की बड़ी खेप जब्त की जा रही है। दरअसल आपदा में अवसर को भुनाने वाले ऐसे असामाजिक तत्वों द्वारा इन इंजेक्शनों को 25-50 हजार तक में बेचा जा रहा है। कई जगहों पर तो ऐसे कई मामले भी सामने आ चुके हैं, जहां रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में विभिन्न अस्पतालों का स्टाफ ही संलिप्त होता है। कुछ जगहों पर नर्सिंग कर्मियों द्वारा ही कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए उनके परिजनों द्वारा लाए जाने वाले इंजेक्शनों को ही चोरी कर बेचने के मामले प्रकाश में आए तो भोपाल के जेके अस्पताल में तो एक नर्स कोरोना संक्रमितों को रेमडेसिविर की जगह सामान्य इंजेक्शन लगाकर रेमडेसिविर इंजेक्शन चुरा लेती थी और चोरी किए इंजेक्शन को अपने प्रेमी के जरिये 20-30 हजार में ब्लैक में बिकवाती थी। चिंताजनक स्थिति यही है कि एक ओर जहां अस्पतालों में जरूरतमंद मरीज रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिलने के कारण परेशानी झेलने को विवश हैं, वहीं प्रशासन की नाक तले रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी हो रही है और देशभर में ऐसे अनेक गिरोह सक्रिय हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर क्या वजह है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की इतनी मांग बढ़ रही हैं और कालाबाजारियों को आपदा को अवसर में बदलने का अवसर मिल रहा है। दरअसल कोरोना की पहली लहर के दौरान इसकी डिमांड दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू, चेन्नई, लखनऊ, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत जैसे महानगरों और बड़े शहरों तक सीमित थी लेकिन चूंकि दूसरी लहर की शुरूआत से ही अधिकांश डॉक्टरों ने इस एंटी-वायरल दवा को संक्रमण के शुरूआती दिनों में कारगर माना और कहा गया कि यह कोरोना बीमारी की अवधि को कम करती है और संक्रमण अधिक फैलने से फेफड़ों के खराब होने की स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि कुछ डॉक्टरों का कहना है कि यह कोविड के 100 में से केवल 70-75 ऐसे मरीजों पर ही काम करती है, जिनके फेफड़े कोरोना के कारण प्रभावित हुए हों और इसका इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से केवल डॉक्टरी सलाह पर ही किया जाना चाहिए। अस्पतालों में भर्ती किए जाने वाले कारोना मरीजों के लिए बहुत से डॉक्टर रेमडेसिविर लिख रहे हैं, जिसकी तलाश में परेशानहाल परिजन मुंहमांगी कीमत पर रेमडेसिविर यह खरीदने के लिए यहां-वहां भटक रहे है। कोरोना के बढ़ते आतंक को देखते हुए जरूरतमंदों के अलावा दूसरे लोगों में भी इस इंजेक्शन को हासिल करने की होड़ सी मची है।
जान लें कि रेमडेसिविर है क्या? रेमडेसिविर बनाने का पेटेंट अमेरिकी दवा निर्माता कम्पनी ‘गिलेड लाइफ साइंस’ के पास है, जिसने इसे हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए बनाया था और बाद में इसमें कुछ सुधार कर इसे इबोला वायरस के इलाज के लिए बनाया गया। अब कई देशों में कोरोना के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक यह दवा उन एंजाइम्स को ब्लॉक कर देती है, जो शरीर में कोरोना वायरस को भयानक रूप धारण करने में मदद करते हैं। भारत में केडिला, जाइडस, डा. रेड्डी लेबोरेटरीज, हेटेरो ड्रग्स, जुबलिएंट लाइफ साइंसेज, सिप्ला लि., बिकॉन ग्रुप, माइलन इत्यादि कुछ कम्पनियां इसका निर्माण कर रही हैं, जिनका गिलेड के साथ करार है। ये कम्पनियां प्रतिमाह करीब 34 लाख यूनिट रेमडेसिविर बनाती हैं, जिनका निर्यात दुनियाभर के 120 से भी अधिक देशों में किया जाता है। दिसम्बर 2020 के बाद से भारत में कोरोना के मामलों में कमी दर्ज किए जाने के कारण रेमडेसिविर की मांग में काफी कमी आ गई थी, जिस कारण कम्पनियों ने इसका उत्पादन काफी कम कर दिया था। कोरोना की दूसरी लहर अचानक सामने आने के बाद एकाएक इसकी मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई, यही इसकी कालाबाजारी का प्रमुख कारण है।
एक ओर जहां रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग लगातार बढ़ रही है, वहीं एम्स निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया सहित कई जाने-माने डॉक्टर अब स्थिति स्पष्ट करते हुए कह रहे हैं कि रेमडेसिविर को जादुई दवाई नहीं समझें क्योंकि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना की कोई रामबाण दवा नहीं है। डा. गुलेरिया के मुताबिक रेमडेसिविर कोई जादुई दवा नहीं है और अभी तक ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे यह पता चलता हो कि हल्के संक्रमण में रेमडेसिविर लेने से जिंदगी बच जाएगी या इसका कोई लाभ होगा। उनके अनुसार कोरोना से संक्रमित बहुत कम ऐसे मरीज हैं, जिन्हें रेमडेसिविर जैसी दवा की जरूरत है और किसी भी स्टडी से यह भी नहीं पता चलता कि रेमडेसिविर के इस्तेमाल से मृत्युदर घटती है। डा. गुलेरिया का कहना है कि अधिकांश लोग केवल कोरोना के डर की वजह से घर में क्वारंटाइन हो रहे हैं या अस्पताल जा रहे हैं जबकि ऐसे लोगों को किसी विशेष तरह के इलाज की जरूरत ही नहीं है, सामान्य बुखार की तरह पैरासिटामोल से ही उन्हें राहत मिल जाएगी और वे ठीक हो जाएंगे, उन्हें रेमडेसिविर की कोई आवश्यकता नहीं। हल्के लक्षणों वाले लोगों को समय से पहले दिए जाने पर इसका कोई फायदा नहीं है।
गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी अस्पताल के चेयरमैन डा. नरेश त्रेहन का यही मानना है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना के इलाज की कोई रामबाण दवा नहीं है। उनके मुताबिक यह मृत्युदर घटाने वाली दवा भी नहीं है बल्कि देखा गया है कि यह केवल वायरल लोड कम करने में मदद करती है और हर मरीज के लिए इसका इस्तेमाल जरूरी नहीं है। उनका कहना है कि रेमडेसिविर सभी संक्रमितों को नहीं दी जाती बल्कि इसके इस्तेमाल का सुझाव मरीजों के लक्षणों और संक्रमण की गंभीरता को देखने के बाद ही किया जाता है। कोरोना संक्रमण को लेकर पटना हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान जब अदालत ने बेड, ऑक्सीजन और रेमडेसिविर को लेकर हाल ही में सरकार से जवाब मांगा तो एम्स पटना के निदेशक ने कहा था कि वहां रेमडेसिविर का इस्तेमाल कोरोना मरीजों के इलाज में नहीं किया जा रहा है क्योंकि यह इलाज में बेअसर है। उसके बाद नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एनएमसीएच) ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया और एनएमसीएच अधीक्षक ने रेमडेसिविर को लेकर जारी पत्र में कहा कि डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी गाइडलाइन में इस इंजेक्शन से मृत्युदर या संक्रमण कम होने की बात नहीं कही गई है।
गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ सहित कई देश रेमडेसिविर को कोरोना के इलाज की दवा सूची से बाहर निकाल चुके हैं। हालांकि शुरूआत में डब्ल्यूएचओ ने इसके आपात इस्तेमाल की अनुमति दी थी, जिसके बाद भारत में भी आईसीएमआर द्वारा इसका उपयोग केवल आपात स्थिति में करने की इजाजत दी गई थी, जिसे बाद में निजी अस्पतालों ने भारी मुनाफे के चलते धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल शुरू दिया। बहरहाल, आईएमए बिहार के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सहजानंद प्रसाद सिंह ने भी अब स्पष्ट किया है कि रेमडेसिविर से कोरोना मरीजों की जान बचाने या मृत्यु कम करने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण अब तक नहीं मिला है और चिकित्सक अपने अनुभव के आधार पर ही इसका उपयोग कर रहे हैं, इसलिए रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,766 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress