कुर्सी बनी जड़,छिड़ा सियासी रण।

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वास्तव में राजनीति एक ऐसी प्रयोगशाला है जिसमें सबकुछ संभव है, राजनीति में कभी भी कुछ भी निर्धारित नहीं होता। क्योंकि, आज के समय में राजनीति ने जिस प्रकार से अपना रूप एवं स्वरूप बदला है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है, बदलते समय की बदलती हुई राजनीति ने अब सिद्धान्त कम और समीकरण पर आधिक ध्यान देना आरंभ कर दिया है। जिसे जमीनी स्तर पर आसानी के साथ देखा एवं परखा जा सकता है। संगठन, टिकट बंटवारे, चुनाव लड़ने से लेकर सरकार बनाने तक आज की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है जोकि समीकरण पर ही आधारित हो चली है। इसका ताजा उदाहरण हरियाणा एवं महाराष्ट्र की राजनीति में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। हरियाणा की राजनीति जजपा का जन्म वर्तमान सत्ता धारी दल के ही विरोध में हुआ था, इसी को अपना आधार बनाते हुए जनता के जजपा ने अपनी पैठ बनाई और सियासी जमीन तलाशना आरंभ किया जिसे जनता ने सहयोग किया और हरियाणा की राजनीति में एक नई विचार धारा को लाकर खड़ा किया परन्तु सत्ता की चकाचौंध एवं चमक के बीच विचारधारा नहीं टिक सकी परिणाम यह हुआ कि समीकरण ने अपने हाथ पैर फैलाए और सत्ता की कुर्सी पर समीकरण विराजमान हो गया। इसी का दूसरा रूप अब महाराष्ट्र के चुनाव में बड़ी ही आसानी के साथ देखा जा सकता है। जहाँ कुर्सी के लिए जारी संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। राजनीति में एक दूसरे के साथ चलने वाली दोनों पार्टियाँ अब कुर्सी युद्ध में एक दूसरे के सामने डटी हुई हैं। जिसका मात्र एक कारण है सत्ता की कुर्सी पर अपना हाथ, इसी रस्सा कसी में महाराष्ट्र की राजनीति एक अखाड़ा का रूप धारण कर चुकी है। जहाँ भाजपा अपनी वर्तमान सियासी चाल को बनाए रखना चाहता है वहीं शिवसेना अपनी सियासी चाल का रूप बदलने को बेताब है। क्योंकि शिवसेना महाराष्ट्र की राजनीति में अपना कद बढ़ाना चाहती है। जिसका शिवसेना ने खुलकर प्रस्ताव भी रखा जिस बड़ी खींचतान बनी हुई है। शिवसेना जहाँ एक भी कदम पीछे हटने को तैयार नहीं है वहीं भाजपा भी अपने रूख में कोई खास परिवर्तन लाती हुई नहीं दिखाई दे रही है।

अब प्रश्न यह उठता है कि यह लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर क्यों छिड़ी हुई है। इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं कि भाजपा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना ही व्यक्ति विराजमान करना चाहती है जबकि शिवसेना उस कुर्सी को भाजपा से छीनना चाहती है और अपना व्यक्ति विराजमान करना चाहती है। यदि इतिहास के अतीत में जाएं तो हमें जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति में ऐसा रूप दिखाई देता है कि जहाँ भाजपा ने सरकार बनाने के लिए महबूबा मुफ्ती से हाथ मिलाया और महबूबा मुफ्ती को सियासी सिंहासन पर बतौर मुख्यमंत्री विराजमान कर दिया परन्तु महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा कदापि होता नहीं दिखाई देता। क्योंकि, भाजपा के सख्त तेवर और शिवसेना के अड़ियल रवैये ने जो माहौल पैदा किया है उसका अर्थ बहुत कुछ कहता है। जिसको इस प्रकार समझा जा सकता है। कि शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि हमारे पास बहुमत का आंकड़ा है। अभी हमारे पास 170 विधायकों का समर्थन है, जो 175 तक पहुंच सकता है। बता दें कि शिवसेना के 56 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 44 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के पास 54 विधायक हैं, वहीं, निर्दलीय विधायकों की संख्या एक दर्जन से ज्यादा है, अगर यह सभी पार्टियां एकसाथ आती हैं तो यह आंकड़ा 170 के करीब पहुंच जाता है। वहीं, मुंबई में एनसीपी मुख्यालय में पार्टी नेताओं की बैठक हुई पार्टी प्रमुख शरद पवार उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और शरद पवार के बीच मुलाकातों का दौर भी शूरू हो गया। साथ ही एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने भी बड़ा बयान दिया कि अगर शिवसेना कहती है कि उनका मुख्यमंत्री बनेगा तो यह बिल्कुल मुमकिन है।

शिवसेना अपनी भूमिका स्पष्ठ करे हम भी अपनी भूमिका बता देंगे। यह बात अलग है कि मलिक ने आगे कहा कि फिलहाल जनता ने हमें विपक्ष में बैठने के लिए चुना है और हम उसके लिए तैयार हैं। इससे पहले सामना में शिवसेना ने एक बार फिर से बीजेपी पर निशाना साधते हुए लिखा कि बीजेपी को ईडी, पुलिस, पैसा, धाक के दम पर अन्य पार्टियों के विधायक तोड़कर सरकार बनानी पड़ेगी। देवेंद्र फडणवीस के लिए अच्छी बात यह है कि कोई विरोधी अथवा मुख्यमंत्री पद का दावेदार महाराष्ट्र की भाजपा इकाई में नहीं है। यह एक अजीबोगरीब संयोग है। एक ओर जहां शिवसेना 50-50 फॉर्मूले पर अड़ी हुई है तो वहीं बीजेपी इसपर राजी होने को तैयार नहीं है मुख्यमंत्री को लेकर शिवसेना और बीजेपी में जारी खींचतान के बीच एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को भी महाराष्ट्र में उम्मीदें दिखने लगी हैं।

महाराष्ट्र कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सरकार बनाने के लिए पार्टी को शिवसेना का समर्थन करना चाहिए हालांकि कांग्रेस और शिवसेना अकेले सरकार तो नहीं बना सकतीं, इसके लिए एनसीपी को भी साथ आना जरूरी होगा क्योंकि शरद पवार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी को विपक्ष में बैठने के लिए जनता ने चुना और ऐसे में वह विपक्ष में ही बैठेंगे। शिवसेना की ओर से जारी बीजेपी के खिलाफ हर बयान एनसीपी-कांग्रेस को राहत की सांस देते हुए नए समीकरण की ओर संकेत करते हुए दिखाई देता है। महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता जहाँ सरकार बनाने के लिए शिवसेना को समर्थन देने को तैयार हैं, लेकिन पार्टी नेतृत्व जल्दबाजी में नहीं है। उसका मुख्य कारण शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे अपने जीवनकाल में कांग्रेस पर आक्रामक और हमलावर रहे हैं, लिहाजा कांग्रेस किसी भी विकल्प की ओर फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही है। परन्तु राजनीति के क्षेत्र में कुछ भी निरधारित नहीं है। कोई भी पार्टी कभी भी किसी भी प्रकार का राजनीतिक फैसला ले सकती है। और जब बात हो सरकार बनाने कि तो फिर कुछ भी संभव है। अब देखना यह है कि तमाम उठा-पटक के बीच क्या परिणाम उभरकर सामने आते हैं। क्या भाजपा शिवसेना के सामने झुकती है? क्या शिवसेना अपने अड़िल रवैये से पीछे हटती है? अथवा इन सभी समीकरणों से दूर महाराष्ट्र की राजनीति में नए सूर्य का उदय होता है। जोकि समय के गर्भ में है।

       सज्जाद हैदर

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