कुमार कृष्णन
अगर कभी न हार मानने का जुनून हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। जी हां हम बात कर रहें हैं नक्सल प्रभावित मुंगेर जिले के घरहरा प्रखंड के बंगलवा पंचायत की। यह क्षेत्र नक्सलियों के खौफ से वर्षो से खौफजदा रहा है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा जाति बाहुल यह इलाका मुख्यतः सुरम्य एवं दुरूह पहाड़ी क्षेत्र है जहां के लोगों के बीच नक्सलियों के खौफ के साथ सामंती प्रवृति के दबंगों का खौफ सामान्य लोगों पर बराबर बना रहता था। दबंगों के सामने सामान्य लोगों का कोई बस नहीं चलता था। यहां चौथी क्लास तक पढ़ने वाली एक महिला जया देवी आज दूसरों के लिये मिसाल है। उनके काम की बदौलत लोग ना सिर्फ उनको पर्यावरण का पहरेदार मानते हैं।
ग्रीन लेडी के नाम से चर्चित मुंगेर की जया देवी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नई दिल्ली में आयोजित समारोह में वर्ष 2016-17 का नेशनल लीडरशिप अवार्ड दिया।
ग्रीन लेडी के नाम से चर्चित मुंगेर की जया देवी फिर राष्ट्रीय स्तर चर्चित हो गयी है। हाल में ही राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में वर्ष 2016-17 का नेशनल लीडरशिप अवार्ड दिया। लक्ष्मी पथ सिंघानियां भारतीय प्रबंधन संस्थान लखनऊ की ओर से सामुदायिक विकास में अहम योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कार पाने वाली जया देवी बिहार की पहली शख्सियत हैं।
अपनी मेहनत, लगन और कुछ कर गुजरने के जूनुन के कारण बिहार के मुंगेर जिले में रहने वाली जया देवी को लोग ‘ग्रीन लेडी ऑफ बिहार’ के नाम से जानते हैं। वह मानती है कि समाज की बेहतरी के लिये अच्छी सोच और अच्छी नीयत की जरूरत होती है। इतना ही नहीं महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिये उन्होने महिलाओं को एकजुट कर स्वयं सहायता समूह की स्थापना की। इस वजह से जो महिलाएं सालों पहले कर्जदार के चंगुल में फंसी रहती थी, वो आज अपनी बचत के जरिये आत्मनिर्भर बन रही हैं।
34 साल की जया देवी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था, लेकिन तब उनके गांव में लड़कियों को ज्यादा पढाया नहीं जाता था और उनकी जल्दी शादी कर दी जाती थी। बात 90 के दशक की है। सरादि गांव में लड़कियां 10-12 साल की उम्र में ब्याह दी जाती थीं। जया बताती हैं’ बड़ी बहन मुझसे ज्यादा सुंदर थी न, दबंग उठा न ले जाएं इसलिए उसे नाना के पास कलकत्ता भेज दिया था। स्कूल जाने का सोचना पाप था। साथ वाले गांव में मैं और मेरी एक सहेली छिपकर स्कूल देखने जाते।’ मेरे पिता सातवीं पास थे, उन्होंने मुझे स्कूल छिप-छिप कर जाते देखा तो गांव में स्कूल खुलवाने के लिए अपनी जमीन भी दी। दबंगों ने उसपर भी कब्जा कर लिया, विरोध किया तो खूब पीटा। चाचा की जमीन कब्जा की। गुस्सा नहीं आएगा क्या? आग लगती थी मन में। पर इससे पहले कि सोचने-समझने लायक होती। सन् 90 में 12 की उम्र में मेरी भी शादी हो गई। 93 में पिता गुजर गए तो अपनी तीन और डेढ़ साल की बच्ची के साथ सरादि रहने आ गई। पति मुंबई में मजदूरी करते थे तो मना नहीं किया। एक दिन खबर मिली कि मेरी सहेली के पति को दुष्कर्म वाली घटना पता चल गई और उसे घर से बाहर निकाल दिया गया है। यही वजह रही की उनके पिता ने भी 12 साल की उम्र में उनका विवाह जया देवी से दोगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया। विवाह के बाद वो अपने ससुराल आ गई तब उनके पति मजदूरी करते थे। जया देवी का परिवार बढ़ चुका था, लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ी थी लिहाजा उनके पति काम की तलाश में गांव से शहर आ गये। इस बीच जया देवी के पिता का देहांत हो चुका था। तब जया देवी अपने बच्चों के साथ मायके में आकर रहने लगीं। यहां आकर उन्होने तय किया कि वो घर का खर्च चलाने के लिये कुछ काम करेंगी लेकिन गांव के हालात पहले जैसे थे। लड़कियों को अब भी पढ़ने नहीं दिया जा रहा था। ये एक नक्सल प्रभावित इलाका था इस कारण लोग अन्याय के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाते थे। तब जया ने सोचा कि किसी ना किसी को तो आवाज उठानी ही पड़ेगी, क्योंकि अगर आवाज नहीं उठाई गई तो लड़कियों और महिलाओं का इसी तरह शोषण होता रहेगा।
जया देवी ने समाज में बदलाव लाने के लिये सिस्टर आजिया से सम्पर्क किया और उनके साथ मिलकर महिलाओं और लड़कियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। शुरूआत में जया को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था। इसलिए उन्होने सबसे पहले स्वंय सहायता समूह के काम करने के तरीके के बारे में 15 दिन की ट्रेनिंग ली। उसके बाद उन्होने महिलाओं को समझाया कि वो रोज जितना खाना बनाती हैं उसमें से 1 मुट्ठी अनाज वो अलग निकाल कर रख दें इस तरह हफ्ते में 1 दिन उनको अनाज नहीं खरीदना पड़ेगा और इस तरह वो कुछ पैसे बचा सकेंगी। इसी तरह जया देवी ने महिलाओं को सब्जी और दूसरे सामान खरीदने पर भी कैसे पैसे बचाये जा सकते हैं, इसके बारे में बताया। इस तरह जया देवी के साथ जुड़ी ये महिलाएं हर हफ्ते 5 रुपये बचाकर उनको देती थी। धीरे-धीरे जब उनके काम का विस्तार होता गया तो आसपास के दूसरे गांवों की महिलाएं भी उनसे जुड़ने लगी। जया बताती है कि—’ शुरूआत में जब मैं दूसरी महिलाओं को अपने काम के बारे में बताने जाती थीं तो वो अपने घर का दरवाजा भी नहीं खोलती थीं। तब मैं घंटों उनके घर के बाहर बैठी रहती थी। फिर जब वो महिला घर से बाहर निकलती तो उनको समझाती थी कि क्यों मैं तुम लोगों को स्वंय सहायता समूह में शामिल होने के लिए कह रहीं हूं।’
जब पहली बार उनके स्वंय सहायता समूह में 20 हजार रुपये जमा हो गये तो उन्होने उस राशि का 10 प्रतिशत निकालकर अपने पास रख लिया और शेष राशि को बैंक में जमा कर दिया। स्वंय सहायता समूह बनने के बाद जो भी महिलाएं इसकी सदस्य बनी उनको अपने जरूरी खर्चों के लिए समूह से ही कम ब्याज पर पैसा मिलने लगा। इस कारण वो साहूकारों से मिलने वाले कर्ज के चंगुल में फंसने से बच गई, क्योंकि पहले ये महिलाएं जब साहूकारों के पास जाती थीं तो वो उनको ऊंची ब्याज दर पर पैसा देते थे। कई बार तो ब्याज मूल धन से भी ज्यादा हो जाता था। जया देवी भले ही पढ़ाई नहीं कर पाई हों लेकिन वो जानती थी कि किसी के जीवन में शिक्षा कितनी जरूरी होती है। इसलिये उन्होने अपने गांव में शिक्षा का प्रसार करने के लिए साक्षरता अभियान चलाया। इसके लिए उन्होने अखबारों और प्रचार के दूसरे तरीकों के जरिये लोगों से बच्चों की पुरानी किताबें मांगी और उन किताबों को सराधी गांव के बच्चों के बीच बांटने का काम किया। ये उन्ही की कोशिशों का असर है कि आज ना सिर्फ सराधी गांव बल्कि आसपास के दूसरे गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। इसके अलावा उन्होने महिलाओं को स्वंय सहायता समूहों के जरिये शिक्षित किया। यही वजह है कि कल तक जो महिलाएं अंगूठा लगातीं थीं, वो आज हस्ताक्षर करती हैं।
जया देवी का सराधी गांव हर साल सूखे के कारण फसलों के बर्बाद होने से परेशान रहता था। ऐसे में जया देवी ने इस समस्या का तोड़ निकालने का फैसला लिया और एक दिन वो एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी के गवर्निंग सदस्य किशोर जायसवाल से मिलीं। उन्होने जया को सूखे का कारण और बारिश के पानी को कैसे बचाया जाये? इसके बारे में बताया। किशोर जायसवाल ने उनको बंजर जमीन पर पेड़ लगाने के लिए कहा। साथ ही जया देवी को रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की ट्रेनिंग दीं। 500 हेक्टेयर जमीन पर वाटरशेड बनने के बाद। इस वाटरशेड से खेती सरल हुई और भूगर्भ पानी का लेवल भी बेहतर हुआ। इस से करीब 50000 किसानों को फायदा पहुंचा। मगर यह काम दो चार दिनों में नहीं हुआ। इस मुहिम में जया देवी और उन की टीम के साथियों की 10 सालों से ज्यादा की मेहनत शामिल है। उन्होंने विलेज वाटरशेड के सर्वे का काम साल 2002 में शुरू किया था। साल 2005 में इस की बुनियाद रखी और साल 2012 में काम मुकम्मल किया।जया देवी ने नाबार्ड द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं के द्वारा करेली, कोयलो, अमरासनी, सखौल, गौरैया, लकड़कोला व बरमसिया विलोखर में वाटरशेड बनवाए हैं। पानी बचाने के लिहाज से इन इलाकों में तालाब, चेक डैम व पत्थरमिट्टी के अवरोध बांध वगैरह बनाए गए हैं। इसके बाद जया देवी ने गांव वालों की मदद से 6 तालाब बनवायें और पुराने तालाबों की मरम्मत की। इसके अलावा उन्होने बंजर जमीनों में फलदार पेड़ लगाये। इन पेड़ों में उन्होने आम, लीची, अमरूद और जामुन के पेड़ लगाये। जिससे लोग उन फलों को बेचकर अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकें। इस तरह पहले जिस जमीन में साल भर में एक फसल लेना भी किसानों के लिए मुश्किल हो रहा था, वहां पर आज वो रवि और खरीफ की दो-दो फसलें ले रहें हैं।
जया देवी की कोशिशों का नतीजा है कि असर है कि आस पास के गांवों में पानी का स्तर ऊपर आ गया है। साथ ही जो जमीन कल तक उसर थी वो भी अब उपजाऊ में बदल गई है। धीरे धीरे उन्होने अपने इस अभियान को दूसरे गांवो के अलावा बिहार के कई जिलों तक पहुंचाया। इस कारण दूसरे गांव भी हरे भरे हो गये। जया देवी कहती हैं कि किशोर जायसवाल मेरे गुरू हैं क्योंकि मैं तो एक मामूली औरत थी लेकिन उनके मार्गदर्शन से ही मैं पर्यावरण को संरक्षित करने का काम कर सकीं। ग्रीन लेडी आॅफ मुंगेर के नाम से क्षेत्र में चर्चित जया देवी को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से भी नवाजा गया है और दक्षिण कोरिया में आयोजित युवा कार्यकर्ता प्रषिक्षण कार्यक्रम में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। वह रियल हीरो अवार्ड से भी सम्मानित हो चुकी हैं।