कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार

माखन-चोर कन्हैया की छटा निराली
शीश पर मोर-पंख, अधरों पर लाली।
गोपियों के रास-रचैया, भक्तों के तारणहार
कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार।

तुझ संग मेरी प्रीत लगी ओ साँवरे !
आकर मेरी पतवार तू थाम ले।
तन-मन-जीवन तुझ पर अर्पण
स्वीकार कर कान्हा मेरा समर्पण।
गोपियों के रास-रचैया, भक्तों के तारणहार
कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार।

आततायी कंस ने जब मचाया हाहाकार
कृष्णा रूप लेकर तुमने किया संहार।
द्रौपदी ने भरी सभा में जब किया चीत्कार !
लाज बचा दिया आत्मसम्मान का उपहार।
गोपियों के रास-रचैया, भक्तों के तारणहार
कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार।

कृष्णा रूप धर किया हम पर उपकार
कन्हैया तुम बारंबार लो धरती पर अवतार।
मेरे रणछोड़ ! तुम्हारी रणनीति ने दिया सबको पछाड़
ग्वाल-रूप में भी किया प्रकृति से तुमने प्यार।
गोपियों के रास-रचैया, भक्तों के तारणहार
कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार।

संपूर्ण जीवन-वृत्त तुम्हारा मार्गदर्शन है
प्रकृति-प्रेमी, मित्र, गुरु, शांति-दूत,
पुत्र, सारथी, शाषक या रहे तुम रास-रचैया
तुम्हारे हर रूप को कोटिशः अभिनंदन है।
गोपियों के रास-रचैया, भक्तों के तारणहार
कृष्ण तुम ही हो मेरे खेवनहार।

लक्ष्मी अग्रवाल

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