भाजपा में गतिशील नेतृत्व का अभाव

बृजनन्दन यादव

जब से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की नियुक्ति हुई है तब से भाजपा के कार्यकर्ताओं में जान आ गई है। पार्टी में सक्रियता भी आई है। पार्टी की सक्रियता से वरिष्ठ नेताओं में भी सक्रियता दिखाई पड़ती है। उसके बाद जैसे-जैसे समय बीत रहा है, यू.पी. कि चिन्ता सब में हैं। प्रदेश से लेकर केन्द्रीय नेतृत्व में भी चिन्ता साफ झलकती है। इस समय भाजपा के लिए समय अनुकूल है। पर वह आपसी अन्तर्द्वन्द एवं खींचतान में फंसी है। अधिकांश नेता ”अपनी डफली अपना राग” अलाप रहे हैं। जिसके कारण पार्टी में जो धार आनी चाहिए वह नहीं आ रही है। वर्तमान सरकार के खिलाफ जिस संघर्ष एवं आन्दोलन की आवश्यकता है वह पार्टी कर पाने में असमर्थ लग रही है। आज भी बहुत से मुद्दे उसके पास हैं, जिनको लेकर वे जनता के बीच जा सकते हैं और लोगों का विश्वास अर्जित कर सकते हैं। किन्तु आपसी कलह व बिखराव के चलते सत्तादल से निपटने में जिस जज्बात एवं साहस की जरूरत है उसकी कमी महसूस की जा रही है। प्रदेश में उमा भारती की वापसी की चर्चा पर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में कुछ आशा की किरण अवश्य जगी थी, लेकिन प्रदेश के धुरंधर नेताओं की अपनी प्रसिध्द परांगमुखता एवं निजी स्वार्थवश उमा को प्रपोज करने से रोक रहे हैं। ऐसा करके वे सभी तत्व एक प्रकार से पार्टी का अनहिल ही कर रहे हैं, क्योंकि सपा, बसपा, कांग्रेस इन सभी पार्टियों से निपटने के लिए उमा भारती ही उपयुक्त एवं सक्षम नेत्री हैं। उनकी अदभुत नेतृत्व क्षमता, वाक्पटुता एवं प्रशासनिक क्षमता से सब वाकिफ हैं। भीड़ बटोरने की कूवत भी उसमें है। लेकिन, प्रदेश के नेता उनका उपयोग तो करना चाहते हैं लेकिन भावी मुख्यमंत्री या प्रदेश की बागडोर सौंपने के लिए राजी नहीं हैं।

जब से केन्द्रीय नेतृत्व ने कलराज मिश्र को भावी मुख्यमंत्री घोषित करने का संकेत दिया है, एवं उनके ही नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है तब से पार्टी के एक बहुत बडे धड़े के नेताओं एवं यूपी के अधिकांश कार्र्यकत्ताओ को निराशा ही हाथ लगी है, क्योंकि इस समय प्रदेश को नए नेतृत्व की जरूरत है जो सभी को साथ लेकर चलने की सामर्थ्य एवं भावी रणनीति तय करने में सक्षम हो। कलराज मिश्र की व्यक्तिगत छवि तो बहुत अच्छी है लेकिन सांगठनिक स्तर पर पकड़ ढ़ीली है। जिस बसपा के ब्राह्मण कार्ड के मुकाबले उनको प्रपोज किया गया है, उसमें भी वह फिट नहीं बैठते हैं, क्योंकि 2007 विधानसभा चुनाव के समय भी कलराज मिश्र काफी सक्रिय थे और ब्राह्मणों के मध्य कार्य के लिए विशेष रूप से लगे थे, लेकिन तब उनकी सक्रियता का कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला। उनके नाम से जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में मतैक्य है तो कार्र्यकत्ताओं की तो बात ही छोड़िये।

पार्टी का कार्यकर्ता जानता है कि कलराज एवं राजनाथ सिंह के ही चलते जब भाजपा प्रदेश में सत्ता में थी तो पार्टी की बहुत छीछालेदर हुई थी। इन्हीं जैसे नेताओं के चलते ही पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा मिला और आज तक भी कायम है। जिसको समाप्त करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रयास करते रहते हैं लेकिन उनको सफलता नहीं मिलती है। भाजपा को अगर प्रदेश में अपनी स्थिति सुधारना है तो किसी नए नेतृत्व की तलाश करनी होगी एवं आपसी कटुता को त्याग कर उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ना होगा। एक तरह से प्रदेश भाजपा में अहं इतना हावी हो गया है कि बड़बोले नेताओं के सिर वह बोल रहा है। प्रदेश में सरकार केवल सवणर्ाें के माध्यम से नहीं आ सकती हैं। उसके लिए समाज के हर वर्गों को जोड़ना पड़ता है।

आज प्रदेश वरुण गांधी जैसे नेतृत्व की चाहत रखता है जो समय आने पर ईंट का जवाब पत्थर से दे सकने में सक्षम हो। प्रदेश के कार्यकर्ता नेताओं की कारगुजारियोें से आजिज आ चुके हैं। नया नेतृत्व निश्चित ही सब में उमंग भरता है। लेकिन भाजपा वही पुराना घिसा-पिटा नेतृत्व लाना चाहती है, जिसे कार्र्यकत्ता पसंद नहीं करेंगे।

केन्द्रीय नेतृत्व को भी यूपी की यह चिंता सता रही है कि गुटबाजी में फंसी भाजपा अभी हाल में होने वाले निकाय एवं विधान सभा चुनावों में सत्तारूढ़ बसपा का मुकाबला कैसे कर पायेगी। भाजपा को मुस्लिम प्रेम भी ले डूबेगा, क्योंकि 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की पराजय का प्रमुख कारण मुस्लिम दरियादिली था। क्योंकि जिन सिध्दान्तों को लेकर वे चले थे जिसके बल पर सत्ता में आये थे सत्ता में आने के बाद उन सारे मुद्दों को भूल गये थे और चुनाव के समय इमामों सें फतवे जारी कराये गये थे एवं उनके साथ चुनाव प्रचार किये थे, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा था। अगर वही भूल फिर की गई तो भाजपा रसातल में चली जायेगी।

2 COMMENTS

  1. आपका विचार सही है की पुराने घिसे पिटे नेताओं से कम नहीं चलेगा खास तौर पर उन से जिन्होंने अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के कारन पार्टी को रसातल में पहुँचाया है.वरुण गाँधी एक अच्छा नाम हो सकता है यदि वो समझदारी और वाणी के संयम से काम लें. साथ ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर युवाओं को साथ लेकर चलें.६०% मतदाता ४० से कम आयु के हैं अतः टिकेट वितरण में भी २५ से ४० के कम से कम ६०% टिकेट दिए जाएँ.पुराने घिसे पिटे लोगों को लाकर पार्टी का सत्यानाश करने की बजाये नए लोगों को लाकर बदल के लिए अपना गंभीर दावा प्रस्तुत करना अधिक बेहतर होगा.कौन कहता हैं की आसमा में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.

  2. लेख हेतु धन्यवाद लेख के अंतिम में आपने बहुत ही अच्छा उल्लेख किया है भाजपा आज जिस स्तथी में है उसका मुख्य कारन उसकी सेकुलरवादी नीति रही है

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