शोक, दुख व मृत्यु पर भी मुस्कुराते हुए कृष्ण

आत्माराम यादव पीव

श्रीकृष्ण जैसा अदभुत अलौकिक चरित्र दूसरा नहीं मिलता है, इसलिए किन्हीं भी परिस्थिति में कोई भी सांसारिक घटना हो, जिसमें लोग विषाद में हो, संकट में , किसी की मृत्‍यु पर अपना दुख व्यक्त कर रो रहा हो, या स्वयं उन्हें संकट में डालने की धमकी दे रहा हो, वे सदैव निर्द्वन्द्व इस संसार के रंगमंच पर हॅसते हुए अपनी मुस्कान बिखेरे दिखाई देते है। इस जगत में जहॉ सुख में, खुशी में लोग मुस्कुराते है, दुख में, विषाद में , संकट में रोते है किन्तु कृष्ण गजब के है वे विपत्तियों के घने बादल घिर आने पर घोर अंधकार में अपनी मुस्कान की बिजली गिरा के समाज को अचंभित करते है। जगत की हर घटना में शामिल होकर शामिल न रहना उनका व्यक्तित्व रहा है और चेहरे पर आने वाली मुस्कान अपने आप में अद्वितीय रही है जो भी उनकी मुस्कान का साक्षी रहा उन्हें लगा कि बचपन में जो मां यशोदा के यहां छाछ-मक्खन खाया है वह मिठास उनके हृदय से आनन्द का सागर बनकर हिलौरे मार रही है।

जन्म के पश्चात शिशुरूप कालकोठरी में वसुदेव देवकी के समक्ष वात्सल्य विमोहित होकर हॅसते हुए उन्हें ढाढस बॅधाकर फिर अपनी माया का प्रभाव दिखाकर रोने लगते है। कुछ घन्टे बाद बाबा नंद के यहॉ जाते समय वसुदेव यमुना की बाढ़ से त्रस्त है, मूसलाधार बारिस उन्हें परेशान कर रही है किन्तु बालक कृष्ण के चरणवन्दन हेतु यमुना का जल हिलौरे मार वसुदेव जी को दुख प्रदान कर रहा है और कृष्ण मौज से मुस्कुराते है। नन्दबाबा के घर जाकर उनकी सारी बाललीलाओं में कृष्ण की मुस्कुराहट एवं हॅसी के मोह से ग्रसित सारे गोकुल के नर नारी एवं बच्चे उस मुस्कुराहट की छवि को देखने के लिए कोई भी अवसर गॅवाना नहीं चाहते है। पूतना दूध पिलाते पिलाते उन्हें गॉव से दूर ले जाती है सभी दुखी है रो रहे है किन्तु कृष्ण उस महाप्रलयंकारी राक्षसी पूतना के प्राणहरण कर उसकी छाती पर बैठे हुए हॅस रहे है। उनकी बचपन की नटखट माखन चोरी के अनेक प्रसंगों में गोपियॉ उलाहना देने आती है वे भवन के आसपास लुक-छिपकर मुस्कुराते है। मिटटी खाने की लीला में मॉ छड़ी लिए खडी है और वे मुस्कुराकर मॉ को ब्रम्हाण्ड के दर्शन करा रहे है। मॉ ऊखली से बॉध काम में लग जाती है वे मुस्कुराते हुए यमलार्जुन का कल्याण कर अपनी मुस्कान बिखेरे रखते है। इन्द्रदेव अपने महाप्रलयंकारी मेघों से ब्रजमण्डल को बहा देना चाहता है किन्तु गाय-बछड़ों और ग्वालवालों सहित सभी के प्राणों की रक्षा कर कृष्ण अपनी अंगुली पर गोवर्धन उठाए मंद मंद मुस्कुराते हुए इन्द्र का घमण्ड चूर-चूर कर अपनी मुस्कुराहट से सभी का दिल जीत लेते है। गोपिकाओं के चीर चुराने की लीला करते समय जलदेव में वास करने वाले वरूणदेव का अपमान रोकने के लिए वे उनके चीर कंदम की डाली पर लेकर मजे से बॉसुरी बजा रहे है। गोपिकाए हाथ जोड़कर वस़्त्रों के लिए गिड़गिड़ा रही पर मुरलीमनोहर अपनी मुरली की तान छेड़कर मुस्कुरा रहे है और मुस्कुराते हुए गोपियों से सुनसान में किसी भी नदी सरोवर में नग्न स्नान न करने की शपथ लेते है।

वासुदेव की आज्ञा से कंस का निमंत्रण लेकर अक्रूर जी नंद बाबा के महल में आकर कृष्ण को मथुरा ले जाने की बात कर रहस्योदघाटन करते है कि कृष्ण वासुदेव पुत्र है, उनका पुत्र नहीं, यह हृदय चीरने वाले कठोर सत्य को जानकर नन्दबाबा एवं यशोदा पर वज्रपात होता है किन्तु तब भी कृष्ण मुस्कुराते हुए नन्द बाबा को ज्ञान देकर अपने कर्तव्य पालन की सीख देते है। अक्रूर जी कृष्ण की सुरक्षा को लेकर चिंतित है तब उन्हें अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन करा उनकी चिंता का निराकरण करते समय मुस्कुराते रहते है। कंस की रंगशाला में जाते समय अपने बल के नशे में चूर कुवलयापीड को खडा देख मुस्कुराते है और साथ ही मुष्टक और चाणूर से भिड़कर उन्हें हँसी-मजाक में खेल खेल में यूमपुर पहुंचा देते है। कंस की छाती पर सवार हो हॅसते हुए पूछते हो कहो मामा अब तक की सारी कसर निकाल लें और कंस का खेल समाप्त करते है।

कालयवन को खेल खेल में मुस्कुराते हुए लड़ने का आमंत्रण देकर भागते हुए रणछोड़दास कहाते है और गुफा में जाकर राजा मुचुकुन्द के हाथों उसका कल्याण कराते है। जरासन्ध के यहॉ पहुॅच उसे लड़ने के लिए उकसाकर भीम से टक्कर लेने पर अलग सलग खड़े हो जाते है, भीम के दावपेच असफल होने पर वे अंत म मुस्कुराते मुस्कुराते हुए इशारा कर एक तिनके के द्वारा दो भाग कर उसे पृथक दिशाओं में फेंकने का संकेत देते है और भीम तत्काल जरासंध को चीरकर उसको यमपुरी पहुंचा देता हैं। युधिष्ठिर की यज्ञशाला में जब श्रीकृष्ण की प्रथम पूजा शुरू होती है तब शिशुपाल आकर सभा में गालियॉ बकने लगता है जिसे सुनकर सारी सभा और राजाओं का धैर्य जबाव दे जाता है और वे उसे सबक सिखाना चाहते है जिसमें भीम अर्जुन खड़े जाते है किन्तु कृष्ण मुस्कुराकर शांत रहने का इशारा करते है। श्रीकृष्ण शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा करने का वचन उनकी मॉ को देते है और चुपचाप सभा के बीच में गालियां सुनकर मुस्कुराते रहते है। फिर जैसे ही 95 अपराध होते है वे उसे सावधान कर अपना वचन याद कराते है और जैसे ही 100 अपराध पूरे होते है वे हॅसते हुए शिशुपाल को सुदर्शन चक्र से उसके अपराधों का दण्ड देते है।

कृष्ण का हॅसना मुस्कुराना अपने आप में रहस्य है जिसे समझ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है फिर बड़े भाई बलराम भी कैसे समझ सकते है। बलराम अपनी बहन सुभद्रा का हाथ दुर्योधन के हाथों में देने का निर्णय लेते है जबकि सुभद्रा को अर्जुन से प्रेम था जिसे कृष्ण जानते थे और उन्होंने अर्जुन को सुभद्रा के हरण के लिए प्रोत्साहित किया ,इशारा पाकर अर्जुन सुभद्रा को लेकर भाग जाते है जिसे जानते समझते हुए कृष्ण मुस्कुराते रहते है, यादव सेना इधर-उधर भागमभाग करती है, बलराम कृष्ण से अर्जुन पर हमला करने का कहते है किन्तु वे मुस्कुराते है और जब बलराम को पता चलता है कि सुभद्रा ही रथ चलाते हुए अर्जुन को ले गयी तब बलराम जी भी सच जानकर कृष्ण पर लाल-पीले हो खरी-खरी सुनाने से नहीं चूकते और कृष्ण उनकी बातेंं सुनकर मुस्कुराकर रह जाते है। धूर्त क्रीडा में पाण्डव सब दाव पर लगा देते है तब दूर्योधन मूछों पर ताव देकर दुशासन को आदेश देकर द्रोपदी को सभा में खींचकर लाने को कहता है, शकुनी और कर्ण ठहाके लगाते है। दुशासन की बलशाली भुजाए द्रोपदी को निवस्त्र करने में शिथिल हो जाती है किन्तु कृष्ण भरी सभा में मुस्कुराते हुए उसका चीर बढ़ाने की लीला करते है।

कृष्ण की मुस्कुराहट का जितना गुणगान करें कम ही होगा। वे पाण्डवों की ओर से शांति प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र की सभा में आते है तब अहंकारी दूर्योधन उसे ठुकुरा देता है और कृष्ण को बन्दी बनाने का आदेश देता है तब भी कृष्ण मुस्कुराते है, उनकी रहस्यमय मुस्कुराहट इसलिए मायने रखती है कि धृतराष्ट्र की सभा में वे अकेले है, कोई सहायक नहीं है, फिर भी दूत की भूमिका में आने पर मदान्ध दूर्योधन बंदी बनाने का आदेश देकर गीदड़ों जैसी उछलकूद कर थक जाता है और कृष्ण सिंह की भॉति मन ही मन मुस्कुराते हुए अपने ओठों पर बिखरी मुस्कुराहट से सभासदों के समक्ष भय का संचार कर जाते है। भीष्म, विदुर आदि कृष्णभक्तों को उनकी हॅसी में परमानन्द की निधि मिलती है और वे अपने ललाम लोचनों और कमनीय कपोलों के विकास से अपनी अन्तरात्मा की मुस्कान से खिल उठते है।

कुरूक्षेत्र में अर्जुन दोनों सेनाओं के बीच अपना रथ खड़ाकर मोहग्रस्त होकर युद्ध से इंकार कर देता है तब मोहग्रस्त अर्जुन का मोहभंग मुस्कुराते हुए कृष्ण उसके सभी प्रश्नों का समाधान कर युद्ध के लिए तैयार करते है। भीष्म युद्ध में महाप्रलय मचाने लगे तब भक्त प्रणपालक बन कृष्ण क्रोधित होने का अभिनय कर चक्र लिए भीष्म की ओर दौड़ते है,तब भीष्म निशस्त्र होकर विनती कर शस्त्र न उठाने की उनकी प्रतिज्ञा को तोड़े जाने को अपना मान बढ़ाये जाने पर उनसे विनती करते है तब वे चुपचाप मुस्कुराते हुए रथ पर लॉट आते है। अर्जुन अपने पुत्र अभिमन्य के वध पर विलाप करते है तब वे मुस्कराकर समझाते है तुम किसके लिए रो रहे हो, अभिमन्यु अपने को सुयोग्य माता पिता का सुयोग्य पुत्र होना सिद्ध कर गया और तुम्हारे यश,कीर्ति को सारे जगत में धवलित कर गया। वही सुभद्रा छाती पीटकर रोती है तो उसे हॅसकर कहते है तुम्हें ऐसा वीर पुत्र को जन्म देने पर गर्व करना चाहिए, छत्राणी इसी दिन के लिए पुत्र को जन्म देती है। कृष्ण का इस कठिन दुख की परिस्थितियों में मुस्कुराकर ज्ञान-वैराग्य का संदेश देना अपने आप में रहस्य पैदा करता है। घटोत्कच के मारे जाने पर भीम शोक से चीत्कार मारकर रोने लगा तब कृष्ण मुस्कुराने लगे, जिसे देख भीम कुपित हुए कि मेरा प्यारा बेटा मारा गया और तुम हॅस रहे हो, इस पर कृष्ण ने भीम को आश्वत कर कहा, क्यों बेकार बालक की तरह बिलख बिलख कर रो रहे हो? क्या तुम्हारे लिए अर्जुन से बढ़कर घटोत्कच था? इस महत्वपूर्ण समय में तुम्हारा बेटा अर्जुन की ढाल बनकर सच्चा बेटा साबित हुआ है। घटोत्कच के वीरगति पर कायर की तरह इतना दुख करोंगे? इन्द्र प्रदत्त कर्ण की शक्ति यदि आज अर्जुन पर समाप्त करता तो क्या घटोत्कच को देखकर तुम्हें संतोष होता?रोना धोना छोड़ो अर्जुन के प्राण बच गये, इसके लिए खुशियॉ मनाओं।

श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर इस धरा पर रहने के आखिरी दिन तक के जीवन में भीषणतम दुख,पीड़ा, वेदना और विरह में, सभी ओर उनकी मुस्कान की माधुरी ही बिखरी रही, जिसे शब्दों में संजों पाना किसी के लिए भी संभव नहीं हैं। यही कारण है कि सारे पुराणों में कृष्ण को आनन्दकन्द, ब्रजचन्द, श्रीकृष्णचंद, मन्द मन्द मुस्कुराने वाला कहा गया है, वे सुन्दर श्यामल शरीर के स्वामी,तन, मन, प्राणों की भावभंगिमा में आनन्दमंद मुस्कान की माधुरी से आनन्द लुटाते रहे है और आज भी उस आनन्द की फुहारों में हमें, आपको स्नान कर उनकी मुस्कुराहट पर अपना सर्वस्य न्यौछावर कर जीवनमरण से मुक्ति के का मार्ग खुला हुआ है,आईए आप भी इस मुस्कुराहट में भावविभोर होने के अवसर का न गवाईये।

आत्माराम यादव पीव 

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